इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के कक्षा 10 इतिहास के पाठ चार ‘भारत में राष्ट्रवाद (Bharat Me Rashtravad class 10th solutions and notes)’ के नोट्स और सभी प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
4. भारत में राष्ट्रवाद
राष्ट्रवाद का अर्थ होता है- राष्ट्रीय चेतना का उदय अर्थात अपने राष्ट्र से प्रेम करने की भावना को ही राष्ट्रवाद कहते हैं।
भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारणः
भारत में राष्ट्रवाद के उदय का कारण ब्रिटिश शासन के द्वारा राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन, जो पूरी तरह से भेदभाव पूर्ण थे।
भारतीय जनता के सभी वर्गों के लोगों का शोषण हुआ।
असामनता के कारण ही राष्ट्रवाद का उदय हुआ, जिसके निम्न कारण नीचे दिए गए हैं-
राजनीतिक कारण
भारत में राष्ट्रवाद :19वीं शताब्दी में भारत में राष्ट्रीय चेतना का उदय मुख्य रूप से अंग्रजी शासन व्यवस्था का परिणाम था।
भारत में राष्ट्रीय चेतना जागृत करने में विभिन्न कारणों का योगदान रहा परन्तु सभी किसी-न-किसी रूप में ब्रिटेन सरकार की प्रशासनिक नीतियों से संबंधित थी।
1878 ई॰ में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिटन ने ‘वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट‘ पारित कर प्रेस पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया।
1879 में ‘आर्म्स एक्ट‘ के द्वारा भारतीयों के लिए अस्त्र-शस्त्र को रखना गैर कानूनी घोषित कर दिया गया।
1883 में ‘इलबर्ट बिल‘ का पारित होना। इस बिल का उद्देश्य भारतीय और यूरोपीय व्यक्तियों के फौजदारी मुकदमों की सुनवाई सामान्य न्यायालय में करना था और उस विशेषाधिकार को समाप्त करना था, जो यूरोप के निवासियों को अभी तक प्राप्त था और जिसके अर्न्तगत उनके मुकदमें सिर्फ यूरोपीय जज ही सुन सकते थे। यूरोपीय जनता ने इसका विरोध किया जिसके कारण सरकार को इस बिल को वापस लेना पड़ा।
1899 में लार्ड कर्जन ने‘कलकत्ता कॉपरेशन‘ एक्ट पारित किया जिसमें नगरपालिका में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में कमी और गैर निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गई।
1904 में विश्वविद्यालय अधिनियम द्वारा विश्वविद्यालय पर सरकारी नियंत्रण बढ़ा दिया जाना।
1905 में बंगाल विभाजन कर्जन के द्वारा सम्प्रदायिकता के आधार पर कर देना।
1907 में ‘देश द्रोही सभा अधिनियम‘ के द्वारा सभाओं पर रोक लगा दिया गया।
1910 में इंडियन प्रेस एक्ट पारित कर उत्तेजित लेख छापने वाले को दंडित करना।
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आर्थिक कारण
सरकार किसानों से अधिक लगान वसुलती थी। जिसके कारण किसानों की हालाल दिन-प्रतिदिन बिगड़ती चली गयी।
स्थायी बंदोबस्त के तहत अंग्रेज जमींदारों से एक निश्चित लगान लेते थे, लेकिन जमींदार किसानों से बहुत अधिक लगान वसुलते थे।
उद्योग क्षेत्रों में मजदूरों, कामगारों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता था।
1882 में सूती वस्त्रों पर से आयात शुल्क हटा लेना।
भारत में औद्योगीकरण की समस्या।
अधिक भू-राजस्व (लगान) वसुलना।
सामाजिक कारण
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अंग्रेजों के द्वारा भारतीयों को हेय दृष्टि से देखना।
रेलगाड़ी में, क्लबों में, सड़कों पर और होटलों में अंग्रेज भारतीय के साथ दुर्व्यवहार करना।
इंडियन सिविल सर्विस में भारतीयों के साथ भेद-भाव करना।
धार्मिक कारण
धर्मसुधार आंदोलन।
धर्म के प्रति लोगों में निष्ठा की भाव को जागृत करना।
बहुत सारे धर्म सुधारकों द्वारा एकता, समानता एवं स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाना।
प्रथम विश्वयुद्ध के कारण और परिणाम का भारत से अंतर्सम्बन्ध :
1.प्रथम विश्वयुद्ध का संक्षिप्त परिचय– प्रथम विश्वयुद्ध विश्व इतिहास की एक प्रमुख घटना है। यह युद्ध 1914 से 1918 तक चला। यह युद्ध दो गुटों फ्रांस, ब्रिटेन, रूस (मित्र राष्ट्र) और जर्मनी, इटली, हंगरी (धूरी राष्ट्र) के बीच हुआ।
2.कारणों के साथ भारत का अंतर्सम्बन्ध– युद्ध के बीच ब्रिटिश सरकार को किसी प्रकार से भारत को बचाए रखना चाहता था। अतः उसने घोषणा किया कि ब्रिटिश शासन का लक्ष्य यहाँ जिम्मेदार सरकार का गठन करना है।
1916 में सरकार ने भारत में आयात शुल्क लगाया ताकि भारतीय उद्योगों को फायदा मिल सके।
3.प्रथम विश्वयुद्ध के समय का भारतीय घटनाक्रम
तिलक और गांधी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने ब्रिटिश सरकार के युद्ध प्रयासों में हर संभव सहयोग दिया, क्योंकि उन्हें सरकार के स्वराज सम्बन्धी आश्वासन पर पूरा भरोसा था।
युद्ध के आगे बढ़ने के साथ ही भारतीयों का भ्रम टूटा।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान महँगाई बढ़ गई।
1915-17 के बीच एनी बेसेन्ट और तिलक ने आयरलैण्ड से प्रेरित होकर भारत में होमरूल लीग आंदोलन आरंभ किया।
तीन सफल सत्याग्रह चम्पारण, खेड़ा और अहमदाबाद आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुआ।
1913 में लाला हरदयाल ने अमेरिका और कानाडा के क्रांतिकारीयों को एकजूट कर गदर पार्टी की स्थापना की।
1916 में कांग्रेस के दोनों नरम और गरम दल एक हो गए।
कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच भी आंदोलन चलाने के लिए समझौता हो गया।
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4.प्रथम विश्वयुद्ध का भारत पर प्रभाव–
प्रथम विश्युद्ध के कारण भारत में बेरोजगारी और महंगाई बढ़ गई।
विदेशी वस्तुओं पर आयात शुल्क कम कर दिया गया।
1919 में रौलेट एक्ट का पारित होना।
जालियांवाला बाग हत्याकांड का होना।
भारत में राष्ट्रवाद का उदय काफी तेजी से हुआ।
खिलाफत आंदोलन की शुरूआत।
राष्ट्रीय आंदोलन में गांधीवादी चरण।
1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता हुआ। जिससे हिन्दु-मुस्लिम एकता स्थापित हुई।
1915 में गाँधी जी दक्षिण अफ्रिका से लौट कर अमहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना किया।
उनके द्वारा चम्पारण और खेड़ा में कृषक आंदोलन और अहमदाबाद में श्रमिक आंदोलन किया गया। जो सफल हुआ।
ऑटोमन सम्राज्य पर सख्त संधि थोपने कारण भारत के मुस्लमान नराज होकर खिलाफत आंदोलन की शुरूआत किया।
जनता के अंदर गोरों की प्रतिष्ठा घट गयी।
1916 में मुस्लिम लीग और कांग्रेस मिल गए। साथ ही कांग्रेस का नरम दल और गरम दल भी एकजुट हो गए।
रॉलेट एक्ट : बढ़ती हुई क्रांतिकारी घटनाओं एवं असंतोष को दबाने के लिए लार्ड चेम्सफोर्ड ने न्यायाधीस सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति की।
समिति की अनुशंसा पर 25 मार्च, 1919 ई॰ को रॉलेट एक्ट पारित हुआ। इसके अर्न्तगत एक विशेष न्यायालय के गठन का प्रावधान था जिसके निर्णय के विरूद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती थी। किसी व्यक्ति को अमान्य साक्ष्य और बिना वारंट के भी गिरफ्तार किया जा सकता था।
जालियांवाला बाग हत्याकांड :
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रॉलेट एक्ट के विरोध में 6 अप्रैल, 1919 ई॰ को देशव्यापी हड़ताल के बाद 9 अप्रैल, 1919 ई॰ को दो स्थानीय नेताओं डॉ॰ सत्यपाल एवं किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया।
इनके गिरफ्तारी के विरोध में 13 अप्रैल, 1919 ई॰ को जालियांवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा बुलाई गई थी। जहाँ जिला मजिस्ट्रेट जनरल ओ डायर ने बिना किसी चेतावनी के शांतिपूर्वक चल रही सभा पर गोलियां चलाकर 1000 लोगों की हत्या कर दी। बहुत से लोग घायल भी हुए। इस घटना को जालियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना जाता है।
जालियांवाला बाग नरसंहार के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘नाइट’ की उपाधि त्याग दी।
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खिलाफत आंदोलन
ऑटोमन सम्राज्य इस्लामिक दुनिया का राजनैतिक और आध्यात्मिक नेता था, जिसे खलिफा कहा जाता था।
अर्थात्
इस्लाम के प्रमुख को ‘खलिफा’ कहा जाता था। जिसका केन्द्र तुर्की था।
मुस्लमान ‘खलिफा‘ को धार्मिक और अध्यात्मिक नेता मानते थे।
ऑटोमन साम्राज्य का शासक तुर्की का सुल्तान इस्लामिक संसार का खलिफा हुआ करता था।
प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के खिलाफ तुर्की के पराजय के फलस्वरूप ऑटोमन साम्राज्य को विघटित (तोड़) कर दिया गया।
तुर्की के सुल्तान को अपने शेष प्रदेशों में भी अपनी सत्ता के प्रयोग से वंचित कर दिया गया।
1920 के प्रारंभ में भारतीय मुसलमानों ने तुर्की के प्रति ब्रिटेन की अपनी नीति बदलने के लिए बाध्य करने हेतु जोरदार आंदोलन प्रारंभ किया जिसे ‘खिलाफत आंदोलन‘ कहा जाता है।
भारत के मुस्लमान तुर्की के साथ किए जाने वाले दुर्व्यवहार के कारण खिलाफत आंदोलन की शुरुआत की।
खिलाफत आंदोलन अली बन्धुओं (शौकत अली और मोहम्मद अली) ने प्रारंभ किया था।
नवम्बर 1919 में महात्मा गाँधी अखिल भारतीय खिलाफत आंदोलन के अध्यक्ष बने।
महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन (दिसम्बर 1919) में समर्थन पाकर यह आन्दोलन काफी सशक्त हो गया।
गांधी जी ने इसे हिन्दू-मुस्लिम एकता के महान अवसर के रूप में देखा।
तीन सूत्री माँग पत्र :
(क) तुर्की के सुलतान (खलिफा) को पर्याप्त लौकिक अधिकार प्रदान किया जाए ताकि वह इस्लाम की रक्षा कर सके।
(ख) अरब प्रदेश को मुस्लिम शासन (खलिफा) के अधीन किया जाए।
(ग) खलिफा को मुस्लमानों के पवित्र स्थलों का संरक्षक बनाया जाए।
17 अक्टूबर 1919 ई॰ को पूरे भारत में खिलाफत दिवस मनाया गया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन (सितम्बर 1920)में महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन चलाने का प्रस्ताव पारित किया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन (सितंबर, 1920) में गाँधी जी ने इसे असहयोग आंदोलन के रूप में बदल दिया। जो खिलाफत आंदोलन की माँग थी वहीं असहयोग आंदोलन की माँग को भी रखा गया गया।
असहयोग आन्दोलन (1920-22)
असहयोग आंदोलन महात्मा गाँधी के नेतृत्व में शुरू किया गया।
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असहयोग आंदोलन के कारण
(क) खिलाफत का मुद्दा।
(ख) पंजाब में सरकार की बर्बर कार्रवाइयों के विरूद्ध न्याय प्राप्त करना।
(ग) स्वराज प्राप्ति करना।
1 अगस्त, 1920 ई॰ को महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई।
12 फरवरी, 1922 को गांधीजी के निर्णनयानुसार आन्दोलन को स्थगित कर दिया गया।
इस आंदोलन में दो तरह के कार्यक्रम को अपनाया गया।
पहला कार्यक्रम के अंतर्गत अंग्रेजी सरकार को कमजोर करने और नैतिक रूप से पराजित करने के लिए उपाधियों और अवैतनिक पदों का त्याग करना, सरकारी और गैर सरकारी समारोहों का बहिष्कार करना, सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों का बहिष्कार करना, विधान परिषद के चुनावों का बहिष्कार, विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के साथ-साथ मेसोपोटामिया में नौकरी से इन्कार करना शामिल था।
दूसरे कार्यक्रम के अंतर्गत न्यायालय के स्थान पर पंचों का फैसला मानना, राष्ट्रीय विद्यालयों एवं कॉलेजों की स्थापना, स्वदेशी को अपनाना, चरखा खादी को लोकप्रिय बनाना।
आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय विद्यालयों, जामिया मिलिया इस्लामिया, अलिगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और काशी विद्यापीठ जैसी शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना हुई
मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास जैसे बड़े-बड़े बैरिस्टर ने अपनी चलती वकालत छोड़कर आंदोलन में नेतृत्व प्रदान किया। प्रिंस ऑफ वेल्स का स्वागत 17 नवम्बर, 1921 को मुम्बई में राष्ट्रव्यापी हड़ताल के साथ किया गया।
सरकार ने आंदोलन को गैर कानूनी करार देते हुए लगभग 30000 आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार किया।
गिरफ्तारी के विरोध में गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की धमकी दी।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा में राजनितिक जुलूस पर पुलिस द्वारा फायरिंग के विरोध में भीड़ ने थाना पर हमला करके 5 फरवरी, 1922 ई॰ को 22 पुलिसकर्मियों की जान ले ली।
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12 फरवरी, 1922 को गाँधीजी के निर्णनयानुसार आन्दोलन को स्थगित कर दिया गया।
गाँधीजी को ब्रिटिश सरकार द्वारा मार्च, 1922 ई॰ में गिरफ्तार करके 6 वर्षों के कारावास की सजा दी गई।
परिणाम :
असहयोग आंदोलन के अचानक स्थगित हो जाने और गांधीजी की गिरफ्तारी के कारण खिलाफत के मुद्दे का भी अंत हो गया।
हिन्दु-मुस्लिम एकता भंग हो गई तथा सम्पूर्ण भारत में साम्प्रदायिकता का बोलबाला हो गया।
न ही स्वराज की प्राप्ति हुई और न ही पंजाब के अन्यायों का निवारण हुआ।
इन असफलताओं के बावजूद इस आंदोलन ने महान उपलब्धि हासिल की।
कांग्रेस और गांधी में सम्पूर्ण भारतीय जनता का विश्वास जागृत हुआ।
समूचा देश पहली बार एक साथ आंदोलित हो उठा।
चरखा एवं करघा को भी बढ़ावा मिला।
सविनय अवज्ञा आंदोलन
गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत दांडी यात्रा से की।
12 मार्च, 1930 ई॰ को साबरमती आश्रम से अपने 78 अनुयायियों के साथ दांडी समुद्र तट तक ऐतिहासिक यात्रा शुरु की।
24 दिनों में 250 किलोमीटर की पदयात्रा के पश्चात् 5 अप्रैल को वे दांडी पहुँचे।
6 अप्रैल को समुद्र के पानी से नमक बनाकर कानुन का उल्लंघन किया।
आंदोलन का कार्यक्रम–
हर जगह नमक कानुन का उल्लघंन किया जाना।
छात्रों स्कूल एवं कॉलेजों का बहिष्कार करना।
विदेशी कपड़ों को जलाया जाना चाहिए।
सरकार को कोई कर नहीं अदा किया जाना चाहिए।
औरतों को शराब के दुकानों के आगे धरना देना चाहिए।
वकील अदालत छोडें तथा सरकारी कर्मचारी पदत्याग करें।
हर घर में लोग चरखा काटें तथा सूत बनायें।
इन सभी कार्यक्रमों में सत्य एवं अहिंसा को सर्वोपरि रखा जाए तभी पूर्ण स्वराज की प्राप्ति हो सकती है।
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गांधी–इरविन पैक्ट :
सविनय अवज्ञा आंदोलन की व्यापकता ने अंग्रेजी सरकार को समझौता करने के लिए बाध्य किया।
सरकार को गांधी के साथ समझौता करनी पड़ी। जिसे ‘गांधी-इरविन पैक्ट’ के नाम से जाना जाता है। इसे ‘दिल्ली समझौता’ के नाम से भी जाना जाता है।
यह समझौता 5 मार्च, 1931 को गांधीजी और लार्ड इरविन के बीच हुई।
इसके तहत गांधी जी ने आंदोलन को स्थगित कर दिया तथा द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने हेतु सहमत हो गए।
गांधीजी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, परन्तु वहाँ किसी भी मुद्दे पर सहमति नहीं बन सकी। अतः वह निराश वापस लौट गए।
दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार ने दमन का सिलसिला तेज कर दिया था। तब गांधीजी ने दुबारा सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रारंभ किया।
इसमें पहले जैसा धार एवं उत्साह नहीं था, जिससे 1934 ई॰ में आंदोलन पूरी तरह वापस ले लिया।
चम्पारण आन्दोलन
बिहार के नील उत्पादक किसानों की स्थिति बहुत दयनीय थी।
यहाँ नीलहे गोरों द्वारा तीनकठिया व्यवस्था प्रचलित थी, जिसमें किसानों के अपने भूमि के 3/20 हिस्से पर नील की खेती करनी पड़ती थी। यह समान्यतः उपजाऊ भूमि होती थी।
किसान नील की खेती करना नहीं चाहते थे क्योंकि इससे भूमि की उर्वरता कम हो जाती थी।
1908 में तीनकठिया व्यवस्था में सुधार लाने की कोशिश की थी, परन्तु इससे किसानों की गिरती हुई हालत में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
नीलहों के इस अत्याचार से किसान त्रस्त थे।
इसी समय 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में चम्पारण के ही एक किसान राजकुमार शुक्ल ने सबका ध्यान समस्या की ओर आकृष्ट कराया तथा महात्मा गांधी को चम्पारण आने का अनुरोध किया।
किसानों की माँग को लेकर 1917 में महात्मा गाँधी ने चंपारण आंदोलन की शुरुआत की।
गांधीजी के दबाव पर सरकार ने ‘चम्पारण एग्रेरीयन कमेटी’ का गठन किया। गांधीजी भी इस कमेटी के सदस्य थे।
इस कमेटी के सिफारिश पर ब्रिटीश सरकार ने किसानों पर से तीनकठिया व्यवस्था और अन्य कर भी समाप्त कर दिया।
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खेड़ा आन्दोलन
गुजरात के खेड़ा जिला में किसानों ने लगान माफी के लिए आंदोलन चलाया।
महात्मा गाँधी ने लगान माफी के लिए किसानों की माँग का समर्थन किया क्योंकि 1917 में अधिक बारिस के कारण खरीफ की फसल को व्यापक क्षति पहुँची थी।
लगान कानुन के अन्तर्गत ऐसी स्थिति में लगान माफी का प्रावधान नहीं था।
22 जून, 1918 को यहाँ गाँधीजी ने सत्याग्रह का आह्वान किया, जो एक महीने तक जारी रहा।
इसी बीच रबी की फसल होने तथा सरकार द्वारा भी दमनकारी उपाय समाप्त करने से स्थिति काफी बदली और गाँधीजी ने सत्याग्रह समाप्त करने की घोषणा कर दी।
इस सत्याग्रह के द्वारा गुजरात के ग्रामीण क्षेत्र में भी किसानों में अंग्रेजों की शोषण मूलक कानूनों का विरोध करने का साहस जगा।
मोपला विद्रोह
आधुनिक केरल राज्य के मालाबार तट पर किसानों का एक बड़ा विद्रोह हुआ, जिसे मोपला विद्रोह कहा जाता है।
मोपला स्थानीय पट्टेदार और खेतिहर थे, जो इस्लाम धर्म के अनुयायी थे, जबकि स्थानीय ‘नम्बूदरी’ एवं ‘नायर’ भू-स्वामी उच्च जातीय हिन्दू थे।
अन्य भू-स्वामीयों की तरह उन्हें भी सरकारी संरक्षण प्राप्त था और पुलिस एवं न्यायालय इनका समर्थन करती थी।
1921 में एक नयी स्थिति उत्पन्न हुई जब कांग्रेस ने किसानों के हित में भूमि एवं राजस्व सुधारों की मांग की और खिलाफत आंदोलन को समर्थन दे दिया।
इस नई स्थिति से उत्साहित हो कर मोपला विद्रोहियों ने एक धार्मिक नेता अली मुसालियार को अपना राजा घोषित कर दिया और सरकारी संस्थाओं पर हमले आरंभ कर दिए।
परिस्थिति की गंभिरता को देखते हुए अक्टूबर 1921 में विद्रोहियों के खिलाफ सैनिक कार्रवाई आरम्भ हूयी।
दिसम्बर तक दस हजार से अधिक विद्रोही मारे गए और पचास हजार से अधिक बन्दी बना लिए गए।
इस प्रकार यह विद्रोह धीरे-धीरे समाप्त हो गया।
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बारदोली सत्याग्रह
फरवरी 1928 ई॰ में गुजरात के बारदोली ताल्लुका में लगान वृद्धि के खिलाफ किसानों में असंतोष की भावना जागृत हुई।
सरकार द्वारा गठित ‘बारदोली जाँच आयोग’ की सिफारिशों से भी किसान असंतुष्ट रहे और उन्होंने सरकार के निर्णय के विरूद्ध आंदोलन छेड़ा।
इसमें सरदार बल्लभ भाई पटेल की निर्णायक भूमिका रही। इसी अवसर पर उन्हें सरदार की उपाधि दी गई।
किसानों के समर्थन में बम्बई में रेलवे हड़ताल हुयी।
के॰ एम॰ मुंशी और लालजी नारंगी ने आंदोलन के समर्थन में बम्बई विधान परिषद् की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया।
सरकार को ब्लूमफील्ड और मैक्सवेल के नेतृत्व में नई जाँच समिति का गठन करना पड़ा।
नई जाँच समिति ने इस वृद्धि को अनुचित माना।
अन्ततः सरकार को लगान की दर कम करनी पड़ी।
यह आंदोलन सफल ढंग से सम्पन्न हुआ।
किसान सभा का गठन
1922-23 में मुंगेर में शाह मुहम्मद जुबैर के नेतृत्व में किसान सभा का गठन हुआ।
1928 में स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने बिहटा में तथा 1929 में सोनपुर में किसान सभा का गठन किया।
11 अप्रैल 1936 को लखनऊ में ‘अखिल भारतीय किसान सभा‘ का गठन हुआ।
मजदूर आन्दोलन
यूरोप में औद्योगीकरण और मार्क्सवादी विचारों का प्रभाव भारत में भी पड़ा, जिसके फलस्वरूप औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ मजदूर वर्ग में चेतना जागृत हुयी।
1917 में अहमदाबाद में प्लेग की महामारी के कारण मजदूरों को शहर छोड़कर जाने से रोकने के लिए मिल मालिकों ने उनके वेतन में वृद्धि कर दी, लेकिन महामारी खत्म होने पर समाप्त कर दी गई।
1920 को कांग्रेस पार्टी ने ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस‘ की स्थापना की।
राष्ट्रीय आंदोलन में मजदूरों का समर्थन जारी रहा।
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जनजातीय आंदोलन
19वीं शताब्दी की तरह 20वीं शताब्दी में भारत के अनेक भागों में आदिवासी आंदोलन होते रहे।
जैसे 1916 के रम्पा विद्रोह, 1914 के खोंड विद्रोह, 1914 से 1920 ई. तक जतरा भगत के नेतृत्व के कई विद्रोह हुए।
भारतीय राजनीतिक दल
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस :
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की स्थापना से माना जाता है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ऐलेन ऑक्ट्रोवियन ह््यूम ने किया। जो स्कॉटलैण्ड के निवासी थे।
इसके प्रथम अध्यक्ष व्योमेशचन्द्र बनर्जी थे।
इसकी स्थापना 1885 ई. में हुई।
वामपंथ/कम्युनिस्ट पार्टी
1920 ई. में एम. एन. राय ने ताशकंद में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की।
अंग्रेजी सरकार भारत के कम्युनिस्ट नेताओं को अलग-अलग मुकदमों में फंसाकर भारत में समाजवाद के प्रसार को रोकना चाहते थे।
कम्युनिस्ट पार्टी में बाद में बड़ी संख्या में मजदूरों और किसानों को शामिल किया गया।
लेबर स्वराज पार्टी भारत में पहली किसान मजदूर पार्टी थी।
फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना सुभाषचन्द्र बोस के द्वारा किया गया।
कांग्रेस समाजवादी पार्टी की स्थापना 1934 में हुआ।
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मुस्लिम लीग :
1857 के विद्रोह में हिन्दू-मुस्लिम एकता ने अंग्रेजों को अचम्भित कर दिया था।
अंग्रेजों ने भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता को भंग करने के लिए 1858 से ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति अपनाई।
1887 में लार्ड डफरिन ने कांग्रेस को हिन्दूओं की पार्टी कहकर संबोधित किया। इससे मुस्लमानों को लगने लगा कि कांग्रेस हिन्दू राज्य की स्थापना करना चाहती है।
इसी भावना से मुस्लिम लीग की स्थापना की गई।
सर आगा खां और सलीमुल्लाह खां के नेतृत्व में 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना की नींव रखी।
ढाका में 30 सितम्बर 1906 को एक सम्मेलन बुलाया गया जहाँ इसका नाम बदलकर ‘ऑल इंडिया मुस्लिम लीग’ रखा गया।
इसका उद्देश्य मुसलमानों को सरकारी सेवाआें में उचित अनुपात में स्थान दिलाना एवं न्यायाधीशों के पदों पर भी मुसलमानों को जगह दिलाना।
स्वराज पार्टीअसहयोग आंदोलन के अचानक वापस लेने से दूखी होकर मोतिलाल नेहरू और चितरंजन दास ने स्वराज पार्टी की स्थापना 1 जनवरी 1923 ई. में किया।
स्वराज पार्टी का उद्देश्य अंग्रेजों द्वारा चलाई गयी सरकारी परम्पराओं का अंत चाहते थे।यह सरकारी कार्यों में दखल देते थे।
यह धारा सभाओं में जाते थे और विभिन्न मुद्दों पर बहस करने के बाद विरोध करते हुए बाहर निकल जाते थे।
उनकी नीति दमनकारी कानूनों का विरोध करना था।
अपनी नीतिओं पर नहीं टिके रहने के कारण स्वराज पार्टी का अंत 1926 तक हो गया।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से असंतुष्ट होकर भारतीय नेताओं ने राष्ट्रीय चेतना के प्रसार में हिन्दू धर्म का सहारा लेना शुरू कर दिया।
1875 में बम्बई में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना किया। तथा ‘वेदों की ओर लौटो’ का नारा दिया।
1915 में पं. मदन मोहन मालवीय द्वारा हरिद्वार में हिन्दू महासभा की स्थापना किया।
महात्मा गाँधी के आने के बाद साम्प्रदायिक पार्टियां को लोग महत्व देना कम कर दिए।
असहयोग आंदोलन स्थगन के बाद फिर से सांप्रदायिकता का बोल-बाला हो गया।
बालगंगाधर के अनुयायी के. बी. हेडगेवार ने 1925 में नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।
इस संघ का मुख्य उद्देश्य भारतीय हिन्दू नवयुवकों को अनुशासित एवं चारित्रिक रूप से मजबूत कर राष्ट्र का निर्माण करना था।
4.भारत में राष्ट्वाद
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1.खिलाफ आंदोलन क्यों हुआ ?
उत्तर :- प्रथम विस्वयुद्ध में ब्रिटेन के खिलाफ तुर्की के पास प्राजाय के फस्वरूप ऑटोमन समराज्य को विघटित कर दिया गया। तुर्की के सुल्तान को अपने शेष प्रदेश में भी अपनी सता के प्रयोग से वंचित कर दिया गया 1920 के प्रति ब्रिटेन को अपनी नीति बदलने के लिए बाध्य करने हेतु जोरदार आंदोलन किया जिसे खिलाफत कहा जाता हैं।
2.रॉलट एक्ट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :- बढ़ती हुई क्रांतिकारी घटनाओं एवं असंतोष को दबाने के लिए लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने न्यायाधीश किडनी का अध्यक्षता में एक सीमित की। समिति ने क्रांतिकारी को रोकने के लिए निरोधात्मक एवं दंडात्मक दोनों प्रकार का सुझाव दिया। 21 मार्च 1919 को केंद्रीय विधान परिषद में पारित किया गया। किसी भी व्यक्ति को अमान्य साक्ष्य और बिना वारंट के भी गिरफ्तार किया जा सकता था।
3.दांडी यात्रा का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर :- दांडी यात्रा का उद्देश समुद्र के पानी से नमक बनाकर कानून का उल्लंघन करना था।
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4.गांधी इरविन पैक्ट अथवा दिल्ली समझौता क्या था ?
उत्तर :- सविनय अवज्ञा आंदोलन की व्यापकता ने अंग्रेजी सरकार से समझौता किया। जिसे ‘गांधी इरविन पैक्ट’, ‘दिल्ली समझौता’के नाम से जाना जाता है। मार्च 1931 को गांधीजी एवं लॉर्ड इरविन के बीच संपन्न हुए।गांधी जी ने आंदोलन को स्थापित केंद्र किया। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए तैयार हो गया।
5.चंपारण सत्याग्रह का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर :- बिहार के नील उत्पादक किसानों की स्थिति बहुत दयनीय थी। जिसमें किसानों के अपने भूमि के 2/30 हिस्से पर खेती करनी पड़ती थी। किसान नील की खेती करना चाहते थे। क्योंकि इससे भूमि की उर्वरता कम हो जाती है।
6.मेरठ षड्यंत्र से आप क्या समझते ?
उत्तर :- मेरठ षड्यंत्र केस और लाहौर षड्यंत्र केस ने सरकार विरोधी विचारधारा को उग्र बना दिया था। बंगाल में क्रांतिकारी राष्ट्रवादी की गतिविधियां एक बार फिर उभरी। अप्रैल 1930 में चटगांव में सरकारी शस्त्रागार पर क्रांतिकारियों ने योजनाबद्ध पर छापा मारा जिसका नेतृत्व सूर्य सेन कर रहे थे।
7.जतरा भगत के बारे में आप क्या जानते हैं? संक्षिप्त में लिखें।
उत्तर :- अंग्रेजो के खिलाफ आदिवासियों ने 1914 ई.से 1918 ई. के विद्रोह किया जिसका नेतृत्व जतरा भगत इस आंदोलन में सामाजिक एवं शैक्षणिक सुधार पर विशेष बल दिया तथा मौस,मदिरा और आदिवासी नृत्य से दूर रहने की बात की गई।
8.ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना क्यों हुई ?
उत्तर :- 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में ही भारत में साम्यवादी विचारधारा के अंतर्गत मुंबई,कोलकाता, कानपुर, लाहौर, मद्रास आदि जगहों पर साम्यवादी सभाएं बननी शुरू हो गई थी।ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना 1920 ई. में कांग्रेस पार्टी ने की थी राष्ट्रीय आंदोलन में किसानों और श्रमिकों का सहयोग करना था।
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लघु उत्तरीय प्रश्न
1.असहयोग आंदोलन प्रथम जन आंदोलन था। कैसे?
उत्तर :- असहयोग आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया प्रथम जन आंदोलन था।इस जन आंदोलन के मुख्य तीन कारण है।
(i) खिलाफ का मुद्दा।
(ii) पंजाब में सरकार की बर्बर कार्यवाइयो के विरुद्ध न्याय प्राप्त करना ।
(iii) स्वराज की प्राप्ति करना ।
इस आंदोलन में दो तरह के कार्यक्रम को अपनाया गया। प्रथम अंग्रेजी सरकार को कमजोर करने एवं नैतिक रूप से पराजित करने के लिए। अपराधियों एवं अवैतनिक पदों का त्याग करना, एवं सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों का बहिष्कार करना।
द्वितीय न्यायालय का स्थान पर पंचों का फैसला मानना था, कि सरकारी स्कूलों कॉलेजों का बहिष्कार करने वाले विद्यार्थी पढ़ाई जारी रख सकें।
2.सविनय अवज्ञा आंदोलन के क्या परिणाम हुए हैं?
उत्तर :- सविनय अवज्ञा आंदोलन के निम्नलिखित परिणाम हुए हैं।
(i) गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत दांडी यात्रा से की ।
(ii) आंदोलन में महिलाओं ने चढ़ बढ़ हिस्सा ली
(iii) इस आंदोलन में श्रमिक एवं कृषक आंदोलन को भी प्रभावित किया।
(iv) पहली बार ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस से समानता के आधार पर बात की।
(v) 6 अप्रैल को समुद्र के पानी से नमक बनाकर कानून का उल्लंघन किया।
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3.भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किन परिस्थितियों में हुई?
उत्तर :- 1883 ई. के दिसंबर में इंडियन एसोसिएशन के सचिव ‘आनंद मोहन बोस’ने कोलकाता में ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस’नामक एक अखिल भारतीय संगठन का सम्मेलन बुलाया जिसका उद्देश्य बिखरे राष्ट्रवादी शक्तियों को एकजुट करना था दूसरी तरफ रिटायर्ड ब्रिटिश अधिकारी ऐलेन, आकट्रोवीयन ह्युम ने भारतीय राष्ट्रीय संघ की स्थापना की। 28 दिसंबर 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई।उस में कुल 72 सदस्य शामिल थे।.
4.बिहार के किसान आंदोलन पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर :- 1917 इ. में महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की। 1920 मे बिहार, बंगाल,उत्तर प्रदेश,एवं पंजाब में किसान सभा का गठन हुआ। बिहार में 1922-23 में मुंगेर में शाह मोहम्मद जुबैर के नेतृत्व में किसान सभा का गठन हुआ था। व्यापक एवं शक्तिशाली आधार 1928 ई.में प्राप्त हुआ, जब स्वामी सहजानंद सरस्वती ने बिहटा में 1929 में सोनपुर में किसान सभा की स्थापना की सरदार पटेल में बिहार की यात्रा की इस आंदोलन को बल मिला।अप्रैल 1936 को लखनऊ में ‘अखिल भारतीय’किसान सभा का गठन हुआ। बिहार में बकास्ट आंदोलन आरंभ हुआ। कांग्रेस द्वारा 1937 के अधिवेशन में प्रमुख मांग के रूप में स्वीकार किया।
5.स्वरज पार्टी के स्थापना एवंउद्देश की विवेचना करें।
उत्तर :- स्वराज पार्टी की स्थापना मोतीलाल नेहरू और चितरंजन दास ने कि। मार्च 1923 में स्वराज पार्टी का प्रथम सम्मेलन इलाहाबाद में हुआ।
स्वराज पार्टी का मुख्य उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से भिन्न नहीं था। वे भारत में अंग्रेजों द्वारा चलाई गई सरकारी परंपराओं का अंत चाहते थे। वे लोग 1919 के सुधार अधिनियम में सुधार या उसका अंत चाहते थे। और राष्ट्रीय शक्ति का विकास करना एवं आवश्यकता पड़ने पर पद त्याग कर सत्याग्रह में भाग लेना।
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1.प्रथम विश्व युद्ध का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के साथ अंतसंबंधों की विवेचना करें।
उत्तर :- प्रथम विश्वयुद्ध विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी। प्रथम विश्वयुद्ध औद्योगिक क्रांति के परिणाम स्वरुप उपनिवेश व्यवस्था भारत सहित अन्य एशियाई तथा अफ्रीकी देशों में सुरक्षित रखने के प्रयासों के क्रम में लड़ा गया। ब्रिटेन के सभी उपनिवेश में भारत सबसे महत्वपूर्ण था। ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की 1916 में सरकार ने भारत में आयात शुल्क लगाया ताकि भारत में कपड़ा उद्योगों का विकास हो सके और उसका फायदा अंग्रेजों को मिल सके।
युद्ध प्रारंभ होने के साथ ही तित्वक और गाँधी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने ब्रिटिश सरकार के स्वराज संबंधित स्वशासन में भरोसा था। युद्ध के आगे बढ़ने के साथ ही भारतीय का भ्रम टूटा। 1915-17 के बीच एनी बेसेंट और तिलक ने भारत में हिम रूल लीग आंदोलन आरंभ किया। प्रथम विश्वयुद्ध के वर्षो मैं ही 1916 में दो महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएँ हुई महात्मा गाँधी का उत्कर्ष उनके द्वारा संचालित तीन सफल सत्याग्रह, चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद आंदोलन के बाद हुआ।
2.असहयोग आंदोलन के कारण एवं परिणाम का वर्णन करें।
उत्तर :- असहयोग आंदोलन 1920-22 महात्मा गाँधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया प्रथम जन आंदोलन थ।इस आंदोलन के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(i) खिलाफत क मुद्दा
(ii) पंजाब में सरकार की बर्बर करवाईयो के विरुद्ध न्याय प्राप्त करना
(iii) स्वराज की प्राप्ति करना
1 जनवरी 1921 ईस्वी को महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।संपूर्ण भारत में असहयोग आंदोलन को सफलता मिली विदेशी कपड़ों का बहिष्कार एवं छात्रों द्वारा सरकारी स्कूल – कॉलेजों का बहिष्कार जारी रहा। आंदोलन में राष्ट्रीय विद्यालय,जामिया, मिलिया, इस्लामिया अलीगढ़, मुस्लिम विश्वविद्यालय और काशी की स्थापना की गई। 17 नवंबर 1921 को मुंबई में राष्ट्रव्यापी हड़ताल के साथ किया गया
सरकार ने आंदोलन को गैरकानूनी करार देते हुए लगभग तीस हजार आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया। पुलिस द्वारा फायरिंग के विरोध में भीड़ ने थाना पर हमला करके 5 फरवरी 1922 ईस्वी को 22 पुलिसकर्मियों की जान ले ली। गाँधी जी को ब्रिटिश सरकार द्वारा मार्च 1922 में गिरफ्तार करके 6 वर्ष का कारावास की सजा दी गई।
असहयोग आंदोलन के अचानक स्थगित हो जाने और गांधीजी की गिरफ्तारी के कारण खिलाफत के मुद्दे का अंत हो गया। चरखा एवं करघा को भी बढ़ावा मिला है
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3.सविनय अवज्ञा आंदोलन के विकास का वर्णन करें
उत्तर :- ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गाँधी जी के नेतृत्व में 1930 ईस्वी में शुरू किया। सविनय अवज्ञा आंदोलन दूसरा ऐसा जन आंदोलन था। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक शुन्यता की स्थिति पैदा हो गई थी। राष्ट्रवाद को एक नया जीवन प्रदान किया सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण निम्न है।
(i) साइमन कमीशन :- 1919 के एक्ट को पारित करते समय ब्रिटिश सरकार ने यह घोषणा की थी, कि 10 वर्षों के पश्चात चुनाव सुधारों की समीक्षा होगी।नवंबर 1927 में ब्रिटिश सरकार ने इंडियन स्टेटयूटरी की ओरी कमीशन का गठन किया जिससे साइमन कमीशन कहा जाता है।
(ii) नेहरू रिपोर्ट :- साइमन कमीशन के बहिष्कार के समय कांग्रेस ने फरवरी 1928 ईस्वी में एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन किया।
(iii) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव:- 1929-30ई. की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत का निर्यात कम हो गया, अनेक कारखानों बंद हो गए, पूरे देश की वातावरण सरकार के खिलाफ थी।
(iv) समाजवाद का बढ़ता प्रभाव :- समाज के बढ़ते प्रभाव के कारण बाम पंथी दबाव के संतुलित करने हेतु एक आंदोलन के एक नए कार्यक्रम की आवश्यकता थी।
(v) क्रांतिकारी आंदोलनों का उभार :- देश में क्रांतिकारी आंदोलन विस्फोट हो चुकी थी। ऐसे में देश के नव युवकों के लिए एक नई दिशा व पहल की आवश्यकता थी।
4.भारत में मजदूर आंदोलन के विकास का वर्णन करें।
उत्तर :- यूरोप में औद्योगिकीकरण और मार्क्सवादी विचारों पर विकास का प्रभाव अन्य देशों पर भी पड़ा और भारत में औद्योगिक के साथ-साथ मजदूर वर्ग में चेतना हुई। बीसवीं शताब्दी के मजदूरों के नियम के गठन के बाद कही।दूसरी ओर स्वदेशी आंदोलन का भी प्रभाव मजदूर पर पड़ा। 1917 में अहमदाबाद में प्लेट की महामारी के कारण मजदूरों शहर छोड़कर जाने लगे उसे रोकने के लिए मालिकों के वेतन को बढ़ाएँ। उन्हीं के सुझाव पर बोनस बहाल किया गया। और इसकी दर 35% दर्ज की गई 1917 की रूसी क्रांति कारण कम्युनिस्ट इंटरनेशनल तथा श्रम संगठन की भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन एवं मजदूर वर्ग दोनों पड़ पड़ा। 31 अक्टूबर 1920 को कांग्रेस पार्टी ने ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की।
1931 ईस्वी में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस का विभाजन हो गया राष्ट्रीय आंदोलन में जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस आदि नेताओं द्वारा समाजवादी जारी रहा।
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5.भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गांधीजी के योगदान की विवेचना करें।
उत्तर :- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी का महत्वपूर्ण योगदान रहा। जनवरी 1915 ईस्वी में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गाँधी जी ने रचनात्मक के लिए अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की।1919 ई. से 1947 ई. तक राष्ट्रवादी आंदोलन में गाँधीजी की अग्रणी भूमिका रही। गाँधी जी के द्वारा चंपारण में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग किया गया जो सफल रहा। चंपारण एवं खेड़ा में कृषक आंदोलन और अहमदाबाद में श्रमिक आंदोलन का नेतृत्व प्रदान कर प्रथम विश्वयुद्ध के अंतिम दौर में कांग्रेस होमरूल एवं मुस्लिम नेताओं के साथ संबंध किया ब्रिटिश सरकार की उत्पीड़नकारी नीतियाँ एवं रलेट एक्ट के विरोध में सत्याग्रह की शुरुआत की।
महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन 1920-21 ईसवी तक कि, सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 ईस्वी में कि,भारत छोड़ो आंदोलन 1942 ईस्वी, के द्वारा राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान की और 15 अगस्त 1947 ईस्वी को देश आजाद हुआ।
6.भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में वामपंथियों की भूमिका को रेखांकित करें।
उत्तर :- बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक काल में ही भारत में सम्यवादी बिचारधाराओं के अंतगर्त बम्बई, कलकत्ता, कानपुर, लाहौर, मद्रास आदि जगह पर साम्यवादी सभाए बननी शुरू हो गई थी।उस विचार से जुड़े लोगों में मुजफ्फर अहमद, एस. ए. डागे मौलवी, बारकतुल्ला गुलाम हुसैन नाम थे। 1920में एम. एन. राय ने भारतीय काम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद सरकार ने इन लोगो कादमन शुरू किया और पेशावर षडयंत्र केस 1924 और मेरठ षडयंत्र केस 1929-33 के तहत 8 लोगो पर मुकदमे चलाये गए । रास्ट्रीय‘सम्यवादी शहीद ‘कहे जाने वाले व्यक्ति ने भारतीय काम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की भारतीय काम्युनिस्ट पार्टी में दिलचस्पी लेना शुरू किया।
अब तक कई मजदूर संघों का गठन हो चुका था।1920 में AITUC की स्थापना हो गई थी।1926 में इससे विभाजन हो गया,और 1929 में एल. एम. जोशी ने AITUF का गठन कर लिया। भारतीय स्तर पर दिसंबर 1928 में भारतीय मजदूर किसान पार्टी बने।इनमें जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण आदि। 1934 में समाजवादी दल की स्थापना की गई।
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