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BSEB Class 9 Hindi गद्य Chapter 9. रेल-यात्रा | Rail Yatra Class 9th Hindi Solutions

October 28, 2023 by Leave a Comment

Bihar Board Class 9 Hindi रेल-यात्रा (Rail Yatra Class 9th Hindi Solutions)Text Book Questions and Answers

Rail Yatra Class 9th Hindi Solutions

9. रेल-यात्रा

पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ ‘रेल-यात्रा’ शरद जोशी की व्यंग्य रचना है। इसमें लेखक ने भारतीय रेल व्यवस्था के माध्यम से सरकार की डपोरशंखी रेल प्रगति की पोल खोल दी है।

रेलमंत्री का मानना है कि भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही हैं जबकि लेखक के अनुसार रेल की प्रगति यही है कि एक स्थान से लोगों को दूसरे स्थान तक पहुँचा देती है, लेकिन डब्बे में घुसते ही रेल की प्रगति की सच्चाई का पता चल जाता है। डब्बेमें बैठने की बात तो दूर साँस लेने की जगह नहीं मिलती। धक्कम-धुक्की, मार-पीट,जोर-जबर्दस्ती तथा नोक-झोंक भारतीय रेल यात्रा की प्रधान विशेषता हैं। सरकारीअव्यवस्था के कारण सीट उन्हें ही मिलती है जिन्हें धन-बल है। कुछ बाहुबली भी साट प्राप्त कर लेते हैं।

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लेखक का कहना है कि हमारे यहाँ कहा जाता है— ‘ईश्वर आपकी यात्रा सफलकरें’, ऐसा क्यों ? इस संबंध में लेखक का तर्क है कि रेल-यात्रा में भगवान की कृपा ही सर्वोपरि है, क्योंकि रेल कहाँ दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगी, निर्दिष्ट स्थान पर कब पहुँचेगी तथा भीड़ में जगह मिलेगी या नहीं, सारी बातें ईश्वर की कृपा पर निर्भर करती है। भारतीय रेल कर्म पर विश्वास करती है, फल की चिंता नहीं करती। इसका दायित्व मात्र निश्चित स्थान तक पहुँचा देना है, यात्री की जो भी दशा हो, वे जिंदा रहें या मुर्दा, इसको जिम्मेदारी भारतीय रेल को नहीं है। वह पूर्ण ईमानदारी से अपना काम करती है। उसे पता है कि जिसेलेखक भारतीय रेलों की अव्यवस्था पर व्यंग्यात्मक लहजे में कहता है कि भारतीय रेलों ने एक बात सिद्ध कर दी है कि बड़े आराम अथवा पीड़ा के सामने छोटे आराम या पीड़ा का कोई महत्त्व नहीं होता। जैसे किसी घर में कोई मर जाता है अथवा किसी की शादी तय हो जाती है,गाँव जाने के लिए फौरन रेल में चढ़ जाते हैं। भीड़, धक्कामुक्की, गाली-गलौज सब कुछ सहन करते खड़े रहते हैं, क्योंकि घर में आदमी मर गया है अथवा शादी की बात तय हो गई है। भारतीय रेलें हमें चिंतन सिखाती हैं कि जीवन की अंतिम यात्रा अर्थात् मृत्यु के समय मनुष्य खाली हाथ रहता है, उसी प्रकार मनुष्य रेल-यात्रा के समय खाली रहना चाहिए, क्योंकि सामान रहने पर बैठने की समस्या हो जाती है, बैठने पर सामान रखने की समस्या खड़ी हो जाती है, यदि दोनों काम हो जाता है तो प्रश्न उठता है कि दूसरा आदमी कहाँ बैठेगा अथवा सामान रखेगा। तात्पर्य कि रेलों में इतनी अधिक भीड़ रहती है कि कहीं जाने के समय सोचना पड़ जाता है क्योंकि भारतीय रेलें हमें मृत्यु का दर्शन समझाती हैं और अक्सर पटरी से उतरकर उसकी महत्ता का अनुभव करा देती हैं। रेल में चढ़ने के बाद यह कहना कठिन होता है कि वह कहाँ उतरेगा, अस्पताल में या श्मशान में । इसी कारण लोग रेलों की आलोचना करते हैं।

निष्कर्ष रूप में लेखक यह स्पष्ट करना चाहता है कि सरकार की उदासीनता तथा रेलों की भ्रष्ट व्यवस्था के कारण रेल-यात्रा करते हुए हम अक्सर विचारों में डूब जाते हैं। इसका मुख्य कारण रेल की अनियमितता है। यह कहीं भी खड़ी हो जाती है। ऐसा देखकर कोई यात्री लेखक से पूछ बैठता है— “कहिए साहब, आपका क्या ख्याल है, इस कंट्री का कोई फ्यूचर है या नहीं ?” ‘पता नहीं’ जवाब देते हैं “अभी तो ये सोचिए कि इस ट्रेन का कोई फ्यूचर है या नहीं।” अतः इससे स्पष्ट होता है कि आज के विकसित परिवेश में भारतीय रेलें एवं भारतीय अभी भी अविकसित हैं। लेखक व्यंग्यात्मक भाषा में कहता है—-‘आपने भारतीय मनुष्य को भारतीय रेल के पीछेभागते देखा होगा। उसे पायदान से लटके, डिब्बे की छत पर बैठे, भारतीय रेलों के साथ प्रगति करते देखा होगा।’ लेखक का मानना है कि अगर इसी तरह रेल पीछे आती रही तो भारतीय मनुष्य के पास बढ़ते रहने के सिवाय कोई रास्ता नहीं रहेगा। रेल में सफर करते, दिन भर झगड़ते रात भर जागते रेलनिशात् सर्वभूतानां’ चरितार्थ करते रहेंगे।

अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर

पाठ के साथ :

प्रश्न 1. मनुष्य की प्रगति और भारतीय रेल की प्रगति में लेखक क्या देखता है ?
उत्तर – मनुष्य की प्रगति में लेखक देखता है कि लोग भ्रष्ट, अनैतिक तथा विवेकहीन हो गए हैं और रेल की प्रगति में लेखक देखता है कि भारतीय रेल अव्यवस्थित, अनियमित तथा जोखिम भरा है ।

प्रश्न 2. “आप रेल की प्रगति देखना चाहते हैं तो किसी डिब्बे में घुस जाइए ‘ ‘ – लेखक यह कहकर क्या दिखाना चाहता है?
उत्तर—लेखक, यह कहकर दिखाना चाहता है कि हमारी सामाजिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई है । लोग भ्रष्ट हो गए हैं, सरकार भ्रष्ट है। डिब्बे के अन्दर जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली बात चरितार्थ होती है। तात्पर्य कि जिसके पास पैसे अथवा बल है, डिब्बे में उसी का साम्राज्य है। साथ ही, धक्कम-धुक्की, गाली-गलौज भारतीय रेल की प्रगति को उजागर करती है ।

प्रश्न 3. भारतीय रेलें हमें किस तरह का जीवन जीना सिखाती हैं?
उत्तर- भारतीय रेलें हमें उद्दण्डतापूर्ण जीवन जीना सिखाती है, क्योंकि जो चढ़ गया उसकी जगह, जो बैठ गया उसकी सीट तथा जो लेट गया उसका बर्थ हैं। इसलिए जिसमें दम है, बाहुबल हैं, आत्मबल है, वही रेल यात्रा का हकदार है, अन्यथा नहीं । निष्कर्षतः रेलें हमें भ्रष्ट जीवन जीना सिखाती हैं ।

प्रश्न 4. ‘ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें।’ इस कथन से लेखक पाठकों को भारतीय रेल को किस अव्यवस्था से परिचित कराना चाहता है ?
उत्तर – लेखक इस कथन से पाठकों को भारतीय रेलें संचालन संबंधी अव्यवस्था से परिचित कराना चाहती हैं। भारतीय रेल इतनी अस्त-व्यस्त हो गई है कि ईश्वर के सिवा यात्रियों की रक्षा करने वाला कोई नहीं है। सारे तंत्र भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए इसलिए यदि ईश्वर की कृपा आपके साथ है, टिकट आपके हाथ है, पैसे जेब में ज्यादा हैं । तो मंजिल तक पहुँच जाएँगे, क्योंकि रेल का काम जिंदा या मुर्दा पहुँचाना है न कि यात्रियों की सुरक्षा की गारंटी लेना ।

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प्रश्न 5. ” जिसमें मनोबल है, आत्मबल, शारीरिक बल और दूसरे किस्म के बल हैं, उसे यात्रा करने से कोई नहीं रोक सकता । वे जो शराफत और अनिर्णय के मारे होते हैं, वे क्यू में खड़े रहते हैं, वेटिंग लिस्ट में पड़े रहते हैं ।” यहाँ पर लेखक ने भारतीय सामाजिक व्यवस्था के एक बहुत बड़े सत्य को उद्घाटित किया है ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ । इस पर अपने विचार संक्षेप में व्यक्त कीजिए ।
उत्तर- संकेत : पृष्ठ 93 पर व्याख्या संख्या-1 को देखें ।

प्रश्न 6. निम्नलिखित पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें
(क) ‘दुर्दशा तब भी थी, दुर्दशा आज भी है। ये रेलें, ये हवाई जहाज, यह सब विदेशी हैं। ये न हमारा चरित्र बदल सकती हैं और न भाग्य ।’

उत्तर- लेखक हमारा ध्यान इस बात की ओर आकृष्ट करना चाहता है कि तब पराधीनता थी और आज देश स्वतंत्र है, फिर भी लोगों का जीवन कष्टपूर्ण है । इसका मुख्य कारण शासन तंत्र की उदासीनता तथा समाज की दूषित मानसिकता है। रेल अथवा हवाई जहाज निर्जीव पदार्थ हैं। ये हमारे चरित्र अथवा भाग्य नहीं बदल सकते । चरित्र या भाग्य तभी बदल सकता हैं जब सुशासन तथा व्यवस्थित सामाजिक परिवेश हो ।

 (ख) ‘भारतीय रेलें हमें सहिष्णु बनाती हैं। उत्तेजना के क्षणों में शांत रहना सिखाती हैं। मनुष्य की यही प्रगति है । ‘
उत्तर – लेखक के कहने का भाव यह है कि भारतीय रेलें हमें सहनशील बनने की प्रेरणा देती हैं। उत्तेजना की स्थिति में शांत रहना सिखाती है। दूसरी ओर मनुष्य उद्दंडता, अनैतिकता तथा भ्रष्टाचार को प्रश्रय देता है । अतः लेखक अपने व्यंग्य द्वारा लोगों के ही विचार को उजागर करता है ।

(ग) भारतीय रेलें हमें मृत्यु का दर्शन समझाती हैं और अक्सर पटरी से उतरक उसकी महत्ता का भी अनुभव करा देती हैं।’
उत्तर—लेखक ने प्रस्तुत व्यंग्य द्वारा भारतीय रेल की अव्यवस्था पर चोट किया है, क्योंकि भारतीय रेलें लापरवाही के कारण कहाँ और कब दुर्घटनाग्रस्त हो जाएँगी कहना मुश्किल है। रेल यात्रा में जीवन की अनिश्चितता बनी रहती है, यात्री तक उसमें सवार रहते हैं, मौत का भय बना रहता है, क्योंकि सरकार की व्यवस्था ऐसी है

(घ) ‘कई बार मुझे लगता है भारतीय मनुष्य भारतीय रेलों से भी आगे हैं, आगे आगे मनुष्य बढ़ रहा है, पीछे-पीछे रेल आ रही है।
उत्तर—लेखक ने भारतीयों की सोच पर प्रहार किया है । लेखक का कहना है कि ये इतने अज्ञानी हैं कि इन्हें मरने का भी भय नहीं है । वे मौत को स्वयं आमंत्रित करते हैं । इसी कारण लेखक ने कहा है कि भारतीय मनुष्य भारतीय रेलों से भी आगे हैं क्योंकि रेल यदा-कदा दुर्घटनाग्रस्त होती है जबकि लोग पायदान से लटकर, छत पर बैठकर मौत को ललकारते रहते हैं ।

प्रश्न 7. रेल यात्रा के दौरान किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है ? पठित पाठ के आधार पर बताइए ।
उत्तर – रेल-यात्रा के दौरान सर्वप्रथम टिकट के लिए क्यू में खड़ा होना पड़ता है। डिब्बे में घुसने की परेशानी, सीट की परेशानी, सामान रखने की परेशानी, धुक्की, गाली-गलौज, थुक्का – फजीहत आदि की परेशानी, घंटों विलंब से चलने आदि की परेशानियों से यात्रियों को आए दिन सामना करना पड़ता है ।

प्रश्न 8. लेखक अपने व्यंग्य में भारतीय रेल की अव्यवस्था का एक पूरा चित्र हमारे सामने प्रस्तुत करता है । पठित पाठ के आधार पर भारतीय रेल की कुछ अव्यवस्थाओं का जिक्र करें ।
उत्तर- भारतीय रेल की अव्यवस्था के सबूत अक्सर लेट पहुँचना, कहीं भी घंटो खड़ा रहना, दुर्घटनाग्रस्त होना, डिब्बे के अंदर धक्का-मुक्की, गाली-गलौज होना, सीट के लिए मारा-मारी आदि जैसी अव्यवस्थाएँ हैं ।

प्रश्न 9. ‘रेल विभाग के मंत्री कहते हैं कि भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही हैं। ठीक कहते हैं ! रेलें हमेशा प्रगति करती हैं।’ इस व्यंग्य के माध्यम से लेखक भारतीय राजनीति व राजनेताओं का कौन-सा पक्ष दिखाना चाहता है ? अपने शब्दों में बताइए ।
उत्तर—प्रस्तुत व्यंग्य के माध्यम से लेखक भारतीय राजनीति व राजनेताओं के दोषपूर्ण पक्ष को उजागर करना चाहता है । लेखक का मानना है कि आज की राजनीति जातिवाद का नारा देकर सत्ता पर काबिज हो जाना है। सत्ता हाथ आते ही ऊपर तक भ्रष्ट माध्यम से अपनी जेब भरने में मशगूल हो जाना है जिस का इन्हें अपना दायित्व याद नहीं रहता । फलतः जनता शोषण का शिकार हो जाती है तथा अनेक प्रकार की समस्याओं से दो-चार होते रहते हैं । निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि भारतीय राजनीति व राजनेता सारी अव्यवस्थाओं के मूल हैं। रेल इसका उदाहरण है, जो न तो नियत समय पर पहुँचती है और न ही यात्रियों की सुविधा – असुविधा का ख्याल रखती है, बल्कि कहीं, दुर्घटनाग्रस्त होकर अपनी प्रगति का सबूत भी पेश करती है ।

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प्रश्न 10. संपूर्ण पाठ से व्यंग्य के स्थल और वाक्य चुनिए और उनके व्यंग्यात्मक आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर :
‘भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही हैं

आशय – रेलों में दुर्घटना एवं अव्यवस्था दिनानुदिन बढ़ती जा रही है। ‘जिसमें दम उसके हम’ ।
‘जिसमें दम उसके हम’

आशय – रेल यात्रा करने का अधिकार धन, बल एवं शारीरिक बल वालों को प्राप्त है । कमजोर एवं सज्जन लोगों के लिए नहीं ।
‘दुर्दशा तब भी थी, दुर्दशा आज भी है ।’

आशय- पहले पैदल चलने पर यात्रा कष्टप्रद थी, आज रेल की अव्यवस्था अथवा अस्त-व्यस्तता के कारण यात्रा कष्टप्रद है ।
‘बड़ी पीड़ा के सामने छोटी पीड़ा नगण्य है

आशय- आवश्यकता की तीव्रता के कारण ही लोग रेल-यात्रा करते हैं, अन्यथा नहीं करते ।
‘रेल में चढ़ने के बाद वह कहाँ उतरेगा ? अस्पताल में या श्मशान में

आशय- रेलें इतना दुघर्टनाग्रस्त होती हैं कि लोगों का विश्वास रेलों से उठ गया है। रेल यात्रा में लोग अनिश्चितता की स्थिति में रहते हैं ।
‘मनुष्य की यही प्रगति है ।’

आशय – आज मनुष्य का आचरण दूषित हो गया है। उसके हृदय की मानवता मर चुकी है तथा लोग विवेकहीन हो गए हैं।

प्रश्न 11. इस पाठ में व्यंग्य की दोहरी धार है- एक विभिन्न वस्तुओं और विषयों की ओर तो दूसरी अपनी अर्थात् भारतीय जन की ओर । पाठ से उदाहरण देते हुए यह प्रमाणित कीजिए ।
उत्तर – लेखक का मानना है कि भारतीय रेलें तथा भारतीय जन दोनों की स्थिति अति दयनीय है । रेलों की व्यवस्था अस्त-व्यस्त है तो लोग उद्दण्डता के शिकार हैं। जैसे- ‘जिसमें मनोबल है, आत्मबल, शारीरिक बल और दूसरे किस्म के बल हैं’ तो उसे यात्रा करने से कोई नहीं रोक सकता, बल्कि वे जो शराफत और अनिर्णय के मारे होते हैं, वे क्यू में खड़े रहते हैं, वेटिंग लिस्ट में पड़े रहते हैं।’ लेखक इस व्यंग्य के माध्यम से एक ओर रेल विभाग की लूट-खसूट की ओर ध्यान आकृष्ट करता है तो दूसरी ओर लोगों की दूषित मानसिकता की ओर । इसी प्रकार रेल पटरी से उतरकर मौत की महत्ता का अनुभव करा देती है तो लोग पायदान से लटके, छत पर बैठे अपनी विवेकहीनता का परिचय देते हैं । इन्हीं सब बातों को देखते हुए लेखक कहता है कि भारतीय मनुष्य भारतीय रेलों से भी आगे है। आगे-आगे मनुष्य बढ़ रहा है और पीछे-पीछे रेल जा रही है ।

प्रश्न 12. भारतीय रेलें चिंतन के विकास में योगदान देती हैं। कैसें ? व्यंग्यकार की दृष्टि से विचार कीजिए ।
उत्तर—लेखक ने वैसे लोगों की ओर संकेत किया है जो बेटिकट यात्रा करते हैं ऐसे लोगों को टिकट का वजन उठाना भी कबूल नहीं होता । वे प्राचीन मनीषियों की सलाह को अक्षरशः पालन करते हैं कि जीवन की अंतिम यात्रा में मनुष्य खाली हाथ, परम रहता है। भारतीय रेलें भी यही चाहती हैं, वह जीते-जी आ जाए–चरम स्थिति, हल्की अवस्था, बिना बिस्तर, मिल जा बेटा अनंत में, क्योंकि दुर्घटनाग्रस्त होने पर सारी रेलों के साथ यात्रियों को ऊपर जाना ही है । अतः लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि जब व्यक्ति अनिश्चितता के अंधेरे में डूब जाता है तो उसके मन में भिन्न-भिन्न प्रकार के विचार उठने लगते हैं और वह विचार मग्न हो जाता है। इसीलिए लेखक कहता है कि भारतीय रेलें चिंतन के विकास में बड़ा योगदान देती हैं ।

प्रश्न 13. टिकिट को लेखक ने ‘देह धरे को दंड’ क्यों कहा है ?
उत्तर—भीड़ में सामान लेकर यात्रा करना कोई आसान काम नहीं है । लेखक मुंबई की लोकल ट्रेन का उदाहरण देते हुए कहता है कि भीड़ में दबे, कोने में सिमटे यात्री को जब अपनी देह भारी लगती है तो वह सोचता है कि यह शरीर न होता, केवल आत्मा होती तो कितने सुख से यात्रा करती । तात्पर्य कि टिकिट वालों के पास ही सामान होते हैं जिस कारण उन्हें काफी कठिनाइयों एवं दिक्कतों का सामना करना पड़ता है । टिकट के कारण ही उन्हें निश्चित जगह तक यात्रा करनी पड़ती है, यदि टिकट न होता तो किसी भी गाड़ी से अपनी यात्री पूरी कर लेते। इसीलिए लेखक टिकट को ‘देह धरे को दंड’ कहा है ।

प्रश्न 14. किस अर्थ में रेलें मनुष्य को मनुष्य के करीब लाती हैं ?
उत्तर— रेल-यात्रा के क्रम में जब कोई ऊँघता हुआ यात्री दूसरे ऊँधते हुए यात्री के कंधे पर अपना सिर डाल देता है अथवा ऊपर की बर्थ पर लेटा यात्री, नीचे के बर्थ पर लेटे यात्री से स्टेशन का नाम पूछता है तो वह बता देता है कि यह अमुक स्टेशन है। ऐसे सहयोगपूर्ण व्यवहार से पता चलता है कि रेलें मनुष्य को मनुष्य के करीब लाती हैं। 

प्रश्न 15. “जब तक एक्सीडेंट न हो हमें जागते रहना है” लेखक ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर – लेखक रेलों की अस्त-व्यस्तता पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि भारतीय रेलों को दुर्घटनाग्रस्त होना आम बात है। दुर्घटना होने के बाद चिर निद्रा में सोना जब निश्चित है तो दुर्घटना से पूर्व तक जागते रहना ही अक्लमंदी है ।

नोट : पाठ के आस-पास के प्रश्नों के उत्तर छात्र स्वयं करें ।

भाषा की बात (व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर ) :

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों से विदेशज शब्दों को छाँटिए :
रोजमर्रा, मंत्री, अनंत, सीट, स्टेशन, चिंतन, बर्थ, लोकल, यात्री, ईश्वर, स्टार्ट, फौरन, थुक्का- फजीहत, कबूल, प्राचीन, काम, हाथ, शराफत ।

उत्तर— रोजमर्रा, सीट, स्टेशन; बर्थ, लोकल, स्टार्ट, फौरन, थुक्का फजीहत, कबूल तथा शराफत विदेशज शब्द हैं

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प्रश्न 2. निम्नांकित वाक्यों में अव्यय को रेखांकित करें :
(क) अरे जिसे जाना है, वह तो जाएगा।
(ख) सारी रेलों को अंततः ऊपर जाना है।
(ग) उधर प्लेटफॉर्म पर यात्री खड़े इसका इंतजार कर रहे हैं। (घ) जो संयमी होते हैं, वे रातभर जागते हैं ।
(च) मगर क्या करें ?
(छ) इसलिए असली यात्री वो, जो हो खाली हाथ ।

उत्तर- (क) तो, (ख) ऊपर, (ग) उधर, (घ) रातभर, (च) मगर, (छ) इसलिए ।

प्रश्न 3. निम्नांकित शब्दों का विग्रह करें एवं समास बताएँ ।
रेलयात्रा, रेल विभाग, अनंत, अनचाहा, अनजाना

उत्तर : रेलयात्रा = रेल की यात्रा = षष्ठी तत्पुरुष ।
रेल विभाग = रेल के लिए बना विभाग = चतुर्थी तत्पुरुष ।
अनंत = जिसका अंत न हो = नञ समास ।
अनचाहा = बिना चाहे = अव्ययी भाव ।
अनजाना = बिना जाने = अव्ययी भाव ।

प्रश्न 4. निम्नांकित तद्भव शब्दों का तत्सम रूप लिखिए : पुराना, गाँव, हाथ, काम, हल्दी
उत्तर :

तद्भव रूप                      तत्सम् रूप
पुराना                             प्राचीन
गाँव                               ग्राम
हाथ                               हस्त
काम                              कर्म
हल्द                              हरिद्रा

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