इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 12 अंग्रेजी का आठवां पाठ Fire Hymn Line by Line Explanation के प्रत्येक पंक्ति के हिन्दी व्याख्या को पढ़ेंगे।
FIRE-HYMN
Keki N. Daruwalla
KEKI N. DARUWALLA (b. 1937), the recipient of Sahitya Akademi Award (1984) and Commonwealth Poetry Award, is a landscape poet of eminence and a well known writer of short stories. His poetry is, in his own wards, ‘a totally impressionistic recording of subjective responses’. He claims his poems to be ‘rooted in the rural landscape’ and hence ‘earthy’. He shuns sophistication, as he thinks that it, ‘while adding gloss, takes away the power of verse’. The themes of his poetry are love, death, domination, cynicism, plight of human society and violence. He writes with intensity and vigour involved in poetic creation. Since he had been in police service, violence is unavoidable in his poetry. His important volumes of verse include Under Orion (1970), Apparition in April (1971) and Crossing of Rivers (1976)
FIRE-HYMN
The burning ghat erupted phosphorescence:
and wandering ghost lights frightened passers-by
as moonlight scuttled among the bones.
Once strolling at dawn past river-bank and ghat
we saw embers losing their cruel redness
to the grey ash that swallows all, half-cooked limbs
bore witness to the fire’s debauchery.
My father said, “You see those half-burnt fingers
And bone-stubs? The fire at times forgets its dead!”
A Zoroastrian I, my child-fingers clenched
Into a little knot of pain,
I swore to save fire From the sin of forgetfulness.
It never forgot, and twenty years since
As I consigned my first-born to the flames
The nearest Tower of Silence was a thousand miles –
The firm hymn said to me, “You stand forgiven,”
Broken, yet rebellious, I swore this time
To save it from the sin of forgiving.
Fire-Hymn
केकी एन. दारूवाला (जन्म 1937) साहित्य अकादमी पुरस्कार (1984) और कॉमन वेल्थ पोएट्री अवार्ड प्राप्तकर्ता, प्रसिद्ध प्राकृतिक छटा के कवि और जाने-माने लघु कथाओं के लेखक हैं।
उनकी कविता, उनके अपने शब्दों में व्यक्तिगत प्रतिक्रियाओं से संबंधित पूरी तरह से प्रभावशाली रिकॉर्डिंग है।
वह दावा करते हैं कि उनकी कविताएँ ग्रामीण परीदृश्य के आधार पर होती है और इसलिए सांसारिक होती है।
वह बेकार के प्रयोग से बचते हैं, जैसा कि वह सोचते हैं कि कविताओं की शक्ति, चमक डालने के चक्कर में खत्म हो जाती है।
उनकी काव्य का विषय प्रेम, मृत्यु, अधिकार, उदासीमत, मानव समाज की दुर्दशा और हिंसा है।
वह गहनता से लिखते हैं और काव्य रचना में जोश शामिल होता है।
चूँकि वह पुलिस सेवा में रहे हैं, इसलिए हिंसा उनकी कविताओं में अनिवार्य है।
उनकी महत्वपूर्ण कविताओं में अंडर ओरिअन (1970), अपारटिशन इन अप्रिल (1971) और क्रॉसिंग ऑफ रिवर शामिल है।
फायर हिम्न
जलता हुआ घाट, आग की लपटों से धधक रही थी।
और उसके इधर-उधर भूत की रौशनी (भटकती आत्मा) राहगीरों को डरा रही थी।
जैसे चन्द्रमा की राशनी, हड्डीयों के बीच से गुजर रही थी।
एक बार मैं नदी के किनारे और घाट से होकर गुजर रहा था, तो हमने अंगारे को देखा, जो सबकुछ निगलकर लालीमापन राख में परिवर्तित होकर,
अर्थात
आग की अंगारे मृतकों को निर्दयीतापूर्वक जला रहा था।
आधी जली हुई अंगुलियाँ, आग के इस अनैतिक व्यवहार की गवाह थे। अर्थात आग अपने मृतकों की अंगुलियों को आधी जली हुई रख दिए थे। जो आग की निर्दयता की गवाह थे।
मेरे पिताजी ने कहा, ‘क्या तुम उन आधी जली हुई अंगुलियों और अधजली हुई हड्डीयों को देख रहे हो?‘
आग कभी-कभी अपने मृतकों को भूल जाती है। अर्थात कवि के कहने का भाव है कि आग अपने मृतकों से निर्दयतापूर्वक व्यवहार करती है, जिससे वह शरीर के कुछ भाग बिना जलाए हुए ही छोड़ देती है।
मैं पारसी हूँ, मेरी बचपन की अँगुलियां दर्द से कड़क गयी थी। मैं आग की भुल्लक्कड़पन की पाप से रक्षा करने के लिए शपथ लिया।
अर्थात
कवि के कहने का भाव है कि आग अपने मृतकों को भूल जाता है। वह शरीर का कुछ हिस्सा अधजला ही छोड़ देता है। वह अपने मृतकों के साथ निर्दयता से व्यवहार करता है। अतः कवि शपथ लेते हैं कि मैं आग के इस भूल से रक्षा करूँगा।
मैं कभी नहीं भूला हूँ कि 21 वर्ष पहले मैंने अपने पहले बच्चे को आग के हवाले कर दिया था। क्योंकि टॉवर ऑफ साइलेंस हजारों मिल दूर था।
अग्नि देवता ने मुझसे कहा था ‘ तुम्हें माफ किया जाता है‘
मैं टूट चूका था, फिर भी विद्रोही भावना से मैं इस समय आग की क्षमादान की पाप से रक्षा करने का शपथ लिया।
अर्थात कवि कहता है कि आग, जो अपने मृतकों को जलाकर, फिर क्षमा करके जो पाप करता है। उससे मैं रक्षा करूँगा। यानी मैं अपने बच्चे को कभी आग के हवाले नहीं करूँगा।
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