इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के कक्षा 10 इतिहास के पाठ एक ‘यूरोप में राष्ट्रवाद (Europe me rashtravad class 10th solutions and notes)’ के नोट्स और सभी प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
1. यूरोप में राष्ट्रवाद
राष्ट्रवाद– राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है जो किसी विशेष भौगोलिक, सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता का वाहक बनती है।
अर्थात
राष्ट्रवाद लोगों के किसी समूह की उस आस्था का नाम है जिसके तहत वे ख़ुद को साझा इतिहास, परम्परा, भाषा, जातीयता या जातिवाद और संस्कृति के आधार पर एकजुट मानते हैं।
राष्ट्रवाद का अर्थ– राष्ट्र के प्रति निष्ठा या दृढ़ निश्चय या राष्ट्रीय चेतना का उदय,उसकी प्रगति और उसके प्रति सभी नियम आदर्शों को बनाए रखने का सिद्धांत।
अर्थात
अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम की भावना को राष्ट्रवाद कहते हैं।
बीजारोपण– राष्ट्रवाद की भावना का बीजारोपण यूरोप में पुनर्जागरण के काल (14वीं और 17वीं शताब्दी के बीच) से ही हो चुका था। परन्तु 1789 ई॰ की फ्रांसीसी क्रांति से यह उन्नत रूप में प्रकट हुई।
यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास फ्रांस की राज्यक्रांति और उसकेबाद नेपोलियन के आक्रमनों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
फ्रांसीसी क्रांति ने राजनीति को अभिजात्य वर्गीय (ऐसे उच्चतम लोगों का वर्ग, जिनमें जमींदार, नवाब, महाजन और रईस लोग होते हैं।) परिवेश से बाहर कर उसे अखबारों, सड़कों और सर्वसाधारण की वस्तु बना दिया।
वियना कांगेस क्या है ?
यूरोपीय देशों के राजदूतों का एक सम्मेलन था जो सितम्बर 18 से 14 जून 1815 को आस्ट्रिया की राजधानी वियना में आयोजित किया गया था।
नेपोलियन कौन था ?
नेपोलियन एक महान सम्राट था जिसने अपने व्यक्तित्व एवं कार्यों से पूरे यूरोप के इतिहास को प्रभावित किया।
अपनी योग्यता के बल पर 24 वर्ष की आयु में ही सेनापति बन गया।
उसने कई युद्धों में फ्रांसीसी सेना को जीत दिलाई और अपार लोकप्रियता हासिल कर ली फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और फ्रांस का शासक बन गया।
उदारवादी से क्या समझते हैं ?
उदारवादी लातिनी भाषा के मूल्य पर आधारित है जिसका अर्थ है ‘आजाद’
उदारवाद तेज बदलाव और विकास को प्राथमिकता देता है।
रूढ़ीवादी से क्या समझते हैं ?
ऐसा राजनीतिक दर्शन परंपरा, स्थापित संस्थाओं और रिवाजों पर जोर देता है और धीरे-धीरे विकास को प्राथमिकता देता है।
विचारधारा– एक खास प्रकार की सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण इंगित करने वाले विचारों का समुह विचारधारा कहलाता है।
यूरोप में राष्ट्रवादी चेतना की शुरुआत फ्रांस से होती है।
नेपोलियन का शासनकाल
जब नेपोलियन फ्रांस पर अपना शासन चलाना शुरू किया तो उन्होंने प्रजातंत्र को हटाकर राजतंत्र स्थापित कर दिया।
नगरिक संहिता या नेपोलियन की संहिता 1804
- कानून के समक्ष सबको बराबर रखा गया।
- संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित रखा गया।
- भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्क से मुक्ति दिलाई।
जागीरदारी– इसके तहत किसानों, जमींदारों और उद्योगपतियों द्वारा तैयार समान का कुछ हिस्सा कर के रूप में सरकार को देना पड़ता था।
16वीं शताब्दी से पहले यूरोपीय समाज दो वर्गों में विभाजित था।
कुलीन वर्ग उच्च वर्ग के थे, जो शासन के साथ सेना के उच्च पदों पर थे।
निम्न वर्ग में कृषक वर्ग आते थे, जो शोषित थे।
बीच में एक और वर्ग जुड़ गया। जिसे मध्यम वर्ग कहा गया।
वियना सम्मेलन– नेपोलियन के पतन के बाद यूरोप की विजयी शक्तियाँ ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में 1815 ई॰ में एकत्र हुई, जिसे वियना सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य फिर से पुरातन व्यवस्था को स्थापित करना था। इस सम्मेलन का मेजबानी आस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख ने किया।
इससे सम्मेलन के द्वारा इटली, जर्मनी तथा फ्रांस में पुरात्तन व्यवस्था स्थापित की गई।
फ्रांस में वियना व्यवस्था के तहत बूर्वों राजवंश को पुनर्स्थापित किया गया तथा लुई 18 वाँ फ्रांस का राजा बना।
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मेटरनिख युग– 1815 के वियना सम्मेलन क बाद एक तरफ नेपोलियन युग का अंत तथा मेटरनिख युग की शुरूआत हुई। जो 1848 तक चलती रही। 1815-48 तक के काल को मेटरनिख युग के नाम से जाना जाता है।
जुलाई 1830 की क्रांतिः इस क्रांति का मुख्य कारण लुई 18 वाँ द्वारा किए गए सुधारों के साथ छेड़-छाड़ करना तथा चार्ल्स-X का निरंकुश होना था। उसने फ्रांस में उभर रही राष्ट्रीयता की भावना को दबाने का कार्य किया। उसके द्वारा पोलिग्नेक को प्रधानमंत्री बनाया गया। इसने समान नागरिक संहिता को समाप्त कर अभिजात्य अर्थात उच्च वर्ग को विशेष आधिकारों से विभूषित किया। जिसके कारण सुधारवादियों ने इसका विरोध प्रारंभ कर दिया। चार्ल्स-ग् ने इस विरोध के प्रतिक्रिया में 25 जुलाई 1830 ई॰ को चार अध्यादेशों (कानून) के द्वारा उदार तत्वों का गला घोंटने का प्रयास किया। जिसके विरोध में पेरिस में क्रांति की लहर दौड़ गई और फ्रांस में 28 जून 1830 ई॰ को गृहयुद्ध आरम्भ हो गया। जिसे जुलाई 1830 की क्रांति कहते हैं।
परिणाम- चार्ल्स-ग् राजगद्दी छोड़कर इंग्लैंड पलायन कर गया और इस प्रकार फ्रांस में बूर्वो वंश के शासन का अंत हो गया। बूर्वो वंश के स्थान पर आर्लेयेंश वंश के शासक लुई फिलिप को शासक बनाया गया।
1830 की क्रांति का प्रभाव
इस क्रांति ने वियना क्रांग्रेस के प्रभाव को समाप्त किया।
इसका क्रांति ने अन्य देशों जैसे यूनान, पोलैंड तथा हंगरी के साथ पूरे यूरोप में राष्ट्रीयता तथा एकीकरण के लिए आंदोलन शुरू हो गए।
1848 की क्रांति
यह क्रांति आर्लेयेंस वंश के शासक लुई फिलिप के खिलाफ हुआ।
इस क्रांति का मुख्य कारण ‘स्वर्णिम मध्यम वर्गीय नीति‘ को समाप्त करना तथा गीजो को प्रधानमंत्री बनाना था।
लुई फिलिप ने पुँजीपति वर्ग के लोगों को साथ रखना पसंद किया, जिनकी संख्या बहुत कम थी।
लुई फिलिप ने गीजो को प्रधानमंत्री नियुक्त किया, जो कट्टर प्रतिक्रियावादी था।
प्रधानमंत्री गीजो किसी भी तरह के वैधानिक, सामाजिक और आर्थिक सुधारों के विरुद्ध था।
लुई फिलिप की विदेश नीति अच्छी नहीं थी।
इसके शासन काल में देश में भुखमरी एवं बेरोजगारी व्याप्त होने लगी, जिससे गीजो की आलोचना होने लगी।
सुधारवादियों ने 22 फरवरी 1848 ई० को पेरिस में थियर्स के नेतृत्व में एक विशाल भोज का आयोजन किया।
जगह-जगह अवरोध लगाए गए और लुई फिलिप को गद्दी छोड़ने पर मजबुर किया गया।
24 फरवरी को लुई फिलिप ने गद्दी त्याग किया और इंगलैंड चला गया।
उसके बाद नेशनल एसेम्बली ने गणतंत्र की घोषणा करते हुए 21 वर्ष से ऊपर के सभी व्यस्कों को मताधिकार प्रदान किया और काम के अधिकार की गारंटी दी।
1848 की क्रांति का प्रभाव
इस क्रांति ने न सिर्फ पुरातन व्यवस्था का अंत किया बल्कि इटली, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हालैंड, स्वीट्जरलैंड, डेनमार्क, स्पेन, पोलैंड, आयरलैंड तथा इंगलैंड प्रभावित हुए।
इटली का एकीकरण
एकीकरण का अर्थ- एकजुट होना।
इटली के एकीकरण में बहुत सारी धार्मिक, राजनीतिक और भौगोलिक समस्याएँ थी।
इसके अलावा आर्थिक और प्रशासनिक समस्याएँ भी मौजूद थीं। साथ ही विदेशी राष्ट्र ऑस्ट्रीया का हस्तक्षेप था।
इसके एकीकरण में नेपोलियन ने भी मख्य भूमिका निभाई तथा राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।
नेपोलियन के पतन (1814) के बाद वियना काँग्रेस (1815) द्वारा इटली को पुराने रूप में लाने के उद्देश्य से इटली के दो राज्यों पिडमाउण्ट और सार्डिनिया का एकीकरण कर दिया।
इस प्रकार इटली के एकीकरण की दिशा तय होने लगी।
यहाँ 1820 में नागरिक आंदोलन भी हुए।
इटली में एक गुप्त दल ‘कार्बोनरी‘ का गठन राजतंत्र को समाप्त करने के उद्देश्य से किया गया, जो छापामार युद्ध करती थी।
फ्रांस की 1830 की क्रांति से प्रभावित होकर इटली में भी नागरिक आंदोलन हुए लेकिन इसे ऑस्ट्रया के चांसलर मेटनरिख के द्वारा दबा दिया गया।
नागरिक आंदोलन का उपयोग कर मेजिनी उत्तरी तथा मध्य इटली को एकीकृत कर एक गणराज्य बनाना चाहता था, लेकिन मेटरनिख ने इन आंदोलनों को दबा दिया।
फलस्वरूप मेजिनी को इटली से पलायन करना पड़ा।
मेजिनी ‘कोर्बोनरी‘ दल का सदस्य था।
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इटली के एकीकरण में मेजिनी का योगदान
मेजिनी साहित्यकार, गणतांत्रिक विचारों के समर्थक और योग्य सेनापति था।
मेजिनी में आदर्शवादी गुण अधिक और व्यावहारिक गुण कम थे।
1831 में उसने ‘यंग इटली‘ की स्थापना की, जिसने नवीन इटली के निमार्ण में महत्वपूर्ण भाग लिया।
इसका उद्देश्य इटली प्रायद्वीप से विदेशी हस्तक्षेप समाप्त करना तथा संयुक्त गणराज्य स्थापित करना था।
1834 में ‘यंग यूरोप‘ नामक संस्था का गठन कर मेजिनी ने यूरोप में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन को भी प्रोत्साहित किया।
1848 में जब फ्रांस सहित पूरे यूरोप में क्रांति का दौर आया तो मेटरनिख को ऑस्ट्रीया छोड़कर जाना पड़ा।
इसके बाद इटली की राजनीति में पुनः मेजिनी का आगमन हुआ।
मेजिनी पूरे इटली का एकीकरण कर एक गणराज्य बनाना चाहता था, लेकिन सार्डिनिया-पिडमाउंट का शासक चार्ल्स एलबर्ट अपने नेतृत्व में सभी प्रांतो का विलय चाहता था।
पोप इटली को धर्मराज्य बनाना चाहता था।
इस तरह से विचारों के टकराव के कारण इटली के एकीकरण का मार्ग अवरूद्ध हो गया।
बाद में ऑस्ट्रीया द्वारा इटली के कुछ भागों पर आक्रमण किये जाने लगे जिसमें सार्डिनिया के शासक चार्ल्स एलबर्ट की पराजय हो गई।
ऑस्ट्रीया के हस्तक्षेप से इटली में जनवादी आंदोलन को कुचल दिया गया।
इस प्रकार मेजिनी की पुनः हार हुई और वह पलायन कर गया।
इटली के एकीकरण का द्वितीय चरण
इटली के एकीकरण के द्वितीय चरण में विक्टर इमैनुएल, काउंट कावूर तथा गैरीबाल्डी का अहम योगदान है।
विक्टर इमैनुएल :
1848 तक इटली में एकीकरण के लिए किए गए प्रयास असफल ही रहे।
इटली में सार्डिनिया–पिडमाउण्ट का नया शासक ‘विक्टर इमैनुएल’ राष्ट्रवादी विचारधारा का था और उसके प्रयास से इटली के एकीकरण का कार्य जारी रहा।
अपनी नीतियां के लागू करने के लिए विक्टर ने ‘काउंट कावूर’ को प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
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काउंट कावूर :
कावूर एक सफल कुटनीतिज्ञ एवं राष्ट्रवादी था। वह इटली के एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा ऑस्ट्रीया को मानता था।
इसलिए उसने ऑस्ट्रीया को पराजित करने के लिए फ्रांस के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया तथा क्रिमीया के युद्ध 1853-54 में फ्रांस के आग्रह के बिना शामिल हो गया।
युद्ध समाप्त होने के बाद पेरिस की शांति सम्मेलन में फ्रांस तथा ऑस्ट्रीया के साथ पिडमाउण्ट को भी बुलाया गया।
इस सम्मेलन में कावूर ने इटली में ऑस्ट्रीया के हस्तक्षेप को गैरकानूनी बताया।
इसने इटली की समस्या को सम्पूर्ण यूरोप की समस्या बना दिया।
फ्रांस के शासक नेपोलियन प्प्प् ने कावूर से एक संधि के तहत ऑस्ट्रीया के खिलाफ पिडमाउण्ट को सैन्य समर्थन देने का वादा किया।
1859-60 में ऑस्ट्रीया तथा पिडमाउण्ट में सीमा संबंधी विवाद के कारण युद्ध शुरू हो गया। इस युद्ध में फ्रांस ने इटली के समर्थन में अपनी सेना उतार दी।
इस प्रकार 1862 ई० तक दक्षिण इटली रोम तथा वेनेशिया को छोड़कर बाकी रियासतों का विलय रोम में हो गया और सभी ने विक्टर इमैनुएल को शासक माना।
गैरीबाल्डी :
गैरीबाल्डी पेशे से एक नाविक था और मेजिनी के विचारों का समर्थक था।
गैरीबाल्डी ने अपने कर्मचारियों तथा स्वयं सेवकों की सशस्त्र सेना बनायी।
उसने अपने सैनिकों को लेकर इटली के प्रांत सिसली तथा नेपल्स पर आक्रमण किये। इन रियासतों की अधिकांश जनता बूर्वों राजवंश के निरंकुश शासन से तंग होकर गैरीबाल्डी की समर्थक बन गयी।
गैरीबाल्डी ने यहाँ गणतंत्र की स्थापना की तथा विक्टर इमैनुएल के प्रतिनिधि के रूप में वहाँ को सत्ता सम्भाली।
1862 ई० में गैरीबाल्डी ने रोम पर आक्रमण की योजना बनाई, तो कावूर ने इसका विरोध किया। इसी बीच गैरीबाल्डी को भेंट कावूर से हुई और उसने रोम के अभियान की योजना त्याग दी। दक्षिणी इटली के जीते गए क्षेत्र को बिना किसी संधि के गैरीबाल्डी ने विक्टर इमैनुएल को सौंप दिया।
गैरीबाल्डी बिना शर्त के अपनी सारी सम्पत्ति राष्ट्र के नाम कर साधारण किसान की भांति जीवन जीने लगा।
1862 में गैरीबाल्डी के मत्यु के बाद रोम तथा वेनेशिया के रूप में शेष इटली का एकीकरण विक्टर इमैनुएल ने स्वयं किया।
1870-71 में फ्रांस और प्रशा के बीच युद्ध छिड़ गया जिस कारण फ्रांस के लिए पोप को संरक्षण प्रदान करना संभव नहीं था। विक्टर इमैनुएल ने इस परिस्थिति का लाभ उठाया।
इमैनुएल ने पोप के राजमहल को छोड़कर बाकी रोम को इटली में मिला लिया और उसे अपनी राजधानी बनायी।
इस प्रकार 1871 ई० तक इटली का एकीकरण मेजिनी, कावूर, गैरीबाल्डी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं एवं विक्टर इमैनुएल जैसे शासक के योगदानों के कारण पूर्ण हुआ।
जर्मनी का एकीकरण
इटली और जर्मनी का एकीकरण साथ-साथ सम्पन्न हुआ।
आधुनिक युग में जर्मनी पुरी तरह से विखंडित राज्य था, जिसमें 300 छोटे-बड़े राज्य थे।
जर्मनी में राजनितिक, सामाजिक तथा धार्मिक विषमताएँ थी।
जर्मन एकीकरण की पृष्ठभूमि निर्माण का श्रेय नेपोलियन बोनापार्ट को दिया जाता है क्योंकि 1806 ई० में जर्मन प्रदेशों को जीत कर राईन राज्य संघ का निर्माण किया था।
उत्तरी जर्मनी में सबसे शक्तिशाली राज्य प्रशा था। वहीं दक्षिणी जर्मनी के लोगों के अंदर राष्ट्रवाद की कमी थी।
जर्मनी के एकीकरण में बुद्धिजीवियों, किसानों तथा कलाकारों, जैसे-हीगेल काण्ट, हम्बोल्ट, अन्डर्ट, जैकब ग्रीम आदि तथा शिक्षण संस्थानों एवं विद्यार्थियों का भी योगदान था।
शिक्षकों एवं विद्यार्थियों ने जर्मनी एकीकरण के उद्देश्य से‘ब्रूशेन शैफ्ट‘ नामक सभा स्थापित की।
वाइमर राज्य का येना विश्वविद्यालय राष्ट्रीय आन्दोलन का केन्द्र था।
1834 में जन व्यापारियों ने आर्थिक व्यापारिक समानता के लिए प्रशा के नेतृत्व में ‘जालवेरिन‘ नामक आर्थिक संघ बनाया, जो जर्मन राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया।
जर्मन राष्ट्रवादियों ने मार्च 1848 में पुराने संसद की सभा को फ्रैंकफर्ट में बुलाया। जहाँ यह निर्णय लिया गया कि प्रशा का शासक फ्रेडरिक विलियम जर्मन राष्ट्र का नेतृत्व करेगा।
फ्रेडरिक, जो एक निरंकुश एवं रूढ़िवादी विचार का शासक था, ने उस व्यवस्था को मानने से इंकार कर दिया।
फ्रेडरिक विलियम का देहान्त हो जाने के बाद उसका भाई विलियम प्रशा का शासक बना।
विलियम राष्ट्रवादी विचारों का पोषक था।
विलियम ने एकीकरण के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर महान कूटनितिज्ञ बिस्मार्क को अपना चांसलर नियुक्त किया।
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जर्मनी का एकीकरण में बिस्मार्क
बिस्मार्क एक सफल कुटनीतिज्ञ था, वह हीगेल के विचारों से प्रभावित था।
वह जर्मन एकीकरण के लिए सैन्य शक्ति के महत्व को समझता था।
अतः इसके लिए उसने ‘रक्त और लौह की नीति‘ का अवलम्बन किया।
बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया के साथ मिलकर 1864 ई० में शेल्सविग और होल्सटिन राज्यों के मुद्दे को लेकर डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया। क्योंकि उन पर डेनमार्क का नियंत्रण था।
जीत के बाद शेल्सविग प्रशा के अधीन हो गया और होल्सटिन ऑस्ट्रिया को प्राप्त हुआ।
होल्सटिन में राष्ट्रवाद की भावना को बिस्मार्क बढ़ा दिया।
जब ऑस्ट्रिया उसे दबाने के लिए बढ़ी तो जर्मनी ऐसा करने से रोक दिया।
अपमान के कारण ऑस्ट्रिया ने 1866 ई. में जर्मनी के खिलाफ सेडोवा की युद्ध की घोषण कर दिया।
इस युद्ध में ऑस्ट्रिया बुरी तरह पराजित हुआ।
इस तरह जर्मन एकीकरण का दो तिहाई कार्य पुरा हुआ।
शेष जर्मनी के एकीकरण के लिए फ्रांस के साथ युद्ध करना आवश्यक था। क्योंकि जर्मनी क दक्षिणी रियासतों के मामले में फ्रांस हस्तक्षेप कर सकता था।
इसी समय स्पेन की राजगद्दी का मामला उभर गया, जिस पर प्रशा के राजकुमार की स्वाभाविक दावेदारी थी। लेकिन फ्रांस इसका विरोध कर रहा था।
स्पेन की उतराधिकार को लेकर 19 जून 1870 को फ्रांस के शासक नेपोलियन ने प्रशा के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी और सेडॉन की लड़ाई में फ्रांसीसियों की जबदस्त हार हुई।
तदुपरांत 10 मई 1871 को फ्रैंकफर्ट की संधि द्वारा दोनों राष्ट्रों के बीच शांति स्थापित हुई। इस प्रकार सेडॉन के युद्ध में ही एक महाशक्ति के पतन पर दूसरी महाशक्ति जर्मनी का उदय हुआ।
अंततः 1871 ई. तक जर्मनी का एकीकरण सम्पन्न हुआ।
जर्मन राष्ट्रवाद का प्रभाव
जर्मन राष्ट्रवाद ने केवल जर्मनी में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण यूरोप के साथ-साथ हंगरी, बोहेमिया तथा यूनान में स्वतंत्रता आन्दोलन शुरू हो गये।
इसी के प्रभाव ने ओटोमन साम्राज्य के पतन की कहानी को अंतिम रूप दिया। बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवाद के प्रसार ने स्लाव जाति को संगठित कर सर्बिया को जन्म दिया।
यूनान में राष्ट्रीयता का उदय
यूनान का अपना गौरवमय अतीत रहा है। जिसके कारण उसे पाश्चात्य का मुख्य स्रोत माना जाता था। यूनानी सभ्यता की साहित्यिक प्रगति, विचार, दर्शन, कला, चिकित्सा विज्ञान आदि क्षेत्र की उपलब्धियाँ यूनानियों के लिए प्रेरणास्रोत थे।
यूनान तुर्की साम्राज्य के अधीन था।
फ्रांसीसी क्रांति से यूनानियों में राष्ट्रीयता की भावना की लहर जागी, क्योंकि धर्म, जाति और संस्कृति के आधार पर इनकी पहचान एक थी।
हितेरिया फिलाइक नामक संस्था की स्थापना ओडेसा नामक स्थान पर की। इसका उद्देश्य तुर्की शासन को युनान से निष्काषित कर उसे स्वतंत्र बनाना था।
इंग्लैंड का महान कवि वायरन यूनानियों की स्वतंत्रता के लिए यूनान में ही शहीद हो गया। इससे यूनान की स्वतंत्रता के लिए सम्पूर्ण यूरोप में सहानुभूति की लहर दौड़ने लगा।
रूस भी यूनान की स्वतंत्रता का पक्षधर था।
1821 ई० में अलेक्जेंडर चिपसिलांटी के नेतृत्व में यूनान में विद्रोह शुरू हो गया।
1827 में लंदन में एक सम्मेलन हुआ जिसमें इंग्लैंड, फ्रांस तथा रूस ने मिलकर तुर्की के खिलाफ तथा यूनान के समर्थन में संयुक्त कार्यवाही करने का निर्णय लिया।
इस प्रकार तीनों देशों की संयुक्त सेना नावारिनो की खाड़ी में तुर्की के खिलाफ एकत्र हुई। तुर्की के समर्थन में सिर्फ मिस्र की सेना ही आयी।
युद्ध में मिश्र और तुर्की की सेना बुरी तरह पराजित हुई
1829 ई० में एड्रियानोपल की संधि हुई, जिसके तहत तुर्की की नाममात्र की प्रभुता में यूनान को स्वायत्ता देने की बात तय हुई।
परन्तु यूनानी राष्ट्रवादियों ने संधि की बातों को मानने से इंकार कर दिया।
1832 में यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया। बवेरिया के शासक ‘ओटो‘ को स्वतंत्र यूनान का राजा घोषित किया गया।
हंगरी में राष्ट्रीयता का उदय
हंगरी पर ऑस्ट्रिया का पूर्णतः प्रभाव था।
हंगरी में आंदोलन का नेतृत्व ‘कोसुथ’ तथा ‘फ्रांसिस डिक’ नामक क्रांतिकारी के द्वारा किया जा रहा था।
फ्रांस में लुई फिलिप के पतन का हंगरी के राष्ट्रवादी आन्दोलन पर विशेष प्रभाव पड़ा । कोसूथ ने ऑस्ट्रियाई आधिपत्य का विरोध करना शुरू किया तथा व्यवस्था में बदलाव की मांग करने लगा। इसका प्रभाव हंगरी तथा आस्ट्रिया दोनों देशों की जनता पर पडा। जिसके कारण यहाँ राष्ट्रीयता के पक्ष में आन्दोलन शुरू हो गए। 31 मार्च 1848 ई० को आस्ट्रिया की सरकार ने हंगरी की कई बातें मान ली, जिसके अनुसार स्वतंत्र मंत्रिपरिषद् की मांग स्वीकार की गई।
इस प्रकार इन आन्दोलनों ने हंगरी को राष्ट्रीय अस्मिता प्रदान की।
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पोलैंडः
पोलैंड में भी राष्ट्रवादी भावना के कारण, रूसी शासन के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो गए। 1830 ई. की क्रांति का प्रभाव यहाँ के उदारवादियों पर भी व्यापक रूप से पड़ा था परन्तु इन्हें इंग्लैंड तथा फ्रांस की सहायता नहीं मिल सकी। अतः इस समय रूस ने पोलैंड के विद्रोह को कुचल दिया।
बोहेमिया
बोहेमिया जो ऑस्ट्रियाई शासन के अंतर्गत था, में भी हंगरी के घटनाक्रम का प्रभाव पड़ा। बोहेमिया की बहुसंख्यक चेक जाति की स्वायत्त शासन की मांग को स्वीकार किया गया परन्तु आन्दोलन ने हिंसात्मक रूप धारण कर लिया। जिसके कारण ऑस्ट्रिया द्वारा क्रांतिकारियों का सख्ती से दमन कर दिया गया। इस प्रकार बोहेमिया में होने वाले क्रांतिकारी आन्दोलन की उपलब्धियाँ स्थायी न रह सकीं।
परिणाम
यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास फ्रांसीसी क्रांति के समय से ही शुरू हुआ।
प्रत्येक राष्ट्र की जनता और शासक के लिए उनका राष्ट्र ही सब कुछ हो गया। इसके लिए वे किसी हद तक जाने के लिए तैयार रहने लगे।
बड़े यूरोपीय राज्यों यथा, जर्मनी, इटली, फ्रांस, इंग्लैंड जैसे देशों में राष्ट्रवाद की भावना बढ़ गई।
भारत में भी यूरोपीय राष्ट्रवाद के संदेश पहुँचने शुरू हो चुके थे। मैसूर का शासक टीपू सुल्तान स्वयं 1789 की फ्रांसीसी क्रांति से काफी प्रभावित था। इसी प्रभाव में उसने भी जैकोबिन क्लब की स्थापना करवाई तथा स्वयं उसका सदस्य बना।
यह भी कहा जाता है कि उसने श्रीरंगपट्टम में ही स्वतंत्रता का प्रतीक ‘वृक्ष‘ भी लगवाया था।
बाद में भारत में 1857 की क्रांति से ही राष्ट्रीयता के तत्व नजर आने लगे थे।
इस प्रकार यूरोप में जन्मी राष्ट्रीयता की भावना ने पहले यूरोप को एवं अंततः पूरे विश्व को प्रभावित किया।
जिसके फलस्वरूप यूरोप के राजनैतिक मानचित्र में बहु़त बड़े बदलाव के साथ-साथ कई उपनिवेश भी स्वतंत्र हुए।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. राष्ट्रवाद क्या है?
उत्तर :- राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है जो किसीविशेष भौगोलिक, सांस्कृतिक सा सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता की वाहक बनती है।
प्रश्न 2. मेजिनी कौन था?
उत्तर :- मेजिनी एक साहित्यकार, गणतांत्रिक विचारों का समर्थक और योग्य सेनापति था उसमें आदर्शवादी गुण अधिक और व्यावहारिक गुण कम थे।
प्रश्न 3. जर्मनी के एकीकरण की बधाए क्या थी?
उत्तर :- जर्मनी एक विखंडित राज्य था जिसमे लगभग 300 छोटे – बड़े राज्य थे उनमे राजनीतिक सामाजिक तथा धार्मिक विषमताएँ भी मौजूद थी, वहाँ प्रशा सबसे शक्तिशाली राज्य था उसमें जर्मन राष्ट्रवाद की भावना का अभाव था, जिसके कारण एकीकरण का मुद्दा उसके समझ में न था।
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प्रश्न 4. मेटरनिख युण क्या है?
उत्तर :- नेपोलियन के पतन के बाद आस्ट्रिया की राजधानी वियना में सन् 1815 ई. मे मेटरनिख द्वारा एक सम्मेलन बुलाया गया जिसे वियना सम्मेलन कहा जाता है इस सम्मेलन में मेटरनिरव ने फिर से पुरातन व्यवस्था लागू कर दिया। जो 1815 से 1848 तक के काल को मेटरनिख युग के नाम से जाना जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. 1848 के फ्रांसीसी क्रांति के कारण क्या थे?
उत्तर :- लुई फिलिप एक उदारवादी शासक थे लेकिन वह महत्वकांक्षी था। उसने अपने विरोधियों को खुश करने के लिए ‘स्वर्णिम मध्यमवर्गीय नीति’का अवलम्बन किया। सन् 1840 में गीजों का प्रधानमंत्री बना दिया। जो कट्टर प्रतिक्रियावादी था। और किसी भी तरह के वैधानिक सामाजिक एवं आर्थिक सुधारों के विरोध था। लुई फिलिप ने पूंजीपति वर्ग के साथ रखना पसंद किया जिसे शासन ने कार्य में अभिरुचि नहीं था। उसके शासन काल में भुखमरी और बेरोजगारी व्याप्त होने लगी और उसी के कारण 1848 की क्रांति हुई।
प्रश्न 2. इटली, जर्मनी के एकीकरण में ऑस्ट्रिया की भूमिका क्या थी?
उत्तर :- इटली और जर्मनी के एकीकरण में ऑस्ट्रिया बहुत बड़ा बाधा था। ऑस्ट्रिया का चांसलर मेटरनिख का ऑस्ट्रिया के पराजित किए बिना इटली और जर्मनी का एकीकरण संभव नहीं था। 1830 ई. में क्रांति के बाद इटली में आंदोलन होना शुरू हो गया। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के चांसलर मेटरनिख द्वारा आंदोलन को दबा दिया गया। जिससे इटली का एकीकरण धीमा पड़ गया। इसी प्रकार जर्मनी में भी मेटरनिख द्वारा राष्ट्रीय आंदोलन को दबाया जा रहा था।
प्रश्न 3. यूरोप में राष्ट्रवाद को फैलाने में नेपोलियन बोनापार्ट किस तरह सहायक हुआ?
उत्तर :- यूरोप में राष्ट्रवाद की भावना के विकास में नेपोलियन बोनापार्ट का महत्वपूर्ण योगदान था। नेपोलियन बोनापार्ट ने जर्मन प्रदेशों को जीतकर राइन राज्य संघ का निर्माण किया था, जिसमें इटली और जर्मनी के एकीकरण का मार्ग प्रस्तुत किया और यहीं से जर्मनी में राष्ट्रवाद की भावना बढ़ने लगी थी। जो धीरे-धीरे यूरोप के अन्य क्षेत्र में फैलने लगा, था इसी प्रकार यूरोप में राष्ट्रवाद को फैलाने में नेपोलियन बोनापार्ट की अहम भूमिका थी।
प्रश्न 4. गैरीबाल्डी के कार्यो की चर्चा करें ।
उत्तर :- इटली के एकीकरण तथा गणतंत्र की स्थापना करने का प्रयास कर रहा था। गैरीबाल्डी पेशे से एक नाविक था। उसने अपने सैनिकों को लेकर इटली के सिसली तथा नेपल्स पर आक्रमण किया। दक्षिणी इटली के जीते हुए क्षेत्र को बिना किसी संघ के गैरीबाल्डी ने विक्टर एमैनुएल को सौंप दिया। और उन्होंने सारी संपत्ति को दान कर दिया और साधारण किसान की तरह जीवन जीने लगे और इस तरह इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
प्रश्न 5. विलियम 1 के बगैर जर्मनी का एकीकरण बिस्मार्क के लिए असंभव था। कैसे?
उत्तर :- विलियम प्रथम राष्ट्रवादी विचारों का पोषक था। जर्मनी के एकीकरण के लिए उसने अनेकों युद्ध किया, और जर्मनी के एकीकरण में अपना महान योगदान दियाऔर विलियम 1 बिस्मार्क को चांसलर नहीं बनाया होता तो विलियम 1 उनके बगैर बिस्मार्क के लिए जर्मनी का एकीकरण करना असंभव था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. इटली के एकीकरण में मेजिनी काबुर और गैरीबाल्डी के योगदानों को बतावे ।
उत्तर :- इटली के एकीकरण में मेजिनी,काबुर और गैरीबाल्डी के निम्नलिखित योगदान है।
मेजनी :- मेजनी एक साहित्यकार, गणतंत्रिक का विचारों का समर्थक और योग्य सेनापति था। भेजनी संपूर्ण इटली का एकीकरण कर उसे एक गणराज्य बनाना चाहता था। इसका उद्देश्य प्रायद्वीप से हस्तक्षेप समाप्त करना, तथा संयुक्त यवन राज्य स्थापित करना था और ‘यंग यूरोप‘नामक संस्था का गठन कर मेजनी ने यूरोप के अन्य देशों में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचल दिया और जर्मनी के पुनः हार हुई और वह पलायन कर गया।
1848 ई. में इटली के एकीकरण कर उसे एक गणराज्य बनाना चाहता था। इटली में सर्डिनिया – पिंडमाउंट का नया शासक विक्टर इमैनुएल राष्ट्रवादी था, विक्टर में ‘काउंट कावूर‘को प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
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काउंट कबूर :-काबुर एक सफल कूटनीतीज्ञ एवं राष्ट्रवादी था। वह इटली के एकीकरण में सबसे बड़ी बाधा ऑस्ट्रेलिया को मानता था उसने आस्ट्रेलिया को पराजित करने के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया 1853-54 के क्रीमिया युद्ध में काबूर ने फ्रांस की ओर से सम्मिलित हुआ। काबुर ने नेपोलियन 111 से भी एक संधि को जिसके तहत फ्रांस ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पैडमाउंट को समर्थन देने का वादा किया।
1860-61 मैं काबूर ने सिर्फ रोम को छोड़कर उत्तर तथा मध्य इटली की सभी रियासतों ( परमा, मोडेना, टास्कनी )आदि को मिला लिया। तथा जनमत संग्रह कर इसे पुस्ट कर लिया 1862 ई.में दक्षिणी इटली रोम तथा वेनेशिया को छोड़कर बाकीरियासतों का विलय रोम में हो गया और सभी ने विक्टर इमैनुएल को शासक माना।
गैरीबाल्डी :- इस बीच महान क्रांतिकारी गैरीबाल्डी सशस्त्र क्रांति के द्वारा दक्षिणी इटली के रियासतों के एकीकरण तथा गणतंत्र की स्थापना करने का प्रयास किया। गैरीबाल्डी पेशे से एक नाविक था दक्षिणी इटली के जीते हुए क्षेत्र को बिना किसी संधि के गैरीबाल्डी ने विक्टर इमैनुएल को सौंप दिया। उसने अपनी सारी धन-दौलत दान कर दिया।
9871ई. तक इटली का एकीकरण में मेजिनी काबूर और गैरीबाल्डी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं के योगदान के कारण पूर्ण हुआ।
प्रश्न 2. जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर :- बिस्मार्क जर्मन डाइट में प्रशा का प्रतिनिधि हुआ करता था। और अपनी सफल कूटनीति का लगातार परिचय देता आ रहा था। यह उसकी कूटनीतिक सफलता थी। बिस्मार्क जर्मनी एकीकरण के लिए ‘रक्त और लौह ‘की नीति एक अवलंबन किया उसने अपने देश में सेवा लागू कर दिया।
बिस्मार्क ने अपनी नीतियों के कारण प्रशा का शुद्धिकरण किया 1864 ई. में श्ले- शॉविंग और हॉलेस्टिंन राज्य के मुद्दे को लेकर डेनमार्क पर आक्रमण कर दिया। प्रशा ने जर्मन राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़का कर विद्रोह फैला दिया। जिसे कुचलने के लिए अष्ट्रीया की सेना को, प्रशा के क्षेत्र को पार करना था। और प्रशा ने ऑस्ट्रीया को ऐसा करने से रोक दिया।
1866 ई.में ऑस्ट्रिया ने प्रशा के खिलाफ सेडोवा में युद्ध की घोषणा कर दिया और ऑस्ट्रिया युद्ध में बुरी तरह पराजित हुआ।
जून, 1870 ई. को फ्रांस के शासक नेपोलियन ने प्रशा के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा किया। और सेडान की लड़ाई में फ्रांसीसीयो की हार हुई 10 मई 1871 ई. को फ्रैंकफर्ट की संधि के द्वारा दोनों राष्ट्र के बीच शांति बना इस प्रकार सेडान के युद्ध में ही एक महाशक्ति के पतन पर दूसरी महाशक्ति जर्मनी का उद्देश्य हुआ।
प्रश्न 3. राष्ट्रवाद के उद्देय के कारणों एवं प्रभाव की चर्चा करें।
उत्तर :- राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है जो किसी विशेष भौगोलिक, सांस्कृतिक या सामाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता की वाहक बनती है। राष्ट्रवाद की भावना का बिजारोपण यूरोप में पुनर्जागरण के काल से ही हो चुका था। सन 1789 ई. की फ्रांसीसी क्रांति के रूप में प्रकट हुए 19वीं शताब्दी में उन्नति एवं आक्रमण रूप में सामने आई।
यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना के विकास में फ्रांस की राज्यक्रांति तत्पश्चात नेपोलियन के आक्रमणों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। फ्रांसीसी क्रांति ने राजनीति को अभीभात्यवर्गीयपरिवेश में बाहर कर उसे अखबारों, सड़कों और सर्वसाधारण की वस्तु बना दिया। यूरोप के कई राज्यों में नेपोलियन के अभियानों द्वारा नए युग का संदेश पहुंचा। नेपोलियन ने जर्मनी और इटली के राज्य को भौगोलिक नाम की परिधि से बाहर कर उसे वास्तविक एवं राजनीतिक रूपरेखा प्रदान किया।
जिसके फलस्वरूप यूरोप के राजनीतिक मानचित्र में बदलाव तो आया ही साथ ही कई उपनिवेश भी स्वतंत्र हुआ।
प्रश्न 4. जुलाई 1830 को क्रांति का विवरण दें।
उत्तर :- चार्ल्स X निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी शासक था। जिसने फ्रांस में उभर रही राष्ट्रीयता तथा जनतंत्रवादी भावनाओं को दबाने का काम किया। उसने अपने शासनकाल में लोकतंत्र की राह में कई गतिरोध किया। उसके द्वारा प्रतिक्रियावादी प्रतिनिधि ने को प्रधानमंत्री बनाया गया।पूर्व में 18वे द्वारा स्थापित किया। चार्ल्स x ने विरोध को प्रतिक्रिया स्वरूप 25 जुलाई 1830 ई. को चार अध्याय देशो का गला घोटने का प्रयास किया। अध्याय देशों के विरोध में पेरिस में क्रांति की लहर दौड़ गई,और फ्रांस में 28 जून 1830 ई.में गृह युद्ध हो गया। इसे ही 1830 की क्रांति कहते हैं। चार्ल्स X फ्रांस कीराजगद्दी त्याग कर इंग्लैंड पलायन कर गया, और इस प्रकार फ्रांस के बुर्वो वंश के शासन का अंत हो गया।
फ्रांस में जुलाई 1830 ई. की क्रांति के परिणाम स्वरूप बुर्वो वंश के स्थान पर ओलेयेन्स वंश को गद्दी सौंप दी,और वंश के शासक लूई लिपिक ने उत्तरा वादियों, पत्रकारों तथा पेरिस की जनता के सत्ता प्राप्त की और उसकी नीतियां उत्तर वादियों के पक्ष में संवैधानिक गणतंत्र के निमित्त रही।
प्रश्न 5. यूनानी स्वतंत्रता आंदोलन का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर :- यूनानी सभ्यता की साहित्यिक, प्रगति विचार, दर्शन,कला, चिकित्सा, विज्ञान से प्रेरणा लेकर पूरे देशों ने अपनी तरक्की शुरू कर दी। इसके बाद भी यूनानी तुर्की साम्राज्य के अधीन था।
फ्रांसीसी क्रांति से यूनानीयों में राष्ट्रीयता की भावना की लहर जागी, क्योंकि धर्म,जाति और संस्कृति के आधार पर पहचान एक थी तुर्की शासन को अलग करने के लिए आंदोलन चलाए जाने लगे। और तुर्की शासन को निष्कासित कर उसे स्वतंत्र बनाना था। इंग्लैंड का महान कवि लॉर्ड वायरन यूनानीयो की स्वतंत्रता के लिए यूनान में ही शहीद हो गया। इससे यूनान की स्वतंत्रता के लिए यूरोप में लहर दौड़ने लगेयूनानी स्वतंत्रता संग्राम में सलंग्न उन लोगों को बुरी तरह से कुचलना शुरू किया गया। 1821 ई. में अलेक्जेंडर चिप्सलांटी के नेतृत्व में टीम यूनान में विरोध शुरू हो गया। अप्रैल 1826 ई. में ग्रेट ब्रिटेन और रूस में एक समझौता हुआ, और फ्रांस का राजा चार्ल्स X यूनानी स्वतंत्रतामें दिलचस्पी लेना लगा। 1827 में लंदन में एक सम्मेलन हुआ। इंग्लैंड फ्रांस तथा रूस ने मिलकर तुर्की के खिलाफ यूनान के समर्थन में लिया।1829 ई. में एड्रीयानोपल की संधि हुई, अतः 1832 में यूनान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया। बवेरिया के शासक ‘ओटो ‘को स्वतंत्र यूनान का राजा घोषित किया गया।
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