Bihar Board Class 9 Hindi भारत का पुरातन विद्यापीठ : नालंदा (Bharat Ka Puratan Vidyapith Nalanda Class 9th Hindi Solutions) Text Book Questions and Answers
2. भारत का पुरातन विद्यापीठ : नालंदा
लेखक – राजेन्द्र प्रसाद
पाठ का सारांश
मगध की प्राचीन राजधानी वैभार गिरि पाँच पर्वतों के मध्य में बसी हई गिरिब्रज या राजगृह के तप्त कुंडों से सात मील उत्तर की ओर नालंदा है। नालंदा हमारे इतिहास में अति आकर्षक नाम है। इसका अतीत अति गौरवपूर्ण रहा है। यह एक ऐसा उज्ज्वल दृष्टान्त है, जहाँ ज्ञान के क्षेत्र में देश तथा जातियों के भेद लुप्त थे। नालंदा की वाणी एशिया महाद्वीप में पर्वतों और समुद्रों के उस पार तक फैली हुई थी।
नालंदा भगवान बुद्ध एवं महावीर जैन की कर्मस्थली था। बुद्ध के समय नालंदा गाँव में प्रावारिकों का आम्रवन था। यहीं महावीर ने चौदह वर्षों तक व्यतीत किए थे। सूत्रकृतांगके अनुसार नालंदा के एक धनी नागरिक लेप ने धन-धान्य, शैया, आसन, रथ, स्वर्ण आदि के द्वारा भगवान बुद्ध का स्वागत किया और उनका शिष्य बन गया।
Bharat Ka Puratan Vidyapith Nalanda Class 9th Hindi Solutions
तिब्बती विद्वान इतिहास-लेखक लामा तारानाथ के अनुसार नालंदा सारिपुत्त की जन्मभूमि थी। यहाँ इनका एक चैत्य था। राजा अशोक ने एक मंदिर बनवाकर उसे परिवर्द्धित किया। यद्यपि नालंदा की प्राचीनता की अनुश्रुति बुद्ध तथा अशोक दोनों से संबंधित है, किंतु एक प्राणवंत विद्यापीठ के रूप में उसके जीवन का आरंभ गुप्तकाल में हुआ। इतिहास-लेखक तारानाथ के अनुसार भिक्ष नागार्जुन तथा आर्यदेव दोनों का संबंध नालंदा से रहा है। उनका कहना है कि आचार्य दिड्नाग ने यहाँ आकर अनेक प्रतिपक्षियों के साथ शास्त्रों का विचार किया था, जिनमें सुदुर्जय नामक ब्राह्मण अग्रणी था। चौथी शताब्दी में चीनी यात्री फाह्यान नालंदा आए थे। सातवीं सदी में समाट हर्षवर्द्धन के समय में युवानचांग जब यहाँ आए तो नालंदा अपनी उन्नति के शिखर पर था। युवानचांग ने कहा है कि इसका नाम नालंदा इसलिए पड़ा, क्योकि अपने पूर्व-जन्म में उत्पन्न भगवान बुद्ध को तृप्ति नहीं होती थी। इसका कारण यह है कि ज्ञान के क्षेत्र में जो दान दिया जाता है, उसमें न तो ज्ञान देने वाले तृप्त होते हैं और न ही ज्ञान प्राप्त करनेवालों को हो तृप्ति मिलती है।
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना जनता के उदार दान से हुई थी। ऐसी मान्यता है कि पाँच सौ व्यापारियों ने अपने धन से भूमि खरीदकर बुद्ध को दान में दी थी। आठवीं सदी के यशोवर्मन के शिलालेख में नालंदा का भव्य वर्णन किया गया है कि यहाँ के विहारों के शिखर आकाश में मेघों को छूते थे। इनके चारों ओर नीले जल से भरे सरोवरों में सुनहरे एवं लाल कमल तैरते थे, सघन आग्रकुंजों की छाया थी। यहाँ के भवनों के शिल्प और स्थापत्य को देखकर आश्चर्य होता था। इनमें अनेक अलंकरणों सहित मूर्तियों थी। चीनी यात्री इत्सिंग के समय इस विहार में तीन सौ बड़े कमरे तथा आठ मंडप थे। पुरातत्व विभाग की खुदाई में नालंदा विश्वविद्यालय के जो अवशेष मिले हैं, उनसे इन वर्णनों की सच्चाई प्रकट होती है।
नालंदा विश्वविद्यालय में कार्यरत शिक्षकों एवं छात्रों के नित्य प्रति के व्यय के लिए सौ गाँवों की आय अक्षय निधि के रूप में समर्पित की गई थी। इत्सिंग के समय इन गाँवों की संख्या बढ़कर दो सौ के पास पहुँच गई थी। नालंदा विश्वविद्यालय के निर्माण एवं अर्थव्यवस्था में उत्तर प्रदेश, बिहार तथा बंगाल का महत्त्वपूर्ण योगदान था। नालंदा की खुदाई में बंगाल के महाराज धर्मपालदेव तथा देवपालदेव के समय के ताम्रपत्र और मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। इतना ही नहीं, विदेशों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय का जो संबंध था, उसका स्मारक एक ताम्रपत्र भी खुदाई में मिले हैं। ताम्रपत्र के अनुसार, नालंदा के गुणों से प्रभावित होकर यव द्वीप के सम्राट बालपुत्र ने नालंदा में एक बड़े विहार का निर्माण कराया था। सम्राट देवपालदेव द्वारा दान में दिए गए पाँच गाँवों की आय से अन्तर्राष्ट्रीय आर्य भिक्षु संघ के भोजन, चिकित्सा, शयनासन, विहार की मरम्मत तथा धार्मिक ग्रंथों की प्रतिलिपि आदि में व्यय की जाती थी। यह तो संयोग से बचा हुआ एक प्रमाण है, जो विदेशों में फैली हुई नालंदा की अमिट छाप हमारे सामने रखता है। नालंदा महाविहारीय आर्य भिक्षु संघ की बहुत-सी मिट्टी की मुद्राएँ भी नालंदा में प्राप्त हुई हैं।
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नालंदा का शिक्षाक्रम ऐसा व्यावहारिक था कि छात्र पढ़कर दैनिक जीवन मेंअधिकाधिक सफलता प्राप्त करते थे। यहाँ मुख्यतः पाँच विषयों की शिक्षा दी जाती थी।
जैसे-भाषा का सम्यक् ज्ञान के लिए-शब्द विद्या या व्याकरण की, विषय-वस्तु की परख के लिए तर्कशास्त्र की. स्वास्थ्य ज्ञान के लिए चिकित्साशास्त्र की, अर्थ प्राप्ति के लिए-शिल्पशास्त्र की तथा इसके अतिरिक्त धर्म एवं दर्शनशास्त्र की। शील भद्र योगशास्त्र के प्रसिद्ध विद्वान थे। इनसे पहले इस संस्था के कुलपति धर्मपाल थे। शीलभद्र, ज्ञानचंद्र, प्रभामित्र, स्थिरमति, गुणमति आदि अन्य आचार्य युवानचंग के समाकलीन थे। जब युवानचंग यहाँ से विदा होने लगे तब शीलभद्र एवं अन्य भिक्षुओं ने उनसे आग्रह किया कि वे यहीं रह जाएँ। इस पर युवानचांग ने कहा कि यहाँ आने का मेरा उद्देश्य भगवान बुद्ध के महान धर्म की खोज करना तथा दूसरों को इस धर्म के विषय में समझाना था, ताकि लोग इस धर्म के प्रति आकृष्ट हों और प्रचार-प्रसार कर सकें।
नालंदा के विद्वानों ने विदेशों में जाकर ज्ञान का प्रसार किया। तिब्बत के प्रसिद्ध सम्राट सांग छन गम्पों ने अपने देश में भारतीय लिपि तथा ज्ञान के प्रचार के लिए थोन्मिसम्भोट को बौद्ध और बाह्मण साहित्य की शिक्षा प्राप्त करने नालंदा भेजा। इसके बाद नालंदा के कुलपति आचार्य शान्ति रक्षित सम्राट के आमंत्रण पर तिब्बत गए । इन्होंने ही सबसे पहले तिब्बत में बौद्ध विहार की स्थापना की थी। साहित्य तथा धर्म के क्षेत्र में भी नालंदा एक प्रसिद्ध केन्द्र था । लेखक अपनी अभिलाषा प्रकट करते हुए कहता है कि भूतकाल से शिक्षा लेते हुए नालंदा में पुनः ‘ज्ञान केन्द्र’ की स्थापना करें।
अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर
पाठ के साथ
प्रश्न 1. ” नालंदा की वाणी एशिया महाद्वीप में पर्वत और समुद्रों के उस पार तक फैल गई थी ।” इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – संकेत : पृष्ठ 20 पर व्याख्या संख्या (1) देखें ।
प्रश्न 2. मगध की प्राचीन राजधानी का नाम क्या था और वह कहाँ अवस्थित थी ?
उत्तर – मगध की प्राचीन राजधानी का नाम वैभार था, जो पाँच पर्वतों के मध्य बसी हुई गिरिव्रज या राजगृह में अवस्थित थी ।
प्रश्न 3. बुद्ध के समय नालंदा में क्या था ?,
उत्तर—बुद्ध के समय नालंदा में प्रावारिकों (उत्तरीय वस्त्रों के निर्माता) का आम्रवन था ।
प्रश्न 4. महावीर और मेखलिपुत्त गोसाल की भेंट किस उपग्राम में हुई थी ?
उत्तर—जैन ग्रंथों के अनुसार महावीर और आचार्य मेखलिपुत्त गोसाल की भेंट नालंदा नामक उपग्राम में हुई थी ।
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प्रश्न 5. महावीर ने नालंदा में कितने दिनों का वर्षावास किया था ?
उत्तर – महावीर ने नालंदा में चौदह वर्षों का वर्षावास किया था ।
प्रश्न 6. तारानाथ कौन थे ? उन्होंने नालंदा को किसकी जन्मभूमि बताया है ?
उत्तर—तारानाथ इतिहास-लेखक थे। उन्होंने नालंदा को सारिपुत्त की जन्मभूमि बताया है ।
प्रश्न 7. एक जीवंत विद्यापीठ के रूप में नालंदा कब विकसित हुआ ?
उत्तर—एक जीवंत विद्यापीठ के रूप में नालंदा गुप्तकाल में विकसित हुआ ।
प्रश्न 8. फाह्यान कौन थे ? वे नालंदा कब आए थे ?
उत्तर— फाह्यान एक चीनी यात्री थे । वे चौथी शताब्दी में नालंदा आए थे ।
प्रश्न 9. हषवर्द्धन के समय में कौन चीनी यात्री भारत आया था, उस समय नालंदा की दशा क्या थी ?
उत्तर— सातवीं सदी में सम्राट हर्षवर्द्धन के समय में युवानचांग नामक चीनी यात्री भारत आया था। उस समय नालंदा अपनी उन्नति के शिखर पर था अर्थात् नालंदा अपने उत्कर्ष पर था ।
प्रश्न 10. नालंदा के नामकरण के बारे में किस चीनी यात्री ने किस ग्रंथ के आधार पर क्या बताया है ?
उत्तर—नालंदा के नामकरण के संबंध में चीनी यात्री युवानचांग ने जातक कथा के आधार पर बताया है कि नालंदा का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि अपने पूर्व जन्म में उत्पन्न भगवान बुद्ध को तृप्ति नहीं होती थी अर्थात् न-अल-दा। उनका कहना है कि ज्ञान. के क्षेत्र में जो दान दिया जाता है, वह सीमारहित तथा अनंत होता है । फलतः न तो ज्ञान देने वालों को तृप्ति होती है और न ही लेनेवालों को ।
प्रश्न 11. नालंदा विश्वविद्यालय का जन्म कैसे हुआ ?
उत्तर— नालंदा विश्वविद्यालय का जन्म जनता के उदार दान से हुआ। कहा जाता है कि इसका आरंभ पाँच सौ व्यापारियों ने अपने धन से भूमि खरीद कर भगवान बुद्ध को दान में दी थी ।
प्रश्न 12. यशोवर्मन के शिलालेख में वर्णित नालंदा का अपने शब्दों में चित्रण कीजिए ।
उत्तर—आठवीं सदी के यशोवर्मन के शिलालेख में नालंदा का बड़ा भव्य वर्णन किया गया है । इस शिलालेख में नालंदा के विहारों के संबंध में उल्लिखित है कि यहाँ के विहार गगनचुंबी थे । इन विहारों के चारों ओर नीले जल से भरे सरोवरों में सुनहले एवं लाल कमल खिले हुए रहते थे तथा बीच-बीच में सघन आम-कुंजों की छाया थी । भवनों के शिल्प एवं वास्तु निर्माण कला अद्भुत छटा बिखेरती थी । उनमें अनेक प्रकार के अलंकरण एवं भव्य मूर्तियाँ थीं । यहाँ बौद्ध भिक्षुओं के ठहरने के लिए अद्वितीय उद्यान थे ।
प्रश्न 13. इत्सिंग कौन था ? उसने नालंदा के बारे में क्या बताया है ?
उतर – इत्सिंग चीनी यात्री था । उसने बताया है कि नालंदा के विहार में तीन सौ कमरे और आठ मंडप थे । नालंदा विश्वविद्यालय के आचार्य एवं छात्रों के भरण-पोषण के लिए भूमि तथा भवनों के अतिरिक्त नित्य प्रति के व्यय के लिए सौ गाँवों की अक्षय आय निधि के रूप में समर्पित की गई थी, लेकिन इत्सिंग के समय में ही इसकी संख्या बढ़कर दो सौ गाँवों तक पहुँच गई। उत्तर प्रदेश, बिहार तथा बंगाल इन तीनों राज्यों ने नालंदा के निर्माण तथा अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया ।
प्रश्न 14. विदेशों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय के संबंध का कोई एक उदाहरण दीजिए ।
उत्तर- विदेशों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय का जो संबंध था, उसका स्मारक एक ताम्रपत्र नालंदा की खुदाई में मिला है। इस ताम्रपत्र से पता चलता है कि सुमात्रा के शासक शैलेन्द्र सम्राट श्री बालपुत्रदेव ने मगध सम्राट देवपाल देव के पास अपना दूत भेजकर यह प्रार्थना की कि उनकी ओर से पाँच गाँवों का दान नालंदा विश्वविद्यालय को दिया जाए। इसी प्रकार यवद्वीप के सम्राट बालपुत्र ने नालंदा में एक बड़े विहार का निर्माण कराया ।
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प्रश्न 15. नालंदा में किन पाँच विषयों की शिक्षा अनिवार्य थी ?
उत्तर – नालंदा में निम्नलिखित पाँच विषयों की शिक्षा अनिवार्य थी :
(i) भाषा का सम्यक ज्ञान के लिए— शब्द विद्या या व्याकरण |
(ii) बुद्धि की परख के लिए हेतु विद्या या तर्कशास्त्र ।
(iii) स्वास्थ्य – ज्ञान के लिए— चिकित्साशास्त्र ।
(iv) व्यावहारिक तथा आर्थिक लाभ के लिए — शिल्पविद्या ।
(v) इसके अतिरिक्त — धर्म एवं दर्शन ।
प्रश्न 16. नालंदा के कुछ प्रसिद्ध विद्वानों की सूची बनाइए ।
उत्तर – आचार्य शीलभद्र योगशास्त्र के महान विद्वान थे। इनसे पहले धर्मपाल इस संस्था के कुलपति थे । शीलभद्र, ज्ञानचंद्र, प्रभामित्र, स्थिरमति, गुणमति आदि प्रसिद्ध विद्वान थे। इसके अतिरिक्त कमलशील तंत्रविद्या के महान् ज्ञाता थे ।
प्रश्न 17. शीलभद्र से युवानचांग (ह्वेनसांग) की क्या बातचीत हुई ?
उत्तर – जब युवानचांग (ह्वेनसांग) नालंदा से विदा होने लगे तब शीलभद्र तथा अन्य भिक्षुओं ने उनसे नालंदा में रहने का अनुरोध किया तो युवानचांग ने कहा कि “यह देश बुद्ध की जन्म भूमि है, इसके प्रति प्रेम न हो सकना असंभव है ।” उनके यहाँ आने का उद्देश्य अपने भाइयों के हित के लिए भगवान के महान धर्म की खोज करना था । इसमें उन्हें काफी सफलता मिली है। अपने देश जाकर इस धर्म के विषय में लोगों को जानकारी दूँगा, ताकि वे भी लाभान्वित हो सकें । इस पर शीलभद्र ने कहा- ‘यह उदात्त विचार तो बौधिसत्वों जैसे हैं। मेरा हृदय भी तुम्हारी सदाशाओं का समर्थन करता है।”
प्रश्न 18. विदेशों में ज्ञान -प्रसार के क्षेत्र में नालंदा के विद्वानों के प्रयासों के विवरण दीजिए ।
उत्तर—विदेशों में ज्ञान -प्रसार के क्षेत्र में नालंदा के विद्वानों का महती योगदान है । सर्वप्रथम तिब्बत के प्रसिद्ध सम्राट स्त्रोंग छन गम्पो ने 630 ई. में अपने देश में भारतीय लिपि और ज्ञान का प्रचार के लिए थोन्मिसंभोट को नालंदा भेजा, जिन्होंने आचार्य देवविद सिंह के संरक्षण में बौद्ध एवं ब्राह्मण साहित्य की शिक्षा प्राप्त की । इसके बाद नालंदा के कुलपति आचार्य शांति रक्षित तथा तंत्र विद्या विशारद कमलशील तिब्बत में ज्ञान का प्रचार किया और बौद्ध विहार की स्थापना की । इनके अतिरिक्त पद्मसंभव एवं दीपशंकर श्रीज्ञान अतिश आदि ने भी उल्लेखनीय कार्य कियां ।
प्रश्न 19. ज्ञानदान की विशेषता क्या है ?
उत्तर— ज्ञानदान की यह विशेषता है कि ज्ञान देने वाले तथा लेनेवाले दोनों में से किसी को तृप्ति नहीं होती है । इसका मुख्य कारण यह है कि ज्ञान देनेवालों की अभिलाषा रहती है कि ज्ञानोपदेश इस प्रकार दूँ कि ज्ञान की शिक्षा पाने वाले अधिक से अधिक लाभान्वित हों तथा ज्ञान ग्रहण करने वाले अधिक से ज्ञान पाने के लिए व्यग्र रहते हैं, क्योंकि ज्ञान का क्षेत्र अनंत एवं सीमा-रहित होता है । इसी कारण दोनों में से किसी को भी तृप्ति नहीं होगी ।
नोट : पाठ के आस-पास के प्रश्नों को छात्र स्वयं करें ।
भाषा की बात (व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर ) :
प्रश्न 1. ‘सुरभित पुष्प’ विशेष्य- विशेषण युक्त पद है, नीचे कुछ विशेष्य दिए जा रहे हैं । इन्हें उपयुक्त विशेषणों से जोड़िए :
वृक्ष, पृथ्वी, आकाश, शिखर, पर्वत, वन, नदी, नगर
उत्तर :
वृक्ष – हरा वृक्ष
पृथ्वी – विस्तृत पृथ्वी
आकाश – नीला आकाश
शिखर – उत्तुंग शिखर
पर्वत – ऊँचा पर्वत
वन – सघन वन
नदी – गहरी और वेगवती नदी
नगर – स्वच्छ नगर
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प्रश्न 2. चैतन्य केन्द्र में कौन समास है ? विग्रह करके बताएँ ।
उत्तर—चैतन्य केन्द्र में पष्ठी तत्पुरुष समास है । विग्रह — चेतना के केन्द्र ।
प्रश्न 3. अनुश्रुति शब्द में ‘अनु’ उपसर्ग है। इस उपसर्ग से पाँच शब्द बनाइए ।
उत्तर : अनु + रोध = अनुरोध
अनु + कूल = अनुकूल
अनु + शासन = अनुशासन
अनु + सार = अनुसार
अनु + कंपा = अनुकंपा
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प्रश्न 4. निम्नांकित शब्दों का संधि-विच्छेद कीजिए
अभ्युदय, उज्ज्वल, उन्नति, यशोवर्मन, अंतर्राष्ट्रीय, शयनासन, हितार्थ सदाशा ।
उत्तर : अभि + उदय = अभ्युदय
उत् + ज्वल = उज्ज्वल
उत् + नति = उन्नति
यशः + बर्मन = यशोबर्मन
अंतः + राष्ट्रीय = अंतरराष्ट्रीय
शयन + आसन = शयनासन
हित + अर्थ = हितार्थ
सद + आशा = सदाशा
प्रश्न 5. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द दीजिए:
मेघों को छूनेवाला, जैसा दूसरा न हो, आगे-आगे चलनेवाला, जिसकी कोई सीमा नहीं हो, जो खजाना कभी समाप्त न हो, जिसकी मति स्थिर हो चुकी हो।
उत्तर : मेघों को छूने वाला – गगन चुम्बी
जैसा दूसरा न हो – अद्वितीय
आगे-आगे चलनेवाला – अग्रणी
जिसकी कोई सीमा न हो – निस्सीम, सीमा रहित
जो खजाना कभी समाप्त न हो – अक्षय निधि
जिसकी मति स्थिर हो – स्थिरमति
प्रश्न 6. विपरीतार्थक शब्द लिखें :
आकाश, सच्चाई, विदेश, आरंभ, प्राचीनता, लुप्त, विस्तृत, तृप्ति ।
उत्तर : आकाश – पाताल
सच्चाई – झूठ
विदेश – स्वदेश
आरंभ – अंत
प्राचीनता’ – नवीनता
लुप्त – प्राप्य
विस्तृत – संकीर्ण
तृप्ति – अतृप्ति
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