इस पोस्ट में बिहार बोर्ड कक्षा 10 राजनीतिक विज्ञान पाठ 3 लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष (Loktantra me pratispardha aur sangharsh class 10 social science bihar board) के नोट्स और प्रश्नोत्तर को पढ़ेंगे।
3. लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष
जनसंघर्ष के माध्यम से ही लोकतंत्र का विकास हुआ है। जब सत्ताधारियों और सत्ता में हिस्सेदारी चाहनेवालों के बीच संघर्ष होता है तो उसे लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा कहते हैं। कभी-कभी लोग बिना संगठन बनाए ही माँगों के लिए एकजुट होने का निर्णय करते हैं। ऐसे समुहों को जनसंघर्ष या आंदोलन कहा जाता है। लोकतंत्र में राजनीतिक दल, दबाव-समूह और आंदोलनकारी समूह सरकार पर दबाव बनाते हैं।
लोकतंत्र में जनसंघर्ष की भूमिका
लोकतंत्र को मजबूत बनाने एवं उसे सुदृढ़ करने में जनसंघर्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने के लिए भारतीयों ने जनसंघर्ष किया था। 19वीं शताब्दी के सातवें दशक में अनेक सामाजिक जनसंघर्ष की उत्पति हुई जिसने लोकतंत्र के मार्ग को प्रशस्त किया।
1971 में सत्ता का दूरूपयोग करके संविधान के बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन का प्रयास किया। 1975 में आपातकाल लागू कर दिया गया जिसके विरोध में जनसंघर्ष तेज हुए जिसके कारण लोकतंत्र विरोधी सरकार को हटा कर 1977 में जनता पार्टी की सरकार की स्थापना हुई। इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि लोकतंत्र में जनसंघर्ष की महत्वपूर्ण भूमिका हेती है।
जनसंघर्ष सरकार को तानाशाह होने एवं मनमाना निर्णय से रोकते हैं क्योंकि लोकतंत्र में संघर्ष होना आम बात होती है। यदि सरकार फैसले लेने में जनसाधारण के विचारों को अनदेखी करती है तो ऐसे फैसले के खिलाफ जनसंर्घष होता है।
बिहार में छात्र आंदोलन
1971 में सत्तारूढ़ काँग्रेस ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा देकर लोकसभा में बहुतम हासिल कर सत्ता में आया, लेकिन देश में सामाजिक-आर्थिक दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। भारत की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने लगी जिससे देश में असंतोष का माहौल फैल गया। 1974 में बिहार में बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के कारण यहाँ की छात्रों ने सरकार के विरूद्ध आंदोलन छेड़ दिया जिसे छात्र आंदोलन के नाम से जाना जाता है। जिसका नेतृत्व लोकनायक ‘जयप्रकाश नारायण’ ने किया। जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया। 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गाँधी के निर्वाचन को अवैधानिक करार दिया। इससे स्पष्ट हो गया कि इंदिरा गाँधी अब सांसद नहीं रही। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इंदिरा गाँधी के इस्तिफे के लिए दबाव डालना प्रारंभ किया। उन्होंने अपने आह्वान में सेना और पुलिस तथा सरकारी कर्मचारीयों को भी सरकार का आदेश नहीं मानने का निवेदन किया। इंदिरा गाँधी ने अपने विरूद्ध षड्यंत्र मानते हुए देश में 25 जून 1975 को आपातकाल लागू करते हुए जयप्रकाश नारायण सहित सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को जेल में डाल दिया।
18 महीने के आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुआ जिसमें जनता पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ। इस प्रकार काँग्रेस हार गई।1980 में जनता पार्टी की सरकार गिर गई और फिर से 1980 में कांग्रेस की सरकार बनी।
सूचना के अधिकार का आंदोलन
सूचना के अधिकार आंदोलन की शुरूआत राजस्थान के एक छोटे से गाँव से शुरू हुआ था। जिससे सरकार को 2005 में ‘सूचना के अधिकार’ अधिनियम लाया गया जो जन आंदोलन की सफलता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
नेपाल में लोकतांत्रिक आंदोलन
नेपाल में लोकतंत्र 1990 के दशक में कायम हुआ। वहाँ के राजा को औपचारिक रूप से राज्य का प्रधान बनाया गया लेकिन वास्तविक रूप से जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा ही शासन किया जाता था। 2005 में नेपाल के राजा ज्ञानेन्द्र ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को अपदस्थ कर दिया तथा जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को भंग कर दिया जिससे नेपाल में अप्रैल 2006 में आंदोलन खड़ा हुआ, जिसका एक मात्र उद्देश्य शासन की बागडोर राजा के हाथ से लेकर जनता के हाथ में सौंपना था।
जिसके फलस्वरूप 24 अप्रैल 2006 को राजा ज्ञानेन्द्र ने सर्वदलीय सरकार और एक नयी संविधान सभा के गठन की बात स्वीकार कर ली और पुनः संसद बहाल हुई।
इस तरह से, नेपाल के लोगों द्वारा लोकतंत्र बहाली के लिए किए गए संघर्ष पूरे विश्व के लिए एक प्रेरणा के स्त्रोत है।
राजनीतिक दल का अर्थ- राजनीतिक दल का अर्थ ऐसे व्यक्तियों के किसी भी समूह से है जो एक समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य करता है। व्यक्तियों का समूह जब राजनीतिक दल के रूप में संगठित होता है तो उनका उद्देश्य सिर्फ ‘सत्ता प्राप्त करना’ या ‘सत्ता को प्रभावित करना’ होता है। भारत में दलीय व्यवस्था की शुरूआत 1885 में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना से मानी जाती है। विश्व में सबसे पहले राजनीतिक दलों की उत्पित्त ब्रिटेन से हुई।
राजनीतिक दलों का कार्य
लोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक दल जीवन के एक अंग बन चुके हैं। इसीलिए उन्हें ‘लोकतंत्र का प्राण’ कहा जाता है।
- नीतियाँ एवं कार्यक्रम तय करना- राजनीतिक दल जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए नीतियाँ एवं कार्यक्रम तैयार करते हैं।
- शासन का संचालन- राजनीतिक दल चुनाव में बहुमत पाकर सरकार का निर्माण करते हैं।
- चुनवों का संचालन- राजनीतिक दल अपनी नीतियाँ जनता के पास रखते हैं और अपने उम्मीदवारों को खड़ा करने और हर तरीके से उन्हें चुनाव जीताने का प्रयास करते हैं। इसीलिए, राजनीतिक दल का एक प्रमुख कार्य चुनवों का संचालन भी है।
- सरकार एवं जनता के बीच मध्यस्थ का कार्य- राजनीतिक दल जनता और सरकार के बीच मध्यस्थता का काम करती है। राजनीतिक दल ही जनता की समस्याओं और आवश्कताओं को सरकार के सामने रखते हैं।
भारत में प्रमुख राजनीतिक दलों का परिचय
भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दल के दो स्वरूप हैं-
राष्ट्रीय राजनीतिक दल और राज्य स्तरीय या क्षेत्रीय राजनीतिक दल
वैसे राजनीतिक दल जिसकी नीतियाँ राष्ट्रीय स्तर के होते हैं, उसे राष्ट्रीय राजनीतिक दल कहते हैं।
वैसे राजनीतिक दल जिसकी नीतियाँ राज्य स्तरीय या क्षेत्रीय होती है। इसे क्षेत्रीय या राज्य स्तरीय राजनीतिक दल कहते हैं।
राष्ट्रीय राजनीतिक दल और राज्य स्तरीय राजनीतिक दल का निर्धारण निर्वाचन आयोग करता है।
राष्ट्रीय राजनीतिक दल की शर्त- लोकसभा या विधानसभा के चुनवों में 4 या अधिक राज्यों द्वारा कुल डाले गए वैध मतों का 6 प्रतिशत प्राप्त करने के साथ किसी राज्य या राज्य से लोकसभा में कम-से-कम 4 सीटों पर विजयी होना आवश्यक है या लोकसभा में कम से कम दो प्रतिशत अर्थात् 11 सीटों पर विजयी होना आवश्यक है जो कम से कम तीन राज्यों से होना चाहिए।
राज्य स्तरीय दल की मान्यता प्राप्त करने के लिए उस दल को लोकसभा या विधान सभा के चुनावों में डाले गए वैध मतों का कम-से-कम 6 प्रतिशत मत प्राप्त करने के साथ-साथ राज्य विधानसभा की कम-से-कम 3 प्रतिशत सीटें या 3 सीटें जीतना आवश्यक है।
भारत में राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दल
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस- भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 1885 में हुई। यह एक धर्म निरपेक्ष पार्टी है। यह विश्व के पुराने राजनीतिक दलों में से एक है। यह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई वर्षों तक देश पर शासन किया।
भारतीय जनता पार्टी- 1980 में भारतीय जनसंघ के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। भारतीय जनता पार्टी का प्रथम अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी थे। इस पार्टी का मुख्य लक्ष्य भारत की प्राचीन संस्कृति और मूल्यों से प्रेरणा लेकर आधुनिक भारत का निर्माण करना है। यह पार्टी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा देता है तथा समान नागरिक संहिता लागू करने के पक्षधर है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी०पी०आई०)- भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1925 में एम०एस० डांगे ने की। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र में आस्था रखती है और साम्प्रदायिकता का विरोध करती है। इस पार्टी का जनाधार केरल, पश्चिम बंगाल और बिहार आदि राज्यों में है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी (सी०पी०आई० एम०)- 1964 में साम्यवादी दल का विभाजन हो गया और एक नए दल भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म हुआ। यह दल लेनिन के विचारों में आस्था रखते हुए समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतंत्र का समर्थन करता है। इस दल के नेता किसानों और मजदूरों की तानाशाही कायम करना चाहते हैं।
बहुजन समाज पार्टी (बसपा)- बसपा की स्थापना 1984 में श्री काशीराम ने किया। इस पार्टी का मुख्य विचारधारा दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को एकजुट कर सत्ता प्राप्त करना है।
- लोकतंत्र में प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष Subjective Questions
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. बिहार में हुए छात्र आंदोलन के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर— बिहार में 1974 में हुए छात्र आंदोलन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं—
(1) कई वर्षों से देश की सामाजिक आर्थिक दशाओ में कोई सुधार नहीं होना।
(2) तेल की कीमतों, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार आदि मामलों में वृद्धि होना।
(3) खदानों में कमी और किसानों की स्थिति दयनीय होना।
(4) बांग्लादेश से आए शरणार्थियों के चलते अर्थव्यवस्था का कमजोर होना।
प्रश्न 2. चिपको आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर- चिपको आंदोलन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे।
(1) ठेकेदारों द्वारा वनों को काटने से बचाना
(2) वन्यजीवों का रक्षा करना।
(3) ठेकेदारों द्वारा किया जाने वाला शोषण से मुक्ति पाना।
प्रश्न 3. स्वतंत्र राजनीतिक संगठन कौन होता है ?
उत्तर- स्वतंत्र राजनीतिक संगठन ऐसे संगठन को कहते हैं जो राजनीतिक दलों से अलग रहता हैं ऐसे संगठन अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए जनता को एक एकजुट करता है। कभी-कभी ऐसे संगठन जो अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आंदोलन करके सरकार पर दबाव बनाता है। जैसे- मजदूर संघ, छात्र संघ, आदि।
प्रश्न 4. चार भारतीय किसान यूनियन के मुख्य मांगे क्या थी ?
उत्तर- भारतीय किसान यूनियन के मुख्य मांगे निम्नलिखित हैं।
(1) गन्ना और गेहूं के सरकारी मूल्यों में बढ़ोतरी करना
(2) कृषि संबंधित उत्पादों का एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर लगा रोक हटाना।
(3) किसानों के कर्ज को माफ करना
(4) किसानों के लिए पेंशन योजना लागू करना
(5) उचित दर पर गारंटी युक्त बिजली उपलब्ध कराना
प्रश्न 5. सूचना का अधिकार आंदोलन के मुख्य उद्देश्य क्या थे ?
उत्तर- सूचना का अधिकार आंदोलन का शुरुआत राजस्थान के तहसील नाम के क्षेत्र में हुआ था जिसका मुख्य उद्देश्य क्षेत्र में काम करने वाले ग्रामीण ग्रामीणों को दी जाने वाली वेतन एवं भुगतान काबिल प्रशासन से ग्रामीणों को प्राप्त करना था क्योंकि ग्रामीणों को लग रहा था कि उसे दी जाने वाली मजदूरी में काफी घपला हो रहा है।
प्रश्न 6. राजनीतिक दल की परिभाषा दें ?
उत्तर- राजनीतिक दलों का एक ऐसा संगठन है जिसका उद्देश्य सत्ता को प्राप्त करना या सत्ता को प्रभावित करना होता है अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करती है जब कोई राजनीतिक सत्ता को प्राप्त नहीं कर पाती है। तो वे जनता की समस्या को उजागर कर सरकार के सामने रखती है।
प्रश्न 7. किस आधार पर आप कह सकते हैं कि राजनीतिक दल जनता एवं सरकार के बीच कड़ी का काम करता है?
उत्तर- राजनीतिक दल का एक प्रमुख कार जनता और सरकार के बीच मध्यस्थता करता है राजनीतिक दल ही जनता की समस्याओं और आवश्यकताओं को सरकार के सामने रखते हैं और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को जानता तक पहुंचाते हैं। इस तरह राजनीतिक दल सरकार एवं जनता के बीच कड़ी का काम करता है।
प्रश्न 8. दल-बदल कानून क्या है?
उत्तर- विधायकों और सांसदों (MLA तथा MP) को एक राजनीतिक दल से दूसरे राजनीतिक दल में जाने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन करके कानून बनाया गया है इसी कानून को दल बदल कानून कहते हैं। इस कानून को सख्ती से लागू करना चाहिए ताकि ऐसे दलबदल करने वालों पर उचित कार्यवाही हो।
प्रश्न 9. राष्ट्रीय राजनीतिक दल किसे कहते हैं?
उत्तर- वैसे राजनीतिक दल जिनका अस्तित्व पूरे देश में होता है इनके कार्यक्रम एवं नीतियां राष्ट्रीय स्तर के होते हैं। इनकी इकाइयां राज्य स्तर पर भी होती है। इन्हें राष्ट्रीय राजनीतिक दल कहते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जन संघर्ष से भी लोकतंत्र मजबूत होता है‘ क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने पक्ष में उत्तर दें।
उत्तर- जन संघर्ष के माध्यम से ही लोकतंत्र का विकास हुआ है। लोकतांत्रिक देशों में जन संघर्ष और प्रतिस्पर्धा का अभाव राजनीतिक संगठन होते हैं। राजनीतिक दल दबाव समूह और आंदोलनकारी समूह संगठित राजनीति के सकारात्मक माध्यम में लोकतंत्र में किसी भी निर्णय को प्रभावित करने का एक जाना पहचाना तरीका होता है। राजनीति में प्रत्यक्ष भागीदारी के लिए राजनीतिक दलों का निर्माण होता है। चुनाव में भाग लिया जाता और सरकार का निर्माण होता है।
समाज और देश के लोग संगठन बनाकर अपने अपने कार्यक्रम को बढ़ावा देने वाली गतिविधियां संचालित कर सकते हैं। कभी-कभी लोग बिना संगठन बनाएं ही अपनी मांगों के लिए एकजुट होने का निर्णय करते हैं। ऐसे समूह को जन संघर्ष से लोकतंत्र मजबूत हुआ है।
प्रश्न 2. किस आधार पर आप कह सकते हैं कि बिहार से शुरू हुआ छात्र आंदोलन का स्वरूप राष्ट्रीय हो गया।
उत्तर- बिहार का छात्र आंदोलन जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुआ था। आंदोलन तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ एक जन संघर्ष था जो बाद में राजनीति के रूप में ले लिया। इस आंदोलन से प्रेरित होकर राष्ट्र के अन्य राज्यों में भी आंदोलन आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण ने बिहार से कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की मांग करने लगे।
कई सामाजिक आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया। जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति का उद्देश्य भारत में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना करना था।
जयप्रकाश नारायण ने 1975 ई० में दिल्ली में आयोजित संसद मार्च का नेतृत्व किया। राजधानी दिल्ली में अब तक की इतनी बड़ी रैली का आयोजन नहीं हुआ था। यह आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस विरोधी आंदोलन के रूप में प्रचलित हुआ। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बिहार का छात्र आंदोलन का स्वरूप राष्ट्रीय था।
प्रश्न 3. निम्नलिखित वक्तव्य को पढ़े और अपने पक्ष में उत्तर दें।
(क) क्षेत्रीय भावना लोकतंत्र को मजबूत करती है।
उत्तर- क्षेत्रीय भावना लोगों का क्षेत्र के प्रति प्रेम को दर्शाता है। यह भावना लोगों को क्षेत्र के आधार पर एकजुट भी करता है। जब किसी क्षेत्र के सामने कोई समस्या आता है तो क्षेत्रीय भावना के कारण लोग एकजुट होकर समस्या का सामना करता है। इस प्रकार क्षेत्रीय भावना लोकतंत्र को मजबूत करता है।
(ख) दबाव समूह स्वार्थी तत्वों का समूह है इसलिए इसे समाप्त कर देना चाहिए।
उत्तर- दबाव समूह अपने स्वार्थी व्यक्तिगत के लिए सरकार के सामने अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए दबाव डालता है। मजबूरन सरकार को इसे मानना पड़ता है और नहीं मानने पर जन संघर्ष उत्पन्न हो जाता है इसे राष्ट्रीय हितों को धक्का लगता है और इसे समाप्त कर देना चाहिए।
(ग) जन संघर्ष लोकतंत्र का विरोधी है।
उत्तर- जन संघर्ष कभी-कभी देश के विकासात्मक कार्यों में बाधा डालती है। जन संघर्ष के हिंसात्मक होने की स्थिति में देश का बहुत नुकसान होता है। यह देश को भी टूटने की ओर ले जाता है। इस प्रकार जन संघर्ष लोकतंत्र का विरोध है।
(घ) भारत में लोकतंत्र के लिए हुए आंदोलन में महिलाओं की भूमिका नगणय है।
उत्तर- महिलाओं में उच्च शिक्षा राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण राष्ट्रीय आंदोलन में इनकी भूमिका नगण्य है। भारतीय समाज के रूढ़िवादी विचारधाराओं के कारण भी आंदोलन में भी इनकी भूमिका नगण्य है।
प्रश्न 4 राजनीतिक दल को लोकतंत्र का प्राण क्यों कहा जाता है?
उत्तर- राजनीतिक दल को ‘लोकतंत्र का प्राण’ इसलिए कहा जाता है। क्योंकि समस्याओं के समाधान में राजनीतिक दल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसी भी समस्या पर हजारों लोग अपना विचार रखते हैं। इन विचारों को किसी दल से न जोड़ा जाए। राजनीतिक दल देश के लोगों की भावनाओं विचारों को जोड़ने का कार्य करते हैं। लोकतंत्र में राजनीतिक दल की आवश्यकता है क्योंकि यदि दल नहीं होगा तो सभी उम्मीदवार निर्दलीय होंगे जिस क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में देश की एकता और अखंडता खतरे में पड़ जाएगी। इन समस्याओं से बचने के लिए राजनीतिक दल का होना अनिवार्य है।
प्रश्न 5. राजनीतिक दल राष्ट्रीय विकास में किस प्रकार योगदान करते हैं?
उत्तर- किसी भी देश का विकास वहां के राजनीतिक दलों की स्थिति पर निर्भर करता है। राजनीतिक दलों में विभिन्न जाति, धर्म, क्षेत्र आदि के सदस्य शामिल रहते हैं। यह सभी सदस्य अपनी-अपनी जाति, धर्म और क्षेत्र के समस्याओं को सरकार के सामने रखकर इन समस्याओं को समाधान करने का प्रयास करता है। जिससे देश में शांति एवं एकता कायम रहता है।
राजनीतिक दलों का राष्ट्रीय विकास में महत्वपूर्ण योगदान है कि प्राकृतिक आपदाओं जैसे- भूकंप, सुनामी, बाढ़ आदि संकट के दौरान राजनीतिक ल जनता का सहायता भी करते हैं।
प्रश्न 6. राजनीतिक दलों के प्रमुख कार्य बताएं।
उत्तर- राजनीतिक दलों के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं।
(1) नीतियां एवं कार्यक्रम तय करना- नीतियों एवं कार्यक्रम के आधार पर चुनाव भी लड़ते हैं। राजनीतिक दल भाषण टेलीविजन, रेडियो, समाचार पत्र आदि के माध्यम से अपनी नीतियां एवं कार्यक्रम जनता के सामने रखते हैं। और मतदाताओं को अपनी और आकर्षित करने की कोशिश करते हैं।
(2) शासन का संचालन- राजनीतिक दल चुनाव में बहुमत प्राप्त करके सरकार का निर्माण करते हैं।
(3) चुनाव का संचालन- जिस प्रकार लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में राजनीतिक दल का होना आवश्यक है। उसी प्रकार दलीय व्यवस्था में चुनाव का होना भी आवश्यक है। इसलिए राजनीतिक दल का एक प्रमुख कार्य चुनाव का संचालन है
(4) लोकमत का निर्माण- राजनीतिक दल लोकमत निर्माण करने के लिए जन सभाएं, रैलियों, समाचार-पत्र, टेलीविजन आदि का सहारा लेते हैं।
(5) सरकार एवं जनता के बीच मध्यस्थ का कार्य- राजनीतिक दल का एक प्रमुख कार्य जनता और सरकार के बीच मध्यस्थ करना है।
(6) राजनीतिक प्रशिक्षण- राजनीतिक दल मतदाताओं को राजनीतिक प्रशिक्षण देने का काम करता है। राजनीतिक दल खासकर चुनाव के समय अपने समर्थकों को राजनीति कार्य से मतदान करना, चुनाव लड़ना, समर्थन करना आदि बताते हैं।
(7) दलिय कार्य- प्रत्येक राजनीतिक दल दल संबंधी कार्य भी करते हैं। जैसे अधिक से अधिक मतदाताओं को अपने दल का सदस्य बनाना। अपनी नीतियों एवं कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार करना।
(8) गैर राजनीतिक कार्य- राजनीतिक दल केवल राजनीति कार्य करते हैं। बल्कि गैर राजनीतिक कार्य भी करते हैं। जैसे प्राकृतिक आपदा बाढ़, सुखाड़, भूकंप आदि के दौरान राहत संबंधी कार्य आदि।
प्रश्न 7. राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की मान्यता कौन प्रदान करते हैं और इसके मापदंड क्या है?
उत्तर- राष्ट्रीय में राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की मान्यता चुनाव आयोग देता है। राजनीतिक दलों को लोकसभा या विधानसभा के चुनाव में 4 या अधिक राज्यों द्वारा कुल डाले गए वैध मतों का 6% प्राप्त करने के साथ किसी राज्य लोक सभा में कम से कम 4 सीटों पर विजयी होना आवश्यक है या लोकसभा में कम से कम 2% सीटें अर्थात 11 सीटें जीतना आवश्यक है जो कम से कम 3 राज्यों से होनी चाहिए। उस दल को लोकसभा या विधानसभा के चुनाव में डाले गए वैद्य मतों का कम से कम 6% मत प्राप्त करने के साथ-साथ राज्य विधानसभा के कम से कम 3% सीटें या 3 सीटें जीतना आवश्यक है।
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