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कक्षा 10 अर्थशास्‍त्र पाठ 4 हमारीवितीय संस्थाएँ | Hamari vitiye sansthayen notes and solutions

January 10, 2023 by Leave a Comment

दिया गया पाठ का नोट्स और हल SCERT बिहार पाठ्यक्रम पर पूर्ण रूप से आधारित है। इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 10 अर्थशास्‍त्र के पाठ चार ‘हमारीवितीय संस्थाएँ (Hamari vitiye sansthayen notes and solutions)’ के नोट्स और प्रश्‍न-उतर को पढ़ेंगे।

Hamari vitiye sansthayen

4. हमारी वितीय संस्थाएँ

वितीय संस्थाएँ:-हमारी देश की वे संस्थाएँ जो आर्थिक विकास के लिए उधम एवं व्यवसाय के वितीय आवश्यकताओं की पूर्ति करता है एसी संस्थाओं को वितीय संस्था कहते हैं।

वितीय संस्थाएँ दो प्रकार की होती हैं- राष्ट्र स्तरीय वितीय संस्थाएँ और राज्य स्तरीय वितीय संस्थाएँ

सरकारी वितीय संस्थाएँ:- सरकार द्वारा स्थापित एवं संपोषित वितीय संस्थाओ को सरकारी संस्थाएँ कहते हैं।

जैसे- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, इलाहाबाद बैंक इत्यादि।

राष्ट्रीय वितीय संस्थाएँ

इनके दो महत्वपूर्ण अंग हैं:-

  1. भारतीय मुद्रा बाजार
  2. भारतीय पूँजी बाजार

भारतीय मुद्रा बाजार को संगठित और असंगठित क्षेत्रां में विभाजित किया जाता है। संगठित क्षेत्र में वाणिज्य बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एवं विदेशी बैंक शामिल किए जाते हैं जबकि असंगठित क्षेत्र में देशी बैंकर जिनमें गैर बैंकिंग वितीय कंपनियाँ शामिल की जाती हैं।

देश की संगठित बैंकिंग प्रणाली निम्नलिखित तीन प्रकार की बैंकिंग व्यवस्था के रूप में कार्यशील है-

  1. केंद्रीय बैंक- भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया देश की केंद्रीय बैंक हैं।
  2. वाणिज्य बैंक- देश में अनेक वाणिज्य बैंकों एवं वितीय क्रियाओं का संचालन होता हैं।

संगठित बैंकिंग प्रणली

  1. केंद्रिय बैंक- RB देश का केन्द्रीय बैंक है। यह देश में शीर्ष बैंकिंग संस्था के रूप में कार्यरत है।
  2. वाणिज्य बैंक- वाणिज्य बैंक के द्वारा बैंकिंग एवं वितीय क्रियाओं का संचालन होता हैं।
  3. सहकारी बैंक- आपसी सहयोग एवं सद्भावना के आधार पर जो वितीय संस्थाएँ कार्यशील है उसे सहकारी बैंक कहते हैं, यधपि ये राज्य सरकारो के द्वारा संचालित होती हैं।

भारतीय पूँजी बाजारः- भारतीय पूँजी बाजार मुख्यतः दीर्घकालीन पूँजी उप्लब्द कराती हैं।

भारतीय पूँजी बाजार मूलतः इन्ही चार वितीय संस्थानां पर आधारित है जिसके चलते राष्ट्र-स्तरीय सार्वजनिक विकास जैसे-सड़क, रेलवे, अस्पताल, शिक्षण संस्थान, विद्युत उत्पादन संयंत्र एवं बडे़-बडे़ निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग संचालित किए जाते हैं।

वितीय संस्थाएँ किसी भी देश का मेरूदंड माना जाता है।

राज्य में मुख्यतः दो प्रकार की वितीय संस्थाएँ कार्यरत हैं-

राज्य स्तरीय वित्तय संस्थाएँ

  1. गैर संस्थागत

महाजन             

सेठ साहुकार

व्यापारी                         

रिश्तेदार एवं अन्य

  1. संस्थागत

सहकारी बैंक

प्राथमिक सहकारी समितिय

भूमि विकास बैंक

व्यवसायिक बैंक

क्षेत्रीय ग्रामिण बैंक

नार्वाड एवं अन्य

Hamari vitiye sansthayen

  1. सहकारी बैंकः- इनके माध्यम से बिहार के किसानों को अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण की सुविधा उप्लब्ध होती हैं। राज्य में 25 केंद्रीय सहकारी बैंक जिला स्तर पर तथा राज्य स्तर पर एक बिहार राज्य सहकारी बैंक कार्यरत हैं।
  2. प्राथमिक सहकारी समितियाँ:- इनकी स्थापना कृषि क्षेत्र की अल्पकालीन ऋणों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए की गई है। एक गाँव अथवा क्षेत्र के कोई भी कम-से-कम दस व्यक्ति मिलकर एक प्राथमिक शाख समिति का निर्माण कर सकते हैं।
  3. भूमि विकास बैंकः- राज्य में किसानों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने के लिए भूमि बंधक बैंक खोला गया था, जिसे अब भूमि विकास बैंक कहा जाता है।
  4. व्यावसायिक बैंकः- यहअधिक मात्रा में किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 ई. में हुआ था।
  5. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक- सीमांत एवं छोटे किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना 1975 ई. में किया गया। देश में अभी 196 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक है।
  6. नाबार्ड- यह कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए सरकारी संस्थाओं, व्यावसायिक बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को वित की सुविधा प्रदान करता है। जो पुनः किसानों को यह सुविधा प्रदान करता है।

व्यावसायिक बैंक के प्रमुख कार्य-

  1. जमा राशि को स्वीकार करना- व्यावसायिक बैंकों का प्रमुख कार्य अपने ग्राहकों से जमा के रूप में मुद्रा प्राप्त करना है। लोग चोरी होने के भय से या ब्याज कमाने के उद्देश्य से बैंक में अपना आय का कुछ भाग जमा करते हैं।
  2. ऋण प्रदान करना- व्यावसायिक बैंकों का दूसरा महत्वपूर्ण काम लोगों को ऋण प्रदान करना है।
  3. समान्य उपयोगिता संबंधी कार्य- इसके अलावा व्यावसायिक बैंक अन्य बहुत से कार्य करते हैं, जिन्हें समान्य उपयोगिता संबंधी कार्य कहा जाता है।

जैसे- यात्री चेक एवं साख पत्र जारी करना- साख पत्र या यात्री चेक की मदद से व्यापारी विदेशों से भी आसानी से माल उधार ले सकते हैं।

लॉकर की सुविधा- लॉकर की सुविधा से ग्राहक बैंक में अपने सोने-चाँदी के जेवर तथा अन्य आवश्यक कागज पत्र सुरक्षित रख सकते हैं।

ATM और क्रेडिट कार्ड की सुविधा-ATM और क्रेडिट कार्ड की मदद से खाता धारक 24 घंटे रूपया निकाल सकते हैं।

व्यापारिक सूचनाएँएवं आँकड़े एकत्रीकरण- बैंक आर्थिक स्थिति से परिचित होने के कारण व्यापार संबंधी सूचनाएं एवं आँकड़े एकत्रित करके अपने ग्राहकों को वितीय मामलों पर सलाह देते हैं।

  1. ऐजेंसी संबंधी कार्य- इसके अंतर्गत चेक, बिल और ड्राफ्ट का संकलन, ब्याज तथा लाभांश का संकलन तथा वितरण, ब्याज, ऋण की किस्त, बीमे की किस्त का भूगतान, प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय तथा ड्राफ्ट तथा डाक द्वारा कोष का हस्तांतरण आदि क्रियाएँ करती हैं।

स्वयं सहायता समुह- स्वयं सहायता समुह ग्रामीण क्षेत्रों में 15-20 व्यक्तिओं का एक अनौपचारिक समूह होता है जो अपनी बचत तथा बैंकों से लघु ऋण लेकर अपने सदस्यों के पारिवारिक जरूरतों को पूरा करते हैं और गाँवों का विकास करते हैं।

  1. हमारीवितीय संस्थाएँ

लघु उतरीय प्रश्न

  1. वितीय संस्थान से आप क्या समझते है।

उत्तर-हमारे देश की वे संस्थाएँ जो आर्थिक विकास के लिए उद्यम एवं व्यवसाय के वितीय आवश्यकताओं की पूर्ति करता है ऐसी संस्थाओं को वितीय संस्थान कहते है।

  1. राज्य की वितीय संस्थान को कितने भागों में बाँटा गया है, संक्षिप्त वर्णन करें।

उत्तर-राज्य की वितीय संस्थान को दो भागों में बाँटा गया है।

(i) गैर-संस्थागत

(ii) संस्थागत वितीय संस्थान

(i) गैर संस्थागत (Non-Institutional)

(i) महाजन

(ii) सेठ-साहुकार

(iii) व्यापारी

(iv) रिश्तेदार एवं अन्य

(ii) संस्थागत वितीय संस्थान(Institutional)

(i) सहकारी बैंक

(ii) प्राथमिक सहकारी समितिएँ

(iii) भूमि विकास बैंक

(iv) व्यावसायिक बैंक

(v) क्षेत्रीय ग्रामीन बैंक

(vi) नार्बाड एवं अन्य

Hamari vitiye sansthayen

  1. किसानों को साख अथवा ऋण की आवश्यकता क्यों होती है।

उत्तर- किसानों को साख अथवा ऋण की आवश्यकता की पूर्ति वितीय संस्थानों के द्वारा संपन्न होती है। ये वितीय संस्थाएँ सरकार द्वारा स्थापित एवं संचालित होती है। अथवा लोगों के सहयोग एवं सहभागिता से भी स्थापित होती है जिन्हें सरकारी अथवा अर्द्धसरकारी वितीय संस्थान कहते है।

  1. व्यावसायिक बैंक कितने प्रकार की जमा राशि को स्वीकार करते है? संक्षिप्त विवरण करें।

उत्तर-व्यावसायिक बैंक प्रायःचार प्रकार से जमा राशि स्वीकार करते है।

(i) स्थायी जमा-स्थायी जमा खाते में रूपया एक निश्चित अवधि जैसे 1 वर्ष या इससे अधिक के लिए जमा किया जाता है।

2.चालू जमा- चालू जमा खाते में रूपया जमा करनेवाले अपनी इच्छा अनुसार रूपया जमा करता है अथवा निकाल सकता है।

  1. संचयी जमा- इस प्रकार के खाते में रूपया जमा करने वाले जब चाहे रूपया जमा कर सकता है, किंतु निकालने का अधिकार सीमित रहता है। वह भी एक निश्चित रकम से अधिक नहीं। इसमें चेक की सुविधा भी प्रदान की जाती है।

4.आवर्ती जमा- इस प्रकार के खाते में व्यावसायिक बैंक साधारण तथा अपने ग्राहक को प्रतिमाह एक निश्चित रकम जमा के रूप में एक निश्चित अवधि जैसे 60 माह या 72 माह के लिए ग्रहण करता है और इसके बाद एक निश्चित रकम भी देता है।

5.सहकारिता से क्या सकझते हैं ?

उत्तर.सहकारिता का अर्थ होता है ‘एक साथ मिल जुल कर काम करना’ लेकिन अर्थशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग अधिक व्यापक अर्थ में किया जाता है। सहकारिता वह संगठन है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक व्यक्ति मिलजुल कर काम में वृद्धि करते हैं। इस प्रकार सहकारिता उस आर्थिक व्यवस्था को कहते हैं जिसमें मनुष्य किसी आर्थिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिलजुल कर कार्य करते हैं।

6.स्वयं सहायता समुह से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-स्वयं सहायता समुह वास्तव में ग्रामीण क्षेत्र में 15 से 20 व्यक्तियो का एक अनौपचारिक समुह होता है, जो अपनी बचत तथा बैंकों से लघु ऋण लेकर अपने सदस्यों के पारिवारिक जरूरतों को पूरी करते हैं और विकास गतिविधियाँ चलाकर गाँव का विकास और महिला शक्तिकरण में योगदान करते हैं।

7.भारत में सहकारिता की शुरूआत किस प्रकार हुई ? संक्षिप्त वर्णन करें।

उत्तर-1904 में सहकारिता साख समिति विधान पारित होने के बाद भारत में सहकारिता की शुरूआत हुई। 1912 में एक और अधिनियम बनाया गया इस नये अधिनियम में ऋण के अतिरिक्त अन्य उद्दश्यों के लिए सहकारि समितियाँ स्थापित करने की व्यवस्था की गई। 1935 ई में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना हुई। इसके अंतर्गत एक कृषि साख विभाग का संगठन की स्थापना किया गया।

8.सुक्ष्म वित योजना को परिभाषित करें।

उत्तर-छोटे पैमाने पर गरीब जरुरतमंद लोगों को स्वयंसेवी संस्था के माध्यम से कम ब्याज पर साख्य अथा ऋण की व्यवस्था को सुक्ष्म वित योजना कहते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1.राष्ट्रीय वितिय संस्थान किसे कहते हैं ? इसे कितने भागों में बाँटा जाता है ? वर्णन करें।

उत्तर-ऐसी वितिय संस्थान जो देश के लिए वितिय और साख नीतियों का निर्धारण एवं निर्देशन करती है तथा राष्ट्रीय स्तर पर वित प्रबंधन के कार्यों का संपादन करती है। उसे हम राष्ट्रीय वितिय संस्थान कहते हैं।

राष्ट्रीय वितिय संस्थान को दो भागों में बाँटा गया है-

1.भारतीय मुद्रा बाजार

2.भारतीय पूँजी बाजार

1.भारतीय मुद्रा बाजार- भारतीय मुद्रा बाजार को संगठित और असंगठित क्षेत्रां में विभाजित किया जाता है। संगठित क्षेत्र में वाणिज्य बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एवं विदेशी बैंक शामिल किए जाते हैं जबकि असंगठित क्षेत्र में देशी बैंकर जिनमें गैर बैंकिंग वितीयय कंपनियाँ शामिल की जाती हैं।

2.भारतीय पूँजी बाजारः- भारतीय पूँजी बाजार मुख्यतः दीर्घकालीन पूँजी उप्लब्द कराती हैं।

भारतीय पूँजी बाजार मूलतः इन्हीं चार वितीय संस्थाना पर आधारित है जिसके चलते राष्ट्र-स्तरीय सार्वजनिक विकास जैसे-सड़क, रेलवे, अस्पताल, शिक्षण संस्थान, विद्युत उत्पादन संयंत्र एवं बडे़-बडे़ निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग संचालित किए जाते हैं।

Hamari vitiye sansthayen

भारतीय पूँजी बाजार चार वितीय संस्थानां पर आधारित है

  1. प्रतिभूमि बाजार या प्राथमिक बाजार
  2. औद्योगिक बाजार या द्वितीयक बाजार
  3. विकास वित संस्थान
  4. गैर बैंकिग वित कंपनियाँ

प्रश्न 2. राज्य स्तरीय संस्थागत वितिय स्त्रोत के कार्यों का वर्णन करें।

उत्तर- राज्य स्तरीय संस्थागत वितीय स्त्रोत का कार्यों निम्नलिखित वर्णनों में किया गया है।

  1. सहकारी बैंक- इनके माध्यम से बिहार के किसानों को अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण की सुविधा उप्लब्ध होती हैं। राज्य में 25 केंद्रीय सहकारी बैंक जिला स्तर पर तथा राज्य स्तर पर एक बिहार राज्य सहकारी बैंक कार्यरत हैं।
  2. प्राथमिक सहकारी समितियाँ-इनकी स्थापना कृषि क्षेत्र की अल्पकालीन ऋणों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए की गई है। एक गाँव अथवा क्षेत्र के कोई भी कम-से-कम दस व्यक्ति मिलकर एक प्राथमिक शाख समिति का निर्माण कर सकते हैं।
  3. भूमि विकास बैंकः-राज्य में किसानों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने के लिए भूमि बंधक बैंक खोला गया था, जिसे अब भूमि विकास बैंक कहा जाता है।

4.व्यावसायिक बैंकः- यहअधिक मात्रा में किसानों को ऋण प्रदान करते हैं। भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 ई.में हुआ था।

5.क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक- सीमांत एवं छोटे किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना 1975 ई.में किया गया। देश में अभी 196 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक है।

6.नाबार्ड- यह कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए सरकारी संस्थाओं, व्यावसायिक बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को वित की सुविधा प्रदान करता है। जो पुनः किसानों को यह सुविधा प्रदान करता है।

  1. व्यावसायिक बैंक के प्रमुख कार्यों की विवेचना करें।

व्यावसायिक बैंक के प्रमुख कार्यों निम्न हैं-

1.जमा राशि को स्वीकार करना- व्यावसायिक बैंकों का प्रमुख कार्य अपने ग्राहकों से जमा के रूप में मुद्रा प्राप्त करना है। लोग चोरी होने के भय से या ब्याज कमाने के उद्देश्य से बैंक में अपना आय का कुछ भाग जमा करते हैं।

2.ऋण प्रदान करना-व्यावसायिक बैंकों का दूसरा महत्वपूर्ण काम लोगों को ऋण प्रदान करना है।

3.समान्य उपयोगिता संबंधी कार्य- इसके अलावा व्यावसायिक बैंक अन्य बहुत से कार्य करते हैं, जिन्हें समान्य उपयोगिता संबंधी कार्य कहा जाता है।

जैसे- यात्री चेक एवं साख पत्र जारी करना- साख पत्र या यात्री चेक की मदद से व्यापारी विदेशों से भी आसानी से माल उधार ले सकते हैं।

4.ऐजेंसी संबंधी कार्य- इसके अंतर्गत चेक, बिल और ड्राफ्ट का संकलन, ब्याज तथा लाभांश का संकलन तथा वितरण, ब्याज, ऋण की किस्त, बीमे की किस्त का भूगतान, प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय तथा ड्राफ्ट तथा डाक द्वारा कोष का हस्तांतरण आदि क्रियाएँ करती हैं।

4.सहकारिता के मुल तत्व क्या हैं ? राज्य के विकास में इसकी भूमिका का वर्णन करें।

उत्तर- सहकारिता के आधारभूत सिद्धांत एक तो यह है कि यहाँ संगठन की सदस्य स्वैच्छिक होती है। लोग अपनी इच्छा से सहकारी संगठन के सदस्य बनते हैं। उनपर काई बाहरी बंधन या दबाव नहीं होता है।

दूसरा, इसका प्रबंध व संचालन जनतंत्रात्म आधार पर होता है। इसके सदस्यों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। वे एक दूसरे के बराबर समझे जाते हैं और सबकों एक जैसा अधिकार व अवसर प्राप्त होता है।

तीसरा इसके आर्थिक उद्देश्यो में नैतिक और सामाजिक तत्व भी शामिल रहते है। यह केवल आर्थिक लाभ कमाने के लिए ही नही बल्कि नैतिक और सामाजिक पहलू से भी सदस्यों के हितलाभ के लिए कार्य करता है।

राज्य के विकास मे भूमिका- बिहार भारत का एक पिछला राज्य है। राज्य के बँटवारे के बाद बिहार एक संसाधन विहीन राज्य बन गया। जिस पर बिहार की कुल जनसंख्या का 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर करता है। सामान्यतः खेती में निवेश एक जुआ के समान है। सहकारी बैंक से रोजगार को बढ़ावा ग्रामीण स्तर पर काफी हद तक किया जा रहा है। फलस्वरूप व्यक्ति की आय धीरे-धीरे बढ़ रही है और लोगों का जीवन स्तर ऊचाँ उठ रहा है।

5.स्वयं सहायता समूह में महिलाएँ किस प्रकार अपनी अहम् भूमिका निभाती है? वर्णन करें।

उत्तर-स्वयं सहायता समूह में एक दूसरे के पड़ोसी 15-20 सदस्य होते है जो नियमित रूप से मिलते है और बचत करते है। प्रति व्यक्ति बचत 25 रूपया से लेकर 100 रूपया या अधिक हो सकते है। यह परिवार की बचत करने की क्षमता पर निर्भर करता है। समूह इन कार्यो पर ब्याज लेता है लेकिन यह साहुकार द्वारा लेनेवाले ब्याज से कम होता है।

एक या दो वर्षो के बाद अगर समूह नियमित बचत करता है तो समूह बैंक से ऋण के योग्य हो जाता है। ऋण समूह के नाम से दिया जाता है और इसका उद्देश्य सदस्यों के लिए स्वरोजगार के अवसरो का सृजन करना है। सदस्यों के लिए छोटे-छोटे कर्ज, बीज, खाद, बाँस, घर बनाने, सिलाई मशीन, पशु आदि खरीदने के लिए दिया जाता है।

ऋण लौटाने की जिम्मेदारी समूह की होता है। इसी कारण बैंक निर्धन लोगों को ऋण देने के लिए तैयार हो जाते है। जहाँ तरह-तरह के सामाजिक विषयों जैसे स्वास्थ्य, पोषण और घरेलू हिंसा इत्यादि पर आपस में चर्चा कर पाती है।

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Filed Under: Class 10th

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