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11. व्याघ्रपथिककथा (बाघ और पथिक की कहानी) : Vyaghra pathik katha in hindi

January 21, 2022 by Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड संस्‍कृत कक्षा 10 पाठ 11 व्याघ्रपथिककथा (Vyaghra pathik katha in hindi) के प्रत्‍येक पंक्ति के अर्थ के साथ उसके वस्‍तुनिष्‍ठ और विषयनिष्‍ठ प्रश्‍नों के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

11. व्याघ्रपथिककथा (बाघ और पथिक की कहानी)

पाठ परिचय- यह कथा नारायण पंडित रचित प्रसिद्ध नीतिकथाग्रन्थ ‘हितोपदेश‘ के प्रथम भाग ‘मित्रलाभ‘ से संकलित है। इस कथा में लोभाविष्ट व्यक्ति की दुर्दशा का निरूपण है। आज के समाज में छल-छद्म का वातावरण विद्यमान है जहाँ अल्प वस्तु के लोभ से आकृष्ट होकर प्राण और सम्मान से वंचित हो जाते हैं। यह उपदेश इस कथा से मिलता है कि वंचकों के चक्कर में न पड़े।

अयं पाठः नारायणपण्डितरचितस्य हितोपदेशनामकस्य नीतिकथाग्रन्थस्य मित्रलाभनामकखण्डात् संकलितः।
यह पाठ नारायण पंडित द्वारा रचित हितोपदेश नामक नीतिकथा ग्रन्थ के मित्रलाभ नामक खण्ड से संकलित है।

हितोपदेशे बालकानां मनोरंजनाय नीतिशिक्षणाय च नानाकथाः पशुपक्षिसम्बद्धाः श्राविताः।
हितोपदेश में बालकों के मनोरंजन के लिए और नीति-शिक्षा के लिए अनेक कहानियाँ पशु-पक्षी से सम्बन्धित हैं।

प्रस्तुत कथायां लोभस्य दुष्परिणामः प्रकटितः।
प्रस्तुत कथा में लोभ के दुष्परिणाम प्रकट किया गया है।

पशुपक्षिकथानां मूल्यं मानवानां शिक्षार्थं प्रभूतं भवति इति एतादृशीभिः कथाभिः ज्ञायते।
पशु-पक्षी के कहानी का महत्व मानवों की शिक्षा हेतु अचूक होता है। कहानीयों से ज्ञान होता है।

Chapter 11 व्याघ्रपथिककथा (बाघ और पथिक की कहानी)

कश्चित् वृद्धव्याघ्रः स्नातः कुशहस्तः सरस्तीरे ब्रुते- ‘भो भोः पान्थाः। इदं सुवर्णकंकणं गृह्यताम्।‘
कोई बूढ़ा बाघ स्नान कर कुश हाथ में लेकर तालाब के किनारे बोल रहा था- ‘‘ वो राही, वो राही ! यह सोने का कंगन ग्रहण करो।‘‘

ततो लोभाकृष्टेन केनचित्पान्थेनालोचितम्- भाग्येनैतत्संभवति। किंत्वस्मिन्नात्मसंदेहे प्रवृत्तिर्न विधेया। यतः –
इसके बाद लोभ से आकृष्ट होकर किसी राही के द्वारा सोचा गया- भाग्य से ऐसा मिलता है। किन्तु यहाँ आत्म संदेह है। आत्म संदेह की स्थिति में कार्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि-

अनिष्टादिष्टलाभेऽपि न गतिर्जायते शुभा।
यत्रास्ते विषसंसर्गोऽमृतं तदपि मृत्यवे।।

जहाँ अमंगल की आशंका होती है, वहाँ जाने से व्यक्ति को परहेज करना चाहिए । लाभ वहीं होता है जहाँ अनुकूल परिवेश होता है। क्योंकि विषयुक्त अमृत पीने से भी मृत्यु प्राप्त होती है।

किंतु सर्वत्रार्थार्जने प्रवृतिः संदेह एव। तन्निरूपयामि तावत्।‘ प्रकाशं ब्रुते- ‘कुत्र तव कंकणम् ?‘
लेकिन हर जगह धन प्राप्ति की इच्छा करना अच्छा नहीं होता । इसलिए तब तक विचार लेता हुँ। सुनकर कहता है- ‘कहाँ है तुम्हारा कंगन?‘

व्याघ्रो हस्तं प्रसार्य दर्शयति।
बाघ हाथ फेलाकर दिखा देता है।

पन्थोऽवदत्- ‘कथं मारात्मके त्वयि विश्वासः ?
पथिक ने पूछा- ‘तुम हिंसक पर कैसे विश्वास किया जाए ?‘

व्याघ्र उवाच- ‘शृणु रे पान्थ ! प्रागेव यौवनदशायामतिदुर्वृत्त आसम्।
बाघ ने कहा- ‘हे पथिक सुनो‘ पहले युवास्था में मैं अत्यंत दुराचारी था।

अनेकगोमानुषाणां वर्धान्मे पुत्रा मृता दाराश्च वंशहीनश्चाहम्।
अनेक गायों तथा मनुष्यों के मारने से मेरे पुत्र और पत्नि की मृत्यु हो गई और मैं वंशहीन हो गया।

ततः केनचिद्धार्मिकेणाहमादिष्टः – ‘दानधर्मादिकं चरतु भवान्।‘
इसके बाद किसी धर्मात्मा ने मुझे उपदेश दिया- ‘‘ आप दान और धर्म आदि करें।

तदुपदेशादिदानीमहं स्नानशीलो दाता वृद्धो गलितनखदन्तो कथं न विश्वासभूमिः ? मया च धर्मशास्त्राण्यधीतानि। शृणु –
उनके उपदेश से मैं इस समय स्नानशील , दानी हुँ तथा बुढ़ा और दंतविहीन हूँ, फिर कैसे विश्वासपात्र नहीं हुँ ? मेरे द्वार धर्मशास्त्र भी पढ़ा गया है। सुनो-

दरिन्द्रान्भर कौन्तेय ! मा प्रयच्छेश्वरे धनम्।
व्याधितस्यौषधं पथ्यं, नीरुजस्य किमौषधेः।।

हे कुन्तीपुत्र ! गरीबों को धन दो, धनवानों को धन मत दो । रोगी को दवा की जरूरत होती है। नीरोगी को दवा की कोई जरूरत नहीं होती है।

अन्यच्च –
और दूसरी बात यह है कि-

दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्विकं विदुः ।।

दान देना चाहिए। दान उसी को देना चाहिए। जिससे कोई उपकार नहीं कराना हो, उचित जगह, उपयुक्त समय और उपयुक्त व्यक्ति को दिया हुआ दान साŸवक दान होता है।

तदत्र सरसि स्नात्वा सुवर्णकंकणं गृहाण।
तुम यहाँ तालाब में स्नानकर सोने का कंगन ले लो।

ततो यावदसौ तद्वचः प्रतीतो लोभात्सरः स्नातुं प्रविशति। तावन्महापंके निमग्नः पलायितुमक्षमः।
उसके बाद उसकी बातों पर विश्वास कर ज्योंही वह लोभ से तालाब में स्नान के लिए प्रविष्ठ हुआ त्योंहि गहरे किचड़ में डुब गया और भागने में असमर्थ हो गया।

पंके पतितं दृष्ट्वा व्याघ्रोऽवदत् – ‘अहह, महापंके पतिताऽसि। अतस्त्वामहमुत्थापयामि।‘
उसको किचड़ में फंसा देखकर बाघ बोला- अरे रे, तुम गहरे किचड़ में फंस गये हों। इसलिए मैं तुमको निकाल देता हुँ ।

इत्युक्त्वा शनैः शनैरुपगम्य तेन व्याघ्रेण धृतः स पन्थोऽचिन्तयत् –
यह कहकर धीरे-धीरे उसके निकट जाकर उस बाघ ने उस पथिक को पकड़ लिया। उस पथिक ने सोचा-

अवशेन्द्रियचित्तानां हस्तिस्नानमिव क्रिया।
दुर्भगाभरणप्रायो ज्ञानं भारः क्रियां विना।।

जिस व्यक्ति की इन्द्रियाँ और मन अपने वश में नही हो, उसकी सारी क्रियाएँ हाथी के स्नान के समान हैं। जिस प्रकार बंध्या स्त्री का पालन पोषण बेकार है, उसी प्रकार क्रिया के बिना ज्ञान भार स्वरूप है।

इति चिन्तयन्नेवासौ व्याघ्रेण व्यापादितः खादितश्च। अत उच्यते –
ऐसा सोचता हुआ पथिक बाघ से पकड़ा गया और खाया गया। इसलिए कहा जाता है-

कंकणस्य तु लोभेन मग्नः पंके सुदुस्तरे।
वृद्धव्याघ्रेण संप्राप्तः पथिकः स मृतो यथा।।

जिस प्रकार कंगन के लोभ में पथिक गहरे किचड़ में फँस गया तथा बूढ़े बाघ द्वारा पकड़कर मार दिया गया। vyaghra pathik katha in hindi

11 व्याघ्रपथिक कथा Objective Questions
प्रश्‍न 1. ‘इदं सुवर्ण कंकणं गृहताम्‘ किसने कहा ?
(A) पथिक 
(B) कथाकार
(C) बाघ
(D) दानी

उत्तर-(C) बाघ

प्रश्‍न 2. ‘व्याघ्रपथिक कथा‘ पाठ में किसके दुष्परिणाम का वर्णन किया गया है ?
(A) क्रोध  
(B) लोभ
(C) मोह   
(D) काम

उत्तर-(B) लोभ

प्रश्‍न 3. ‘दरिद्रान्भर कौन्तेय! मा ……. नीरुजस्य किमौषधेः‘ पद्य किस पाठ से संकलित है ?
(A) अरण्यकाण्ड से       
(B) व्याघ्रपथिक कथा से
(C) किष्किन्धा काण्ड से 
(D) सुन्दर काण्ड से

उत्तर-(B) व्याघ्रपथिक कथा से

प्रश्‍न 4. ‘व्याघ्रपथिक कथा‘ किस ग्रंथ से लिया गया है ?
(A) पंचतंत्र   
(B) हितोपदेश
(C) रामायण
(D) महाभारत

उत्तर-(B) हितोपदेश

प्रश्‍न 5. कौन स्नान किए हुए हाथ में कुश लिए तालाब के किनारे बोल रहा था ?                           
(A) व्याघ्र 
(B) भालू
(C) बंदर   
(D) मनुष्य

उत्तर-(A) व्याघ्र

प्रश्‍न 6. व्याघ्र के हाथ में क्या था ?
(A) संस्कृत पुस्तक 
(B) वेद
(C) सुवर्ण कंगन     
(D) गज

उत्तर-(C) सुवर्ण कंगन

11. व्याघ्रपथिककथा Subjective Questions
लेखक- नारायण पण्डित

लघु-उत्तरीय प्रश्नोकत्तर (20-30 शब्दों में) ____दो अंक स्तरीय
प्रश्‍न 1. ‘व्याघ्रपथिककथा’ के आधार पर बतायें कि दान किसको देना चाहिए ? (2018A)
उत्तर- दान गरीबों को देना चाहिए । जिससे कोई उपकार नहीं कराना हो, उसे दान देना चाहिए। स्थान, समय और उपयुक्तण व्यीक्ति को ध्यान में रखकर दान देना चाहिए।

प्रश्‍न 2. सोने के कंगन को देखकर पथिक ने क्या सोचा? (2020AІІ)
उत्तर- पथिक ने सोने के कंगन को देखकर सोचा कि ऐसा भाग्य से ही मिल सकता है, किन्तु जिस कार्य में खतरा हो, उसे नहीं करना चाहिए। फिर लोभवश उसने सोचा कि धन कमाने के कार्य में खतरा तो होता ही है। इस तरह वह लोभ से वशीभूत होकर बाघ की बातों में आ गया।

प्रश्‍न 3. धन और दवा किसे देना उचित है ? (2020AІ)
उत्तर- व्याघ्रपथिककथा पाठ के माध्यम से बताया गया है कि धन उसे देना उचित है, जो निर्धन हो तथा दवा उसे देना उचित है, जो रोगी हो अर्थात् धनवान को धन देना और निरोग को दवा देना उचित नहीं है।

प्रश्‍न 4. ‘व्याघ्रपथिककथा’ कहाँ से लिया गया है? इसके लेखक कौन हैं तथा इससे क्या शिक्षा मिलती है? (2017A)
उत्तर- ‘व्याघ्रपथिककथा’ हितोपदेश ग्रंथ के मित्रलाभ खण्ड से ली गई है। इसके लेखक ‘नारायण पंडित’ जी हैं। इस कथा के द्वारा नारायणपंडित हमें यह शिक्षा देते हैं कि दुष्टों की बातों पर लोभ में आकर विश्वास नहीं करना चाहिए । सोच समझकर ही काम करना चाहिए। इस कथा का उद्देश्य मनोरंजन के साथ व्यावहारिक ज्ञान देना है।
vyaghra pathik katha in hindi

प्रश्‍न 5. नारायणपंडित रचित व्याघ्रपथिककथा पाठ का मूल उद्देश्य क्या है?
उत्तर- व्याघ्रपथिककथा का मूल उद्देश्य यह है कि हिंसक जीव अपने स्वभाव को नहीं छोड़ सकता। इस कथा के द्वारा नारायण पं‍डित हमें यह शिक्षा देते हैं कि दुष्ट की बातों पर लोभ में आकर विश्वास नहीं करना चाहिए । सोच-समझकर ही काम करना चाहिए। इस कथा का उद्देश्य मनोरंजन के साथ व्यावहारिक ज्ञान देना है ।

प्रश्‍न 6. व्याघ्रपथिककथा’ को संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।                
अथवा, व्याघ्रपथिककथा के लेखक कौन हैं? इस पाठ से क्या शिक्षा मिलती ? पाँच वाक्यों में उत्तर दें। (2012A)
उत्तर- यह कथा नारायण पण्डित रचित हितोपदेश के नीतिकथाग्रन्थ के मित्रलाभ खण्ड से ली गयी है। इस कथा में एक पथिक वृद्ध व्याघ्र द्वारा दिये गये प्रलोभन में पड़ जाता है। वृद्ध व्याघ्र हाथ में सुवर्ण कंगन लेकर पथिक को अपनी ओर आकृष्ट करता है। पथिक निर्धन होने के बावजूद व्याघ्र पर विश्वास नहीं करता । तब व्याघ्र द्वारा सटीक तर्क दिये जाने पर पथिक संतुष्ट होकर कंगन ले लेना उचित समझता है। स्नान कर कंगन ग्रहण करने की बात स्वीकार कर पधिक महा कीचड़ में गिर जाता है और वृद्ध व्याघ्र द्वारा मारा जाता है। इसकथा में संदेश और शिक्षा यही है किनरभक्षी प्राणियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए और अपनी किसी भी समस्या का समाधान ऐसे व्यक्ति द्वारा नजर आये तब भी उसके लोभ में नहीं फँसना चाहिए।

प्रश्‍न 7.व्याघ्रपथिककथा से क्या शिक्षा मिलती है? (2015A, 2015C)
अथवा, व्याघ्रपथिककथा में मूल संदेश क्या है?
उत्तर- इस कथा के द्वारा नारायण पं‍डित हमें यह शिक्षा देते हैं कि दुष्ट की बातों पर लोभ में आकर विश्वास नहीं करना चाहिए। सोच-समझकर ही काम करना चाहिए। नरभक्षी (जो मनुष्य  को आहार के रूप में खाता है।) प्राणियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए और अपनी किसी भी समस्या का समाधान ऐसे व्यक्ति द्वारा नजर आये तब भी उसके लोभ में नहीं फँसना चाहिए। इस कथा का उद्देश्य मनोरंजन के साथ व्यावहारिक ज्ञान देना है।

प्रश्‍न 8.पथिक वृद्ध बाघ की बातों में क्यों आ गया?
उत्तर- पथिक ने सोने के कंगन की बात सुनकर सोचा कि ऐसा भाग्य से ही मिल सकता है, किन्तु जिस कार्य में खतरा हो, उसे नहीं करना चाहिए। फिर लोभवश उसने सोचा कि धन कमाने के कार्य में खतरा तो होता ही है। इस तरह वह लोभ से वशीभूत होकर बाघ की बातों में आ गया।

प्रश्‍न 9.व्याघ्रथिककथा पाठ का पांच वाक्यों में परिचय दें।
उत्तर- यह कथा नारायण पंडित रचित प्रसिद्ध नीति कथाग्रन्थ ‘हितोपदेश’ के प्रथम भाग ‘मित्रलाभ’ से संकलित है। इस कथा में लोभाविष्ट व्यक्ति की दुर्दशा का निरूपण है। आज के समाज में छल-कपट का वातावरण विद्यमान है, जहाँ अल्प वस्तु के लोभ से आकृष्ट होकर लोग अपने प्राण और सम्मान से वंचित हो जाते हैं। एक बाघ की चाल में फंसकर एक लोभी पथिक उसके द्वारा मारा गया।

प्रश्‍न 10.सात्विकदान क्या है? पठित पाठ के आधार पर उत्तर दें। (2018A)
उत्तर- उपयुक्त  स्थान, समय एवं व्‍‍यक्ति को ध्यान में रखकर दिया गया दान सात्विक होता है।

प्रश्‍न 11.वृद्धबाघ ने पथिकों को फंसाने के लिए किस तरह का भेष रचाया ?
उत्तर- वृद्धबाघ ने पथिकों को फंसाने के लिए एक धार्मिक का भेष रचाया । उसने स्नान कर और हाथ में कुश लेकर तालाब के किनारे पथिकों से बात कर उन्हें दानस्वरूप सोने का कंगन पाने का लालच दिया ।

प्रश्‍न 12.वृद्धबाघ पथिक को पकड़ने में कैसे सफल हुआ था?
अथवा, बाघ ने पथिक को पकड़ने के लिए क्या चाल चली?
उत्तर- वृद्धबाघ ने एक धार्मिक का भेष रचकर तालाब के किनारे पथिकों को सोने का कंगन लेने के लिए कहा । उस तालाब में अधिकाधिक कीचड़ था। एक लोभी पथिक उसकी बातों में आ गया। बाघ ने लोभी पथिक को स्वर्ण कंगन लेने से पहले तालाब में स्नान करने के लिए कहा । उस बाघ की बात पर विश्वास कर जब पथिक तालाब में घुसा, वह बहुत अधिक कीचड़ में धंस गया और बाघ ने उसे पकड़ लिया तथा मारकर खा गया। Vyaghra pathik katha in hindi

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