Bihar Board Class 9 Hindi मैं नीर भरी दु:ख की बदली (Main Neer Bhari Dukh Ki Bhari Class 9th Hindi Solutions) Text Book Questions and Answers
5. मैं नीर भरी दु:ख की बदली
कवि महादेवी वर्मा
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनों में दीपक से जलते
पलकों में निर्झरिणी मचली !
अर्थ-कवयित्री कहती है कि कंपन में ही चिर शांति निवास करती है। रूदन के बाद ही दुःखी मन प्रसन्नता महसूस करता है। आँखों में दीपक के समान वेदना की भावना ज्वलित रहती है जिस कारण आँसू झरना के समान गिरते रहते हैं। कवयित्री के कहने का भाव है कि वियोग की दशा में मानसिक व्यथा आँसू बनकर जब गिर जाती है तो मन में एक विशेष शांति महसूस होती है।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ विरह की गायिका कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा विरचित कविता ‘मैं नीर भरी दुःख की बदली’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इसमें कवयित्री ने विरह-वेदना की दशा का बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है।
वेदना की गायिका का मानना है कि अभाव से उत्पन्न दुःख अति प्रिय होता है, क्योंकि इससे प्रेमी के प्रति प्रेम दृढ़ होता है। विरही अपनी वेदना रूपी आँसू से प्रेम रूपी बेलि को सींचती रहती है, जिससे प्रेमी की याद दीपक के समान आँखों में जलती रहती है। साथ ही, आँसू के गिरने से मन हलका हो जाता है और कवयित्री अपने अन्दर एक अलौकिक शांति का अनुभव करती है। इसीलिए कवयित्री अपने को बदली कहकर यह स्पष्ट करना चाहती है कि बदली जल बरसाकर रिक्त हो जाती है और वह आँसू बहाकर शून्यता की स्थिति प्राप्त करना चाहती है।
मेरा पग-पग संगीत भ्रा,
श्वासों से स्वप्न-पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय-बयार पली !
अर्थ- कवयित्री कहती हैं कि उसका हर कदम संगीत से पूर्ण है तथा उसकी साँसो से स्वप्न रूपी पुष्प की धूलि (गंध) निकलती है। आकाश के नये-नये रंग टुपट्टा जैसे प्रतीत होते हैं तथा जिसकी छाया में चंदन वन से आने वाली हवा पलती है।
व्याख्या—प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री.महादेवी वर्मा द्वारा लिखित कविता “मैं नीर भरी -दुःख की बदली’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इनमें कवयित्री ने वेदना की दशा का वर्णन किया है।
कवयित्री का कहना है कि वेदना की इस दशा में उसके हर कदम संगीतमय हो गये हैं। उसकी साँसों से कल्पना रूपी पुष्प की धूलि झरती प्रतीत होती हैं तो आकाश उसके दुपट्टे के सामन नये-नये रंग उपस्थित कर रहा है। कवयित्री के कहने का भाव यह है कि वह अपने प्रियतम से मिलने के लिए इस प्रकार सज-धज जाना चाहती हैं कि उसका प्रियतम सहजता के साथ उसे स्वीकार कर ले। इस प्रकार मिलन की व्यग्रता के कारण कवयित्री के मन में तरह-तरह के भाव जाग्रत होते हैं।
मैं क्षितिज-भृकुटी पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी
नव जीवन-अंकुर बन निकली!
अर्थ—कवयित्री कहती हैं कि वह अपने अज्ञात प्रियतम-मिलन की क्षीण आशा अथवा निराशा के कारण उसकी चिंता लगातार बढ़ती जा रही है। उसे लगता है जैसे प्यासी धरती पर बादल जल बरसा कर नया जीवन प्रदान करता है अर्थात् तप्त धरतीको शांति प्रदान करता है, वैसे ही वेदना रूपी आँसू के जल गिरने से उसके मन की – मलिनता अथवा निराशा दूर होती है तथा मनमें नई आशा का संचार होता है।
व्याख्या— प्रस्तुत पंक्तियाँ वेदना की गायिका कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा लिखित | कविता ‘मैं नीर भरी दुःख की बदली’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इसमें कवयित्री ने वेदना को चरमावस्था का वर्णन किया है।
कवयित्री का कहना है कि वेदना की ज्वाला जितनी तीव्र होती जाती है. उसकी आँखों से अश्रुजल जितने गिरते जाते हैं, उसकी भावना उतनी ही परिपुष्ट होती जाती है। तात्पर्य कि कवयित्री के प्रेमी-मिलन की लालसा लगातार बढ़ती जाती है। इसीलिए कवयित्री अपने आँसुओं की तुलना बदली से करती हुई यह बताना चाहती है कि जिस प्रकार बदली जलपूर्ण होकर सारे आकाश में छा जाती है और जल बरसाकर सारे विश्व को नया जीवन प्रदान करती है, उसी प्रकार कवयित्री वेदना का भार वहन करती हुई अपने करूणा जल से सबको नया जीवन प्रदान करना चाहती है।
पथ को न मलिन करता आना,
पद-चिह्न न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में
सुख की सिहरन हो अंत खिली ।
अर्थ-कवयित्री अपने अज्ञात, असीम प्रियतम से आग्रह करती है कि वह इस प्रकार आए कि आने वाला पथ न तो मलिन हो और न ही कोई पदचिह्न ही शेष रह जाए, बल्कि वह इस प्रकार आए कि मात्र सुख या आनंद का ही अनुभव हो।
व्याख्या– प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा लिखित कविता – ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इसमें कवयित्री ने अपने अज्ञात प्रियतम से आग्रह किया है कि वह इस प्रकार आए कि उसका प्रेम-पथ न तो मलिन होने पाए और न ही अपना पद-चिह्न छोड़े ताकि कवयित्री की अनंत. में समाहित होने की | भावना क्षीण न हो। कवयित्री का मानना है कि तृप्ति मिलते ही व्यक्ति का प्रयास मंद हो जाता है, इसलिए कवयित्री चाहती है कि उसकी वेदना उसे सतत् कर्मपथ पर अग्रसर रखे। साथ ही, कवयित्री यह भी चाहती है कि संसार में उसकी याद करके लोग आनंद का अनुभव करें।
विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही,
उमड़ी कल थी मिट आज चली ।
अर्थ-कवयित्री कहती है कि चाहे इस विस्तृत संसार में कोई अपना न हो। उसका परिचय तथा उसके जीवन का इतिहास यही हो । उसके मन में इतिहास में अमर बनने के विचार आये थे,जो स्वतः नष्ट हो गए हैं।
व्याख्या–प्रस्तुत पंक्तियाँ वेदना की अमर गायिका कवयित्री महादेवी वर्मा द्वारा विरचित कविता ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ से ली गई हैं। इनमें कवयित्री ने अस्तित्वहीन बनकर रहने की इच्छा प्रकट की है।
कवयित्री का कहना है कि वह संसार से किसी प्रकार की अपेक्षा नहीं रखती। वह मात्र वेदना की गायिका के रूप में अपना इतिहास रचना चाहती है, परन्तु यह विचार भी क्षण भर में लुप्त हो जाते हैं, क्योंकि वह तो नीर भरी दुख की बदली बनकर रहना चाहती है। निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि कवयित्री अपनी वेदना के माध्यम से उस असीम में समाहित होना चाहती है। उसमें मिलने के बाद व्यक्ति अस्तित्वहीन हो जाता है और उसकी स्मृति ही शेष रह जाती है।
अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर
कविता के साथ :
प्रश्न 1. महादेवी अपने को ‘नीर भरी दुख की बदली’ क्यों कहती हैं?
उत्तर – महादेवी अपने को ‘नीर भरी दुख की बदली’ इसलिए कहती हैं क्योंकि वह अपने अज्ञात, असीम, अनंत चिन्मय सत्ता के वियोग में व्यथित है। इसी व्यथा के कारण उनकी आँखों से आँसू अहर्निश झरना की भाँति गिरते रहते हैं। तात्पर्य कि जिस प्रकार बदली (बादल) जल से भरी रहती है, उसी प्रकार वेदना के कारण उनकी आँखें सदा अश्रुपूरित रहती हैं ।
प्रश्न 2. निम्नांकित पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें :
(क) मैं क्षितिज – भृकुटी पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रजकण पर जलकण हो बरसी
नव-जीवन अंकुर बन निकली।
भाव – कवयित्री के कहने का भाव यह है कि दुःख या अभाव के कारण वह व्यथित हो गई है । फलतः वह करुणार्द्र हो जाती है और उनकी आँखों से अश्रुजल गिर पड़ते हैं। इस अश्रु जल के गिरने से कवयित्री का चित्त हल्का हो जाता है और जीवन नये उत्साह से भर जाता है। तात्पर्य कि जिस प्रकार सूखी धरती वर्षा जल पाकर हरी-भरी हो जाती है, उसी प्रकार कवयित्री आँसू झरने पर एक अलौकिक आनंद महसूस करने लगती हैं ।
(ख) सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन हो अंत खिली ।.
भाव – प्रस्तुत पंक्तियों द्वारा कवयित्री ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि संसार में उसके आने की याद संतप्त दिल को शांति प्रदान करने वाली हो । अर्थात् करूणाशील व्यक्ति संसार में करूणाजल लेकर आता है और उसे संतप्त हृदय पर बरसाता है। उसका अपना कोई स्वार्थ नहीं होता, बल्कि दूसरों के सुख-दुख में शामिल होकर उसमें अपना हाथ बँटाना है ।
प्रश्न 3. ‘क्रंदन में आहत विश्व हँसा’ से कवयित्री का तात्पर्य है ?
उत्तर—‘क्रंदन में आहत विश्व हँसा’ से कवयित्री का तात्पर्य है कि अभावों से उत्पन्न दुख अति स्पृहणीय होता है। जैसे बादल जल बरसाकर स्वयं रिक्त हो जाता है और आकाश साफ हो जाता है, उसी प्रकार रूदन के बाद व्यक्ति का चित्त निर्मल जाता है। उसके हृदय के सारे कुविचार अश्रुजल के साथ बह जाते हैं । फलतः शून्यता, की दशा में व्यक्ति का प्रेम दृढ़ हो जाता है और वह प्रसन्नता से झूम उठता है
प्रश्न 4. कवयित्री किसे मलिन नहीं करने की बात करती है?
उत्तर—कवयित्री प्रेम-पथ को मलिन नहीं करने की बात कहती है । कयित्री का मानना है कि उनका प्रेम-पथ बिल्कुल निर्मल हो, जिसमें सांसारिकता के भाव लेशमात्र भी न हो । उनका प्रेम बिल्कुल कल्याणकारी, निःस्वार्थ एवं निस्पृह हो ।
प्रश्न 5. सप्रसंग व्याख्या करें-
‘विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली ।’
उत्तर- पृष्ठ 162 पर व्याख्या संख्या-5 देखें ।
प्रश्न 6. ‘नयनों में दीपक से जलते’ में ‘दीपक’ का क्या अभिप्राय है?
उत्तर—‘नयनों में दीपक से जलते’ में ‘दीपक’ का तात्पर्य प्रेम रूपी दीपक अथवा वेदना से है जिसे कवयित्री अविरल रूप से ज्वलित देखना चाहती है ताकि उनकी वेदना की प्रखरता क्षीण न हो सके।
प्रश्न 7. कविता के अनुसार कवयित्री अपना परिचय किस रूप में दे रही है?
उत्तर – कविता के अनुसार कवयित्री अपना परिचय नीर भरी दुःख की बदली के रूप में दे रही है । जिस प्रकार बदली अपना जल बरसा कर तप्त धरती को शांति प्रदान करती है, उसी प्रकार कवयित्री करुणाशील व्यक्ति की भाँति करूणाजल बरसा कर संतप्त हृदय को शांति प्रदान करना चाहती है। अतः वह अपना परिचय वेदना की गायिका के रूप में देना चाह रही है।
प्रश्न 8. ‘मेरा न कभी अपना होना’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- ‘मेरा न कभी अपना होना’ से कवयित्री का अभिप्राय यह है कि वह सांसारिक विषय-वासनाओं के प्रति आकर्षित न हो, क्योंकि संसार साधना मार्ग में बाधक होता है। इसलिए कवयित्री इन सबों से दूर निस्पृह भाव से रहना चाहती है ।
प्रश्न 9. कवयित्री ने अपने जीवन में आँसू को अभिव्यक्ति का महत्त्वपूर्ण साधन माना है । कैसे ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- महादेवी वर्मा वेदना की गायिका हैं। वह वेदना का गीत गाकर असीम सत्ता मैं समाहित होना चाहती है । इसलिए वह नीर भरी दुख की बदली बनकर संतप्त हृदय को शीतलता प्रदान करना चाहती है। दूसरी बात यह है कि आँसुओं के गिरते रहने से मन का मैल दूर होता जाता है तथा चित्त हल्का होता है । कवयित्री ने भक्तिकालीन कवयित्री मीरा की भाँति वेदना का गीत गाकर उस अज्ञात, अनंत में मिल जाना चाहती है, जिसका कोई निश्चित आकार नहीं है । साथ ही, कवयित्री के लिए व्यक्तिगत अभावों से पैदा होने वाला दुख इतना मूल्यवान तथा स्पृहणीय हो जाता है कि वे उसकी निरंतरता की कामना करती है और अपने को नीर भरी दुख की बदली कहती है, अतः कवयित्री ने आँसू को अपनी अभिव्यक्ति का साधन मानकर जीवन की सच्चाई की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है। उनका मानना है कि यह जीवन क्षणिक है लेकिन जीवन का उद्देश्य महान होता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को करुणाशील होना आवश्यक है । अतः करूणा का भाव तभी पैदा होता है जब व्यक्ति स्वयं करुणार्द्र हो ।
प्रश्न 10. इस कविता में ‘दुख’ और ‘आँसू’ कहाँ-कहाँ, किन-किन रूपों में आते हैं? उनकी सार्थकता क्या है ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – प्रस्तुत कविता में ‘दुख’ और ‘आँसू’ का प्रयोग परिस्थिति के अनुसार हुआ है, जैसे- ‘दुख’ को व्यक्त करने के लिए ‘चिंता का भार बना अविरल’, ‘सुख की सिहरन हो अंत खिली’ तथा ‘विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना’ आदि । इसी प्रकार ‘आँसू’ का प्रयोग निर्झरिणी के रूप में करके कवयित्री अपनी व्यथा प्रकट करती है तो ‘रज- कण पर जल-कण हो बरसी, नव जीवन – अंकुर बन निकली को, जल के रूप में प्रयोग किया है। जैसे—वर्षा जल पाकर धरती हरी-भरी हो जाती है, उसी प्रकार कवयित्री अपने करूणा जल से संतप्त हृदय को शांति प्रदान करती है।
‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता में ‘दुख’ और ‘आँसू’ का सार्थक प्रयोग हुआ है, क्योंकि इससे अभिव्यक्ति को बल मिलता है तथा भाव-व्यंजना सहजता के साथ हो जाती है । कवयित्री ने अपने भाव पुष्टि के लिए इन शब्दों का प्रयोग किया है, जो सर्वथा सार्थक है ।
नोट : पाठ के आस-पास के प्रश्नों के उत्तर छात्र स्वयं तैयार करें ।
भाषा की बात ( व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर ) :
प्रश्न 1. प्रस्तुत कविता से तत्सम शब्दों को छाँटिए और उनके स्वतंत्र वाक्य प्रयोग कीजिए ।
उत्तर : स्पंदन – राहुल के हृदय का स्पंदन बंद जैसा लगता है ।
चिर — मोहन मेरा चिर परिचित है ।
निस्पंद — आज हवा निस्पंद है ।
क्रंदन — उसका क्रंदन सुनकर लोग दौड़ पड़े ।
निर्झरिणी — निर्झरणी से जल बह रहा था ।
दुकूल — उसके दुकूल रंग-बिरंगे हैं ।
क्षितिज — सूर्य क्षितिज से निकल रहा है ।
पथ — यह पथ गाँव की ओर जाता है ।
नभ — नभ बादल से आच्छादित था और मुझे विद्यालय जाना आवश्यक था ।
प्रश्न 2. निम्नांकित शब्दों के संधि-विच्छेद कीजिए :
नयन, संगीत, निर्झरिणी, निस्पंद
उत्तर : ने + अन = नयन
सम् + गीत = संगीत
निः + झरिणी = निर्झरिणी
निः + पंद = निस्पंद ।
प्रश्न 3. निम्नांकित शब्दों के वाक्य बनाते हुए लिंग-निर्णय करें
सुख, दीपक, चिंता, पथ, खास
उत्तर : सुख — अति सुख भी अच्छा नहीं होता ।
दीपक — मोहन अपने परिवार का दीपक है ।
चिंता — चिंता काल से भी भयानक होती है ।
पथ — यह पथ काफी चौड़ा है।
श्वास — राम के पिता की श्वास बंद हो गई।
प्रश्न 4. निम्नांकित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची बताएँ :
उत्तर :
शब्द पर्यायवाची शब्द
नभ व्योम, आकाश
विश्व संसार, दुनिया
नव नूतन, नया
नयन नेत्र, चक्षु
प्रश्न 5. निम्नांकित शब्दों के विलोम रूप लिखें :
उत्तर :
शब्द विलोम शब्द
जीवन मरण
सुख दुःख
विस्तृत संकरा, संकीर्ण
अपना पराया
आज कल
Main Neer Bhari Dukh Ki Bhari Class 9th Hindi Solutions
Read more – Click here
YouTube Video – Click here
Leave a Reply