1. कोशिका-जीवन की आधारभूत इकाई
जीवविज्ञान- सजीवों का अध्ययन जीवविज्ञान कहलाता है। जीवविज्ञान का पिता अरस्तु को कहा जाता है।
कोशिका- कोशिका जीवन की आधारभूत संरचना और क्रियात्मक इकाई है।
सबसे छोटी कोशिका माइकोप्लाज्म है।
सबसे बड़ी कोशिका शंतुरमुर्ग के अंडा में होता है।
सबसे लंबी तंत्रिका कोशिका है, जो मानव मस्तिष्क में पाया जाता है।
Koshika Jivan Ki Aadharbhut Ikai Class 9th Science Notes in Hindi
कोशिकीय संरचना के आधार पर जीवों को दो वर्गों में बाँटा गया है।
1. एककोशिकीय जीव- जिस जीव का शरीर एक कोशिका से मिलकर बना होता है, उसे एक कोशिकीय जीव कहते हैं। जैसे- अमीबा, पैरामीशियम आदि।
2. बहुकोशिकीय जीव- जिस जीव का शरीर एक से अधिक कोशिका से मिलकर बना होता है, उसे बहुकोशिकीय जीव कहते हैं। जैसे- मावन, कुत्ता, शेर, गाय आदि।
लगभग 60 किलोग्राम के मानव शरीर में 60 × 1015 कोशिकाएँ पाई जाती हैं।
जन्तु कोशिका का शरीर गोलाकार होता है, जबकि पादप कोशिका का शरीर चौकोर होता है।
मानव शरीर के रक्त में मौजुद श्वेत रक्त कोशिकाएँ को ल्यूकोसाइट्स कहते हैं।
ल्यूकोसाइट्स मानव शरीर की ऐसी कोशिका है, जो अपना रूप बदलते रहती है।
कोशिका का खेज सर्वप्रथम 1665 में रॉबर्ट हूक ने किया, परंतु इसने मृत कोशिका की खोज की।
सर्वप्रथम जीवित कोशिका की खोज 1674 में एंटोनीवान लिउवेनहोएक ने किया।
कोशिका के बारे में श्लाइडेन एवं श्वान ने एक मत दिया, जिसे कोशिका सिद्धांत कहा जाता है।
श्लाइडेन के अनुसार पादपों का शरीर शुक्ष्म कोशिकाओं से बना होता है।
श्वान के अनुसार जंतु का शरीर शुक्ष्म कोशिकाओं से बना होता है।
कोशिका सिद्धांत श्लाइडेन एवं श्वान ने दिया, दोनों जर्मन वैज्ञानिक थे।
कोशिका की संरचना
जीवद्रव्य- कोशिकाद्रव्य एवं केन्द्रक को सम्मिलित रूप से जीवद्रव्य कहते हैं।
अथवा
सम्पूर्ण कोशिका के भीतर के जल को जीवद्रव्य कहते हैं।
कोशिकाझिल्ली या प्लाज्मा मेम्ब्रेन- प्रत्येक कोशिका के सबसे बाहर एक बहुत पतली, मुलायम और लचीली झिल्ली होती है जिसे कोशिका झिल्ली या प्लाज्मा झिल्ली या प्लाज्मा मेम्ब्रेन कहते हैं।
कोशिकाद्रव्य- जीवद्रव्य का वह भाग जो कोशिकाभित्ति एवं केन्द्रक के बीच होता है, उसे कोशिकाद्रव्य कहते हैं।
अंतःप्रद्रव्यी जालिका या एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम- जंतु एवं पादप कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में अत्यंत सूक्ष्म, शाखित, झिल्लिदार, अनियमित नलिकाओं का घना जाल होता है जिसे अंतःप्रद्रव्यी जालिका या एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम कहते हैं। यह कोशिका में आंतरिक कंकाल का काम करता है।
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अंतःप्रद्रव्यी जालिका या एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम दो प्रकार की होती है-
1. चिकनी अंतःप्रद्रव्यी जालिका
2. खुरदरी अंतःप्रद्रव्यी जालिका
चिकनी अंतःप्रद्रव्यी जालिका की झिल्ली चिकनी होती है जबकि खुरदरी अंतःप्रद्रव्यी जालिका की बाहरी झिल्ली के ऊपर छोटे-छोटे कण अर्थात खुरदरे होते हैं।
अंतःप्रद्रव्यी जालिका के कार्य-
कोशिकाद्रव्य को आंतरिक सहायता प्रदान करती है।
कोशिका विभाजन के समय कोशिका प्लेट एवं केंन्द्रकझिल्ली के निर्माण में भाग लेती है।
राइबोसोम- खुरदरी अंतःप्रद्रव्यी जालिका की बाहरी झिल्ली के ऊपर छोटे-छोटे कण होते हैं जिसे राइबोसोम कहते हैं।
कार्य- प्रोटीन का निर्माण राइबोसोम में ही होता है।
गॉल्जीकाय या गॉल्जी उपकरण- इसका रचना मुड़े हुए छड़ के समान होता है। यह कोशिका में परिवहन का कार्य करता है। इसका खोज कैमिलो गॉल्जी ने किया था। यह लाइसोसोम तथा कोशिका प्लेट के निर्माण में मदद करता है।
लाइसोसोम- यह बहुत ही छोटा कोशिका का अंग है। इसका खोज क्रिश्चियन डि बवे ने किया था। इसके चारों ओर एक पतली झिल्ली होती है। इसका आकार बहुत छोटा और थैली जैसा होता है।
इसमें ऐसे एंजाइम्स होते हैं जिनमें जीवद्रव्य को घुला देने या नष्ट कर देने की क्षमता रहती है। जब कोशिका का अंग ठिक से कार्य नहीं करते हैं, तो यह खुद फट जाता है एवं इसमें उपस्थित एंजाइम्स अपनी ही कोशिका को पाचित कर देते हैं। जिसके बाद कोशिका की मृत्यु हो जाती है। इसलिए इसे आत्महत्या की थैली कहा जाता है।
लाइसोसोम के कार्य- कोशिका के अंदर के पदार्थों तथा अंगों के टूटे-फूटे भागों को पाचित कर कोशिका को साफ करता है।
जीवाणु और वाइरस से रक्षा करता है।
यह जिस कोशिका में रहता है उसी को आवश्यकतानुसार नष्ट करने का कार्य करता है।
माइटोकॉण्ड्रिया- यह जीवद्रव्य में बिखरी रहती है। यहाँ भोजन का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है तथा ऊर्जा का निमार्ण होता है। इसलिए इसे कोशिका का पावरहाउस कहा जाता है। यहाँ ऊर्जा ATP के रूप में जमा रहता है।
लवक- यह सिर्फ पादप कोशिकाओं में पाया जाता है। यह तीन प्रकार का होता है-
1. अवर्णीलवक या ल्यूकोप्लास्ट
2. वर्णीलवक या क्रोमोप्लास्ट
3. हरितलवक या क्लोरोप्लास्ट
ल्यूकोप्लास्ट जड़ में पाया जाता है, जो खाना को जमा करके रखता है।
क्रोमोप्लास्ट फूलों और बीजों को रंग प्रदान करता है।
क्लोरोप्लास्ट में क्लोरोफिल पाया जाता है, जो पत्तियों में रहता है। यह भोजन का निर्माण करता है।
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रसधानी- यह जल संतुलन का कार्य करती है अर्थात़ कोशिका में जल की एक निश्चित मात्रा को बनाए रखती है।
पादप कोशिका में यह कठोरता प्रदान करती है।
तारककाय या सेंट्रोसोम- इसकी रचना बेलन की जैसी होती है। यह केंद्रक के पास होता है। इसका मुख्य कार्य कोशिका विभाजन करना है।
केंद्रक या न्यूक्लियस- कोशिकाद्रव्य के बीच एक बड़ी, गोल संरचना पायी जाती है जिसे केंद्रक या न्यूक्लियस कहते हैं।
केंद्रकद्रव्य- केन्द्रक के अंदर गाढ़ा द्रव्य भरा रहता है, जिसे केंद्रक द्रव्य कहते हैं।
केन्द्रक के अंदर महीन धागों की जाल जैसी रचना होती है, जो DNA तथा प्रोटीन के बने होते हैं। अर्थात कोशिका के केन्द्रक में DNA पाया जाता है।
जीन- DNA के क्रियात्मक खंड को जीन कहते हैं अर्थात DNA जीन से मिलकर बना होता है।
DNA को आनुवंशिक पदार्थ तथा जीन को आनुवंशिक इकाई कहते हैं।
केन्द्रक के कार्य- 1. केन्द्रक कोशिका की रक्षा करता है और कोशिका विभाजन में भाग लेता है। केंद्रक की अनुपस्थिति में कोशिका विभाजन संभव नहीं है।
2. केंद्रक प्रोटीन संश्लेषण (निर्माण) के लिए आवश्यक कोशिकीय RNA उत्पन्न करता है।
3. यह कोशिका के भीतर सभी उपापचयी क्रिया का नियंत्रण करता है।
केंद्रिका- केंद्रक के अंदर केंद्रकद्रव्य में एक छोटी गोलाकार या अंडाकार रचना होती है, जिसे केंद्रिका या न्यूक्लिओलस कहते हैं।
केंद्रिका का कार्य- 1. यह RNA का निर्माण करता है।
2. कोशिका विभाजन में मदद करता है।
क्रोमोसोम- एक केन्द्रक में महीन, लंबे तथा अत्यधिक कुंडलित धागे के जैसी दिखाई देती है, जिसे केन्द्रक कहते हैं।
अर्थात
केन्द्रक में धागे के समान छोटी और मोटी छड़ जैसी रचना पायी जाती है, जिसे गुणसूत्र या क्रोमोसोम कहते हैं।
क्रोमोसोम की संख्या
मानव शरीर- 46, मक्का- 20, टमाटर- 24, आलू-48, जीवाणु- 1, टेरिडोफाइटा- 1600 (सबसे अधिक)
नोट : क्रामोसोम हमेशा जोड़े में रहता है।
प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक कोशिका
केंद्रक की रचना के आधार पर कोशिका दो प्रकार का होता है-
1. प्रोकैरियोटिक कोशिका
2. यूकैरियोटिक कोशिका
1. प्रोकैरियोटिक कोशिका- जिस कोशिका में केंद्रकझिल्ली नहीं होती एवं वास्तविक केंद्रक नहीं होता है, उसे प्रोकैरियोटिक कोशिका कहते हैं। जैसे- जीवाणु और सायनोबैक्टीरिया।
इसकी कोशिका अल्पविकसित होती है।
2. यूकैरियोटिक कोशिका- जिस कोशिका में केंद्रक पूर्ण रूप से विकसित तथा झिल्ली से घिरा होता है, उसे यूकैरियोटिक कोशिका कोशिका कहते हैं। जैसे- मानव कोशिका, गाय, बकरी एवं पादप कोशिका।
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प्रोकैरियोटिक एवं यूकैरियोटिक कोशिका में अंतर-
पादप कोशिका और जंतु कोशिका में अंतर-
विसरण- गैस, द्रव तथा विलेय के अणुओं की उनके अधिक सांद्रता के क्षेत्र से कम सांद्रता के क्षेत्र की ओर होनेवाली गति को विसरण कहते हैं।
विसरण के महत्व- 1. वाष्पोत्सर्जन में जलवाष्प का बाहर निकलता विसरण का उदाहरण है।
2. विसरण के द्वारा गैसों का आदान-प्रदान कोशिका तथा बाहरी वातावरण के बीच होता है।
परासरण- जीवित कोशिकाओं में विसरण की तरह एक और क्रिया होती है, जिसे परसरण या ऑस्मोसिस कहते हैं। इसमें जल अधिक सांद्रतावाले क्षेत्र से जल अणु, जल के कम सांद्रतावाले क्षेत्र की ओर गतिशी होते हैं।
परासरण के महत्व- 1. परासरण के द्वारा पौधे अपने मूल रोम से जल अवशोषित करते हैं।
2. पत्तियों में खाद्य पदार्थों के संश्लेषण के बाद पौधे के विभिन्न भागों में इसका वितरण परासरण के सिद्धांत द्वारा होता है।
नोट : किशमिश को जल में रखने पर परासरण विधि द्वारा फुलता है।
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प्रश्न 1. कोशिका की खोज किसने और कैसे की ?
उत्तरः कोशिका की खोज 1665 में रॉबर्ट हुक ने वृक्ष की छाल से प्राप्त कॉर्क में स्वनिर्मित सूक्ष्मदर्शी द्वारा की।
प्रश्न 2. कोशिका को जीवन की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई क्यों कहते हैं ?
उत्तरः प्रत्येक कोशिका एक स्वायत्त इकाई के रूप में कार्य करती है तथा जीवन की सभी मूलभूत क्रियाओं को स्वतन्त्र रूप से संचालित करती है। इसी कारण इसे जीवन की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई कहते हैं।
प्रश्न 3. प्लाज्मा झिल्ली को वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली क्यों कहते हैं ?
उत्तरः प्लाज्मा झिल्ली कुछ पदार्थों को अन्दर अथवा बाहर आने-जाने देती है तथा अन्य पदार्थों की गति को रोकती है। इसलिए इसे वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली कहते हैं।
प्रश्न 4. लाइसोसोम को आत्मघाती थैली क्यों कहते हैं?
उत्तरः लाइसोसोम में पाचक एन्जाइम्स पाये जाते हैं। कोशिकीय उपापचय में व्यवधान के कारण जब कोशिका क्षतिग्रस्त या मृत हो जाती है तो उसके लाइसोसोम फट जाते हैं तथा उसके पाचक एन्जाइम्स अपनी ही कोशिका का पाचन कर देते हैं। इसलिए इन्हें ‘आत्मघाती थैली’ कहते हैं।
प्रश्न 5. कोशिका के अन्दर प्रोटीन का संश्लेषण कहाँ होता है?
उत्तरः खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका पर पाये जाने वाले राइबोसोम में प्रोटीन का संश्लेषण होता है।
प्रश्न 6. यदि प्लाज्मा झिल्ली फट जाए अथवा टूट जाए तो क्या होगा?
उत्तरः प्लाज्मा झिल्ली बाह्य वातावरण से गैसों तथा अन्य पदार्थों को विसरण द्वारा कोशिका में पहुँचाती है। इसके फट जाने अथवा टूट जाने पर इन पदार्थों में परिवहन का नियमन नहीं हो पायेगा तथा कोशिका का कोशिकाद्रव्य बाह्य वातावरण के सीधे सम्पर्क में आ जायेगा जिससे कोशिका की मृत्यु हो जायेगी।
प्रश्न 7. यदि गॉल्जी उपकरण न हो तो कोशिका के जीवन में क्या होगा?
उत्तरः गॉल्जी उपकरण कोशिका में बने पदार्थों का संचय, रूपान्तरण, परिवहन तथा पैकेजिंग का कार्य करते हैं। इनके उपस्थित न होने पर ये क्रियाएँ नहीं हो पायेंगी।
प्रश्न 8. कोशिका का कौन-सा अंगक बिजलीघर है और क्यों ?
उत्तरः माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का बिजलीघर (Power House) कहते हैं क्योंकि ये विभिन्न जैविक क्रियाओं को चलाने के लिए ऊर्जा ATP (ऐडिनोसिन ट्राइफॉस्फेट) के रूप में प्रदान करते हैं। ATP कोशिका की ऊर्जा है जिसका उपयोग कोशिका नये रासायनिक यौगिकों को बनाने तथा यान्त्रिक कार्यों को सम्पन्न करने के लिए करती है।
प्रश्न 8. परासरण क्या है?
उत्तरः परासरण ऐसी क्रिया है जिसमें अर्द्धपारगम्यं झिल्ली (प्लाज्मा झिल्ली) द्वारा अलग किये गये भिन्न सान्द्रता वाले दो विलयनों में जल अथवा किसी दूसरे विलायक के अणुओं का विसरण कम सान्द्रता वाले विलयन से अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर होता है।
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