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Class 9th Biology (जीवविज्ञान) Chapter 6. खाद्य संसाधन-पशु | Khad Sansadhan Pashu Class 9th Science Notes in Hindi

October 17, 2023 by Leave a Comment

Khad Sansadhan Pashu Class 9th Science Notes in Hindi

6. खाद्य संसाधन-पशु

पशुपालन- पशुपालन जीवविज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत पालतू पशुओं के भोजन, आवास, स्वास्थ्य, प्रजनन आदि पक्षों का अध्ययन किया जाता है।
हमारे देश में गाय की प्रमुख प्रजातियों में शाहीवाल, गीर, रेडसिंधी, थर्पाकर तथा हरयानवी है।
हमारे देश में भैस की प्रमुख प्रजातियों में नागपुरी, सुर्ती, नीली-रवि, मेहसाना तथा जाफराबादी है।
भारतीय गाय का वैज्ञानिक नाम बॉस इंडिकस है।
भारतीय भैंस का वैज्ञानिक नाम बॉस बुबेलिस है।

Khad Sansadhan Pashu Class 9th Science Notes in Hindi

कुक्कुटपालन- आर्थिक लाभ के लिए कुक्कुटों (मुर्गी, बत्तख, टर्की तथा हंस) का पालन कुक्कुटपालन कहलाता है। अंडे देनेवाली मुर्गी को लेअर कहते हैं। अधिक मांस प्राप्ति के उद्देश्य से पाले जानेवाली मुर्गियों को ब्रौलर कहते हैं।
रानीखेत मुर्गियों में होनेवाला भयंकर संक्रामक रोग है। जो वायरस के कारण होता है।
हैजा भी मुर्गियों में होने वाला रोग है। जो भी वायरस के कारण होता है।

मधुमक्खीपालन- आर्थिक लाभ के लिए मधुमक्खीयों का पालन-पोषण तथा प्रबंधन मधुमक्खीपालन कहलाता है।

मधुमक्खी से हमें शहद या मधु तथा मधुमोम प्राप्त होता है। मधु में शक्कर, खनिज तथा विटामिन होते हैं।

मत्स्यकी- समुद्र का एक भाग, झील या नदी, जहाँ मछलियाँ एवं इनके जैसे अन्य जलीय खाद्य पदार्थ पकड़े जाते हैं। मत्स्यकी कहलाता है।

भारत सरकार को प्रति वर्ष मछलियों से प्राप्त उत्पाद से 4000 करोड़ का आमदनी होता है।

हमारे देश का लगभग 7500 किलोमीटर का समुद्रीतट समुद्री मछली संसाधन क्षेत्र है।

फसल के लिए कुल 16 पोषक तत्व आवश्यक हैं। हवा से कार्बन तथा ऑक्सीजन, पानी से हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन एवं मिट्टी से शेष 13 पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। इन 13 पोषकों में से 6 पोषकों को की मात्रा अधिक चाहिए। इसलिए इन्हें वृहद पोषक कहते हैं। शेष 7 पोषक कम मात्रा में चाहिए, जिन्हें सूक्ष्म पोषक कहते हैं।

फसल के लिए पोषकों के मुख्य स्रोत खाद्य तथा उर्वरक हैं।

मिश्रित फसल में दो या दो से अधिक फसलों को एक ही खेत में एक साथ उगाए जाते हैं।

दो या दो से अधिक फसलों को निश्चित कतार पैटर्न में उगाने को अंतरा-फसलीकरण कहते हैं।

मधुमक्खी पालन मधु तथा मोम को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

Khad Sansadhan Pashu Class 9th Science Notes in Hindi

प्रश्‍न 1. हरित क्रांति किसे कहते हैं ?
उत्तर- कृषि में आधुनिक कृषि यंत्रों और आधुनिक तकनीकों के प्रयोग एवं उन्नत बीजों के उपयोग से फसल उत्पादन क्षमता में अत्यधिक वृद्धि हुई है जिसे हरित क्रांति के नाम से जाना जाता है।

प्रश्‍न 2. श्वेत क्रांति से क्या समझते हैं?
उत्तर- उन्नत नस्ल और विभिन्न तकनीकों के उपयोग से दूध के उत्पादन को बढ़ाया गया है जिसे श्वेत क्रांति के नाम से जाना जाता है।

प्रश्‍न 3. कृषि क्षेत्र में लोगों की आय बढ़ाने या अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए कौन सी प्रणालियां अपनानी चाहिए?
उत्तर- मिश्रित खेती, अंतराफसलीकरण तथा संघटीय कृषि प्रणाली अपनानी चाहिए।

प्रश्‍न 4. संगठित कृषि प्रणाली या एकीकृत खेती से क्‍या समझते हैं?
उत्तर- फसलों का उत्पादन एक साथ कई उद्देश्य से किया जाता है जिसे संगठित कृषि प्रणाली कहा जाता है। उदाहरण के लिए पौधे के हिस्सों को पशुओं के घास के रूप में तथा उनके मल मूत्र को जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। पशुधन, कुकुटपालन, मत्‍स्‍यपालन भी संगठित कृषि प्रणाली का उदाहरण है।

प्रश्‍न 5. कृत्रिम वीर्यसेचन क्या है?
उत्तर- सामान्यत: पारंपरिक विधि से एक मादा पशु को प्रजनन के लिए नर से मिलाया जाता है व प्राकृतिक तरीके से नर का वीर्य मादा के जनन अंगों तक पहुंचाया जाता है, लेकिन जब नर के वीर्य को मादा के जनन अंगों तक कृत्रिम साधन जैसे : इंजेक्शन, सिरिंज आदि द्वारा पहुंचाया जाता है तब यह विधि कृत्रिम वीर्यसेचन कहलाती है।

प्रश्‍न 6. अंतरा-फसलीकरण के लाभ को लिखें।
उत्तर- अंतरा-फसलीकरण के लाभ—

  • अंतरा-फसलीकरण में दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ उगाते हैं।
  • इसमें पीड़क को और रोगों की रोकथाम होती है।
  • दोनों फसलों से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जाता है

प्रश्‍न 7. हमारे देश में खाद्य उत्पादन कैसे बढ़ाया जा सकता है?
उत्तर—खाद उत्पादन बढ़ाने के निम्नलिखित तरिके हैं :
कृषि की उच्च फसल प्रजातियों द्वारा खाद्य उत्पादन।
उचित समय पर सिंचाई।
उर्वरकों और खादों का प्रयोग, फसल चक्र को अपनाना।
भूमि को कुछ समय के लिए खाली छोड़ना ताकि उसमें वापस उर्वरता आ जाए।

प्रश्‍न 8. कृत्रिम वीर्य से क्‍या तात्‍पर्य है ? कृत्रिम वीर्यसेन के लाभ बताइए।
उत्तर- नर के वीर्य को मादाा जननांगों तक कृत्रिम साधनों द्वारा पहुँचानाा ही कृत्रिम वीर्यसेचन कहलाता है।

कृत्रिम वीर्यसेन से लाभ:

  • एक पशु के वीर्य से हजारों मादाओं को निषेचित किया जा सकता है।
  • इसमें नर पशु को मादा के पास ले जाने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • इसमें समय तथा धन की बचत होती है।
  • इस विधि से अंतर्जातीय पशुओं में जनन संभव है।
  • इसमें से अच्छी किस्म की नस्‍ल तैयार की जाती है।

प्रश्न 9. पौधे अपना पोषण कैसे प्राप्त करते हैं ?
उत्तर: पौधे पोषक पदार्थ हवा, पानी तथा मिट्टी से प्राप्त करते हैं। पौधों को अपनी वृद्धि एवं विकास हेतु कुल 16 पोषक पदार्थों की आवश्यकता होती है जिनमें से तीन कार्बन, ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन वह वायु एवं जल से तथा शेष बचे 13 पोषक पदार्थ वह मिट्टी से ग्रहण करते हैं।

प्रश्न 10. पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः कौन-सी विधि का उपयोग किया जाता है और क्यों ? .
उत्तर: पशुओं की नस्ल सुधार के लिए प्रायः संकरण विधि का उपयोग किया जाता है। इनमें दो विभिन्न गुणों (नस्लों) वाले पशुओं के बीच संकरण कराकर ऐसी संकर सन्तान उत्पन्न की जाती है जिसमें दोनों नस्लों के गुण विद्यमान होते हैं। उदाहरण के लिए हमारे देश की गायों की रोगरोधक क्षमता बहुत अच्छी होती है लेकिन दुग्ध उत्पादन कम। लेकिन विदेशी नस्ल की गायों की प्रतिरोधक क्षमता तो कम होती है परन्तु इनका दुग्ध उत्पादन अधिक होता है। अब इन दोनों गायों में संकरण कराने से संकर नस्ल की गाय उत्पन्न की गई हैं जिनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता एवं प्रतिरोधक क्षमता दोनों ही अच्छी हैं। इनमें से होल्‍सटीन फिजीशीयन एक उदाहरण है।

प्रश्न 11. मिश्रित मछली संवर्धन से क्या लाभ हैं ?
उत्तर: मिश्रित मछली संवर्धन में एक तालाब में मछलियों की कई जातियों का संवर्धन एक साथ किया जाता है। एकल संवर्धन की तुलना में मिश्रित संवर्धन अधिक लाभदायक होता है क्योंकि विभिन्न जाति की मछलियों की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न होती हैं जिससे उनमें आहार के लिए प्रतिस्पर्धा भी कम होती है।
कुछ मछलियाँ; जैसे-कटला जल की सतह.से अपना आहार लेती हैं, कुछ जैसे रोहू तालाब के मध्य क्षेत्र से तथा कुछ जैसे कॉमन कार्प तालाब की तली से। इस प्रकार तालाब के प्रत्येक भाग में उपलब्ध आहार का उपयोग हो जाता है। परिणामस्वरूप हमारी लागत कम आती है तथा मछलियों के उत्पादन में अपेक्षाकृत वृद्धि होती है जिससे अधिक लाभ कमाया जा सकता है।

प्रश्न 12. चारागाह क्या है और ये मधु उत्पादन से कैसे सम्बन्धित है ?
उत्तर: चारागाह वास्तव में वह स्थान है जहाँ से कोई जीव अपना प्राकृतिक भोजन लेता है। किसी पशु के लिए ये घास का मैदान तथा मधुमक्खी के लिए ये फूलों का बगीचा या ऐसा क्षेत्र जिसमें पर्याप्त फूल वाले पौधे हों, हो सकता है। अधिक तथा उत्तम गुणवत्ता वाले मधु का उत्पादन तभी सम्भव है जब मधुमक्खियों को पर्याप्त मात्रा में चारागाह अर्थात फूल उपलब्ध हों, क्योंकि इन्हीं से ये पराग एवं मकरन्द एकत्र करती हैं। मधु का उत्पादन, उसकी गुणवत्ता एवं स्वाद सभी इन फूलों पर ही निर्भर करता है।

प्रश्न 13. आनुवंशिक फेरबदल क्या हैं ? कृषि प्रणालियों में से कैसे उपयोगी हैं ?
उत्तर: ऐसी प्रक्रिया या विधि, जिसमें किसी पौधे या जन्तु में कुछ इच्छित गुणों को जीन में बदलाव करके प्रविष्ट करा दिया जाता है, आनुवंशिक फेरबदल कहलाती है। जब किसी इच्छित गुण के जीन्स को पौधे में प्रविष्ट कराते हैं तो ट्रांसजेनिक पौधों का विकास होता है। वे ट्रांसजेनिक पौधे नये प्रविष्ट जीन के कारण इच्छित गुणों को प्रदर्शित करते हैं। कृषि प्रणालियों में इसके उपयोग से फसलों की गुणवत्ता, रोग एवं कीट से प्रतिरोधकता एवं उत्पादन क्षमता सभी में वृद्धि होती है।

उदाहरण के लिए किसी अनाज वाले पौधे की जंगली जाति जो रोगों एवं कीड़ों के प्रति अधिक प्रतिरोधी थी लेकिन उसकी अनाज की बाली छोटी आकृति की थी, में ऐसे जीन्स को प्रवष्टि कराया जो अनाज की बड़ी बाली के लिए जिम्मेदार था तो उत्पन्न ट्रांसजेनिक पौधे की बालियाँ भी बड़े आकार की प्राप्त हुईं। इससे हमें ऐसे पौधे प्राप्त हुए, जो रोगों एवं कीटों से प्रतिरोधी भी थे। साथ-ही-साथ बड़ी बाली होने के कारण उनसे अनाज का उत्पादन भी अधिक प्राप्त हुआ।

प्रश्न 14. पशुपालन के क्या लाभ हैं ?
उत्तर: पशुपालन के प्रमुख लाभ हैं –
1. किसान की स्वयं की तथा बाजार की आवश्यकता हेतु उत्तम दूध की आपूर्ति होती है।
2. कृषि कार्य करने; जैसे-हल चलाना, सिंचाई एवं बोझा उठाना आदि हेतु पशु उपलब्ध हो जाते हैं।
3. पशुओं द्वारा प्राप्त मलमूत्र से कार्बनिक खाद बनती है जो भूमि की उर्वरता बढ़ाने में सहायक है।
4. कुक्कुटपालन द्वारा उत्तम किस्म के अण्डे एवं माँस प्राप्त होता है।
5. पशुपालन से किसान की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है।

प्रश्न 15. भंडारण की प्रक्रिया में कौन-से कारक अनाज की हानि के लिए उत्तरदायी हैं ?
उत्तर: भंडारण की प्रक्रिया में अनेक जैविक तथा अजैविक कारक अनाज को हानि पहुँचाते हैं। जैविक कारकों के अन्तर्गत विभिन्न कीट, कृन्तक, कवक, चिंचड़ी तथा जीवाणु हैं जो अनाज को नष्ट कर देते हैं। वहीं अजैविक कारकों के अन्तर्गत भण्डारण के स्थान पर उपयुक्त नमी एवं ताप का अभाव है। ये सभी कारक अनाज की गुणवत्ता को खराब कर उसका वजन एवं अंकुरण की क्षमता को कम कर देते हैं।

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