2. ऊतक
समान उत्पत्ति तथा समान कार्यों को संपादित करनेवाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहते हैं।
मानव शरीर में अलग-अलग कार्यों को करने के लिए (जैसे- भोजन को पचाने के लिए, ऑक्सीजन पहुँचाने के लिए, गति प्रदान करने के लिए) अलग- अलग कोशिकाओं का समुह रहती है, जिसे ऊतक कहते हैं।
ऊतक से अंग का निर्माण तथा अंग से शरीर का निर्माण होता है।
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पादप ऊतक
ऊतक के कोशिकाओं के विभाजन क्षमता के आधार पर पादप ऊतक दो प्रकार के होते हैं-
(क) विभज्योतकी ऊतक
(ख) स्थायी ऊतक
(क) विभज्योतकी ऊतक- यह व्यस्क और जीवित कोशिकाओं की बनी होती है। इसमें विभाजन की क्षमता होती है।
विभज्योतकी ऊतक, स्थायी ऊतक में परिवर्तित होते हैं।
यह लंबाई में वृद्धि, तना की चौड़ाई में वृद्धि तथा टहनीयों तथा पत्तियों की वृद्धि करता है।
विभज्योतकी ऊतक तीन प्रकार के होते हैं-
1. शीर्षस्थ, 2. पार्श्वस्थ और 3. अंतर्वेशी
1. शीर्षस्थ विभज्योतकी ऊतक- यह तने एवं जड़ के शीर्ष भाग में होता है तथा लंबाई में वृद्धि करता है।
2. पार्श्वस्थ विभज्योतकी ऊतक- यह जड़ तथा तने के पार्श्वभाग में होता है। यह तना की चौड़ाई में वृद्धि करता है।
3. अंतर्वेशी विभज्योतकी ऊतक- यह स्थायी ऊतक के बीच-बीच में पाया जाता है। यह पत्तियों के आधार में तथा टहनी के पर्व के दोनों ओर पाए जाते हैं एवं वृद्धि करके स्थायी ऊतक में परिवर्तित हो जाते हैं।
(ख) स्थायी ऊतक- विभज्योतकी ऊतक की वृद्धि के फलस्वरूप स्थायी ऊतक बनता है, इसमें विभाजन की क्षमता नहीं होती है।
यह दो प्रकार के होते हैं-
1. सरल स्थायी ऊतक और
2. जटिल स्थायी ऊतक
1. सरल स्थायी ऊतक- यह समरूप कोशिकाओं का बना होता है। यह तीन प्रकार का होता है।
(क) मृदूतक या पैरेनकाइमा
(ख) स्थूलकोण ऊतक या कॉलेनकाइमा
(ग) दृढ़ ऊतक या स्क्लेरेनकाइमा
(क) मृदूतक या पैरेनकाइमा- मृदूतक कोशिकाएँ जीवित, गोलाकार, अण्डाकार तथा अनियमित आकार की होती है। यह नए तने, मूल एवं पत्तियों के एपिडर्मिस में पाया जाता है।
एपिडर्मिस- यह पौधों के शरीर के बाह्य आवरण बनाता है तथा आंतरिक ऊतकों की सुरक्षा करता है।
मृदूतक के कार्य- 1. एपर्मिस के रूप में पौधों का संरक्षण करता है।
2. पौधे के हरे भागों में, खासकर पत्तियों में भोजन का संचय करता है।
3. उत्सर्जित पदार्थों, जैसे गोंद, रेजिन, टैनिन आदि को संचित करता है।
(ख) स्थूलकोण ऊतक या कॉलेनकाइमा- इसकी कोशिकाएँ केंद्रकयुक्त, जीवित तथा रसधानीयुक्त होती हैं। इसमें हरितलवक होता है।
यह तने के एपिडर्मिस के नीचे, पर्णवृंत, पुष्पवृंत और पुष्पावली-वृंत पर पाया जाता है।
कार्य- 1. यह पौधों को यांत्रिक सहायता प्रदान करता है।
2. जब इसमें हरितलवक पाया जाता है तब यह भोजन का निर्माण करता है।
(ग) दृढ़ ऊतक या स्क्लेरेनकाइमा- इसकी कोशिकाएँ मृत, लंबी तथा दोनों सिरों पर नुकीली होती है।
यह पौधों के तना, फलों तथा बीजों के कठोर आवरण तथा नारियल के बाहरी रेशेदार छिलके में पाए जाते हैं।
कार्य- 1. यह पौधे के यांत्रिक शक्ति प्रदान करता है एवं आंतरिक भागों की रक्षा करता है।
2. यह पौधों को दृढ़ता प्रदान करता है।
2. जटिल स्थायी ऊतक- दो या दो से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से बने ऊतक को जटिल स्थायी ऊतक कहते हैं। यह जल, खनिज लवणों तथा खाद्य पदार्थों को पौधे के शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचाने का कार्य करते हैं।
यह दो प्रकार के होते हैं-
(क) जाइलम
(ख) फ्लोएम
(क) जाइलम- जाइलम ऊतक पौधे के मूल, तना तथा पत्तियों में पाया जाता है। इसे चालन ऊतक भी कहते हैं।
यह जल एवं खनिज लवणों का परिवहन जड़ से ऊपर की ओर (पत्तियों की ओर) करते हैं। इसका परिवहन नीचे से ऊपर की ओर होता है।
(ख) फ्लोएम- फ्लोएम भी पौधे की जड़, तना एवं पत्तियों में पाया जाता है।
यह खाद्य पदार्थों का परिवहन करते हैं। इसका परिवहन ऊपर तथा नीचे दोनों ओर होता है।
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जंतु ऊतक
प्रत्येक बहुकोशिकीय जंतु में अलग-अलग कार्यों के संपादन के लिए कोशिकाओं के भिन्न-भिन्न समूह होते हैं। प्रत्येक समुह की सारी कोशिकाएँ उक तरह की होती है। कोशिकाओं के इस समुह को ऊतक कहते हैं।
बहुकोशिकीय जंतु में ऊतक चार प्रकार के होते हैं-
1. उपकला या एपिथीलियमी ऊतक
2. संयोजी ऊतक
3. पेशी ऊतक
4. तंत्रिका ऊतक
1. उपकला या एपिथीलियमी ऊतक- इससे शरीर के बाहरी हिस्सा अर्थात त्वचा बना होता है। शरीर के आंतरिक अंगों की बाहरी परत इसी ऊतक से बना होता है।
2. संयोजी ऊतक- यह शरीर के विभिन्न अंगों को जोड़ने का कार्य करता है। जैसे- अस्थि, रक्त, लसिका आदि।
संयोजी ऊतक तीन प्रकार के होते हैं-
(क) वास्तविक संयोजी ऊतक
(ख) कंकाल ऊतक
(ग) तरल ऊतक या संवहनीय ऊतक
(क) वास्तविक संयोजी ऊतक- यह त्वचा एवं मांसपेशियों अथवा दो मांसपेशियों को जोड़ने का कार्य करता है। यह शरीर के आंतरिक अंगों को ढीले रूप से बाँधकर उन्हें अपने स्थान पर रखने में मदद करता है।
वसा संयोजी या एडिपोज ऊतक- यह ऊतक त्वचा के नीचे चर्बी के रूप में पाया जाता है। यह बाहरी चोटों से अंगों की रक्षा करता है।
यह ऊतक तापरोधक होता है, जो ठंड से शरीर की सुरक्षा करता है। ठंडे प्रदेशों के जंतुओं के शरीर में यह ऊतक अधिक मात्रा में पाया जाता है।
शरीर में इस ऊतक के अधिक मात्रा से शरीर मोटा हो जाता है।
(ख) कंकाल ऊतक- कंकाल ऊतक दो प्रकार के होते हैं।
उपास्थि- यह अस्थियों के जोड़ को चिकना बनाती है। यह मुलायम होती है। यह बाह्यकर्ण, नाक, श्वासनली या ट्रैकिया, स्टरनम में पायी जाती है। इसमें कैल्शियम फॉस्फेट पाया जाता है।
अस्थि- इससे अस्थि का निर्माण होता है। यह कठोर होता है। इसमें कैल्शियम फॉस्फेट और कैल्शियम कार्बोनेट दोनों पाया जाता है। यह काफी मजबुत होता है।
(ग) तरल ऊतक या संवहनीय ऊतक- रक्त या रुधिर एवं लसीका को तरल संयोजी ऊतक कहते हैं। रक्त तरल ऊतक का ही बना होता है।
रक्त- रक्त या रुधिर के तरल भाग को प्लाज्मा कहते हैं।
प्लाज्मा- यह हल्के पीले रंग का चिपचिपा और थोड़ा क्षारिय द्रव्य है, जो आयतन के हिसाब से पूरे रक्त का 55 प्रतिशत होता है। शेष 45 प्रतिशत रुधिरकणिकाएँ होती है।
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रुधिरकणिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं-
(क) लाल रुधिरकणिकाएँ
(ख) श्वेत रुधिरकणिकाएँ
(ग) प्लेटलेट्स
(क) लाल रुधिरकणिकाएँ- मानव शरीर में यह उभयावतल होता है। इसका निर्माण अस्थिमज्जा में होता है। इसमें हीमोग्लोबीन रंजक होता है। यह (हीमोग्लोबीन) लाल रुधिरकणिकाएँ ऑक्सीजन के परिवहन का कार्य करता है।
(ख) श्वेत रुधिरकणिकाएँ- इसकी संख्या लाल रूधिरकणिकाएँ से कम होती है। यह शरीर में रोगाणुओं से रक्षा करता है। जीवाणुओं को नष्ट करने का कार्य करती है।
(ग) प्लेटलेट्स- यह रक्त को थक्का बनाने में मदद करता है।
शरीर में रक्त के कार्य-
1. रक्त पचा हुआ भोजन सामग्री के परिवहन का कार्य करता है।
2. यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है।
3. श्वेत रूधिरकणिकाएँ जीवाणओं एवं अन्य हानिकारक पदार्थों का भक्षण कर उन्हें नष्ट कर देता है।
4. प्लेटलेट्स रक्त को जमाने में मदद करता है।
लसीका- यह एक वर्णहीन द्रव है। इसमें लाल रूधिरकणिकाएँ एवं प्लेटलेट्स नहीं होते हैं। इसमें श्वेत कणिकाएँ (लिम्फोसाइट्स) तैरते रहते हैं।
कार्य- लसीका में मौजुद लिम्फोसाइट्स रोगाणुओं, जैसे जीवाणुओं का भक्षण कर, उनको नष्ट कर संक्रमण से हमारी सुरक्षा करते हैं।
यह पोषक पदार्थों का परिवहन करते हैं।
पेशी ऊतक- पेशी ऊतक से हमारी मांसपेशियाँ बनी होती है।
तंत्रिका ऊतक- जंतुओं के शरीर के मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा तंत्रिकाएँ बनी होती है। यह ऊतक संवेदना को एक भाग से दूसरे भाग तक भेजने का कार्य करती है।
प्रश्न 1. ऊतक क्या है ?
उत्तर : कोशिकाओं का ऐसा समूह जिसकी उत्पत्ति, संरचना एवं कार्य समान हों, ऊतक कहलाता है।
प्रश्न 2. बहुकोशिकीय जीवों में ऊतकों का क्या उपयोग है?
उत्तर : ऊतकों द्वारा अंग एवं अंगतन्त्रों का निर्माण होता है।
प्रश्न 3. प्रकाश-संश्लेषण के लिए किस गैस की आवश्यकता होती है ?
उत्तरः प्रकाश-संश्लेषण के लिए कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैस की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 4. पौधों में वाष्पोत्सर्जन के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः पौधों में वाष्पोत्सर्जन के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं-
इसके द्वारा पौधों का तापमान नियन्त्रित रहता है।
यह पौधों के जल अवशोषण की क्रिया को प्रभावित करता है।
इसके द्वारा पौधों को खनिज लवणों के अवशोषण एवं रसारोहण में सहायता मिलती है।
वाष्पोत्सर्जन से फलों में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है।
प्रश्न 5. कार्डियक (हृदयक) पेशी का विशेष कार्य क्या है ?
उत्तरः ये पेशियाँ प्राणी के सम्पूर्ण जीवनकाल तक सक्रिय बनी रहती हैं। इनमें क्रमिक संकुचन लगातार होता रहता है परन्तु थकान नहीं होती। जिसके कारण हृदय जीवनपर्यन्त (जीवनभर) धड़कते रहता है।
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