Bihar Board Class 9 Hindi ग्राम-गीत का मर्म (Gram Git Ka Marm Class 9th Hindi Solutions) Text Book Questions and Answers
3. ग्राम-गीत का मर्म
लेखक – लक्ष्मीनारायण सुधांशु
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ‘ग्राम-गीत का मर्म’ में लेखक लक्ष्मी नारायण सुधांशु ने ग्राम-गीत के मर्म का उद्घाटन करते हुए काव्य और जीवन में उसके महत्त्वका निरूपण किया है। लेखक का कहना है कि ग्राम-गीतों में मानव जीवन के उन प्राथमिक चित्रों के दर्शन होते हैं, जिनमें मनुष्य साधारणतः अपनी लालसा, वासना, प्रेम, घृणा, उल्लास तथा विषाद को समाज की मान्य धारणाओं से ऊपर नहीं उठा सका है और अपनी हृदयगत भावनाओं को प्रकट करने में उसने कृत्रिम शिष्टाचार का प्रतिबंध भी नहीं माना है। उनमें सर्वत्र रूढ़िगत जीवन ही नहीं है, बल्कि कहीं-कहीं प्रेम, वीरता, क्रोध कर्तव्य बोध का भी बहुत ही रमणीय, बाह्यतथा अन्तर्विरोध दिखाया गया है। जीवन की शुद्धता और भावों की सरलता का जितना मार्मिक वर्णन ग्राम-गीतों में मिलता है, उतना परवर्ती कला-गीतों में नहीं मिलता।
ग्राम-गीत ही कला गीत का आरंभिक रूप है। ग्राम-गीत वह जातीय आशु कवित्व है, जो कर्म या क्रीड़ा के ताल पर रचा गया है। गीत का उपयोग जीवन के महत्त्वपूर्ण समाधान के अतिरिक्त मनोरंजन भी है। स्त्री-प्रकृति में गार्हस्थ्य कर्म विधान की जो स्वाभाविक प्रेरणा है, उससे गीतों की रचना का अटूट संबंध है। स्त्रियाँ अपना शारीरिक श्रम हल्का करने के लिए गीत गाती हैं। इसके अलावे जन्म, मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाह, पर्व-त्योहार आदि अवसरों पर गाए जाने वाले गीतों में उल्लास तथा उमंग की प्रधानता रहती है। वैसे स्त्री-प्रकृति का अनुकरण करते हुए पुरुषों ने भी हल जोतने, नाव खेने तथा पालकी ढ़ोने आदि कामों के समय गाए जाने वाले गीतों की रचना की, परन्तु ग्राम-गीतों की प्रकृति स्त्रैण ही रही, पुरुषत्व का प्रभाव नहीं जम सका। कारण कि स्त्रियों के गीतों में कोमलता का भाव है, जबकि पुरुषों के गीतों में युद्ध की युद्धघोषणा का भाव। इस प्रकार ग्राम-गीतों में प्रेम एवं युद्ध का वर्णन मिलता है। अतः ग्राम-गीत हृदय की वाणी है, मस्तिष्क की ध्वनि नहीं।
लेखक के अनुसार, ग्राम-गीतों से ही काल्पनिक तथा वैचित्र्यपूर्ण कविताओं का विकास हुआ है और यही गीत क्रमशः सभ्य जीवन के अनुक्रम से कला-गीत के रूप में विकसित हो गया। ग्राम-गीत की रचना में जिस प्रकृति और संकल्प का विधान था, कलागीत में उसकी उपेक्षा करना समुचित न माना गया। कला-गीत संस्कृत तथा परिष्कृत होने के बावजूद ग्राम-गीतों के संस्कार से मुक्ति नहीं पा सका। इसका कारण यह है कि जबतक मानव प्रकृति को विषय मानकर काव्य रचनाएँ की जाती रहेंगी, तब तक यह संभव नहीं है। ग्राम-गीत की रचना की स्त्रैण प्रकृति कला गीत में आकर कुछ पौरूषपूर्ण हो गई। अतः ग्राम-गीत में स्त्री की ओर से पुरुष के प्रति प्रेम की जो आसन्नता थी, वह कला गीत में बहुधा पुरुष के उपक्रम के रूप में परिवर्तित होने लगी। राजा-रानी, राजकुमार या राजकुमारी अथवा एक विशिष्ट वर्ग के नायक को लेकर जो काव्य-रचना की गई, इसका मुख्य कारण यह है कि वैसे विशिष्ट व्यक्तियों के प्रति साधारण जनता के हृदय पर उनके महत्त्व की प्रतिष्ठा बनी हुई थी। ऐसे चरित्र को लेकर काव्य रचना करने में रसोत्कर्ष का काम सामाजिक धारणा के बल पर चल जाता था, फलतः कवि की प्रतिभा अपने चरित्र नायक की विशिष्टता सिद्ध करने में नष्ट हो जाता है। ग्राम-गीत की अब यह प्रवृत्ति काव्य-गीत में भी चलने लगी है। लेखक का मानना है कि एक दुःखी भिखारिणी भी हृदय की उच्चता में रानी को मात दे सकती है। इसलिए जैसे-जैसे उच्च वर्ग के प्रति विशिष्टता का भाव घटने लगा, निम्न वर्ग के प्रति हमारे हृदय में आदर का भाव बढ़ने लगा । हृदय की उच्चता या विशालता चाहे किसी में हो, उसका वर्णन करना ही कवि-कर्म है। ग्राम-गीत में दशरथ, राम, कौशल्या, सीता, लक्ष्मण आदि के नामों की चर्चा है। जैसे श्वसुर के लिए दशरथ, पति के लिए राम, सास के लिए कौशल्या तथादेवर के लिए लक्ष्मण सर्वमान्य हैं। ऐसे वर्णन कला-गीतों में चाहे विशेष महत्त्व प्राप्त न करें, किंतु ग्राम-गीत के ये मेरुदंड माने जाते हैं। मानव जीवन का पारस्परिक संबंध-सूत्र कुछ ऐसा विचित्र है कि जिस बात को हम एक समय और एक देश में बुरा समझते हैं। उसी बात को दूसरे समय तथा दूसरे देश में अच्छा मान लेते हैं। जिस प्रकार वैचित्र्यवाद को हमने अबुद्धिवाद कहकर तिरस्कृत किया, वहीं पश्चिमी काव्य जगत् में रोमांस के नाम पर फल-फूलकर अपने सौरभ से पूर्व को भी आकर्षित करने लगा। प्रेम-दशा जितनी व्यापकत्व विधायिनी होती है, जीवन में उतनी श्रेष्ठ कोई स्थिति नहीं होती। इसीलिए प्रेमिका अथवा प्रेमी प्रकृति के साथ अपने जीवन का जैसा साहचर्य मानते हैं, वैसा और कोई नहीं। मनोविज्ञान का यह तथ्य काव्य में एक प्रणाली के रूप में समाविष्ट कर लिया गया है। प्रिय के अस्तित्व की सृष्टि-व्यापिनी भावना से जीवन और जगत की कोई वस्तु अलग नहीं रह सकती, क्योंकि प्राण-भक्षक को भी रक्षक समझने की शक्ति प्रेम की शक्ति में है।
ग्राम-गीतों में ऐसे वर्णन बहुत हैं, जहाँ नायिका-अपने प्रेमी की खोज में बाघ, भालू, साँप आदि से पता पूछती चलती है। आदि कवि वाल्मीकि ने विरह-विह्वल राम के मुख से सीता की खोज के लिए न जाने कितने पशु-पक्षी, पेड़-पौधे आदि से पता पुछवाया है। सीता का पता लगाने के लिए हनुमान को दूत बनाया गया। इसके बाद मेघदूत, पवनदूत, हंसदूत, भ्रमर दूत आदि कितने दूत प्रेम-संभार के लिए आ धमके। इसलिए वैज्ञानिक युग में टेलिफोन, टेलीग्राम, रेडियो आदि को भी दूत बनने की मर्यादा मिलनी चाहिए । कलागीतों में पशु-पक्षी, लता-द्रुम आदि से जो प्रश्न पूछे गए हैं, उनके उत्तर में वे प्रायः मौन रहे हैं। विरही याक्ष का मेघदूत भी मौन ही रहा है, किंतु ग्राम-गीत का दूत मौन नहीं रहा है।
अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर
पाठ के साथ :
प्रश्न 1. ‘ग्राम- गीत का मर्म’ निबंध में व्यक्त सुधांशु जी के विचारों को सार रूप में प्रस्तुत करें ।
उत्तर- ‘ग्राम-गीत का मर्म’ शीर्षक निबंध में सुधांशुजी ने ग्राम- गीत के मर्म का उद्घाटन करते हुए काव्य और जीवन में उसके महत्त्व का निरूपण किया है। ग्राम गीत का उद्भव और उसकी प्रकृति का अनुसंधान करते हुए इन्होंने प्रतिपादित किया है कि जीवन की शुद्धता और भावों की सरलता का जितना मार्मिक वर्णन ग्राम-गीतों में मिलता है, उतना परवर्ती कला-गीतों में नहीं । तात्पर्य यह है कि ग्राम-गीत ही कला-गीतों का मेरूदंड है।
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प्रश्न 2. जीवन का आरंभ जैसे शैशव है, वैसे ही कला-गीत का ग्राम-गीत है । लेखक के इस कथन का क्या आशय है ?
उत्तर–संकेत : पृष्ठ 30 पर आशय संख्या (1) देखें ।
प्रश्न 3. गार्हस्थ कर्म विधान में स्त्रियाँ किस तरह के गीत गाती हैं?
उत्तर — गार्हस्थ्य कर्म – विधान में स्त्रियाँ चक्की पीसते समय, धान रोपते या कूटते समय, चर्खा कातते समय अपने शारीरिक श्रम को हल्का करने के लिए अथवा मनोरंजन के लिए गीत गाती हैं। इनके अतिरिक्त जन्म, मुंडन यज्ञोपवीत, विवाह, पर्व-त्योहार आदि अवसरों पर उल्लास एवं उमंगयुक्त गीत अपना प्रेम प्रकट करने के लिए गाती हैं।
प्रश्न 4. मानव जीवन में ग्राम-गीतों का क्या महत्त्वं हैं ?
उत्तर—मनुष्य ‘साधारणतः अपनी लालसा, वासना, प्रेम, घृणा, उल्लास, विषाद को समाज की मान्य धारणाओं से ऊपर नहीं उठा सका है और अपनी हृदयगत भावनाओं को प्रकट करने में कृत्रिम शिष्टाचार का प्रतिबंध भी नहीं माना है। मानव-जीवन में ग्राम-गीत का अति महत्त्व है क्योंकि इससे सामाजिक परिवेश का पता चलता है तथा मनोरंजन होता है। साथ ही, इन गीतों के माध्यम से हर्ष एवं शोक की जानकारी मिलती है । ये गीत सामाजिक संबंधों के महत्त्वपूर्ण अंग हैं ।
प्रश्न 5. ‘ ग्रामं गीत हृदय की वाणी है, मस्तिष्क को ध्वनि नहीं ।” आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर- संकेत : पृष्ठ 30 पर आशय संख्या (2) देखें |
प्रश्न 6. ग्राम-गीत की प्रकृति क्या है?
उत्तर – ग्राम – गीत की प्रकृति स्त्री – प्रकृति है । इन गीतों का मुख्य विषय पारिवारिक जीवन है । गार्हस्थ्य कर्म-विधान की जो स्वाभाविक प्रेरणा है, उससे गीतों की रचना का अटूट संबंध है । इसकी उद्भावना व्यक्तिगत जीवन के उल्लास-विषाद को प्रकट करने के लिए हुई । गृह कार्य में व्यस्त महिलाएँ अपने हृदय के भावों को प्रकट करने के लिए तथा अपनी थकावट दूर करने के लिए गीत गाती हैं ।
प्रश्न 7. कला-गीत और ग्राम-गीत में क्या अंतर है?
उत्तर— जीवन का आरंभ जैसे शैशव है, वैसे ही कला-गीत का प्रारम्भ ग्राम-गीत हैं । लेखक का कहना है कि ग्राम- कि ग्राम-गीतों से ही काल्पनिक तथा वैचित्र्यपूर्ण कविताओं का विकास हुआ है, किंतु दोनों में अन्तर है ।
ग्राम-गीत की उद्भावना व्यक्तिगत जीवन के उल्लास एवं विषाद को लेकर हुई है, लेकिन उनकी सारी वैयक्तिक सत्ता समष्टि में तिरोहित हो गई। ग्राम-गीत भाव प्रधान होते हुए भी अपरिष्कृत हैं, क्योंकि ग्रामीण महिलाओं द्वारा उद्गीत है, जबकि कला-गीतं सुसंस्कृत एवं परिष्कृत हैं । इनमें भाव के साथ भाषा की शुद्धता का भी ध्यान रखा गया है । ग्राम-गीत स्त्री-प्रकृति प्रधान है जबकि कला-गीत पुरुषत्व प्रधान । अतः स्त्री और पुरुष रचयिता के दृष्टिकोण में जो सूक्ष्म और स्वाभाविक भेद हो सकता है, वही भेद ग्राम – गीत एवं कला-गीत में है ।
प्रश्न 8. ‘ग्राम-गीत का ही विकास कला-गीत में हुआ है ।’ पठित निबंध को ध्यान में रखते हुए उसकी विकास प्रक्रिया पर प्रकाश डालें ।
उत्तर — ग्राम-गीत वह जातीय आशु कवित्व है, जो कर्म या क्रीड़ा के ताल पर रचा गया है । जीवन में गीतों का अति महत्त्व है । मानव सामाजिक प्राणी है। वह अपना हर्ष- विषादु गीतों के माध्यम से प्रकट करता है । कला-गीत के अन्तर्गत मुक्तक और प्रबंध काव्य दोनों का समावेश है । इनके इतिहास का अनुसंधान करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि ग्राम-गीतों से काल्पनिक तथा वैचित्र्यपूर्ण कविताओं का विकास हुआ है तथा सभ्य जीवन के अनुक्रम से कला-गीत के रूप में विकसित हो गया है। इसका संस्कार अब तक विद्यमान है । ग्राम-गीत व्यक्तिगत उच्छ्वास और वेदना को लेकर उद्गीत किया गया; किंतु इन भावनाओं ने समष्टि का इतना प्रतिनिधित्व किया कि उनकी सारी वैयक्तिक सत्ता समष्टि में तिरोहित हो गई। इस प्रकार इसे लोक गीत की संज्ञा प्राप्त हुई। कला-गीत अत्यधिक संस्कृत और परिष्कृत होने के बाद भी कला गीत अपने मूल ग्राम-गीत के संस्कार से मुक्ति न पा सका। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ग्राम-गीत का ही विकास कला – गीत में हुआ है ।
प्रश्न 9. ग्राम-गीतों में प्रेम-दशा की क्या स्थिति है ? पठित निबंध के आधार पर उदाहरण देते हुए समझाइए ।
उत्तर – प्रेम – दशा जितनी, व्यापकत्व – विधायिनी होती है, जीवन में उतनी और कोई स्थिति नहीं । प्रेम या विरह में समस्त प्रकृति के साथ जीवन की जो समरूपता देखी जाती है, वह क्रोध, शोक, उत्साह, विस्मय तथा जुगुप्सा में नहीं । विरहाकुल पुरुष पशु-पक्षी, लता – द्रुम सबसे अपनी वियुक्त प्रिया का पता पूछने लगता है, किंतु क्रुद्ध मनुष्य अपने शत्रु का पता पूछता है । तात्पर्य कि प्रेम की दशा ऐसी होती है जिसमें मित्र-शत्रु, चेतन- अचेतन में भेद की भावना नष्ट हो जाती है तथा प्रिय के अस्तित्व की सृष्टि व्यापिनी भावना से जीवन और जगत् की कोई वस्तु अलग नहीं रह पाती । अतः इस प्रेम की दशा में प्राण-भक्षक को भी प्राण-रक्षक मान लिया जाता है।
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प्रश्न 10. ‘प्रेम या विरह में समस्त प्रकृति के साथ जीवन की जो समरूपता देखी जाती है, वह क्रोध, शोक, विस्मय, उत्साह, जुगुप्सा आदि में नहीं ।’ आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर- संकेत : पृष्ठ 31 पर व्याख्या संख्या (4) देखें तथा ऊपर की तीन पंक्तियाँ को छोड़कर लिखें ।
प्रश्न 11. ग्राम – गीतों में मानव जीवन के किन-किन प्राथमिक चित्रों के दर्शन होते हैं ?
उत्तर – ग्राम – गीतों में मानव जीवन के उन प्राथमिक चित्रों के दर्शन होते हैं, जिनमें मनुष्य साधारणतः अपनी लालसा, वासना, प्रेम, घृणा, उल्लास, विषाद को समाज की मान्य धारणाओं से ऊपर नहीं उठा सका है। अपनी हृदयगत भावनाओं को प्रकट करने में कृत्रिम शिष्टाचार के बंधनों को तोड़ प्रेम, वीरता, क्रोध, कर्त्तव्य का भी बहुत ही रमणीय अन्तर्विरोध दिखाया है।
प्रश्न 12. गीत का उपयोग जीवन के महत्त्वपूर्ण समाधान के अतिरिक्त साधारण मनोरंजन भी है | निबंधकार ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर—निबंधकार का कहना है कि मनोरंजन के विविध रूप तथा विधियाँ हैं । अनाज पीसते समय, धान रोपते समय, धान कूटते समय, चर्खा कातते समय, किसी पर्व-त्योहार में जाते समय, अपने शरीर श्रम को हल्का करने के लिए स्त्रियाँ गीत गाती हैं । परिश्रम के कारण आई थकावट से निजात पाया जा सके और चित्त को मनोरंजन में संलग्न किया जा सके। इसीलिए निबंधकार ने ऐसा कहा है कि गीत का उपयोग जीवन के महत्त्वपूर्ण समाधान के अतिरिक्त साधारण मनोरंजन भी हैं ।
प्रश्न 13. ग्राम-गीतों के मुख्य विषय क्या हैं? निबंध के आधार पर उत्तर दें
उत्तर—ग्राम-गीतों का मुख्य विषय पारिवारिक जीवन है । प्रेम, विवाह तथा पतोहू और सास-ससुर के बर्ताव, माँ, भाई, बहन का स्नेह आदि बातें ही ज्यादातर गीतों में गाई जाती हैं । इसके अतिरिक्त जन्म, मुंडन, विवाह, पर्व-त्योहार के अवसर पर उल्लास एव उमंगपूर्ण पारिवारिक जीवन से संबद्ध गीत गाए जाते हैं ।
प्रश्न 14. किसी विशिष्ट वर्ग के नायक को लेकर जो काव्य रचना की जाती थी, वह किन स्वाभाविक गुणों के कारण साधारण जनता के हृदय पर उनके महत्त्व की प्रतिष्ठा बनती थी ?
उत्तर – राजा-रानी, राजकुमार अथवा राजकुमारी या ऐसे ही समाज के किसी विशिष्ट वर्ग के नायक को लेकर काव्य-रचना की जो परम्परा प्राचीनकाल से ही चली आ रही थी तथा संस्कृत साहित्य में इसका विशेष महत्व था, उसका मुख्य कारण यह था कि वैसे विशिष्ट व्यक्तियों के लिए साधारण जनता के हृदय पर उनके महत्त्व की प्रतिष्ठा बनी हुई थी, क्योंकि उनमें धीरोदात्तता, दक्षता, तेजस्विता, रूढवंशता, वाग्मिता आदि गुण स्वाभाविक माने जाते थे। ऐसे चरित्र को लेकर काव्य-रचना करने में रसोत्कर्ष की सृष्टि होता था । इन स्वाभाविक गुणों के कारण साधारण जनता के हृदय पर उनके महत्त्व की प्रतिष्ठा बनती थी ।
प्रश्न 15 ग्राम गीत की कौन-सी प्रवृत्ति अब काव्य-गीत में भी चलने लगी है ?
उत्तर- लेखक का कहना है कि काव्य रचना करने में रसोत्कर्ष का काम बहुत कुछ सामाजिक धारणा पर आश्रित था; क्योंकि साधारण जीवन के चित्रण में कवि की प्रतिभा का बहुत-सा अंश अपने चरित्र नायक में विशिष्टता प्राप्त कराने की चेष्टा में ही खर्च हो जाता है। इसलिए हृदय की उच्चता या विशालता किसी में हो, चाहे वह राजा हो या भिखारी, उसका वर्णन करना कवि-कर्म माना गया । अतः उच्च वर्ग के प्रति जैसे-जैसे विशिष्टता का भाव घटने लगा वैसे-वैसे निम्न वर्ग के प्रति आदर का भाव हमारे हृदय में जमने लगा और काव्य में स्थान प्राप्त होने लगा ।
प्रश्न 16. ग्राम-गीत के मेरुदंड क्या हैं
उत्तर — ग्राम-गीत में ससुर के लिए दशरथ, पति के लिए राम, सास के लिए कौशल्या या यशोदा तथा देवर के लिए लक्ष्मण को जन-समाज के बीच संबंध का प्रतिनिधित्व कराया गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि हमारा वह पिछला संस्कार भी है, जो धार्मिक महाकाव्यों ने हमारे चित्त पर डाला है । इसीलिए एक दरिद्र गृहिणी भी अपने भोजन का अन्न सोने के सूप में फटककर उसे साफ करती है। अतः दरिद्रता के बीच संपत्तिशालीनता का यह रूप ग्राम-गीत के मेरुदंड हैं ।
प्रश्न 17. ‘प्रेम- दशा जितनी व्यापक विधायिनी होती है, जीवन में उतनी और कोई स्थिति नहीं ।’ प्रेम के इस स्वरूप पर विचार करें तथा आशय स्पष्ट करें ।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ महान कला समीक्षक लक्ष्मी नारायण सुधांशु द्वारा लिखित ‘ग्राम- गीत का मर्म’ शीर्षक निबंध से ली गई हैं । इन पंक्तियों में लेखक ने प्रेम की दशा का मार्मिक वर्णन किया है।
लेखक का कहना है कि प्रेम की दशा ऐसी व्यापक होती है कि इसमें भिन्नता अर्थात् भेदभाव की भावना छूमंतर हो जाती है। व्यक्ति एक-दूसरे के साथ एकाकार हो जाता है सारा संसार एक समान प्रतीत होता है । अतः लेखक के कहने का आशय है कि प्रेम रस से अभिसिक्त मानव का हृदय गंगाजल के समान निर्मल हो जाता है । पशु-पक्षी अपने- प्रेमी जन के वियोग में व्यथित हो जाते हैं । प्रेम अंधा होता है। इसमें जाति, धर्म, अपना- परांग के सारे संकुचित विचार प्रेम की कल-कल धारा में विलीन हो जाते हैं। प्रिय के अस्तित्व की सृष्टि-व्यापी भावना से जीवन और जगत् की कोई वस्तु अलग नहीं रह पाती। जीवन का यह उत्कर्ष तथा विकास प्रेम-दशा के अतिरिक्त अन्यत्र सुलभ नहीं । प्रेम में ही प्राण-भक्षक को प्राण-रक्षक समझने की शक्ति है ।
प्रश्न 18. ‘कला-गीतों में पशु-पक्षी, लता-द्रुम आदि से जो प्रश्न पूछे गए हैं, उनके उत्तर में वे प्रायः मौन रहे हैं। विरही यक्ष का मेघदूत भी मौन ही रहा है ।’ लेखक के इस कथन से क्या आप सहमत हैं? यदि हैं तो अपने विचार दें ।
उत्तर – कला-गीत कल्पना प्रधान होता है। इसमें लेखक या कवि अपने विचारों अथवा भावों को कल्पना के सहारे मूर्त रूप प्रदान करता है । आदि कवि वाल्मीकि ने विरह-विह्वल राम के मुख से सीता की खोज के लिए न जाने कितने पशु-पक्षी, लता – द्रुम आदि से पता पुछंवाया है। सीता के अनुसंधान के लिए हनुमान को दूत बनाकर भेजा जो काव्य में इस परिपाटी का मार्गदर्शक बन गया। इस प्रकार इन दूतों की परंपरा ही चल पड़ी। लेखक के कहने का भाव यह है कि पशु-पक्षी, लता-द्रुम आदि जीवन के अनादि सहचर हैं, लेकिन प्रकृति का यह साहचर्य सभ्य जीवन से दूर हट गया है। अपने सुख- दुख के भावों को उनपर आरोपित कर उन्हें स्पंदित करते हैं । लेखक के इस विचार से हम इसलिए सहमत हैं क्योंकि काव्य के माध्यम से व्यक्ति में रसोद्रेक किया जाता है, ताकि काव्य का कल्पना – तत्व, भाव तत्व में अन्तर्निहित हो सके। इसी कारण पशु-पक्षी, लता-द्रुम, यक्ष का मेघदूत आदि मौन रहे हैं क्योंकि इनके माध्यम से विरह की चरमावस्था को प्रतिपादित किया गया है । अतः लेखक के अनुसार, प्रेम या विरह की अवस्था अंति प्रखर होती है । व्यक्ति अपना मानसिक तनाव दूर करने के लिए समस्त प्रकृति के साथ साहचर्य स्थापित कर लेता है । उसकी निजत्व – भावना लुप्त हो जाती है ।
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प्रश्न 19. ‘ग्राम- गीत का मर्म’ निबंध के इस शीर्षक में लेखक ने ‘मर्म’ शब्द का प्रयोग क्यों किया है? विचार कीजिए ।
उत्तर- लेखक ने निबंध में ‘मर्म’ शब्द का प्रयोग ग्राम-गीतों के महत्त्व को प्रतिपादित करने के लिए किया है । ग्राम-गीत, कला – गीत का आरंभिक रूप है । यह हृदय की वाणी है, मस्तिष्क की ध्वनि नहीं । जीवन की शुद्धता और भावों की सरलता का मार्मिक वर्णन ग्राम-गीतों में मिलता है । गार्हस्थ्य कर्म-विधान की स्वाभाविक प्रेरणा है ग्राम-गीत व्यक्तिगत उच्छ्वास और वेदना को लेकर उद्गीत किया गया है । अतः ग्राम- गीत के मर्म से तात्पर्य ग्रामीण परिवेश का स्वाभाविक चित्रण एवं हार्दिक उद्गार है 1
नोट : पाठ के आस-पास के प्रश्नों के उत्तर छात्र स्वयं करें ।
भाषा को बात (व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर ) :
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय बताएँ :
रमणीय, शुद्धता, जातीय, प्रधानता, पुरुषत्व, मार्मिकता, बर्ताव, अपूर्वता, स्वाभाविक, वर्तमान, प्रतिनिधित्व, शास्त्रीय, मधुरता ।
उत्तर :
रमण + ईय = रमणीय
शुद्ध + ता = शुद्धता
जाति + ईय = जातीय
प्रधान + ता = प्रधानता
पुरुष + त्वं = पुरुषत्व
मार्मिक + ता = मार्मिकता
वार्ता + आव = बर्ताव
अपूर्व + ता = अपूर्वता
स्वभाव + इक = स्वाभाविक
वर्त + मान = वर्तमान
प्रतिनिधि + त्व = प्रतिनिधित्व
शास्त्र + ईय शास्त्रीय
मधुर + ता = मधुरता
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग बताएँ :
अपूर्व, अभिप्राय, परिश्रम, अतिरिक्त, उपलक्ष्य, अनुसंधान, विशिष्टता !
उत्तर : अ (न) + पूर्व = अपूर्व
अभि + प्राय = अभिप्राय
परि + श्रम = परिश्रम
अति + रिक्त = अतिरिक्त
उप + लक्ष्य = = उपलक्ष्य
अनु + संधान = अनुसंधान
वि + शिष्टता = विशिष्टता
प्रश्न 3. समास विग्रह करें :
उत्तरोत्तर, अटूट, पुरूषोत्तम, राजकुमार, राजा-रानी, संस्कारवश, ग्राम्यगीत, सास- श्वसुर, दशरथ, फल-फूल, मनोविज्ञान |
उत्तर :
उत्तरोत्तर = उत्तर से उत्तर अर्थात् धीरे-धीरे = अव्ययीभाव
अटूट = जो नहीं टूटे = नञ समास
पुरुषोत्तम = पुरुषों में उत्तम = सप्तमी तत्पुरुष
राजकुमार = राजा का कुमार = षष्ठी तत्पुरुष
राजा-रानी = राजा और रानी = द्वन्द्व समास
संस्कारवश = संस्कार के अधीन = षष्ठी तत्पुरुष
ग्राम्यगीत = गाँवों में गाए जाने वाले गीत = सप्तमी तत्पुरुष
सास-श्वसुर = सास और श्वसुर = द्वन्द्व
दशरथ = दश हैं जिसे रथ = = द्विगु
फल-फूल = फल और फूल = द्वन्द्व
मनोविज्ञान = मन का विज्ञान = षष्ठी तत्पुरुप
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प्रश्न 4. संधि-विच्छेद करें :
उल्लास, संस्कृति, उद्दीप्त, समाविष्ट, उच्छ्वास, उद्गीत
उत्तर : उल्लास = उत् + लास
संस्कृति = सम् + कृति
उद्दीप्त = उत् + दीप्त
समाविष्ट = सम् + आविष्ट
उच्छवास = उत् + श्वास
उद्गीत = उद् + गीत
प्रश्न 5. निम्नलिखित विशेषणों से संज्ञा बनाएँ :
स्त्रैण, दरिद्र, पारस्परिक, शास्त्रीय ।
उत्तर : स्त्रैण = स्त्री
दरिद्र = दरिद्रता
पारस्परिक = परस्पर
शास्त्रीय = शास्त्र
प्रश्न 6. पाठ से कारक के परसर्ग रहित एवं परसर्ग सहित उदाहरण चुनें और कारक का रूप स्पष्ट करें ।
उत्तर : परसर्ग सहित परसर्ग रहित
काव्य का = संबंध कारक कला-गीत = कला का गीत
ग्राम-गीतों में = अधिकरण कारक ग्राम-गीत = ग्राम का गीत
पुरुषत्व = पौरूष का भाव पुरुषों ने = कर्त्ता कारक
हमने = कर्त्ता कारक संबंध-सूत्र = संबंध का सूत्र
देवर के लिए = संप्रदान कारक
प्रश्न 7. अर्थ की दृष्टि से वाक्यों की प्रकृति बताएँ:
(क) कितनी दूर तक जा सका है ?
(ख) क्या जीवन का आरंभ शैशव है ?
(ग) कला-गीत में उनकी उपेक्षा करना समुचित न माना गया ।
(घ) विरही यक्ष का मेघदूत भी मौन ही रहा है, किंतु ग्राम-गीत का दूत मौन नहीं रहा है ।
उत्तर- (क) प्रश्नवाचक, (ख) प्रश्नवाचक, (ग) विधान वाचक, (घ) विधान वाचक ।
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