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Class 9th Chemistry ( रसायन शास्त्र ) Chapter5. प्राकृतिक संसाधन | Prakritik Sansadhan Class 9th Science Notes in Hindi

October 16, 2023 by Leave a Comment

Prakritik Sansadhan Class 9th Science Notes in Hindi

5. प्राकृतिक संसाधन

प्रकृति में प्रचुर मात्रा में उपलब्‍ध मानव की मूल आवश्‍यकताओं को पूर्ति करनेवाले उपयौगिक पदार्थ को प्राकृतिक संसाधन कहते हैं।

प्राकृतिक संसाधन दो प्रकार के होते हैं— 1. नवीकरणीय संसाधन और 2. अनवीकरणीय संसाधन

1. नवीकरणीय संसाधन— वे संसाधन जो लगातार उपयोग होने के बाद फिर स्‍वयं आसानी से उत्‍पन्‍न हो जाते हैं, उसे नवीकरणीय संसाधन कहते हैं। जैसे- वायु, जल, स्‍थल, सौर ऊर्जा और वन आदि।

2. अनवीकरणीय संसाधन— वे संसाधन जिन्‍हें एक बार प्रयोग करने के बाद पुन: आसानी से प्राप्‍त नहीं कर सकते हैं। उसे अनवीकरणीय संसाधन कहते हैं। जैसे- कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि।

वायु- वायुमंडल में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन और 21 प्रतिशत ऑक्‍सीजन विद्यमान रहता है।

क्षोभमंडल- समुद्रतल से 7 किमी ऊँचाई तक के क्षेत्र को क्षोभमंडल कहते हैं। क्षोभमंडल में ऑक्‍सीजन की पर्याप्‍त मौजुदगी रहती है।

एक सामान्‍य मनुष्‍य के लिए प्रतिदिन 250 किग्रा से 270 किग्रा वायु की आवश्‍यकता होती है।

वैश्विक तापन या ग्‍लोबल वार्मिंग क्‍या है ?
पृथ्‍वी के तापमान का बढ़ना वैश्विकतापन कहलाता है। वैश्विक तापन कार्बनडाइऑक्‍साइड के वृद्धि के कारण होता है। वैश्विक तापन के कारण मानसून परिवर्तन जैसी घटनाएँ होती है।

हरितगृह प्रभाव- सूर्य की किरणों से आनेवाली ऊष्‍मा को पृथ्‍वी के वायुमंडल द्वारा रोक लेना हरितगृह प्रभाव कहलाता है।

अर्थात

सूर्य ऊर्जा के शोषण और उत्‍सर्जन क्रिया द्वारा वायुमंडल को तप्‍त रखने की विधि को हरितगृह प्रभाव कहते हैं।

हरितगृह प्रभाव कार्बनडाइऑक्‍साइड उत्‍पन्‍न करता है। वायुमंडल में यह पृथ्‍वी से ऊष्‍मा को पृथ्‍वी के वायुमंडल के बाहर जाने से रोकती है, जिससे रात में पृथ्‍वी का ताप बहुत कम नहीं हो पाता है।

वायमंडल में कार्बनडाइऑक्‍साइड की मात्रा लागातार बढ़ रही है जिससे ग्‍लोबल वार्मिंग की समस्‍या उत्‍पन्‍न हो रही है। इससे बचने के लिए अधिक से अधिक पेड़ लगाना चाहिए।

समुद्र से स्‍थल की ओर मंद हवा की गति को समुद्री समीर कहते हैं। समुद्री समीर दिन के समय चलते हैं।

स्‍थल से समुद्र की ओर मंद हवा की गति को स्‍थल समीर कहते हैं। स्‍थल समीर रात के समय चलते हैं।

संघनन- वाष्‍प का जल में बदलने की प्रक्रिया को संघनन कहते हैं। संघनन के कारण वर्षा होती है।

वर्षा की प्रक्रिया– दिन के समय विभिन्‍न जल स्‍त्रोतों से वाष्‍प बनता है। सूर्य की गर्मी से वायु भी गर्म हो जाती है। गर्म वायु अपने साथ जलवाष्‍प लेकर ऊपर की ओर जाती है। जैसे ही वायु ऊपर की ओर जाती है, यह फैलती है तथा ठंडी हो जाती है। ठंडा होने से वायु में उपस्थित जलवाष्‍प संघनित होकर जल की बूँदे बनाती हैं। जब ये बूँदें बड़ी और भारी हो जाती है, तब ये वर्षा के रूप में नीचे की ओर गिरती है।

ओसांक- जिस ताप पर वायुमंडल के पर्याप्‍त जलवाष्‍प संतृष्‍प होकर संघनित होते हैं, उसे ओसांक कहते हैं।

हिमी वर्षा- वर्षा और हिम के मिश्रण को हिमी वर्षा कहते हैं।

कोहरा- कोहरा का बनना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसमें जल के सूक्ष्‍म कण वायु में उपस्थित धूल कण पर निलंबित रहते हैं।

धूम-कोहरा— कोहरा और धुआँ के मिश्रण को धूम-कोहरा कहते हैं।

वायु प्रदुषण- वायु की गुणवत्ता में कमी को वायु प्रदूषण कहते हैं। वायु प्रदूषण का मुख्‍य कारण यातायात और औद्योगिकीकरण में वृद्धि है।

वाहनों से उत्‍पन्‍न वायु प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय

  1. पेट्रोल वाहनों में ईंधन के रूप में सीसारहित पेट्रोल का इस्‍तेमाल करना चाहिए।
  2. संपीडित प्राकृतिक गैस या कम्‍प्रेस्‍ड नेचुरल गैस का अन्‍य वाहनों में इस्‍तेमाल करना चाहिए।
  3. वन-विनाश को रोकना और नगरों को हरा-भरा बनाना चाहिए।

औद्योगिक प्रतिष्‍ठानों की चिमनियों, कोयला खदानों एवं पेट्रोलियम आदि के दहन के धुएँ से वायुमंडल में पहुँच जाती है, जहाँ जलवाष्‍प के साथ मिलकर ये सल्‍फ्यूरिक अम्‍ल तथा नाइट्रिक अम्‍ल बनाती है। जब यही अम्‍ल वर्षा के जल के साथ जमीन पर गिरता है तो उसे अम्‍ल-वर्षा कहते हैं।

अम्‍ल-वर्षा के प्रभाव

1. अम्‍ल-वर्षा से जल प्रदूषण बढ़ता है जिससे जल में रहनेवाले जीव-जंतु प्राय: नष्‍ट होन लगते हैं।
2. अम्‍ल-वर्षा से मिट्टी में अम्‍लीयता बढ़ जाती है। मिट्टी में अधिक अम्‍लीयता के कारण फसलों का उत्‍पादन पर प्रभाव पड़ता है।
3. अम्‍ल-वर्षा के कारण भवनों और स्‍मारकों की क्षति होती है। इसी कारण ताजमहल का रंग पीला पड़ रहा है।

Prakritik Sansadhan Class 9th Science Notes in Hindi

अम्‍ल वर्षा की रोकथाम के उपाय

1. अपरंपरागत ईंधन, जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि का अधिकाधिक प्रयोग किया जाना चाहिए।
2. यदि झीलों एवं जलाशयों के जल में अम्‍लीयता बढ़ गई हो तो उसमें चूना डालना चाहिए।
3. कारखानों की चिमनियों के मुँह पर विशेष फिल्‍टर लगाना चाहिए।

आजोन परत एवं ओजोन अवक्षय

ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बना ओजोन का एक स्तर वायुमंडल से 15 km से लेकर लगभग 50 km ऊँचाईवाले क्षेत्र के बीच पाया जाता है। यह सूर्य के प्रकाश में उपस्थित हानिकारक पराबैंगनी किरणों का अवशोषण कर लेता है जो मनुष्य में त्वचा-कैंसर, मोतियाबिंद तथा अनेक प्रकार के उत्परिवर्तन को जन्म देती है।

1980 के बाद ओजोन स्तर में तीव्रता से गिरावट आई है। अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन के स्तर में इतनी कमी आई है कि इसे ओजोन छिद्र की संज्ञा दी गई है। ओजोन छिद्र का मुख्य कारण क्लारोफ्लोरोकार्बन का व्यापक उपयोग का होना है।

क्लारोफ्लोरोकार्बन का व्यापक उपयोग एयरकंडीशनों, रेफ्रिजरेटरों, शीतलकों, जेट इंजनों, अग्निशामक उपकरणों आदि में होता है।

  • ओजोन परत वायुमंडल के ऊपरी सतह में पाया जाता है।
  • ओजोन परत हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करती है।
  • प्रकृति में पृथ्वी पर ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत सूर्य है।
  • डी० डी० टी० जैव अनिम्नीकरणीय पदार्थ है।
  • ओजोन के एक अणु में तीन परमाणु होते हैं।

जलमंडल— पृथ्‍वी तल पर उपस्थित जलीय भाग को जलमंडल कहते हैं।

भूमिगत जल— पृथ्‍वी तल के नीचे विद्यमान जल को भूमिगत जल कहते हैं।

पृथ्‍वीतल का 71 प्रतिशत जल है। जिसमें से 97 प्रतिशत जल महासागरों में खारे जल के रूप में तथा 2 प्रतिशत जल दोनों ध्रुवों और पहाड़ों पर बर्फ के रूप में पाया जाता है। 1 प्रतिशत भाग ही मृदु जल के रूप में उपलब्‍ध है। यही 1 प्रतिशत जल जीवन, विकास और पर्यावरण को कायम रखे हुए हैं।

प्रकृति में जल के मुख्‍य स्‍त्रोत

  • वर्षा जल
  • सतही जल
  • भूमिगत जल

जल प्रदूषण– प्राकृतिक और मानवजनित कारणों से जल की गुणवत्ता में गिरावट को जल प्रदूषण कहा जाता है।

भारत में उपलब्‍ध कुल जल का लगभग 70 प्रतिशत जल प्रदूषित है।

जल प्रदूषण के कारण

1. कृषि क्षेत्र में उपयोग रासायनिक उर्वरकों और किटनाशकों के द्वारा जल प्रदूषण होता है। किटनाशक वर्षा जल के साथ नदी, तालाब और झीलों को प्रदूषित करते हैं।
2. नगरीय क्षेत्र से सीवेज, भारी मात्रा में कूड़ा-कचरा, नगरों में अवस्थित कारखानों के गंदे जल की नालियों से, जल प्रदूषण होता है।
3. कारखानों से निकलने वाले धात्त्विक पदार्थ, जैसे सीसा और मरकरी से जल प्रदूषण होता है। सीसा तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।

जल प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय
1. हर व्‍यक्ति को घरों से निकलने वाले कचरे को निर्धारित स्‍थानों पर फेंकना चाहिए।
2. कारखानों से निकलने वाले गंदे जल को बिना शोधित किए नदियों और तालाबों में नहीं विसर्जित करना चाहिए।
3. सरकार को जल प्रदूषण रोकने के लिए उपयौगिक और कारगर नियम-कानून बनाना चाहिए।
4. आमलोगों को जल प्रदूषण से संबंधित जानकारी से अवगत कराना चाहिए।

मिट्टी— पृथ्‍वीतल की ऊपरी सतह, जिसमें पेड़-पौधे उगाए जाते हैं, मिट्टी कहलाते हैं। मिट्टी एक प्राकृतिक संसाधन है।

मिट्टी में सड़े-गले पौधों और जानवरों के टूकड़े भी मिले होते हैं, जिसे ह्यूमस कहते हैं।

पेड़-पौधों की उपज के लिए उपयुक्‍त मिट्टी दुम्‍मट होती है। दुम्‍मट मिट्टी में बालू, गाद और किचड़ का मिश्रण होता है साथ ही इसमें ह्यूमस तथा सूक्ष्‍मजीव भी पाए जाते हैं।

मिट्टी के कार्य

मिट्टी पौधों को यांत्रिक सुरक्षा प्रदान करती है।
पेड़-पौधे की जड़ें मिट्टी से ऑक्‍सीजन प्राप्‍त करती है।
पौधे अपने वृद्धि और विकास के लिए आवश्‍यक पौष्टिक तत्त्व मिट्टी से ही प्राप्‍त करते हैं।

मृदा प्रदूषण— मिट्टी से उपयौगिक घटकों का हटना और दूसरे हानिकारक पदार्थों का मिट्टी में मिलना, जिससे मिट्टी की उर्वरता नष्‍ट हो, उसे भूमि प्रदूषण या मृदा प्रदूषण कहते हैं।

मृदा प्रदूषण के रोकने का उपाय

  • कूड़-कचरे को भस्‍मीकरण विधि द्वारा नष्‍ट करना।
  • मिट्टी में दबाकर कंपोस्‍ट बनाकर
  • कचरों का पुनर्चक्रण करके।

मिट्टी का अपरदन— वायु तथा वर्षा द्वारा मिट्टी की उपरी परत का कटना मिट्टी का अपरदन कहलाता है।
शैलों के टूटने से मृदा का निर्माण होता है।

Prakritik Sansadhan Class 9th Science Notes in Hindi

प्रश्न 1. शुक्र और मंगल ग्रहों के वायुमण्डल से हमारा वायुमण्डल कैसे भिन्न है ?
उत्तर: हमारी पृथ्वी का वायुमण्डल बहुत-सी गैसों जैसे-नाइट्रोजन (78%), ऑक्सीजन (20%), कार्बन डाइऑक्साइड (0.03%) तथा जलवाष्प का मिश्रण है। इन वायु घटकों के कारण ही पृथ्वी पर जीवन सम्भव है। जबकि शुक्र तथा मंगल ग्रहों के वायुमण्डल का मुख्य घटक कार्बन डाइऑक्साइड (95 से 97%) है।

प्रश्न 2. वायुमण्डल एक कम्बल की तरह कैसे कार्य करता है?
उत्तर: वायु ऊष्मा की कुचालक है जिससे यह पृथ्वी के तापमान को दिन के समय अचानक बढ़ने से रोकता है तथा रात के समय ऊष्मा को बाहरी अन्तरिक्ष में जाने की दर को कम करती है। इस प्रकार वायुमण्डल एक कम्बल की तरह कार्य करके पूरे वर्ष तापमान को लगभग नियत रखता है।

प्रश्न 3. वायु प्रवाह (पवन) के क्या कारण हैं ?
उत्तर: वायु का प्रवाह पृथ्वी के वायुमण्डल के असमान विधियों से गर्म होने के कारण होता है। तटीय क्षेत्रों में स्थल के ऊपर की वायु तेजी से गर्म होकर ऊपर उठना शुरू करती है। जैसे ही यह ऊपर की ओर उठती है, वहाँ कम दाब का क्षेत्र बन जाता है तथा समुद्र के ऊपर की वायु कम दाब वाले क्षेत्र की ओर प्रवाहित हो जाती है। इस प्रकार एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में वाय का प्रवाह पवनों का निर्माण करता है। लेकिन इन हवाओं को बहुत से अन्य कारक; जैसे-पृथ्वी की घूर्णन गति तथा पवन के मार्ग में आने वाली पर्वत श्रृंखलाएँ भी प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 4. बादलों का निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर: दिन के समय जब जलीय भाग गर्म होते हैं तथा बड़ी मात्रा में जलवाष्प बनकर वायु में प्रवाहित हो जाती है। जल वाष्प की कुछ मात्रा विभिन्न जैविक क्रियाओं के कारण भी वातावरण में आती है। जब वातावरण की वायु गर्म हो जाती है तो यह अपने तथा जलवाष्प को लेकर ऊपर की ओर उठ जाती है तथा ऊपर वायुमण्डल में फैलकर ठण्डा होने के कारण छोटी-छोटी जल बूँदों के रूप में संघनित होकर बादलों का निर्माण करती है।

प्रश्न 5. अपरदन को रोकने और कम करने के कौन-कौन से तरीके हैं?
उत्तर: अपरदन को रोकने और कम करने का प्रमुख तरीका वन विनाश को रोकना तथा अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना है। अपरदन रोकने के लिए यह आवश्यक है कि भूमि खाली न छोड़ी जाये। वर्षा शुरू होने से पहले खाली भूमि के चारों ओर मेड़बन्दी की जाय। असमतल भूमि पर कन्टूर खेती तथा ढालू भूमि पर सीढ़ीदार खेती की जाय। ऐसे क्षेत्र जहाँ वायु द्वारा अपरदन की अधिक सम्भावना है वहाँ भूमि पर लम्बे वृक्षों की वायुरोधी कतार लगाई जाये।

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