दिया गया पाठ का नोट्स और हल SCERT बिहार पाठ्यक्रम पर पूर्ण रूप से आधारित है। इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 10 भूगोल के पाठ पाँच ‘(क) बिहार : कृषि एवं वन संसाधन (Bihar Krishi ewam van sansadhan class 10th notes and Solutions)’ के नोट्स और प्रश्न-उतर को पढ़ेंगे।
5. (क) बिहार : कृषि एवं वन संसाधन
बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है, यहाँ की 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है।
यहाँ चार फसलें-भदई, अगहनी, रबी एवं गरमा लगाई जाती है।
भदई- इसकी शुरूआत मई-जून से होती है और अगस्त-सितम्बर में कटाई कर ली जाती है। भदई धान, ज्वार, बाजरा, मकई के अंतिरिक्त जूट और सब्जी की खेती इस समय में की जाती है।
अगहनी- यह बिहार की सबसे महत्वपूर्ण फसल है। यह फसल मध्य जून से अगस्त तक लगाई जाती है और नवम्बर दिसम्बर में काट ली जाती है। धान, ज्वार, बाजरा, अरहर, गन्ना इस फसल की मुख्य पैदावार है।
रबी- जिस फसल को अक्टूबर-नवम्बर के मध्य में लगाया जाता है और अप्रैल में काट लिया जाता है। गेंहूँ, जौ, दलहन, तेलहन इस फसल की खास उपज है।
गरमा- इस फसल को गरमी के मौसम में उन क्षेत्रो में लगाया जाता है जहाँ सिंचाई की समुचित व्यवस्था है, या फिर निम्न भूमि में जहाँ स्थानीय जल श्रोतों में मिट्टी गिली रहती है, इस फसल में गरमा, धान और ग्रीष्मकालीन सब्जियाँ उगाई जाती है।
खाद्यान्न फसलें :
धान : धान बिहार की महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसलें हैं। इसकी खेती राज्य के सभी भागों में की जाती है।
धान का सबसे अधिक उत्पादन पश्चिमी चम्पारण, रोहतास तथा औरंगाबाद में होता है। पहले स्थान पर पश्चिमी चम्पारण है जबकि रोहतास और औरंगाबाद क्रमशः द्वितीय और तृतीय स्थान पर है।
गेहूँ- खाद्यान्न फसलों में धान के बाद गेहूँ दूसरा महत्वपूर्ण फसल है। गेहूँ के उत्पादन में रोहतास जिला प्रथम स्थान पर है।
मक्का : यह बिहार का तीसरा मुख्य खाद्यान्न फसल है। यह भदई, अगहनी, रबी एवं गरमा चारों फसलों में पैदा होता है। मक्का का सबसे अधिक उत्पादन खगड़िया जिला में होता है, दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमशः समस्तीपुर एवं बेगूसराय है।
मोटे अनाज : मोटे अनाजों में महुआ, मीलेंट, ज्वार और बाजरा को शामिल किया जाता है। प्रथम स्थान पर मोटे अनाज के उत्पादन में मधुबनी जिला आता है। दूसरे स्थान पर किशनगंज है।
तेलहन : राई, सरसों, तीसी, सूरजमुखी, कुसुम, रेड़ी, तिल, मूँगफली मुख्य रूप से तेलहन फसलें हैं। तिलहन उत्पादन में सबसे आगे पश्चिम चंपारण है।
दलहन : बिहार में दलहन फसल में चना, मसूर, खेसारी, मटर, मूँग, अरहर, उरद तथा कुरथी प्रमुख है। चना, मसूर, खेसारी, मटर एवं गरमा मूँग रबी दलहन की फसलें हैं तथा अरहर तथा मूँग खरीफ की फसलें हैं।
दलहन उत्पादन में पटना प्रथम स्थान पर है। तथा औरंगाबाद और कैमुर क्रमशः द्वितीय और तृतीय स्थान पर है।
व्यावसायिक फसलें
गन्ना : हमारे राज्य में गन्ना की खेती के लिए सभी अनुकुल भौगोलिक परिस्थितियाँ विद्यमान हैं, फिर भी यहाँ गन्ना का प्रति हेक्टेयर उत्पादन बहुत कम है, यहाँ के उत्त्ारी पश्चिम भाग में इनकी खेती प्रमुखता से होती है।
गन्ने के उत्त्पादन में पश्चिमी चम्पारण पहले स्थान पर हैं जबकि दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमश्सः गोपालगंज और पूर्वी चम्पारण जिले हैं।
जूट : जूट का उत्त्पादन बिहार के उत्तर पूर्वी जिलों में होता है, क्योकि यह अधिक वर्षा वाला क्षेत्र हैं, जो कि जूट उत्पादन के लिए उपयुक्त हैं। सम्पूर्ण देश का आठ प्रतिशत जूट उत्पादन बिहार में होता है। पश्चिम बंगाल और असम के बाद, बिहार का तिसरा स्थान हैं।
तम्बाकू : तम्बाकू उत्पादन में बिहार का भारत में छठा स्थान हैं, इसकी खेती के लिए गंगा का दियारा क्षेत्र सबसे उपयुक्त हैं।
सब्जियाँ, फल एवं मशाले : बिहार में सब्जियों के अंतर्गत आलू, प्याज, भिन्डी, परोर, लौकी, पालक, लाल साग, लूबिया, फूलगोभी पटल, पत्तागोभी आदि की खेती की जाती हैं। इनमें आलू सबसे प्रमुख सब्जी ही नहीं बल्कि एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ भी हैं। इसकी खेती बिहार के लगभग सभी जिलों में होती हैं।
मिर्च की खेती दियरा क्षेत्र में गंगा के दोनों किनारे पर वृहत पैमाने पर की जाती है। बिहार में अन्य मसालें जैसे- हल्दी, धनियां, अदरक, सौफ एवं लहसुन की भी खेती की जाती हैं।
मौसमी फलों में आम, लीची, अमरूद, केला, पपीता, सिंघाड़ा एवं मखाने बिहार में उत्पन्न किए जाते हैं। आम के लिए भागलपूर, मुजफ्फरपूर, पूर्णिया, दरभंगा जिले प्रसिद्ध है। लीची के लिए मुजफ्फरपूर और वैशाली को ख्याति प्राप्त हैं। Bihar Krishi ewam van sansadhan
कुषि की समस्याएँ : बिहार की 90 प्रतिशत आबादी देहातों में रहती हैं और 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आश्रित है। बिहार में कृषि निम्नलिखित समस्याओं से जूझ रहा है।
- 1. मिट्टी कटाव एवं गुणवत्ता का ह्रास – भारी वर्षा और बाढ़ के कारण मिट्टी का कटाव होता है, साथ ही वर्षां से लगातार रासायनिक खादों के उपयोग से भी मिट्टी की ह्रास हो रहा है।
- घटिया बीजों का उपयोग – उच्च कोटी के बीज का उपयोग नहीं होने के कारण प्रति एकड़ उपज अन्य राज्यां की अपेक्षा कम है।
- खेतों का छोटा आकार का होना – हमारे राज्य में खेतों का छोटा आकार होने के कारण वैज्ञानिक खेती संभव नहीं हो पाती है।
- किसानों में रूढ़िवादिता – यहाँ के किसान परिश्रम पर कम और रूढ़िवादिता पर ज्यादा भरोसा करते हैं।
- सिंचाई की समस्या – यहाँ की कृषि मॉनसून पर निर्भर है, सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है।
- बाढ़ – यहाँ की ज्यादातर नदियाँ विनाशकारी बाढ़ के लिए प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष यहाँ बाढ़ की समस्याओं से किसान परेशान रहते हैं।
जल संसाधन :
बिहार में जल का भंडार है, जो दो स्त्रोतों से प्राप्त होता है-
- धरातलीय जल : इसमें नदियाँ, जलाशय , तालाब आते हैं।
- भूमिगत जल : इसमें कुआँ, झरने, नलकूप, हैंडपम्प आदि आते हैं।
बिहार में 95 प्रतिशत से अधिक जल संसाधन का उपयोग सिंचाई में होता है। यहाँ मॉनसून से वर्षा की अवधि मात्र चार महिने की होती है।
बिहार में सिंचाई के लिए नहर प्रमुख साधन है। यहाँ कुल सिंचित भूमि का 40.63 प्रतिशत भूमि की सिंचाई नहरों द्वारा होती है।
आजादी के पहले की नहरें :
सोन नहर : यह सिंचाई परियोजना का एक भाग है, यह बिहार का पहला आधुनिक नहर है, इसे 1874 में डिहरी पर निर्मित किया गया, इससे दो नहरें निकाली गई है।
सारण नहर- गोपालगंज प्रखंड में 1880 में इस नहर का निर्माण किया गया था।
त्रिवेणी नहर- इस नहर का निर्माण 1903 में पश्चिमी चम्पारण में भारत-नेपाल सीमा पर गण्डक नदी त्रिवेणी नामक स्थान के निकट हुआ, इसकी कुल लम्बाई 1,094 किमी है। Bihar Krishi ewam van sansadhan
आजादी के बाद की नहरें :
कोसी नहर- कोसी नदी पर भारत-नेपाल सीमा पर हनुमान नगर के पास बाँध बनाकर दो नहरें निकाली गई है-पूर्वी कोसी के किनारें पर पूर्वी कोसी नहर और पश्चिमी किनारें पर पश्चिमी कोसी नहर
पूर्वी कोसी नहर की लम्बाई 44 किमी है तथा पश्चिमी कोसी नहर की लंबाई 115 किमी है।
गण्डक नहर- गण्डक नदी पर त्रिवेणी नामक स्थान से 85 किमी दक्षिण बाल्मीकि नगर के पास एक 743 किमी लम्बा और 760 मी० ऊँचा बाँध बनाया गया था। इस बाँध से पश्चिम की ओर तिरहुत नहर और पूरब की ओर सारण नहर निकाली गई है।
नलकूप- सिंचाई के लिए नलकूप नहर के बाद दूसरा प्रमुख साधन है।
कुआँ- बिहार में कुँऐं का उपयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है, लेकिन अब इसका प्रचलन कम हो गया है। इसके जगह पर अब पम्पसेटों का प्रयोग होने लगा है। कुआँ से सिंचाई का काम बिहार में मात्र 2 प्रतिशत है।
तालाब- भारत में 9 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि की सिंचाई तालाबों द्वारा किया जाता है। जबकि बिहार में मात्र 2. 10 प्रतिशत ही भूमि की सिंचाई तालाबों द्वारा किया जाता है।
तालाबों द्वारा सिंचाई में मधुबनी जिला प्रथम स्थान पर है तथा दूसरे स्थान पर नालंदा जिला है।
बिहार में सिंचाई के अन्य साधनों में झील, पोखर, पईन अहर, कृत्रिम झील, ढेकू और मोट आदि है।
बिहार की नदी घाटी योजनाऐं :
बिहार में बहुत सारी बहुउद्देशीय नदी घाटी योजनाओं का विकास किया गया है जिससे जल-विद्युत, उत्पादन, सिंचाई मछली पालन, पेय-जल, औद्योगिक उपयोग, मनोरंजन एवं यातायात का विकास हो सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए कई योजनाएँ बनाई कई हैं। जिसमें तीन प्रमुख योजनाऐं हैं-
- सोन नदी घाटी परियोजना
- गण्डक नदी घाटी परियोजना
- कोसी नदी घाटी परियोजना
अन्य परियोजनाएँ हैं-
- दुर्गावती जलाशय परियोजना
- चन्दन बहुआ परियोजना
- बागमती परियोजना
- बरनार जलाशय परियोजना
- सोन नदी घाटी परियोजना :
यह परियोजना बिहार की सबसे पुरानी और पहली नदी घाटी परियोजना है इसका विकास अंग्रजी सरकार ने 1874 में सिंचाई के लिए किया था। इसकी कुल लम्बाई 130 किमी है।
- गण्डक नदी घाटी परियोजना :
यह उत्तर प्रदेश और बिहार की संयुक्त परियोजना है जो भारत और नेपाल के सहयोग से बाल्मीकिनगर के पास शुरू किया गया है। इस परियोजना से बिजली, सिंचाई और जल की आपूर्ति नेपाल को भी की जाती है। Bihar Krishi ewam van sansadhan
इस परियोजना से भैंसालोटन स्थान पर एक बाँध बनाकर जलाशय का भी निर्माण किया गया है जिससे दो नहरें निकाली गई है। प्रथम पश्चिमी नहर द्वारा गोपालगंज, सारण और सिवान में लगभग 4 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। पूर्वी नहर द्वारा पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, मुजफ्फरपुरए वैशाली तथा समस्तीपुर जिले की लगभग 4-5 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है।
कोसी नदी घाटी परियोजना :
इस परियोजना की परिकल्पना 1896 में किया गया था किन्तु वास्तविक रूप से 1955 में कार्य प्रारंभ हुआ।
इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य नदी के बदलते मार्ग को रोकना है। उपजाऊ भूमि की बर्बादी पर नियंत्रण, भयानक बाढ़ से क्षति पर रोक, जल से सिंचाई का विकास, जल विद्युत उत्पादन, मत्स्य पालन, नौका रोहण और पर्यावरण पर नियंत्रण आदि है।
वन संसाधन :
बिहार विभाजन के बाद अधिकतर वन क्षेत्र झारखंड राज्य में चला गया। वर्त्तमान में बिहार में मात्र 7.68 प्रतिशत ही क्षेत्र में वन है। बिहार में कुल 6374 वर्ग किमी अधिसूचित वन क्षेत्र है। मात्र 76 वर्ग किमी में अतिसघन वन है।
वनों एवं वन्य जीवों का संरक्षण :
बिहार में कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 6.87 प्रतिशत भाग ही वनों से अच्छादित है। जबकि राष्ट्रीय नीति के अनुसार 33 प्रतिशत भू-भाग पर वन होना चाहिए।
बिहार में वन्य प्राणीयों के संरक्षण के लिए प्राचीन काल से ही कई रीति-रिवाजों का प्रचलन है। कई धार्मिक अनुष्ठान वृक्षों के नीचे ही किए जाते हैं। यहाँ परम्परागत रूप से वट, पीपल, आँवला और तुलसी की पूजा की जाती है। यहाँ चींटी से लेकर साँप जैसे विषैले जंतु को भोजन दिया जाता है। पक्षियों को दाना देने की प्रथा है। साथ ही राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर वन्य प्राणीयों के संरक्षण के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
बिहार में 14 अभ्यारण्य और एक राष्ट्रीय उद्यान है। पटना का संजय गाँधी जैविक उद्यान, बेगूसराय का कावर झाल, दरभंगा का कुशेश्वर स्थान वन्य जीवों के संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है।
वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार की वन, पर्यावरण तथा जल संसाधन विकास विभाग प्रमुख है। इसके अलावा वन्य जीवों के संरक्षण के लिए कई स्वयंसेवी संस्थाऐं भी काम कर रही है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. बिहार में धान की फसल के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का उल्लेख करें।
उत्तर- बिहार में धान की फसल के लिए भौगोलिक दशाएँ निम्न है।
(1) ऊष्णार्द्र जलवायु
(2) तापमान-22 डिग्री से 32 डिग्री सेलसियस के बीच
(3) वर्षा-150-300 सेंटीमीटर
(4) मिट्टी-जलोढ़ चिकनी
(5) बोआई-जून से अगस्त, कटाई-सिंतबर से नवम्बर।
प्रश्न 2. बिहार में दलहन के उत्पादन एवं वितरण का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- बिहार में दलहन फसल में चना, मसुर, खेसारी, मटर, मुँग, अरहर, उरद तथा कुरथी प्रमुख हैं। चना, मसुर, खेसारी एवं मटर रबी दलहन की फसलें है तथा अरहर तथा मुँग खरीफ की फसलें है। Bihar Krishi ewam van sansadhan
दलहन उत्पादन में पटना प्रथम स्थान पर है। तथा औरंगाबाद और कैमुर क्रमशः द्वितीय और तृतीय स्थान पर है।
प्रश्न 3. कृषि बिहार की अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ है इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- संयुक्त बिहार, झारखंड के अलग होने से पूर्व खनिज के भंडार की दृष्टि से भारत का अग्रणी राज्यों में से एक था। यहाँ की 90 प्रतिशत आबादी गाँवों में निवास करती है जिनकी मुख्य पेशा कृषि है। 80 प्रतिशत लोग कृषि पर ही आधारित है। उनके जीविका के आधार एवं अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि को कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
प्रश्न 4. नदी घाटी परियोजनाओं के मुख्य उद्देश्यों को लिखें।
उत्तर- नदी घाटी परियोजनाओं को बहुउद्देशीय परियोजना कहा जाता है। क्योंकि इसके विकास के कई कारण है।
(1) बाढ़ पर नियंत्रण
(2) सिंचाई एवं जल विद्युत के लिए नहरों का विकास
(3) परिवहन के जलमार्ग के विकास
(4) जल कृषि एवं मत्स्य पालन जैसे व्यावसायिक कृषि को बढ़ावा देना।
(5) पर्यटन के अवसर को विकसित करना
(6) जल विद्युत विकसित करना
(7) पेयजल उपलब्ध कराना इत्यादि।
प्रश्न 5. बिहार नहरों के विकास से सम्बंधित समस्याओं को लिखिए।
उत्तर- बिहार में नहरों के विकास की निम्न समस्याएँ है।
(1) राज्य सरकार की उदासीनता।
(2) नहर विकास हेतु पूँजी का अभाव।
(3) बारहमासी नदियों का अभाव।
(4) कुछ नदियों द्वारा तीव्र मार्ग परिवर्तन।
(5) केन्द्र सरकार की उपेक्षा इत्यादि।
प्रश्न 6. बिहार के किस भाग में सिंचाई की आवश्यकता है और क्यों?
उत्तर- बिहार के कई जिला ऐसे हैं जहाँ सिंचाई के सांधनों के विकास की आवश्यकता है। क्योंकि बिना सिंचाई के अच्छी उपज नहीं होती है। ऐसे जिलों में रोहतास, गया, जहानाबाद, नवादा, नालन्दा एवं पटना आते हैं जहाँ सिंचाई के साधनों का विकास नहीं हुआ है। इन क्षेत्रों में वर्षा का भी कमी रहता है।
प्रश्न 7. बिहार में वनों के अभाव के चार कारणों को लिखिए।
उत्तर- बिहार में वन के अभाव के चार कारण निम्न है।
(1) कृषि क्षेत्रों का विस्तार।
(2) आवास भूमि का विस्तार।
(3) कल-कारखानों का विकास।
(4) वन संबंधी मानवीय चेतना का अभाव।
प्रश्न 8. संक्षेप में शुष्क पतझड़ वन की चर्चा कीजिए।
उत्तर- बिहार पूर्वी मध्यवर्ती भाग तथा दक्षिण-पश्चिमी पहाड़ी भागों में इस प्रकार के वनों का विस्तार है। कैमूर और रोहतास जिले में इसका अधिक विस्तार है। यहाँ के प्रमुख वृक्ष खैर, बहेड़ा, पलास महुआ, अमलतास, शीशम, नीम हरै आदि। Bihar Krishi ewam van sansadhan
प्रश्न 9. बिहार में ऐसे जिलों का नाम लिखिए जहाँ वन विस्तार एक प्रतिशत से भी कम है।
उत्तर- बिहार के कई ऐसे जिले है, जहाँ वन का विस्तार एक प्रतिशत से भी कम है। जैसे- सिवान, सारण, बक्सर, पटना, गोपालगंज, वैशाली, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, दरभंगा, मधुबनी नालंदा आदि।
प्रश्न 10. बिहार में स्थित राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण्यों की संख्या बताएँ और दो अभ्यारण्यों की चर्चा करें।
उत्तर- बिहार में अभ्यारण्यों की संख्या 14 है, जबकि राष्ट्रीय उद्यान एक है। संजय गाँधी राष्ट्रीय जैविक उद्यान राज्य का एकलौता राष्ट्रीय उद्यान है।
संजय गाँधी जैविक उद्यान, पटना, लगभग 980 एकड़ क्षेत्र में विकसित है और यह बिहार का एकलौता राष्ट्रीय उद्यान है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. बिहार की कृषि की समस्याओं पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर- बिहार की कृषि की समस्याएँ निम्न है।
(1) मिट्टी कटाव एवं गुणवता का ह्रास- भारी वर्षा और बाढ़ के कारण मिट्टी का कटाव होता है, साथ ही वर्षा से लगातार रासायनिक खादों के उपयोग से भी मिट्टी की ह्रास हो रहा है।
(2) घटिया बीजों का उपयोग- उच्च कोटी के बीज का उपयोग नहीं होने के कारण प्रति एकड़ उपज अन्य राज्यों की अपेक्षा कम है।
(3) खेतों का छोटा आकार का होना- हमारे राज्य में खेतों का छोटा आकार होने के कारण वैज्ञानिक खेती संभव नहीं हो पाती है।
(4) किसानों में रूढ़िवादिता- यहाँ के किसान परिश्रम पर कम और रूढ़िवादिता पर ज्यादा भरोसा करते है।
(5) सिंचाई की समस्या- यहाँ की कृषि मॉनसुन पर निर्भर है, सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है।
(6) बाढ़- यहाँ की ज्यादातर नदियाँ विनाशकारी बाढ़ के लिए प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष यहाँ बाढ़ की समस्याओं से किसान परेशान रहते है।
प्रश्न 2. बिहार में कौन कौन सी फसलें लगाई जाती है किसी एक फसल के मुख्य उत्पादनों की व्याख्या कीजीए।
उत्तर- बिहार में चार प्रकार की फसलें लगाई जाती हैं।
(1) भदई
(2) अगहनी
(3) रबी
(4) गरमा
(1) भदई- इसकी शुरूआत मई-जून से होती है और अगस्त-सितम्बर में कटाई कर ली जाती है। भदई धान, ज्वार,बाजरा, मकई के अंतिरिक्त जूट और सब्जी की खेती इस समय में की जाती है।
प्रश्न 3. बिहार की मुख्य नदी घाटी परियोजनाओ का नाम बताएँ एवं सोन अथवा कोसी परियोजना के महत्व पर प्रकाश डालें।
उत्तर- बिहार की नदी घाटी परियोजना निम्न हैं।
(1) सोन नहर
(2) सारण नहर
(3) ढाका नहर
(4) त्रिवेणी नहर
(5) कोसी नहर
(6) गण्डक नहर
(1) सोन नहर-यह सोन सिंचाई परियोजना का एक भाग है, यह बिहार का पहला आधुनिक सिंचाई परियोजना है। इसे 1874 में डिहरी पर निर्मित किया गया, इससे दो नहरें निकली।
प्रश्न 4. बिहार में वन्य जीवों को संरक्षण पर विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर- बिहार में वन्य-जीवों के संरक्षण का निम्न विस्तार है।
(1) वन विनाश पर विराम लगाया जाए जिससे वन्य-जीव का स्थल मौलिक स्थिति में बना रहे।
(2) आखेट (शिकार) पर पाबंदी लगाया जाए।
(4) रासायनिक दवाओं के प्रभाव से भी वन्य जीवों की प्रजनन क्षमता खत्म हो रही है। ऐसे दवाओं के प्रयोग को भी प्रतिबंधित किया जाए।
(5) इस संदर्भ में सरकार को भी ध्यान देने की आवश्यकता है। Bihar Krishi ewam van sansadhan
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