Bihar Board Class 9 Hindi भारतीय चित्रपट : मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक Class 9th Chapter 5 Hindi Solutions Text Book Questions and Answers
5. भारतीय चित्रपट : मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ‘भारतीय चित्रपटः मूक फिल्मों से सवाक् फिल्मों तक’ अमृतलाल नागर द्वारा लिखित है। इसमें कहानीकार ने फिल्मों के विकास क्रम को साहित्य रंग में ढालकर कथा रूप प्रदान किया है। कथाकार के अनुसार उन्नीसवीं तथा बीसवीं सदी ने दुनिया को ऐसे-ऐसे चमत्कार दिखाए कि आँखें अचंभे से फटी रह गईं, क्योंकि पहले लोग वैज्ञानिक चमत्कारों से परिचित नहीं थे। उन्नीसवीं सदी के अन्तिम दशक में जब सिनेमा सिर चढ़कर बोलने लगा तो लोग हक्का-बक्का हो गए।
6 जुलाई, 1896 का दिन देश तथा खासकर मुंबई के लिए एक अनोखा दिन था, क्योंकि इसी दिन भारत में सिनेमा दिखाया गया। अखबार में विज्ञापन निकला कि ‘जिंदा तिलस्मात् देखिए, टिकट एक रुपया ।’ विज्ञापन ने मुंबई की जनता में तहलका मचा दिया। मुंबई में आज जहाँ प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम है, उसी के आसपास वाट्सन होटल में भारत का पहला सिने-प्रदर्शन हुआ। फ्रांस के ल्यूमीयेर ब्रदर्स के एजेंट ने इसे दिखलाने के लिए भारत लाए थे। इससे पहले फ्रांस तथा अमेरिका में इसका प्रदर्शन हो चुका था। उस समय सिनेमा आज की तरह किसी कहानी पर आधारित नहीं होता था। इसकी तस्वीरें छोटी-छोटी थी, जिसमें समुद्र स्नान, कारखाने से निकलते मजदूर आदि के दृश्य थे।
मुंबई में इस दिशा में काम-काज शुरू करने के लिए दो-एक विलायती. कंपनियाँ अपने प्रोजेक्टर तथा कैमरे यहाँ लाईं। 1897 ई. में रूपहले पर्दे पर रक्षा बंधन का त्योहार, दिल्ली के लाल किले, अशोक की लाट आदि के दृश्य दिखाए गए। उस जमाने में इसे बायोस्कोप के नाम से पुकारा जाता था।
भारत में सर्वप्रथम एक सावे दादा थे, जिनका नाम कुछ और था, ने यह काम आरंभ किया। लेखक को इनसे मुलाकात स्वर्गीय मास्टर विनायक की फिल्म ‘संगम’ लिखने के क्रम में शालिनी स्टूडियोज, कोल्हापुर में हुई थी। इनकी शारीरिक बनावट ऐसी थी कि इन्हें देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि ये अपने जमाने के श्रेष्ठ कैमरामैन तथा भारतीय फिल्म व्यवसाय के आदिपुरुष रहे होंगे। इन्होंने ल्यूमीयेर ब्रदर्स के प्रोजेक्टर तथा मशीनें खरीद कर भारत में इस धंधे पर एकाधिपत्य जमा लिया था। इन्होंने छोटीमोटी अनेक फिल्में बनाईं, जिनमें कुछ मान्य नेताओं पर भी थीं। लेकिन फिल्मोद्योग के असली संस्थापक दादा साहब फालके माने जाते हैं । इन्होंने ‘हरिश्चन्द्र’ पर फीचर फिल्म बनाई। इसके बाद इन्होंने फीचर फिल्मों की झड़ी लगा दी। भारत सरकार ने भी फिल्म के सर्वोच्च पुरस्कार को दादा साहब फालके पुरस्कार कहकर इतिहास की वंदना की है। सन् 1940 ई. में किशोर साहू की पहली फिल्म ‘बहूरानी’ का उद्घाटन दादा साहब फालके ने ही किया था। लेखक का फिल्मी दुनिया से संबंध स्थापित कराने वाले बहूरानी फिल्म के अर्थपति स्वर्गीय द्वारकादास डागा थे।
दादा साहब फालके दबंग तथा जोशीले तथा आत्मप्रशंसक थे, किंतु उनकी विशेषता यह थी कि वे नई पीढ़ी के महत्त्व को नकारते न थे। इसीलिए इन्होंने व्ही.शांताराम, देवकी बोस तथा मूक फिल्म के निर्देशक आनंद प्रसाद एवंजालमर्चेट की प्रशंसा मुक्त कंठ से की है। दादा साहब अपनी फिल्मों के निर्माता, निर्देशक, लेखक, कैमरामैन, प्रोसेसिंग डेवलपिंग करने वाले, प्रचारक, वितरक सबकुछ एक साथ थे। लेखक ने ‘राजा हरिश्चन्द्र’ फिल्म देखी थी, जिसमें हरिश्चन्द्र की रांनी का पार्ट मास्टर सांडु को ही करना पड़ा था। इसका कारण यह था कि वेश्या वर्ग की कुछ महिलाएँ कैमरा के सामने आने पर शरमा गईं तथा कुछ को दलालों ने भगा दिया। इसके बादभस्मासुर’ लंकादहन आदि फिल्मों का प्रदर्शन हुआ। ‘लंकादहन’ अपने जमाने की बॉक्स-ऑफिस हिट फिल्म थी।
मुंबई के बाद एक पारसी व्यवसायी जे. एफ. मादन ने कोलकाता में मादन थिएटर कंपनी की स्थापना की। 1917 ई. से एलफिंस्टन बाइस्कोप कंपनी भी फिचर फिल्में बनाने लगी। 1913 ई. से 1920 ई. तक फिल्मों में अधिकतर पौराणिक कथाओं पर आधारित फिल्में बनीं। 1930 ई. के आसपास सबसे महान फिल्मी हस्ती बाबूराव पेंटर थे, जो प्रसिद्ध निर्माता-निर्देशक व्ही. शांताराम, बाबूराव पेंढारकर, भालजी पेंढारकर तथा मास्टर विनायक गुरू थे। उनकी बनाई फीचर फिल्म ‘सावकार पाश’ (साहूकार का फंदा) अपने समय की प्रसिद्ध फीचर फिल्म थी। इसी अवधि के नामी फिल्मी स्टार हैं—जिल्लो, जुबैदा, मास्टर बिट्बल, ई. बिलीमोरिया, डी. बिलोमारिया, गौहर, सुलोचना, माधुरी, जाल मर्चेट, अर्मलीन, पृथ्वीराज कपूर आदि-आदि। इसी दशक के अत म इंपीरियल फिल्म कंपना ने भारत की ‘सौटक्का, नाचती-गाती बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ का निर्माण किया । मादन की बोलती फिल्म ‘शीरी-फरहाद’ भी इसी समय की है।
अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर
प्रश्न 1. उन्नीसवीं और बीसवीं सदी ने दुनिया को कई करिश्मे दिखाए । लेखक ने किस करिश्मे का वर्णन विस्तार से किया है?
उत्तर – लेखक अमृतलाल नागर ने उन्नीसवीं एवं बीसवीं सदी के करिश्मे के संबंध में कहा है कि इस अवधि में विज्ञान ने दुनिया को ऐसे-ऐसे करिश्मे दिखलाए कि लोग दाँतों तले उँगली दबाकर रह गए। आँखें आश्चर्य से देखती रह गईं । तात्पर्य है कि इन सदियों में ही बिजली, टेलिफोन, टेलीग्राम, रेल, मोटर, चलचित्र आदि के आविष्कार हुए । लेखक ने वैज्ञानिक करिश्मों में फिल्मी करिश्में का विस्तार से वर्णन किया है । इस करिश्मा ने लोगों के जीवन को मनोरंजन के क्षेत्र में सहज बना दिया है । इसीलिए आज के युग को वैज्ञानिक युग के नाम से पुकारा जाता है ।
प्रश्न 2. भातीय चित्रपट में मूक से सवाक् फिल्मों तक के इतिहास को रेखांकित करते हुए दादा साहब का महत्त्व बताइए !
उत्तर—भारत में सर्वप्रथम 6 जुलाई, 1896 ई. को मुंबई में सिनेमा दिखाया गया । अखबार में विज्ञापन निकला कि ‘जिंदा तिलस्मात् देखिए, फोटुएँ आपको चलती-फिरती नजर आएँगी, टिकट एक रुपया ।’ इस विज्ञापन ने मुंबई में तहलका मचा दिया। इस फिल्म को फ्रांस के ल्युमीयेर ब्रदर्स के एजेंटों ने भारत में दिखलाने के लिए लाया था । लेकिन 1897 ई. में मुंबई की जनता को रूपहले पर्दे पर रक्षा बंधन, दिल्ली के लाल किले और अशोक के लाट आदि चंद दृश्यों की झलक मिली। इसके बाद मिस्टर स्टीवेंसन ने कोलकाता में स्टार थिएटर की स्थापना करके फिल्मी धंधे को बढ़ाना शुरू किया । भारत में इस नए काम को शुरू करने वाले सावे दादा थे, जिन्होंने छोटी-छोटी अनेक फिल्में बनाई । फिर दादा साहब फालके ने ‘हरिश्चंद्र’ पर फिल्म बनाई । इतिहास में दादा साहब फालके को ही फिल्म उद्योग का जनक माना जाता है । इन्होंने ‘मोहनी भस्मासुर, ‘लंकादहन’ आदि फिल्में भी बनाईं। इसके बाद किशोर साहू की पहली फिल्म ‘बहूरानी’ का उद्घाटन हुआ। दादा साहब फालके बड़े दबंग व्यक्ति थे । इनकी विशेषता; यह थी कि वे अपनी फिल्मों के एक साथ ही निर्माता, निर्देशक, लेखक, कैमरामैन, प्रचारक, वितरक सब कुछ थे । .
प्रश्न 3. सावे दादा कौन थे? भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को पाठ के माध्यम से समझाइए ।
उत्तर – सावे दादा कोल्हापुर के निवासी थे । वे अपने जमाने के महान कैमरामैन तथा भारतीय फिल्म व्यवसाय के आदि पुरुष थे । इन्होंने ल्युमीयेर ब्रदर्स से प्रोजेक्टर तथा मशीनें खरीदकर भारत में इस धंधे का एक तरह से राष्ट्रीयकरण कर लिया । इन्होंने भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ सर आर. पी. परांजपे के स्वागतोत्सव पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई । इसके बाद लोकमान्य तिलक, गोखले आदि पर तथा अन्य अनेक छोटी-मोटी फिल्में बनाकर फिल्म संसार को सुशोभित किया। फिल्म जगत् में सावे दादा का अमूल्य योगदान रहा है ।
प्रश्न 4. लेखक ने सावे दादा की तुलना में दादा साहब फालके को क्यों भारतीय सिनेमा का जनक माना ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – लेखक ने सावे दादा की तुलना में दादा साहब फालके को भारतीय सिनेमा का जनक इसलिए माना, क्योंकि दादा साहब ने अनेक फीचर फिल्में बनाईं जबकि सावे दादा डाक्यूमेंटरी फिल्मों तक ही अपने को सीमित रखा। इनका फीचर फिल्म एकमात्र ‘भक्त पुंडलीक’ था । वास्तव में यह फिल्म किसने बनाई, यह संदेह का विषय बना हुआ है । इसीलिए लेखक ने दादा साहब फालके को ही फिल्मों का जनक माना है ।
5. भारतीय सिनेमा के विकास में पश्चिमी तकनीक के महत्त्व को रेखांकित कीजिए ।
उत्तर—सिनेमा का प्रथम आविष्कार पश्चिमी देशों में ही हुआ । फ्रांस के ल्युमीयेर ब्रदर्स के एजेंट ने जिंदा तिलस्मात्’ दिखलाने के लिए भारत में लाया था । फिर कुछ विलायती कंपनियाँ अपने प्रोजेक्टर एवं कैमरे यहाँ लाईं। सावे दादा ने ल्युमीयेर ब्रदर्स से प्राजेक्टर एवं फोटो डवलप करने की मशीनें खरीद कर इस धंधे को आगे बढ़ाया। इस प्रकार हम देखते हैं कि पश्चिमी तकनीक ने ही हमें फिल्मों का चस्का लगाया तथा फिल्में बनाने के लिए प्रेरित किया ।
प्रश्न 6. अपने शुरुआती दिनों में सिनेमा आज की तरह किसी कहानी पर आधारित नहीं थे, क्यों ?
उत्तर—अपने शुरुआती दिनों में सिनेमा आज की तरह किसी कहानी पर आधारित नहीं होते थे, इसका मुख्य कारण यह था कि उस समय न तो आज की तरह विकसित तकनीक थी और न ही लोगों को सिनेमा के प्रति विशेष आकर्षण था । लोग छोटे-मोटे दृश्यों को देखकर ही खुश हो जाते थे, जैसे- समुद्र स्नान का दृश्य, कारखानों से छूटते हुए मजदूरों के दृश्य आदि ।
Class 9th Chapter 5 Hindi Solutions
प्रश्न 7. भारत में पहली बार सिनेमा कब और कहाँ दिखाया गया ?
उत्तर—भारत में पहली बार सिनेमा 6 जुलाई, 1896 ई. को मुंबई के वाट्सन होटल में सिनेमा दिखाया गया ।
प्रश्न 8. सिनेमा दिखलाने के लिये अखबारों में क्या विज्ञापन निकला? इस विज्ञापन का बंबई की जनता पर क्या असर हुआ ?
उत्तर – सिनेमा दिखलाने के लिये अखबारों में यह विज्ञापन निकला कि जिंदा तिलस्मात् ‘देखिए, फोटुएँ आपको चलती-फिरती-दौड़ती दिखलाई पड़ेंगी। टिकट एक रुपया । इस विज्ञापन ने बंबई की जनता में तहलका मचा दिया ।
प्रश्न 9. 1897 में पहली बार बंबई की जनता को रुपहले पर्दे पर कुछ भारतीय दृश्य देखने को मिले । उन दृश्यों को लिखें ।
उत्तर—1897 में पहली बार बंबई की जनता को रुपहले पर्दे पर बंबई की नारली पूर्णिमा यानी रक्षा बंधन का त्योहार, दिल्ली के लाल किले और अशोक की लाट आदि के दृश्य देखने को मिले ।
प्रश्न 10. कलकत्ते में स्टार थिएटर की स्थापना किसने की ?
उत्तर- कलकत्ते में स्टार थिएटर की स्थापना मिस्टर स्टीवेंसन नाम के एक अंग्रेज सज्जन ने की ।
प्रश्न 11. भारत में फिल्म उद्योग किस तरह स्थापित हुआ? इसकी स्थापना में किन-किन व्यक्तियों ने योगदान दिया ?
उत्तर- भारत में फिल्म उद्योग स्थापना तब हुआ, जब ल्युमीयेर ब्रदर्स ने बंबई में. फिल्म का प्रदर्शन किया और लोगों की रूचि इसके प्रति बढ़ी तो सावे दादा ने उन्नीसवीं सदी में फ्रांसीसी एजेंट ल्युमीयेर ब्रदर्स से प्रोजेक्टर एवं फोटो डवलप करने की मशीनें खरीदकर इस काम को आगे बढ़ाया। छोटी-मोटी अनेक फिल्में भी बनाई लेकिन इस उद्योग का विधिवत् स्थापना करने वाले दादा साहब फालके थे। इन्होंने ‘हरिश्चंद्र’ फीचर फिल्म का निर्माण किया तथा भस्मासुर, लंकादहन आदि अनेक फिल्मों का निर्माण किया । इसकी स्थापना में सावे दादा, दादा साहब फालके, आनंद प्रसाद, बाबूराव पेंटर, किशोर साहू आदि का अमूल्य योगदान है ।
प्रश्न 12. पहली फीचर फिल्म कौन थी ?
उत्तर – पहली फिचर फिल्म भक्त पुंडलीक थी, जिसके निर्माता कौन थे, कहना कठिन है। इसके बाद ‘हरिश्चंद्र’ फीचर फिल्म दादा साहब फाल्के ने बनाई ।
प्रश्न 13. भारत की पहली बॉक्स-ऑफिस हिट फिल्म किसे कहा जाता है?
उत्तर—दादा साहब फालके द्वारा निर्मित ‘लंका दहन’ भारत की पहली पॉक्स-ऑफिस हिट फिल्म कहा जाता है ।,
प्रश्न 14. जे० एफ० मादन का भारतीय फिल्म के विकास में योगदान खांकित करें ।
उत्तर – पारसी व्यवसायी जे. एफ. मादन ने बंबई की तरह कलकत्ते में मादन थिएटर नामक सुप्रसिद्ध संस्था की स्थापना की तथा 1917 ई. में एलिफिंस्टन बाइस्कोप कंपनी नामक संस्था चलाई और दादा साहब की तरह फीचर फिल्में बनाने लगे। इस प्रकार मादन ने भारतीय फिल्म के विकास में योगदान दिया ।
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प्रश्न 15. शुरुआती दौर की फिल्म को लोग क्या कहते थे ?
उत्तर— शुरुआती दौर की फिल्म को लोग साइंस का करिश्मा मानते थे । उन्हें इस बात पर अचंभा हो जाया करता था कि तस्वीरें चलती-फिरती और नाचती दिखाई पड़ती थी उस समय फिल्म को ‘बायस्कोप’ कहा जाता था ।
प्रश्न 16. ‘राजा हश्चिंद्र’ फिल्म में स्त्रियों का पार्ट भी पुरुषों ने ही किया था. क्यों ?
उत्तर— ‘राजा हरिश्चंद्र’ फिल्म में स्त्रियों का पार्ट भी पुरुषों ने ही किया था, इसका मुख्य कारण यह था कि स्त्रियाँ वेश्या घराने की होकर भी कैमरा के सामने आने पर शरमा जाती थीं तथा कुछ को दलाल भगा ले गए। फिरोज रंगूनवाला ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि दादा साहब फालके ने वेश्या वर्ग की स्त्रियों को अपनी फिल्म में काम करने के लिए राजी कर लिया था, किंतु कुछ के शरमा जाने तथा कुछ को भगाकर ले जाने के कारण मास्टर – सांडुके को हरिश्चंद्र की रानी का पार्ट करना पड़ा ।
नोट : पाठ के आस-पास के प्रश्नों के उत्तर छात्र स्वयं करें ।
भाषा की बात (व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर ) :
प्रश्न 1. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ लिखिए : दाँतो तले उँगली दबाना, श्रीगणेश होना ।
उत्तर : दाँतों तले उँगली दबाना = आश्चर्य प्रकट करना ।
श्रीगणेश होना = आरंभ होना ।
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों की संधि-विच्छेद करें :
संगम, विश्वविद्यालय, स्वागतोत्सव, हरिश्चंद्र ।
उत्तर : संगम — सम् + गम ।
विश्वविद्यालय — विश्वविद्या + आलय ।
स्वागतोत्सव — स्वागत + उत्सव |
हरिश्चंद्र — हरिः + चन्द्र ।
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प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों का वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग स्पष्ट कीजिए :
उत्तर : टेलीग्राम – अभी-अभी मोहन का टेलीग्राम आया है ।
आँख – मृग की आँखें सुन्दर होती हैं ।
टिकट – पटना जं. का टिकट ला दीजिए ।
सिनेमा – हॉल में सिनेमा चल रहा है
होटल – ताज होटल बहुत महँगा है ।
फिल्म – आज की फिल्म पहले जैसी नहीं होती है ।
व्यवसाय – आपका व्यवसाय चल रहा है या नहीं ।
प्रश्न 4. निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय बताएँ :
उत्तर : बंबइया – बंबई + इया ।
स्वर्गीय = स्वर्ग + ईय ।
अच्छाई = अच्छा + आई ।
व्यक्तित्व = व्यक्ति + त्व ।
चश्माधारी = चश्मा + धारी ।
प्रश्न 5. निम्नलिखित शब्दों के उपसर्ग बताएँ :
उत्तर : विज्ञापन – वि + ज्ञापन
प्रचारक – प्र + चारक
विनायक – वि + नायक
सुप्रसिद्ध – सु + प्रसिद्ध
सुख्यात – सु + ख्यात
प्रश्न 6. निम्नलिखित वाक्यों से कोष्ठक में दिए गए निर्देश के अनुरूप पद चुनें |
(क) आँखें अचंभे से फट पड़ीं। (कारक चिह्न)
(ख) अमेरिका में कुछ ही महीनों पहले इस तमाशे को दिखाया गया था । (कारकं चिह्न)
(ग) सांवे दादा ने छोटी-मोटी बहुत फिल्में बनाईं। (विशेषण)
(घ) दुर्भाग्यवश मैं उसके निर्माता का नाम भूल चुका था। (अर्थ की दृष्टि से वाक्य) (ङ) मुझे अच्छी तरह से याद है । (सर्वनाम)
उत्तर : (क) ‘से’ (अपादान), (ख) ‘में’ (कर्त्ता कारक), (ग) बहुत, (घ) विधानवाचक, (ङ) मुझे ।
प्रश्न 7. निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखें ।
बाजार, करिश्मा, चमत्कार, आविष्कार, जनता, व्यवसाय, खरीदना, प्रारंभ ।
उत्तर : बाजार – हाट
करिश्मा – चमत्कार
चमत्कार – अचरज
आविष्कार – अन्वेषण, खोज
जनता – लोग
व्यवसाय – पेशा
खरीदना – मोल लेना
प्रारंभ – शुरू
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