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BSEB Class 9 Hindi पद्य Chapter 3. पद | Pad Class 9th Hindi Solutions

October 29, 2023 by Leave a Comment

Bihar Board Class 9 Hindi पद (Pad Class 9th Hindi Solutions)Text Book Questions and Answers

Pad Class 9th Hindi Solutions

3. पद, कवि- गुरूगोविन्‍द सिंह

कोऊ भयो मुंडिया संन्यासी, कोऊ जोगी भयो,
कोऊ ब्रह्मचारी, कोऊ जतियन मानबो।
हिंदू तुरक कोऊ राफजी इमाम साफी,
मानस की जात सबै एकै पहचानबो।
करता करीम सोई राजक रहीम ओई,
दूसरों न भेद कोई भूल भ्रम मानबों।
एक ही सेव सबही को गुरुदेव एक,
एक ही सरूप सबै, एकै जीत जानबो।

अर्थ-कवि का कहना है कि इस समाज में कोई अपने को मुंडित सिर वाले संन्यासी कोई जोगी, कोई ब्रह्मचारी, कोई यति, कोई हिन्दू, कोई तुर्क, कोई अपने स्वामी को पीड़ित देखकर भागनेवाला, कोई अपने को धर्मगुरु कहता है। लेकिन इन सारे भेदों के बावजूद वह मूल रूप में मनुष्य है । इस प्रकार राम एवं रहीम दोनों एक ही हैं। उन्हें एकदूसरे से भिन्न मानना सर्वथा भूल या भ्रम है। सारा संसार एक ही गुरु रूप भगवान कीआराधना या सेवा करता है। अतः सबका रूप एक समान है तथा एक ही प्रकाश से सभी – ज्योतित या प्रकाशमान् है।

Pad Class 9th Hindi Solutions

व्याख्या— प्रस्तुत छंद सिखों के दसवें तथा अंतिम गुरु गुरुगोविंद सिंह द्वारा रचितहै। इसमें कवि ने मानवीय एकता के संबंध में अपना विचार प्रकट किया है।कवि का कहना है कि सभी मनुष्य एक समान हैं, चाहे किसी भी जाति के क्यों न हों। अपनी सुविधा के लिए ये विभिन्न जातियों में विभक्त हो गए हैं। लेकिन मूल रूप में ये मनुष्य हैं जिसे कोई नकार नहीं सकता। हम सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं। यह संसार एक ही ईश्वर की ज्योति से प्रकाशित है। धर्म तो मानव द्वारा सृजित है। अतएव इन सारे भेदभावों को त्यागकर हमें मिलजुल कर अन्याय का विरोध करने के लिए उठ खड़ा होना चाहिए, क्योंकि हम समान रूप से इस अन्याय के शिकार है।

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कवि मानवमात्र की एकता के लिए व्यग्र है। वह एकत्वपूर्ण आत्मबोध के लिए ईश्वर की एकता, गुरु, स्वरूप तथा ज्योति की एकता की प्रतिष्ठा करना चाहता है। निष्कर्षतः कवि ने समाज के ऊपरी विभेदों की दीवार तोड़कर आंतरिक एकता स्थापित करने का भरपूर प्रयास किया है, ताकि लोगों में देश-प्रेम की भावना प्रबल हो सके। प्रस्तुत छंद की भाषा पंजाबी मिश्रित ब्रज है।

जैसे एक आग ते कनूका कोट आग उठे,
न्यारे न्यारे कै फेरि आगमै मिलाहिंगे।
जैसे एक धूरते अनेक धूर धूरत हैं,
धूरके कनूका फेर धूरही समाहिंगे।
जैसे एक नदते तरंग कोट उपजत हैं,
पान के तरंग सब पानही कहाहिंगे।
तैसे विस्वरूप ते अभूत भूत प्रगट होइ,
ताही ते उपज सबै ताही मैं समाहिंगे।

अर्थ-कवि का कहना है जिस प्रकार आग के छोटे कण से करोड़ों आग के कणउत्पन्न हो जाते हैं लेकिन अलग-अलग होते हुए भी पुनः उसी आग में मिल जाते हैं या फिर एक ही धूल के कण अनेक खंडों में विभक्त होने केबाद पुनः मिट्टी का रूप धारण कर लेते हैं। नदी या समुद्र में लहरें अलग-अलग दिखाई देती हैं लेकिन सभी लहरें एक ही जल से उठती हैं। उसी प्रकार निराकार परमब्रह्म से उत्पन्न ये पंचभौतिक शरीर वालेजीव पुनः उसी परमात्मा के दिव्य प्रकाश में समाहित हो जाते हैं । अर्थात् हर वस्तु जहाँ से उत्पन्न होती है, उसे पुनः उसी में मिलना पड़ता है।

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व्याख्या– प्रस्तुत छंद गुरुगोविंद सिंह द्वारा रचित है। इसमें कवि ने जीवन-मरण के महान् दार्शनिक पक्ष को उद्घाटित किया है।
कवि का कहना है कि संसार अनित्य है, सिर्फ ईश्वर ही सत्य है । जीव जीवन-मरण के कारण आता-जाता रहता है, परन्तु ईश्वर न तो जन्म लेता है और न ही मरता है। वह अजर, अमर, व्यापक तथा बहुरूपी है । वहआवश्यकतानुसार विभिन्न रूपों में प्रकट होता है, लेकिन उसका रूप विश्वरूप है। कवि इस पंचभौतिक शरीर वालों के संबंध में अपना विचार प्रकट करते हुए कहता है कि ये जहाँ से आते हैं, मरणोपरान्त पुनः उसी में मिल जाते हैं।

अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर

कविता के साथ :

प्रश्न 1. ईश्वर ने मनुष्य को सर्वोत्तम कृति के रूप में रचा है । कवि के अनुसार मनुष्य वस्तुतः एक ही ईश्वर की संतान है, उसे खेमों में बाँटना उचित नहीं है। इस क्रम में उन्होंने किन उदाहरणों का प्रयोग किया है?
उत्तर – कवि ने इस क्रम में ईश्वर की एकता, गुरु, स्वरूप तथा ज्योति की एकता द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि मनुष्य विभिन्न वर्गों में बँटने के बावजूद एक ही है। उदाहरण के तौर पर कवि ने कहा है कि मनुष्य के आकार-प्रकार में कोई भिन्नता नहीं होती। हर मनुष्य को हाथ-पैर, नाक-मुँह सभी समान रूप में होते है । सभी एक ही ईश्वर की संतान हैं। सबको समान रूप से धूप- हवा, अन्न-जल प्राप्त होते हैं । इसलिए मनुष्य को विभिन्न खेमों में बाँटना अनुचित है ।

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प्रश्न 2. कवि ने मानवीय संवेदना को मनुष्यता के किस डोर में बाँधे रखने की बात कही है?
उत्तर—कवि ने मानवीय संवेदना को अन्तर्वर्ती एकता के डोर में बाँधे रखने की बात कही है। कवि का कहना है कि हमें सारे भेदभावों को भूल आन्तरिक एकता कायम रखनी चाहिए, क्योंकि हम जिसका अन्न-जल खाकर जीते हैं, उसकी रक्षा करना हमारा धर्म है इसलिए हमें एक होकर अपने साथ हो रहे अन्याय का विरोध करना चाहिए। कवि लोगों को देश-प्रेम अथवा देशभक्ति की भावना से सारे भेद-भावों को त्यागकर अपनी मानवता का परिचय देना चाहिए।

प्रश्न 3. गुरुगोविंद सिंह के इन भक्ति पदों के माध्यम से सामाजिक कलह और भेदभाव को कम किया जा सकता है? पठित पद से उदाहरण देकर समझाएँ ।
उत्तर—पठित पदों के माध्यम से कवि गुरुगोविंद सिंह ने सामाजिक भेदभाव दूर करने का सफल प्रयास किया है । कवि ने जिस तथ्य पर प्रकाश डाला है, वह समाज के लिए कोढ़ के समान है । कवि का कहना है कि व्यक्ति मूलतः मनुष्य है। जाति या वर्ग तो मनुष्य द्वारा निर्मित व्यवस्था है । जब मनुष्य स्वयं असत्य है तो उसके द्वारा निर्मित व्यवस्था कैसे सत्य हो सकती है । सत्य तो केवल ईश्वर है, जिसका कभी नाश नहीं होता। मनुष्य उसी विश्व रूप ईश्वर का अंश है। यह अंश उसी प्रकार प्रभु में पुनः विलीन हो जाता है, जैसे— नदी की तरंग । दूसरी बात कि ईश्वर न तो हिन्दू है और न ही मुसलमान । वह तो सच्चिदानंद है । सारा संसार उसी परमपिता के प्रकाश से प्रकाशमान है। साथ ही, यह धरती सबकी है, सबका भरण-पोषण समान रूप से करती है । अतएव हमें सारे भेदभावों को भूल इस धरती की रक्षा करनी चाहिए जिसकी गोद में हम पलते-बढ़ते हैं । अतः कवि ने भगवद् भक्ति के माध्यम से देशभक्ति तथा एकता का संदेश दिया है । यह सच है कि मनुष्य को यह आत्मबोध हो जाए कि हम मनुष्य हैं, हमारा हर काम मानवीय गुणों से सम्पन्न हो तो सारी सामाजिक बुराइयाँ स्वतः मिट जाएँगी ।

प्रश्न 4. भाव स्पष्ट करें :
(क) “तैसे विस्वरूप ते अभूत भूत प्रकट होइ,
ताही ते उपज सबै ताही मैं समाहिंगे ।

उत्तर – प्रस्तुत पद का भाव यह है कि ये पंचभौतिक जीवन उसी अजर, अमर, व्यापक तथा बहुरूपी ईश्वर का अंश है। जीव उसी प्रभु से उत्पन्न होता है और मरणोपरांत उसी में जा मिलता है । जैसे- जल में लहरें उठती हैं और पुनः उसी में मिल जाती हैं । तात्पर्य कि यह मानव-जीवन क्षणिक है । सत्य या अमर मात्र ईश्वर हैं ।

(ख) ‘एक ही सेव सबही को गुरुदेव एक,
एक ही सरूप सबै, एकै जोत जानबो ।

उत्तर- कवि के कहने का भाव यह है कि जब सारे संसार के लिए सेव्य अर्थात् सेवा करने योग्य एक ही गुरु यानि परमात्मा हैं । सारे मानवों का आकार – प्रकार, क्रिया-कलाप सभी एकसमान हैं तो आपसी विभेद क्यों ? अतः सभी मनुष्य समान हैं । सबों में समान रूप से ईश्वरीय अंश है और एक ईश्वर के प्रकाश से सभी ज्योतित हैं ।

नोट : पाठ के आस-पास के प्रश्नों के उत्तर छात्र स्वयं तैयार करें ।

भाषा की बात ( व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर ) :

प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखें :
उत्तर :

शब्द                 पर्यायवाची शब्द
आग                  अग्नि, बह्नि, पावक, अनल, ताप
संन्यासी              यति, त्यागी, जोगी
गुरु                    ईश्वर, आचार्य, शिक्षक, मार्गदर्शक

प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखें :
उत्तर :

शब्द                 विपरीतार्थक शब्द
एक                   अनेक
आग                  पानी
भूत                   अभूत
प्रगट                  अप्रकट
उपज                  अंत
संन्यासी              गृहस्थ

प्रश्न 3. ‘संन्यासी’ का संधि-विच्छेद करें ।
उत्तर : सम् + न्यासी = संन्यासी

प्रश्न 4. दोनों पदों का आज की हिंदी में रूपान्तरण कीजिए ।
उत्तर :

(क) कोई मुंडित सिर संन्यासी हो गए, कोई योगी हो गए,
कोई ब्रह्मचर्यव्रतधारी, कोई यति, योगी मानने लगे ।
हिंदू तुर्क कोई शरणार्थी पुजारी शुद्ध करने वाला,
मनुष्य जाति सभी एक समान है ।
वही भगवान सृष्टिकर्त्ता राजा, दयानिधि भी वही,
कोई अलग नहीं, ऐसी भूल या संदेह व्यर्थ है ।
सबके पूजा योग्य एक ही गुरुदेव हैं,
सबका एक जैसा स्वरूप, एक जैसा प्रकाश है ।

(ख) जैसे एक आग में करोड़ों कण जल जाते हैं,
पुनः अलग-अलग होकर आग मिल जाएँगे ।
जैसे एक ही धूल से असंख्य धूलकण बन जाते हैं,
धूल के कण पुनः धूल में ही मिल जाएँगे ।
जैसे नदी के जल में असंख्य तरंगे उठती दिखाई पड़ती हैं,
(लेकिन) जल में उठती तरंगें जल ही कहलाएँगी ।
उसी प्रकार अजन्मा विश्व रूप ईश्वर से जीव उत्पन्न होकर उसी उत्पन्न होकर उसी में समा जाएँगे ।

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