इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के कक्षा 10 इतिहास के पाठ दो ‘समाजवाद एवं साम्यवाद (Samajwad Evam Samyavad 10th solutions and notes)’ के नोट्स और सभी प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
2.समाजवाद एवं साम्यवाद
समाजवाद और साम्यवाद दोनों का उद्देश्य– समानता स्थापित करना है।
एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के समान हो।
किसी के साथ कोई भेद-भाव नहीं हो।
सब किसी को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक समानता मिले।
समाजवाद की उत्पत्ति
समाजवादी भावना का उदय मूलतः 18 वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप हुआ था।
औद्योगिक क्रांति के दौरान पूँजीपतियों और मिल-मालिकों की श्रमिक विरोधी नीतियों के कारण सभी देशों के श्रमिक जीवन नरकीय बन गया था।
श्रमिकों को कोई अधिकार नहीं था और उनका क्रूर शोषण हो रहा था।
पूँजीवादी व्यवस्था दिन-प्रतिदिन मजबूत होती जा रही थी।
श्रमिकां की आर्थिक स्थिति का तेजी से पतन हो रहा था।
आर्थिक दृष्टि से समाज का विभाजन दो वर्गों में हो गया था-
(1) पूँजीपति वर्ग
(2) श्रमिक वर्ग
जिस समय श्रमिक जगत आर्थिक दुर्दशा और सामाजिक पतन की स्थिति से गुजर रहा था उसी समय श्रमिकां को कुछ महत्वपूर्ण राष्ट्र-भक्तों, विचारकों और लेखकों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
इन व्यक्तियों ने सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में एक नवीन विचारधारा का प्रतिपादन किया जिसे ‘समाजवाद’ के नाम से जाना जाता है।
कार्ल मार्क्स के पहले के समाजवाद को यूटोपियन समाजवाद तथा कार्ल मार्क्स के बाद के समाजवाद को वैज्ञानिक समाजवाद के नाम से जाना जाता है।
यूटोपियन समाजवाद के जनक सेंट साइमन तथा वैज्ञानिक समाजवाद के जनक कार्ल मार्क्स थे।
समाजवाद एवं साम्यवाद में अंतर
यूटोपियन समाजवादी
प्रथम यूटोपियन समाजवादी, जिसने समाजवादी विचारधारा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, एक फ्रांसीसी विचारक सेंट साइमन था।
उसका मानना था कि राज्य एवं समाज को इस ढंग से संगठित करन चाहिए कि लोग एक दूसरे का शोषण करने के बदले मिलजुल कर प्रकृति का दोहन करें।
प्रत्येक को उसकी क्षमता के अनुसार तथा प्रत्येक को उसके कार्य के अनुसार वेतन मिलना चाहिए।
फ्रांस से बाहर सबसे महत्वपूर्ण यूटोपियन चिंतक ब्रिटिश उद्योगपति रार्बट ओवन था।
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कार्ल मार्क्स (1818-1883)
कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 ई० को जर्मनी के राइन प्रांत के ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था।
कार्ल मार्क्स के पिता हेनरिक मार्क्स एक प्रसिद्ध वकील थे, जिन्होंने बाद में चलकर ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था।
मार्क्स ने बोन विश्व विद्यालय में विधि की शिक्षा ग्रहण की परन्तु 1836 में वे बर्लिन विश्वविद्यालय चले आये, जहाँ उनके जीवन को एक नया मोड़ मिला।
1843 में उन्होंने बचपन के मित्र जेनी से विवाह किया।
कार्ल मार्क्स की मुलाकात पेरिस में 1844 ई० में फ्रेडरिक एंगेल्स से हुई जिससे जीवन भर उसकी गहरी मित्रता बनी रही।
मार्क्स ने 1867 ई० में ‘दास–कैपिटल‘ नामक पुस्तक की रचना की जिसे ‘समाजवादियों की बाइबिल‘ कहा जाता है।
मार्क्स के सिद्धांत : कार्ल मार्क्स ने पाँच सिद्धांत दिया।
द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत
वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत
इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या
मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
राज्यहीन और वर्गहीन समाज की स्थापना
कार्ल मार्क्स के अनुसार छः ऐतिहासिक चरण हैं।
आदिम साम्यवादी युग
दासता का युग
सामन्ती युग
पूँजीवादी युग
समाजवादी युग
साम्यवादी युग
1917 की बोल्शेविक क्रांति
20वीं शताब्दी के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना रूस की क्रांति थी।
इस क्रांति ने रूस के सम्राट अथवा जार के एकतंत्रीय निरंकुश शासन का अंत कर मात्र लोकतंत्र की सीपना का ही प्रयत्न नहीं किया, अपितु सामाजिक, आर्थिक और व्यवसायिक क्षेत्रों में कुलीनों, पूँजीपतियों और जमींदारों की शक्ति का अंत किया और किसानों की सत्ता को स्थापित किया।
1917 की बोल्शेविक क्रांति के कारण :
- जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन
- कृषकों की दयनीय स्थिति
- मजदूरों की दयनीय स्थिति
- औद्योगीकरण की समस्या
- रूसीकरण की नीति
- विदेशी घटनाओं का प्रभाव :
(क) क्रीमिया का युद्ध
(ख) जापान से पराजय तथा 1905 की क्रांति
(ग) रूस में मार्क्सवाद का प्रभाव तथा बु़द्धजीवियों का योगदान
(घ) तात्कालिक कारण-प्रथम विश्व युद्ध में रूस की पराजय
रूसी क्रांति
खूनी रविवार–1905 में रूस-जापान युद्ध में रूस के पराजय के कारण 9 जनवरी 1905 को लोगों का समूह ‘रोटी दो‘ के नारे के साथ सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए सेंट पीटर्सवर्ग स्थित महल की ओर जा रहा था। परन्तु जार की सेना ने इस निहत्थे लोगों पर गोलियाँ बरसाई। जिसमें हजारों लोग मारे गये इसलिए 22 जनवरी को खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।
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मार्च की क्रांति एवं निरंकुश राजतंत्र का अंत :
7 मार्च 1917 को पेट्रोग्राड (वर्तमान लेनिनग्राद) की सड़कों पर किसान-मजदूरों ने जुलूस निकाला। उन्होंने ‘रोटी दो’ के नारे लगाए। अगले दिन 8 मार्च को कपड़े की मिलों की महिला मजदूरों ने बहुत सारे कारखानों में ‘रोटी’ की माँग करते हुए हड़ताल का नेतृत्व किया, जिसमें अन्य मजदूर भी शामिल हो गए।
जुलूस में लाल झंडों की भरमार थी। जब सेना की एक टुकड़ी से भीड़ पर गोली चलाने के लिए कहा गया तो उसने भी विद्रोह कर दिया। सैनिकों का विद्रोह बढ़ता गया। अतः विवश होकर 12 मार्च 1917 को जार ने गद्दी त्याग दी।
इस तरह से रोमनोव-वंश का निरंकुश जारशाही का अंत हो गया। 15 मार्च को बुर्जुआ सरकार का गठन हुआ।
बाद में बुर्जुआ सरकार गिर गई तथा करेंसकी के नेतृत्व में एक उदार समाजवादियों की सरकार गठित हुई। बोल्शेविकों ने इस सरकार को भी स्वीकार नहीं किया।
सर्वहारा वर्ग– समाज का वैसा वर्ग जिसमें किसान, मजदूर एवं आम गरीब लोग शामिल हो।
रूसी समाज दो वर्गां में बँटा था, जो बहुमत वाला दल था वह ‘बोल्शेविक’ कहलाया और अल्पमतवाला दल ‘मेनशेविक’ कहलाया।
बोल्शेविक क्रांति
इसी समय लेनिन का उदय हुआ। जार की सरकार ने लेनिन को निर्वासित कर दिया था।
जब रूस में मार्च 1917 की क्रांति हुई, तो वह जर्मनी की सहायता से रूस पहुँचा, तब रूस की जनता का उत्साह बढ़ गया।
लेनिन ने घोषित किया कि रूसी क्रांति पूरी नहीं हुई है। अतः एक दूसरी क्रांति अनिवार्य है।
लेनिन ने तीन नारे दिये– भूमि, शांति और रोटी।
लेनिन ने बल प्रयोग द्वारा केरेन्सकी सरकार को उलट देने का निश्चय किया। सेना और जनता दोनों ने उसका साथ दिया।
7 नवम्बर 1917 को बोल्शेविकों ने पेट्रोग्राद के रेलवे स्टेशन, बैंक, डाकघर, टेलिफोन-केंन्द्र, कचहरी तथा अन्य सरकारी भवनों पर अधिकार कर लिया।
केरेन्सकी रूस छोड़कर भाग गया।
इस प्रकार रूस की महान बोल्शेविक क्रांति (इसे अक्टुबर क्रांति भी कहते हैं।) सम्पन्न हुई।
सत्ता पर कब्जा करने के पश्चात् लेनिन जर्मनी से ब्रेस्टलिटोवस्क की संधि की तथा प्रथम विश्व युद्ध से बाहर हो गया।
इसी समय रूस में गृहयुद्ध की समस्या भी उत्पन्न हुई। जिसमें अमेरिका, जापान, ब्रिटेन और फ्रांस ने हस्तक्षेप करते हुए सोवियत रूस पर आक्रमण कर दिया।
विदेशी हमलों से रूस को बचाने के लिए ट्रॉटस्की के नेतृत्व में एक विशाल लाल सेना गठित की गई।
लाल सेना ने सफलतापूर्वक विदेशी हमले का सामना किया।
दूसरी तरफ, आंतरिक विद्रोहों को दबाने के लिए ‘चेका‘ नामक गुप्त पुलिस संगठन बनाया गया। यह अचानक छापामार कर विद्राहियों को गिरफ्तार कर लेती थी।
इस तरह, लेनिन आंतरिक विद्रोह को दबाने में सफल रहा।
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रूसी क्रांति में लेनिन की भूमिका
लेनिन ने एक शक्तिशाली केंद्रीय सत्ता की स्थापना की। सन् 1918 में विश्व का पहला समाजवादी शासन स्थापित करने वाला देश रूस का नया संविधान बनाया गया। इसके द्वारा रूस का नाम ‘सोवियत समाजवादी गणराज्यों का समूह (U.S.S.R)’ के रूप में परिवर्तित किया गया।
लेनिन के नये संविधान के द्वारा 18 वर्ष से अधिक उम्रवाले वैसे सभी नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया गया।
बैंकों, परिवहन एवं रेलवे का राष्ट्रीयकरण किया गया।
शिक्षा पर से चर्च का अधिकार समाप्त कर उसका भी राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
लेनिन ने बोल्शेविक दल का नया नाम बदलकर साम्यवादी दल कर दिया और लाल रंग के झंडे पर हँसुए और हथौड़े को सुशोभित कर देश का राष्ट्रीय झंडा तैयार किया गया। उसके बाद से यह झंडा साम्यवाद का प्रतीक बन गया।
इसने बड़े भूस्वामियों की भूमि किसानों के बीच पुनर्वितरित किया गया।
लेनिन ने 1921 ई. में नई आर्थिक नीति की घोषणा किया।
नई आर्थिक नीति में निम्नांकित प्रमुख बातें थी
किसानों से अनाज ले लेने के स्थान पर एक निश्चित कर लगाया गया। बचा हुआ अनाज किसान का था और वह इसका मनचाहा इस्तेमाल कर सकता था।
यद्यपि यह सिद्धांत कायम रखा गया कि जमीन राज्य की है फिर भी व्यवहार में जमीन किसान की हो गई।
20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योगों को व्यक्तिगत रूप से चलाने का अधिकार मिल गया।
उद्योगों का विकेन्द्रीकरण कर दिया गया। निर्णय और क्रियान्वयन के बारे में विभिन्न इकाइयों को काफी छूट दी गई।
विदेशी पूँजी भी सीमित तौर पर आमंत्रित की गई।
व्यक्तिगत संपत्ति और जीवन की बीमा भी राजकीय ऐजेंसी द्वारा शुरू किया गया।
विभिन्न स्तरों पर बैंक खोले गए।
ट्रेड यूनियन की अनिवार्य सदस्यता समाप्त कर दी गई।
स्टालिन
1924 ई० में जब लेनिन की मृत्यु हुई तो उत्तराधिकार की समस्या खड़ी हुई। विभिन्न समूहों और अलग-अलग नेताओं के बीच सत्ता के लिए गंभीर संघर्ष चल रहे थे। इस संघर्ष में स्टालिन की विजय हुई। 1929 ई० में ट्रॉटस्की को निर्वासित कर दिया गया। 1930 के दशक में लगभग वे सभी नेता खत्म कर दिए, जिन्होंने क्रांति में और उसके बाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राजनीतिक लोकतंत्र तथा भाषण और प्रेस की स्वतंत्रता स्टालिन द्वारा नष्ट हो गयी। पार्टी के अन्दर भी मतभेदों को बर्दाश्त नहीं किया जाता था। स्टालिन कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव था और 1953 ई० में अपनी मृत्यु तक तानाशाही व्यवहार करता रहा।
रूसी क्रांति का प्रभाव
इस क्रांति के पश्चात् श्रमिक अथवा सर्वहारा वर्ग की सत्ता रूस में स्थापित हो गई तथा इसने अन्य क्षेत्रों में भी आंदोलन को प्रोत्साहन दिया।
रूसी क्रांति के बाद विश्व विचारधारा के स्तर पर दो खेमों में विभाजित हो गया। साम्यवादी विश्व एवं पूँजीवादी विश्व । इसके पश्चात् यूरोप भी दो भागों में विभाजित हो गया। पूर्वी यूरोप एवं पश्चिमी यूरोप। धर्मसुधार आंदोलन के पश्चात् और साम्यवादी क्रांति से पहले यूरोप में वैचारिक आधार पर इस तरह का विभाजन नहीं देखा गया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् पूँजीवाद विश्व और सोवियत रूस के बीच शीतयुद्ध की शुरूआत हुई और आगामी चार दशकों तक दोनों खेमों के बीच शस्त्रों की होड़ चलती रही।
रूसी क्रांति के पश्चात् आर्थिक आयोजन के रूप में एक नवीन आर्थिक मॉडल आया। आगे पूँजीवादी देशों ने भी परिवर्तित रूप में इस मॉडल को अपना लिया। इस प्रकार स्वयं पूँजीवाद के चरित्र में भी परिवर्तन आ गया।
इस क्रांति की सफलता ने एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश मुक्ति को भी प्रोत्साहन दिया क्योंकि सोवियत रूस की साम्यवादी सरकार ने एशिया और अफ्रीका के देशों में होने वाले राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक समर्थन प्रदान किया।
शीत युद्ध–यह एक वैचारिक युद्ध था जिसमें पूँजीवादी गुट का नेता संयुक्त राज्य अमेरिका तथा साम्यवादी गुट का नेता सोवियत रूस था।
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अति लघु उत्तरीय प्रश्न :-
1.पूंजीवादी क्या है?
उत्तर :- पूंजीवादी एक आर्थिक व्यवस्था है। जिसमें उत्पादन मेंसाधनों पर निजी व्यक्ति का स्वामित्व (अधिकार) होता है।
2.खूनी रविवार क्या है?
उत्तर :- 9 जनवरी 1905 को लोगों का समूह ‘रोटी दो’के नारे के साथ सड़कों से सेंट पिट्सवर्ग महल की ओर जा रहे थे।परंतु जार की सेना ने इस निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाई, जिसमें हजारों लोग मारे गए। इस दिन रविवार था। इसलिए उसे खूनी रविवार कहते हैं। उसे (लाल रविवार) के नाम से भी जाना जाता है।
3. अक्टूबर क्रांति क्या है?
उत्तर :- 7 नवंबर 1917 ई० बोल्शेविकों ने पेट्रोग्राड के रेलवे स्टेशन,बैंक, डाकघर, टेलीफोन केंद्र, कचहरीतथा अन्य सरकारी भवनों पर अधिकार कर लिया। केरेंसकीरूस छोड़ कर भाग गया। इसे अक्टूबर क्रांति कहते हैं।
4. सर्वहारा वर्ग किसे कहते हैं?
उत्तर :- समाज का वैसा वर्ग जिसमें किसान, मजदूर और आम गरीब लोग शामिल हो, उसे सर्वहारा वर्ग कहते हैं।
5. क्रांति से पूर्व रूसी किसानों की स्थिति कैसी थी?उत्तर :- 1861 ई. में जार इलेक्टजेंडर द्वितीया के द्वारा कृषि दासता समाप्त कर दिया। उसे किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं था। उनके खेत बहुत छोटे-छोटे थे। जिन पर वे पुराने ढंग से खेती करते थे। उनके पास पैसा भी नहीं थातथा काम का दबाव भी था। किसानों के पास क्रांति के सिवा कोई चारा नथा।
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लघु उत्तरीय प्रश्न
1. रूसी क्रांति के किन्हीं दो कारणों का वर्णन करें।
उत्तर :- रूसी क्रांति के किन्ही दो कारण निम्नलिखित हैं।
(i) जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन:- 1917 ईस्वी से रुसी राजतंत्र छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। उसे लोगों की सुख-दुख का चिंता नहीं था। जार ने जो अफसरशाही व्यवस्था बनाई थी।जिससे लोगों में असंतोष बढ़ता चला गया।
(ii) मजदूरों की दयनीय स्थिति :- रूस में मजदूरों की स्थिति कमजोर थी। उन्हें काम अधिक करना पड़ता था। उनकी मजदूरी काफी कम थी। उन लोगों के पास कोई राजनीतिक अधिकार न था।
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2. रूसीकरण की नीति क्रांति हेतु कहां तक उत्तरदाई थी?
उत्तर:-रुसीकरण की नीति क्रांति में स्लाव जाति के लोग रहते थे। पिन, पोल, जर्मन, यहूदी,जाति के लोग भी थे। वे लोग भिन्न-भिन्न भाषा बोलते थे। उन लोग का रस्म रिवाज भी भिन्न-भिन्न थाऔर उसके अल्पसंख्यक समूह जार निकोलस द्वितीय द्वारा जारी की गई। सभी लोगों पर रुसी भाषा, शिक्षा और संस्कृतिलादने का कोशिश किया। इससे अल्पसंख्यकों में हलचल मच गई।
3. साम्यवाद एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था थी। कैसे?
उत्तर :-1917 ई. से पूर्व रूस में रोमनोव राजवंश का शासन था। रूस के सम्राट को ‘जार’कहा जाता था। किसान, मजदूर और सामान्य लोगों का जीवन दयनीय था। 1917 ई.में लेनिन के नेतृत्व में क्रांति हुई। सत्ता की बागडोर सर्वहारा (कृषक, मजदूरऔर जनसामान्य) के हाथों में आ गयाऔर पूरे समाज का अधिकार हो गया। इसलिए साम्यवाद एक नई आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था थी।
4. नई आर्थिक नीति मार्क्सवादी सिद्धांतों के साथ समझौता था।कैसे?
उत्तर :- लेनिन एक कुशल सामाजिक चिंतक तथा व्यवहारिक राजनीतिज्ञथा। उसने समाजवादी व्यवस्था लागू करना या एक साथ सारी पूंजीवादी दुनिया से टकराना संभव नहीं है, जैसे ट्रॉटस्की चाहता था। 1921 ईस्वी में उसने एक नई नीति की घोषणा की,जिसमें मार्क्सवादी मूल्यों से समझौता करना पड़ा। लेकिन वास्तव में पीछे अनुभवों से सीख कर व्यवहारिक कदम उठाना ही उस नीति का लक्ष्य था।
5. प्रथम विश्वयुद्धमें रूस की पराजय क्रांति हेतु मार्ग प्रशस्त किया। कैसे ?
उत्तर :- प्रथम विश्वयुद्ध 1914 से 1918 ईस्वी तक चला। युद्ध में रूस भी मित्र राष्ट्रों की ओर से शामिल था। इस युद्ध में सम्मिलित होने का एकमात्र उद्देश्य जनता की ध्यान को भटकाना था। युद्ध में चारों तरफ रूसी के सेना के हार हो रही थी। ना उनके पास अच्छे हथियार थेएवं नही प्राप्त भोजन की सुविधा थी। जार की सेना ने कमान अपने हाथों में ले लिया। प्रथम विश्व युद्ध में रूस की पराजय ने क्रांति हेतु मार्ग प्रशस्त किया।
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. रूसी क्रांति के कारणों की विवेचना करें।
उत्तर :- रूसी क्रांति के निम्नलिखित कारण हैं।
(i) जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन :- क्रांति से पूर्व रूस के सम्राट को ‘जार’कहा जाता था। जार निकोलस II शासनकाल में क्रांति हुआ।इसे लोगों के सुख-दुख का कोई प्रभाव नहीं था।
(ii) रूस की दयनीय स्थिति:- रूस की बहुसंख्यक कृषक एवं लोगों की स्थिति दयनीय थी। तथा काम में बोझ से दबे थे, किसानों के पास क्रांति के सिवा कोई चारा नहीं था।
(iii) मजदूरों की दयनीय स्थिति:- रूस में मजदूरों की स्थिति दयनीय थी।उन्हें अधिक काम करना पड़ता था।उन लोगों का मजदूरी काफी कम था।
(iv) औद्योगिकरण की समस्या:- रूसी औद्योगिकीकरण पश्चिमी पूंजीवादी से भिन्न था। क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उद्योग बहुत कम था। जो आर्थिक शोषण को बढ़ावा दे रहे थे।
(V) रूसीकरण की नीति :- जार निकोलस द्वितीया द्वारा जारी की गई रुसीकरण की नीति से परेशान था। जार ने देश के सभी लोगों पर रूसी, भाषा,शिक्षा और संस्कृति लादने का प्रयास किया।
2. नई आर्थिक नीति क्या है ?
उत्तर :- लेनिन ने 1921 ईस्वी में एक नई नीति की घोषणा मार्क्सवाद मूल्यों से कुछ हद तक समझौता करना पड़ा। नई आर्थिक नीति में निम्नलिखित प्रमुख बातें थी।
(i) किसानों से अनाज लेने के स्थान पर एक निश्चित कर लगाया गया।
(ii) यद्यपी यह सिद्धांत में कायम रखा गयाकि जमीन राज्य की है। फिर भी व्यवहार में जमीन किसान की हो गई।
(iii) 20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योगों को व्यक्तिगत रुप से चलाने का अधिकार मिल गया।
(iv) विभिन्न स्तरों पर बैंक खोले गए।
(iv) उद्योगों का विकेंद्रीकरण कर दिया गया।
(v) ट्रेड यूनियन की अनिवार्य सदस्यता समाप्त कर दी गई।
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3. रूसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना करें ।
उत्तर :- (i) क्रांति के पश्चात सर्वहारा वर्ग की सता रूस में स्थापित हुई। बहुत से क्षेत्रों में आंदोलन की प्रोत्साहन दिया।
(ii) साम्यवादी विश्व एवं पूंजीवादी विश्व यूरोप भी दो भागों में विभाजित हो गया। इस तरह विभाजन नहीं देखा गया था ।
(iii) द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात पूंजीवादी विश्व तथा सोवियत रूस के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हुई।
(iv) पूंजीवादी देशों ने भी परिवर्तित रूप में मॉडल को अपना लिया। पूंजीवाद में भी परिवर्तन आ गया।
(v) सोवियत रूस की साम्यवादी सरकार ने एशिया और अफ्रीका के देशों में होने वाले राष्ट्रीय आंदोलन को प्रोत्साहन प्रदान किया।
4. कार्ल मार्क्स की जीवनी एवं सिद्धांतों का वर्णन करें।
उत्तर :- कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 ई. को जर्मनी की टिअर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था। कार्ल मार्क्स के पिता हेनरिक मार्क्स एक प्रसिद्ध वकील थे। उन्होंने बाद में चलकर ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था। मार्क्स ने बोन विश्वविद्यालय में विधि की शिक्षा प्राप्त की। 1836 ई.में बर्लिन विश्वविद्यालय चले आए,जहां उनकी जीवनी को एक नया मोड़ मिला। 1843 ई. में उसने बचपन के मित्र जेनी से विवाह किया। राजनीतिक एवं सामाजिक इतिहास पर मोंटेसक्यु तथा दूसरों के विचार का ग्रहण किया। मार्क्स की मुलाकात पेरिस में 1844 ई. में फ्रेडरिक एंगेल्स से हुई। 1848 ई.में ‘सम्यवादी घोषणा’पत्र प्रकाशित किया। उसमें ‘दास कैपिटल’नामक पुस्तक की रचना की। जिसे समाजवादियों की बाइबिल कहा जाता है।
मार्क्स के सिद्धांत–
(i) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत।
(ii) वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत।
(iii) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या।
(iv) मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत।
(v) राज्यहीनव वर्गहीन समाज की स्थापना।
5. यूटोपियन समाजवादियों के विचारों का वर्णन करें।
उत्तर :- प्रथम यूटोपियन समाजवादी विचारधारा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फ्रांसीसी सेंट साइमन था। उसने घोषित किया ‘प्रत्येक की क्षमता के अनुसार’तथा ‘प्रत्येक को उसके कार्य को अनुसार’। आगे यहीं समाजवाद का मूलभूत नारा बन गया।
एक महत्वपूर्ण यूरोपियन विचारक चार्ल्स फैरियर था। वह आधुनिक औद्योगिकवाद का विरोधी थे। उसका मानना था, कि श्रमिकों को छोटे नगर कस्बों में काम करना चाहिए। उस ने किसानों के लिए एक प्लान बनाए जाने की योजना रखी। यह योजना असफल हुआ।
फ्रांसीसी यूरोपियन में एकमात्र व्यक्ति राजनीतिक में भी हिस्सा ली, लूई ब्लां। उसके सुधार कार्यक्रम अधिक व्यवहारिक थे।उसका मानना था, कि आर्थिक सुधारों को प्रभावकारी बनाने के लिए पहले राजनीतिक सुधार अवश्यक है।
फ्रांस से बाहर सबसे महत्वपूर्ण यूरोपियन चिंतक ब्रिटिश उद्योगपति रॉबर्टो ओवन था। उसनेफैक्ट्री के श्रमिकों को अच्छी वेतन दिया, और उसने ऐसा महसूस कीमुनाफा कम होने के बजाय और भी बढ़ गया था। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि संतुष्टश्रमिक ही वास्तविक श्रमिक है।
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