दिया गया पाठ का नोट्स और हल SCERT बिहार पाठ्यक्रम पर पूर्ण रूप से आधारित है। इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 10 भूगोल के पाठ एक ‘भारत : संसाधन और उपयोग (Bharat Sansadhan evam Upyog Class 10 Notes and Solutions)’ के नोट्स और प्रश्न-उतर को पढ़ेंगे।
1. भारत : संसाधन एवं उपयोग
भूगोल के पिता- हिकेटियस
इरैटोस्थनिज ने सर्वप्रथम ज्योग्राफिका शब्द का प्रयोग किया।
युनानी विद्वान पाइथागोरस ने बताया कि पृथ्वी चपटी नहीं।
भूगोल-भूगोल पृथ्वी का वर्णन है।
अर्थात
ऐसा शास्त्र जिसमें पृथ्वी के ऊपरी स्वरूप और उसके प्राकृतिक विभागों जैसे- पहाड़, महादेश, देश, नगर, नदी, समुद्र, झील, वन आदि का अध्ययन करते हैं। भूगोल कहलाता है।
संसाधन का महत्व- उपयोग मे आनेवाली प्रत्येक वस्तुऐं संसाधन कहलाते हैं। भूमि, मृदा, जल और खनिज भौतिक संसाधन है तथा वनस्पति, वन्य-जीव तथा जलीय-जीव जैविक संसाधन हैं।
प्रसिद्ध भूगोलविद् जिम्मरमैन ने कहा था कि- ‘संसाधन होते नहीं, बनते हैं।’
Bharat Sansadhan evam Upyog Class 10 Notes and Solutions
संसाधन के प्रकारः- उत्त्पति के आधार पर संसाधन के दो प्रकार होते हैं :
1.जैव संसाधनः- ऐसे संसाधन जिसकी प्राप्ति जैव मंडल से होती हैं। उसे जैव संसाधन कहते हैं। जैसे- मनुष्य, वनस्पती, मत्स्य, पशुधन एवं अन्य प्राणी समुदाय।
2.अजैव संसाधनः- निर्जीव वस्तुओं के समुह को अजैव संसाधन कहते हैं। जैसे- चट्टानें, धातु एवं खनिज आदि।उपयोगिता के आधार पर संसाधन के दो प्रकार होते हैं-
नवीकरणीय संसाधनः- वैसे संसाधन जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा नवीकृत या पुनः प्राप्त किए जा सकते हैं। उसे नवीकरणीय संसाधन कहते हैं। जैसे- सौर-उर्जा, पवन उर्जा, जल-विद्युत, वन एवं वन्य प्राणी।
अनवीकरणीय संसाधनः– ऐसे संसाधन जिन्हें उपयोग के पश्चात् पुनः प्राप्त नहीं कर सकते हैं, उसे अनवीकरणीय संसाधन कहते हैं। जैसे- कोयला, पेट्रोलियम आदि।स्वामित्व के आधार पर संसाधन के चार प्रकार होते हैं-
व्यक्तिगत संसाधन- ऐसे संसाधन जो किसी खास व्यक्ति के अधिकार क्षेत्र मे होता हैं, उसे व्यक्तिगत संसाधन कहते हैं। जैसे- भूखंड, घर, बाग-बगिचा, तालाब, कुँआ इत्यादि।
सामुदायिक संसाधन- ऐसे संसाधन किसी खास समुदाय के अधिकार क्षेत्र में होता है। उसे सामुदायिक संसाधन कहते हैं। जैसे- गाँव में चारण-भूमि, श्मशान, मंदिर या मस्जिद परिसर, समूदायिक भवन, तालाब, खेल के मैदान आदि।
राष्ट्रीय संसाधन- देश या राष्ट्र के अंतर्गत सभी उपलब्ध संसाधन को राष्ट्रीय संसाधन कहते हैं। जैसे- सड़क, स्कूल, कॉलेज आदि।
अंतर्राष्ट्रीय संसाधन- ऐसे संसाधन जिसका नियंत्रण अंतर्राष्ट्रीय संस्था करती है, उसे अंतर्राष्ट्रीय संसाधन कहते हैं। तटरेखा से 200km दूरी छोड़कर खुले महासागरीय संसाधन अंतर्राष्ट्रीय संसाधन होते हैं।
विकास के स्तर पर संसाधन चार प्रकार के होते हैं-
संभावी संसाधनः- ऐेसे संसाधन जो किसी क्षेत्र विशेष में मौजूद होते हैं, जिसे उपयोग में लाए जाने की संभावना होती है। उसे संभावी संसाधन कहते हैं। जैसे- हिमालयी क्षेत्र के खनिज, जिनका उत्खनन अिधक गहराई मे होने के कारण दुर्गम एवं महँगा हैं। उसी प्रकार राजस्थान एवं गुजरात क्षेत्र में पवन और सौर्य ऊर्जा आदि।
विकसित संसाधनः- ऐसे संसाधन जिसका सर्वेक्षण के पश्चात् उपयोग हेतु मात्रा एवं गुणवत्ता का निर्धारण हो चुका हैं, उसे विकसित संसाधन कहते हैं। जैसे- कोयला, पेट्रोलियम आदि।
भंडार ससाधनः- ऐसे संसाधन पर्यावरण में उपलब्ध होते हैं तथा आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हैं। जिन्हें उच्च तकनीक से उपयोग में ला सकते हैं, उसे भंडार संसाधन कहते हैं। जैसे- जल, हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन का यौगिक है जिसमें ऊर्जा उत्पादन की असीम क्षमता छिपी हुई हैं। लेकिन उच्च तकनीक के अभाव में ऐसे संसाधनों का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं।
संचित कोष संसाधनः- ऐसे संसाधन भंडार संसाधन के ही अंश हैं, जिसे उपलब्ध तकनीक के आधार पर प्रयोग में लाया जा सकता हैं इनका तत्काल उपयोग प्रारंभ नही हुआ है। यह भविष्य की पूँजी है। जैसे- नदी जल भविष्य में जल विद्युत उत्पन्न करने में उपयुक्त हो सकते हैं।
संसाधन नियोजनः- संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग ही संसाधन नियोजन है। संसाधन नियोजन किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक होता है। भारत जैसे देश के लिए तो यह अनिवार्य है।
Bharat Sansadhan evam Upyog Class 10 Notes and Solutions
भारत में संसाधन नियोजनः- संसाधन-नियोजन एक जटिल प्रक्रिया है।
संसाधन नियोजन के सोपानों को निम्न रूप मेंं बाँटकर अध्ययन किया जाता है।
(क) देश के विभिन्न प्रदेशों में संसाधनों की पहचान कराने के लिए सर्वेक्षण कराना।
(ख) सर्वेक्षण के बाद मानचित्र तैयार करना एवं संसाधनों का गुणात्मक एवं मात्रात्मक आधार पर मापन या आकलन करना।
(ग) संसाधन-विकास योजनाओं को मूर्त्त-रूप देने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी कौशल एवं संस्थागत, नियोजन की रूप रेखा तैयार करना।
(घ) राष्ट्रीय विकास योजना एवं संसाधन विकास योजनाओं के मध्य समन्वय स्थापित करना।
संसाधनों का संरक्षणः सभ्यता एवं संस्कृति के विकास में संसाधनों की अहम भूमिका होती है। किंतु संसाधनों का अविवेकपूर्ण या अतिशय उपयोग विविध प्रकार के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म देते हैं।
संसाधनों का नियोजित एवं विवेकपूर्ण उपयोग ही संसाधन संरक्षण कहलाता है।
सतत् विकास की अवधारणाः संसाधन मनुष्य के जीवन का आधार है। जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए ससाधानों के सतत् विकास की अवधारणा अत्यावश्यक है। ‘संसाधन प्रकृति के द्वारा उपहार है’ की अवधारणा के कारण मानव ने इनका अंधा-धुंध दोहन किया, जिसके कारण पर्यावरणीय समस्याएं भी उत्पन्न हो गई हैं। स्वार्थ के वशीभूत होकर संसाधनों का विवेकहीन दोहन किया गया।
संसाधनों के विवेकहीन दोहन से भूमंडलीय-तापन, ओजोन क्षय, पर्यावरण-प्रदूषण, मृदा-क्षरण, भूमि-विस्थापन, अम्लीय-वर्षा, असमय ऋतु-परिवर्तन जैसी संकट पृथ्वी पर आ गई है। अगर ऐसे ही संसाधनों का दोहन चलता रहा, तो पृथ्वी का जैव संसार विनाश हो जाएगा।
जीवन लौटाने के लिए संसाधनों का नियोजित उपयोग होना आवश्यक है। इससे पर्यावरण को बिना क्षति पहुंचायें, भविष्य की आवश्यकताओं के मद्देनजर, वर्त्तमान विकास को कायम रखा जा सकता है। ऐसी धारणा ही सतत् विकास कही जाती है। इससे वर्त्तमान विकास के साथ भविष्य भी सुरक्षित रह सकता है।
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LAXMAN PASWAN says
Hi