Bihar Board Class 9 Hindi पधारो म्हारे देस (Padharo Mhare Desh Class 9th Hindi Solutions)Text Book Questions and Answers
8. पधारो म्हारे देस
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ‘पधारो म्हारे देस’ अनुपम मिश्र द्वारा लिखितपुस्तक राजस्थान की रजत बूंदें’ से संकलित है। इसमें लेखक ने जीवन में पानी का क्या महत्त्व या आवश्यकता है, इसकी ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है। लेखक काकहना है कि पानी मनुष्य के लिए ईश्वर की सबसे बड़ी देन है। इसका उपयोग सहीढंग से होना चाहिए । पानी का दुरुपयोग करना जीवन को जोखिम में डालना है। क्योंकि आज से हजारों वर्ष पूर्व जहाँ समुद्र की लहरें उठती थीं, वहाँ मरूभमि का विस्तृत क्षेत्र विद्यमान है।
प्रकृति के इस विराट रूप को दूसरे विराट रूप में परिवर्तित होने में लाखों वर्ष लगेहोंगे, लेकिन राजस्थान के लोग यहाँ के पहले वाले रूप को भूले नहीं हैं। वह अपने मनकी गहराई में आज भी उसे हाकड़ों नाम से याद रखे हैं। राजस्थानी भाषा में समुद्र को हाकड़ो कहा जाता है। इसके अतिरिक्त समुद्र के लिए सिंधु, सरितापति, सागर, वाराधिप, आच, उअह, देधाण, वडनीर, वारहर, सफरा-भंडार आदि नामों से संबोधित करते हैं। समुद्र का एक नाम हेल है जो समुद्र की विशालता एवं उदारता का द्योतक है। इस प्रकार राजस्थानी समाज की उदारता की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए लेखक यह संदेश देना चाहता है कि विशाल मरुभूमि में रहते हुए भी जिसके कंठ में समुद्र के इतने नाम मिलते हैं तो निश्चय ही इस समाज में महानता है। जबकि इस क्षेत्र की छवि एक सूखे, उजड़े और पिछड़े क्षेत्र की है। थार मरुस्थल इसी का एक भाग है। देश के सारे राज्यों में इसका क्षेत्रफल एवं इसकी आबादी महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं, परन्तु वर्षा के मामले में अंतिम है। तात्पर्य कि जहाँ देश के अन्य भागों में वर्षा की औसत 100 सेंटीमीटर से 1000 सेंटीमीटर है, वहीं राजस्थान में वर्षा की औसत मात्रा 25 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर तक है । मरुभूमि में पानी कम तथा गर्मी ज्यादा होने के कारण वहाँ की जनसंख्या विरल है, परन्तु राजस्थान के मरुप्रदेश में दुनिया के अन्य ऐसे प्रदेशों की तुलना में न सिर्फ बसावट ज्यादा है बल्कि उस बसावट में जीवन की सुगंध भी है।
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इसीलिए यह क्षेत्र दुनिया के अन्य मरुस्थलों की तुलना में सबसे अधिक जीवंत माना गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि राजस्थान के समाज ने प्रकृति से मिलने वाले इतने कम पानी का रोना नहीं रोया, बल्कि इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और अपने ऊपर से नीचे तक कुछ इस ढंग से खड़ा किया कि पानी का स्वभाव समाज के स्वभाव में बहुत सरल ढंग से बहने लगा। इसी विशेषता के कारण जैसलमेर, बीकानेर तथा जयपुर इतने कम पानी के इलाके में होने के बाद भी देश के अन्य शहरों के मुकाबले में कम सुविधाजनक नहीं था। यही शहर लंबे समय तक सत्ता, व्यापार तथा कला का मुख्य केन्द्र था। ईरान, अफगानिस्तान से लेकर रूस आदि से होनेवाले व्यापार का प्रमुख केन्द्र यही था।
लेखक का मानना है कि राजस्थान के समाज ने अपने जीवन-दर्शन की विशिष्ट गहराई के कारण ही जीवन की, कला की तथा संस्कृति की ऊँचाई को छुआ था। इस जीवन-दर्शन में पानी का काम एक बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान रखता था । पानी के काम में यहाँ भाग्य भी है और कर्त्तव्य थी। भाग्य के संबंध में लेखक का तर्क है कि महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ द्वारका इसी रास्ते से वापस हुए थे। उनका रथ मरुदेश पार कर रहा था। जैसलमेर के निकट त्रिकंट पर्वत पर तपस्यारत उत्तंग ऋषि के तप से प्रसन्न श्रीकृष्ण ने उन्हें वर माँगने को कहा । ऋषि ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की कि “यदि मेरे कुछ पुण्य हैं तो भगवन् वर दें कि इस क्षेत्र में कभी जल का अकाल न रहे।’ श्रीकृष्ण ने ‘तथास्तु’ कहकर वरदान दिया था। लेकिन यहाँ के लोगों ने यह वरदान पाकर हाथ पर हाथ धरकर नहीं बैठा, बल्कि वर्षा की बूदों को सहेज कर इस तरल रजत बूंदों को अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए एक ऐसी भव्य परंपरा बना ली, जिसकी धवलधारा इतिहास से निकल कर वर्तमान तक बहती है और वर्तमान को भी इतिहास बनाने की सामर्थ्य रखती है। यहाँ की मरुभूमि के प्राचीन इतिहास में रेगिस्तान के लिए थार शब्द भी ज्यादे नहीं दिखता । रेगिस्तान के पुराने नामों में स्थल है, जो समुद्र के सूख जाने से निकले स्थल का सूचक है। इस प्रकार स्थल का थल और महाथल बना, जिसे बोलचाल में थली और धरधूधल कहा गया। फिर माड़, मारवाड़, मेवाड़, मेरवाड़, ढूँढ़ार, गोड़वाड़, हाडौती जैसे बड़े विभाजन भी हुए। यहाँ अनेक छोटे-बड़े राजा भीहुए, परन्तु लेखक के अनुसार यहाँ के नायक श्रीकृष्ण ही है, जिन्हे मरुनायकजी की तरहपुकारा जाता है। यहाँ के लोगों ने इन जलबूंदों को टाँकों, कुंड-कुंडियों, बेरियों, जोहड़ों, नाडियों, तालाबों, बाबड़ियों तथा कुओं में उतार लिया, लेकिन इसके लिए जसढोल नहीं पीटा। इन्होंने जल-संग्रह करने की अपनी अनोखी परंपरा का विकास करके देश के अन्य भाग के लोगों को जल-संग्रह करने के लिए प्रेरित किया कि आओ, देखो, हमारी भव्यपरंपरा।
अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर
पाठ के साथ :
प्रश्न 1. ‘हाकड़ो’ राजस्थानी समाज के हृदय में आज भी क्यों रचा-बसा है?
उत्तर— ‘हाकड़ो’· राजस्थानी समाज के हृदय में आज भी इसलिए रचा-बसा क्योंकि यह हाकड़ो शब्द हजारों वर्षों से उन पीढ़ियों की लहरों में तैरता रहा है, जिनके पुरखों ने भी कभी समुद्र नहीं देखा था । तात्पर्य कि उनके मन में हाकड़ों शब्द इस प्रकार बस गया कि वे आज भी उसे हाकड़ो नाम से याद रखते हैं । इसका मुख्य कारण यह है कि जल का समुद्र तो लुप्त हो गया, किंतु रेत का समुद्र अभी विद्यमान है ।
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प्रश्न 2. ‘हेल’ नाम समुद्र के साथ अन्य कौन-कौन अर्थों को दर्शाता है ?
उत्तर – समुद्र को सिंधु, सरितापति, सागर, वाराधिप, आच, उअह, देधाणा, वडनीर, वारहर, सफरा-भंडार आदि नामों से संबोधित किया जाता है । साथ ही समुद्र का एक नाम हेल भी है, जिसका अर्थ समुद्र के साथ-साथ विशालता और उदारता है 1
प्रश्न 3. किस रेगिस्तान का वर्णन कलेजा सुखा देता है ?
उत्तर — थार रेगिस्तान का वर्णन कलेजा सुखा देता है ।
प्रश्न 4. भूगोल की किताबें किनको ‘अत्यंत कंजूस महाजन’ की तरह देखती हैं और क्यों ?
उत्तर – भूगोल की किताबें प्रकृति और वर्षा को ‘अत्यंत कंजूस महाजन’ की तरह देखती हैं, क्योंकि राज्य का पश्चिमी क्षेत्र जैसलमेर, बीकानेर, चुरू, जोधपुर तथा श्री गंगानगर आते-आते वर्षा की मात्रा सिर्फ 16 सेंटीमीटर से भी कम रह जाती है । अर्थात् राजस्थान के पूर्वी भाग की अपेक्षा पश्चिमा भाग में बहुत कम वर्षा होती है। इसीलिए वर्षा को ‘कंजूस महाजन’ कहा गया है।
प्रश्न 5. राजस्थानी समाज ने प्रकृति से मिलने वाले इतने कम पानी का रोना क्यों नहीं रोया ?
उत्तर – राजस्थानी समाज ने प्रकृति से मिलने वाले इतने कम पानी का रोना इसलिए नहीं रोया, क्योंकि उन्होंने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए इसे ऊपर से नीचे तक कुछ इस ढंगसे खड़ा किया कि पानी का स्वभाव समाज के स्वभाव में बहुत सरल ढंग से बहने लगा। तात्पर्य कि यहाँ के लोगों ने पानी की बूँदों का संचय करने की भव्य परंपरा बना ली, जिस कारण उन्होंने इतने कम पानी मिलने का रोना नहीं रोया ।
प्रश्न 6. ” यह राजस्थान के मन की उदारता ही है कि विशाल मरूभूमि में रहते हुए भी उसके कंठ में समुद्र के इतने नाम मिलते हैं?” इस कथन का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- संकेत : उत्तर के लिए पृष्ठ 83 पर व्याख्या- संख्या (1) देखें ।
प्रश्न 7. जल-संग्रह कैसे करना चाहिए?
उत्तर- छत से गिरते वर्षा जल को नालियों द्वारा कुंड-कुंडियों तथा तालाबों में संचय करना चाहिए। पानी को इधर-उधर न बहने देना चाहिए। जिस प्रकार राजस्थान में जल-संग्रह की पंरपरा है, उसी परंपरा के अनुकूल हमें भी जल-संग्रह करना चाहिए ।
प्रश्न 8. त्रिकूट पर्वत कहाँ है ?
उत्तर – राजस्थान के जैसलमेर के पास त्रिकूट पर्वत है ।
प्रश्न 9. ‘धरती धोरां री’ किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर— स्थल भाग को ‘धरती धोरां री’ कहा गया है। यह इसलिए कि हाकड़ो अर्थात् समुद्र के सूख जाने से जो भाग निकला, उसे स्थल कहा गया । यहाँ अकाल पड़ते रहे हैं, कहीं-कहीं पानी का भी कष्ट रहा है, परन्तु गृहस्थों से लेकर जोगियों तक, कवियों से लेकर मांगणियारों, लंगाओं तथा हिन्दू-मुसलमानों तक ने इसे ‘धरती धोरां री’ कहा है ।
प्रश्न 10. मरूनायक जी कहकर किसे पुकारा गया है? उनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर—मरूनायकजी कहकर श्रीकृष्ण को पुकारा गया है। इन्होंने त्रिकूट पर्वत पर तंपस्या कर रहे उत्तुंग ऋषि की तपस्या पर प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि इस क्षेत्र में जल का अकाल कभी नहीं होगा । इसी कारण वहाँ के लोगों का मानना है कि इस विराट मरुस्थल के छोटे-बड़े राजा चाहे जितने रहे हों, परन्तु नायक तो श्रीकृष्ण ही हैं । क्योंकि उन्होंने मरुवासियों को जीवनदान दिया है ।
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प्रश्न 11. राजस्थान में वर्षा का क्या स्वरूप है ?
उत्तर—राजस्थान में वर्षा का स्वरूप अति दयनीय है । यहाँ पूरे वर्ष में वर्षा का औसत 60 सेंटीमीटर है। इसमें भी राज्य के एक छोर से दूसरे छोर तक एक जैसी वर्षा नहीं होती । कहीं 100 सेंटीमीटर है तो कहीं 25 सेंटीमीटर । यहाँ वर्षा का अत्यंत असमान वितरण है। पूर्वी भाग से पश्चिमी भाग तक जाते-जाते वर्षा की मात्रा 16 सेंटीमीटर से भी कम रह जाती है । अतः राजस्थान में वर्षा के स्वरूप में काफी भिन्नता है ।
प्रश्न 12. ‘रीति’ के लिए राजस्थान में ‘वोज’ शब्द है। यह क्या-क्या अर्थ रखता है?
उत्तर— रीति के लिए प्रयुक्त वोज शब्द का अर्थ है — रचना, युक्ति, उपाय सामर्थ्य, विवेक तथा विनम्रता ।
प्रश्न 13. लेखक ने ‘जसढोल’ शब्द का किस अर्थ में प्रयोग किया है और क्यों ?
उत्तर—लेखक ने जसढोल शब्द का प्रयोग ‘प्रशंसा करना’ के अर्थ में किया है, क्योंकि आज देश के लगभग सभी छोटे-बड़े शहर, गाँव, प्रदेश की राजधानियों तथा देश की राजधानी में अच्छी वर्षा होने के बावजूद वहाँ के लोग पानी जुटाने के मामले में कंगाल हो रहे हैं जबकि मरुभूमि में फली फूली जल-संग्रह की भव्य पंरपरा का जसढोल तो बजना ही चाहिए, क्योंकि राजस्थानी समाज इस जल-संग्रह के माध्यम से पानी की आवश्यकता की पूर्ति हँसते-हँसते कर लेते हैं ।
प्रश्न 14. इस फीचर को पढ़कर आपको क्या शिक्षा मिली? आप अपने जीवन में इसका उपयोग कैसे करेंगे ?
उत्तर—इस फीचर को पढ़कर हमें यही शिक्षा मिली कि हमें भी राजस्थानियों की भाँति जल का संग्रह तथा उपयोग करना चाहिए । जल प्रकृति की अनुपम देन है। जल ही जीवन है। इसलिए इस जीवन का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए । विवेकपूर्ण ढंग से इसका उपयोग किया जाना चाहिए, ताकि काल- विशेष में इस जल के लिए परेशान न होना पड़े ।
यदि हम अपने जीवन में इसका उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से करने का प्रयास करेंगे तथा दूसरों को भी जल की रक्षा करने के लिए प्रेरित करेंगे, तो निश्चित है कि भविष्य में जल संकट की समस्या से जूझना नहीं पड़ेगा ।
प्रश्न 15. लेखक क्यों ‘पधारो म्हारे देस’ कहता है ?
उत्तर—लेखक ‘पधारो म्हारो देस’ इसलिए कहता है कि देशवासी इस मरुप्रांत में, जहाँ सबसे कम वर्षा होती है, को देखकर जल-संग्रह करने के लिए प्रेरित हों । वे इस बात से भी अवगत हो कि अच्छी वर्षा के बावजूद वे पानी जुटाने के मामले में क्यों कंगाल हो रहे हैं ? उनको यह समझना चाहिए कि अत्यल्प वर्षा वाला क्षेत्र राजस्थान जल संग्रह की भव्य परंपरा के फलस्वरूप जल संकट से मुक्त है और जीवन के हर क्षेत्र में विकास कर रहा है ।
नोट : पाठ के आस-पास के प्रश्नों के उत्तर छात्र स्वयं तैयार करें ।
भाषा की बात (व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर ) .
प्रश्न 1. ‘समुद्र’ शब्द के पर्यायवाची बताएँ ।
उत्तर : समुद्र – सागर, नीरनिधि, जलनिधि, वारीश, पयोधि, जलधि, सिंधु ।
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प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के विशेषण बताएँ और वाक्य में प्रयोग करें।
जल, रेत, समुद्र, पुराण, प्रकाश, स्थल, परंपरा, समाज ।
उत्तर :
शब्द विशेषण वाक्य प्रयोग
जल जलीय मछली जलीय जीव है ।
रेत रेतीला रेतीला क्षेत्र मरूभूमि कहलाता है ।
समुद्र सामुद्रिक आज आतंकवादी सामुद्रिक मार्ग से चलते हैं ।
पुराण पौराणिक पौराणिक कथा सुनते जी नहीं अघाता ।
प्रकाश प्रकाशित प्रकाश नहीं, प्रकाशित वस्तुएँ दिखाई पड़ती हैं ।
स्थल स्थलीय हाथी स्थलीय जीव है ।
परपंरा पारंपरिक स्वजातीय विवाह पारंपरिक प्रथा है ।
समाज सामाजिक आज सामाजिक व्यवस्था बिगड़ती जा रही है
प्रश्न 3. दिए गए शब्दों के समानार्थी शब्द लिखें :
विराट, प्राचीन, मरुभूमि, दृष्टि, युग, कला, जीवन
उत्तर : विराट—विशाल
प्राचीन — पुरातन
मरुभूमि— रेगिस्तान
दृष्टि — निगाह
युग — काल
कला–कौशल
जीवन — जिंदगी
प्रश्न 4. इस पाठ से राजस्थानी शब्द चुने और उनका हिन्दी पर्याय दें |
उत्तर : हाकड़ो — समुद्र
बसावट – जनसंख्या का घनत्व
वोज—सामर्थ्य
म्हारे—हमारे
हेल—उदारता, विशालता
धेले—मामूली
धोरां — पालन करने वाली
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प्रश्न 5. ‘वि’ उपसर्ग से पाँच शब्द बनाएँ ।
उत्तर : वि + शाल = विशाल
वि + नाश = विनाश
वि + शिष्ट = विशिष्ट
वि + शेष = विशेष
वि + योग = वियोग
प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों के संधि-विच्छेद करें ।.
संस्कृत, नायक, तथास्तु
उत्तर—सम् + कृत = संस्कृत ।
नै + अक = नायक ।
तथा + अस्तु = तथास्तु ।
प्रश्न 7. वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग-निर्णय करें ।
उत्तर : लहर = समुद्र में लहरें उठ रही थीं ।
देश = हमारा देश महान् है ।
दृष्टि = राम की दृष्टि कमजोर हो गई है ।
पलक = उनकी पलकें बन्द हो गईं ।
दरिया = दरिया सूख गया है ।
नदी = नदी बह रही है।
मरुस्थल = मरुस्थल रेतीला होता है ।
समाज = हमारा समाज ही कमजोर हो गया है ।
धरती = कल रात धरती काँप उठी थी ।
आकाश = आकाश नीला है।
पानी = पानी गंदा है।
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