Bihar Board Class 9 Hindi अष्टावक्र (Ashtavakra Class 9th Hindi Solutions)Text Book Questions and Answers
6. अष्टावक्र
पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ‘अष्टावक्र’ दलित-पीड़ित जीवन की कहानी है। अष्टावक्र अपनी बूढ़ी माँ के साथ खजांचियों की विशाल अट्टालिका की ओर जाने वाले मार्ग पर अनेक छोटी-छोटी अंधेरी तथा बदबूदार कोठरियाँ बनी हुई हैं, उन्हीं में से एक में अष्टावक्र रहता है। उसका शरीर टेढ़ा-मेढ़ा है, जो हिंडोले की तरह झूलता है। वह स्पष्ट बोल भी नहीं पाता है। उसका रंग श्याम, निरीह नयन, मुख लंबा तथा वक्र, वस्त्र कीट से चिकटे हैं। एकमात्र उसकी माँ उसका सहारा है। उसका पिता उसकी शैशवास्था में ही स्वर्ग सिधार गया। उसके प्रति माँ का स्नेह इतना तीव्र था कि उसने पुत्र की बुद्धि का विकास नहीं होने दिया तथा उसका भोलापन मूर्खता की सीमारेखा पार कर गया। गरीबी तथा बुढ़ापे के कारण उसकी माँ का शरीर शिथिल हो चुका था, फिर भी वह अपने अपंग पुत्र के भरण-पोषण के लिए बेचैन रहती थी। उसके सिर के बाल उलझे हुए तथा जूँ के अड्डे थे।
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उसकी माँ जब अष्टावक्र को कुछ कहती तो वह अपने वक्र मुख को और भी वक्र करके कुएँ की जगत् पर बैठ जाता अथवा आने-जाने वालों को देखने लगता। उस समय – वह जड़ भरत या मलूकदास जैसा प्रतीत होता था। माँ ही उसे नित्यकर्म करने को कहती, मुँह धुलवाती तथा रात की बची हुई रोटी एवं खोमचे में बची हुई चाट,देती।
वह खोमचा लगाता था, जिसमें कचालू की चाट, मूंग दाल की पकौड़ियाँ, दही के आलू तथा पानी के बतासे होते थे। वह गली-गली ‘चाट लो चाट, आलू की चाट, पानी के बतासे’ कहकर बेचा करता था। उसकी आवाज सुनकर बच्चे, किशोर तथा कुमार दौड़ पड़ते और उसके स्वर में स्वर मिलाकर कहने लगते ‘पकौड़ी बतासा लो, उल्लू की चाट लो।’ माँ उसे समझाकर भेजती—पैसे के चार बतासे देना, चार पकौड़ी देना तथा चार चम्मच आलू देना, किंतु नासमझी के कारण एक पैसा में चार पत्ते दे देता था। संध्या के समय जब वह लौटता तो माँ लोटे से पैसे निकालकर गिनती और माथा ठोक लेती, क्योंकि डेढ़ रुपये की बिक्री का सामान ले जाकर वह दस-बारह आने लेकर लौटता । माँ के लाख प्रयास के बाद भी उसमें कोई परिवर्तन नहीं आ सका। अन्त में, उसने माँ से कहा-‘चाट तू बेचाकर’ लड़के मुझे मारते हैं। यह सुनकर माँ ने अपने लाल को इस प्रकार निहारा कि उसके शुष्क नयन सजल हो उठे। पुत्र की बात पर उसे याद हो आया. कि शैशव और यौवन तो स्वयं मधुर होती है परन्तु उसकी याद मोटर की धुएँ की तरह काली, कड़वी तथा दुर्गंधपूर्ण होती है। माँ को इस बात का दुःख नहीं हुआ कि बेटा उसे चाट बेचने के बाद भी चाट बेचना नहीं सीखा सका । भगवान ऐसे व्यक्ति को जन्म क्यों देते हैं। तभी बेटे ने कहा-माँ! भूख लगी है। यह सुनकर माँ खीझ उठी। उसने कहा-कंब तक तेरी खातिर में बैठी रहूँगी । अर्थात् मेरे मरने के बाद कौन सहारा होगा। माँ बोलती जा रही थी और वह कुएँ की जगत् पर जाकर लेट गया। काफी रात बीत जाने पर वह खाना लेकर गई। रोटी खाते हुए अष्टावक्र ने इतना ही कहा-माँ। बोलने का कठिनता के कारण इतना लंबा हो गया कि माँ को लगा कि अखिल ब्रह्माण्ड उसे माँ कहकर पुकार रहा हो।
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एक बार अष्टावक्र को तेज बुखार आ गया। वह चिथड़ों में लिपटा चूल्हे के पास छटपटा रहा है और माँ चाट बेचने को बैठी है। उसने प्लुत स्वर में कहा-माँ! पानी। माँ ने बेटे को पानी पिलाकर लौटने लगी। बेटे ने पुनः उसी स्वर में कहा-माँ! माँ की ममता जाग उठी। उसने उसके सिर दबातें हुए पैसे की चिन्ता में डूब गई। कुछ दिनों के बाद माँ को ज्वर चढ़ आया । उसने उस दशा में भी पकौड़ी बनाने की रीति बेटे को समझाकर कहा-अब धीरे-धीरे तेल में छोड़ता जा । लेकिन नासमझ अष्टावक्र मुट्ठीभर आलू बेसन कड़ाही में डाल दिया । फलतः उसकी छाती पक गई। माँ ने ज्वरावस्था में थाल तो तैयार कर दिया, किन्तु लौटने पर उसके हाथ से थाल न ले सकी । उसने बेटे की ओर निहारा तथा हाथ फैलाकर कहा-पैसे । बेटे ने लोटे से पैसे निकाल कर उसके हाथ में पैसे रख दिए । दो-तीन दिनों तक बीमार रहने के बाद वह चल बसी। अब उस कोठरी में एक कुल्फी वाला बूढ़ा आ बसा । लेकिन उसी शाम कहीं से घूमते हुए अष्टावक्र अपने सामान के साथ कुएँ की जगत पर चुपचाप बैठ गया। इसके पास कुछ बच्चे आए तथा कुल्फीवाला भी आ गया। कुल्फीवाले के पूछने पर उसने माँ को पुकारा । कुल्फीवाले ने कहा, तुम्हारी माँ मर गई है, अब वह नहीं आएगी। उस रात उसी कुएँ की जगत् पर रात काटी। सबेरे बड़े खजांची ने उसे अपने बाग में भेज दिया, जहाँ खुली जगह पड़ी थी, पर वह उसे अच्छी न लगी। खजांचिन ने उसे कपड़े तथा रोटी दिए, जिसे अस्वीकारकर दिया। उसने कुएँ की जगत् को नहीं छोड़ा और चाटवाला खाली थाल लेकर घूमने लगा। उसे थाल लेकर घूमते हुए देखकर लोग कहने लगे कि इसकी माँ मर गई। माँ के मरने की बात सुनकर उसे विश्वास हो गया कि अब उसकी माँ नहीं आएगी। उसी रात कुल्फी वाले ने उसे दर्द भरे स्वर माँ-माँ पुकारते सुना। उसके पेट में दर्द हो रहा था। कुल्फीवाले ने खजांची से आकर कहा कि अष्टावक्र की हालत अति गंभीर है। उसने अस्पताल को फोन किया। वहाँ से गाड़ी आई और उसे आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कर दी, उसकी स्थिति देखकर डाक्टर बोला, बस, अब समाप्त होने वाला है। नर्स ने कुल्फीवाले से पूछा, ‘यह तुम्हारा मरीज है।’ उसने कहा- ‘मेरा कोई नहीं नहीं है।’
लेकिन धीमे पर गंभीर स्वर में पुकारा— ‘माँ’ । कुछ ही क्षणों में उसकी चेतना मौन होगई।
अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर
पाठ के साथ :
प्रश्न 1. इस रेखाचित्र के प्रधान पात्र को लेखक ने अष्टावक्र क्यों कहा है?
उत्तर- इस रेखाचित्र के प्रधान पात्र को लेखक ने अष्टावक्र इसलिए कहा है, क्योंकि संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान अष्टावक्र की भाँति ही इसका सारा शरीर टेढ़-मेढ़ा था ।
प्रश्न 2. कोठरियाँ कहाँ बनी हुई थीं?
उत्तर—कोठरियाँ खजांचियों की विशाल अट्टालिकाओं की ओर जाने वाले मार्ग पर बनी हुई थीं ।
प्रश्न 3. अष्टावक्र कहाँ रहता था ?
उत्तर- अष्टावक्र खजांचियों की विशाल अट्टालिकाओं की ओर जाने वाले मार्ग पर छोटी-छोटी अंधेरी और बदबूदार कोठरियाँ बनी हुई थीं । उन्हीं में से एक कोठरी में अष्टावक्र रहता था ।
प्रश्न 4. अष्टावक्र के पिता कब चल बसे ?
उत्तर- अष्टावक्र के पिता उसके जन्म के कुछ ही दिनों के बाद चल बसे । अर्थात् उसकी अज्ञानावस्था में ही चल बसे ।
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प्रश्न 5. चिड़चिड़ापन अष्टावक्र की माँ का चिरसंगी क्यों बन गया था ?
उत्तर—अष्टावक्र की माँ का शरीर बुढ़ापे से शिथिल हो गया था, वह लंगड़ाकर चलती थी तथा अभावों से जूझते – जूझते चिड़चिड़ापन उसका चिरसंगी बन गया था ।
प्रश्न 6. अष्टावक्र क्या-क्या बेचा करता था ?
उत्तर – अष्टावक्र कचालू की चाट, मूंग की दाल की पकौड़ियाँ, दही के आलू और पानी के बतासे लोहे की थाल में सजाकर बेचा करता था ।
प्रश्न 7. चार की संख्या अष्टावक्र के स्मृति पटल पर पत्थर की रेखा की तरह अंकित क्यों हो गई थी ?
उत्तर – अष्टावक्र मंदबुद्धि बालक था । उसे अपनी माँ की बात समझ में नहीं आती थी। माँ उसे नित्य यह समझाकर भेजती थी कि पैसे के चार बतासे देना, चार पकौड़ी देना और चार चम्मच आलू देना, परन्तु वह अपने ग्राहकों को चार पत्ते दे देता था । वह समझ ही नहीं पाता था कि उसे एक पैसा में चार बतासे अथवा चार पकौड़ी अथवा चार चम्मच आलू देना है। इसके बदले वह चार पत्ते में देता था, क्योंकि चार की संख्या ही उसे याद थी, इसी कारण वह कोई वस्तु चार पैसे के बदले में एक पैसा में चार पत्ते दे देता था ।
प्रश्न 8. माँ माथा क्यों ठोका करती थी ?
उत्तर – माँ उसकी नासमझी या मूर्खता तथा डेढ़ रुपए का सामान दस बारह आने में बेच देने के कारण माथा ठोका करती थी, क्योंकि नित्य उसकी यह नियति बन गई थी ।
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प्रश्न 9. गर्मी के दिनों में माँ-बेटे कहाँ सोया करते थे ?
उत्तर—गर्मी के दिनों में माँ-बेटे कुएँ की जगत् पर बिना कुछ ओढ़े तथा बिना कुछ बिछाए सोया करते थे ।
प्रश्न 10. अष्टावक्र ‘हाय माँ’ कहकर वहीं क्यों लुढ़क गया ?
उत्तर – अष्टावक्र की माँ ने बेटे को पकौड़ी बनाने की रीति समझाकर उसे धीरे-धीरे बेसन तेल में डालने को कहा । अष्टावक्र ने धीरे से लेकिन पैर जलने के भय से कुछ ऊँचे से मुट्ठी भर आलू बेसन कड़ाही में छोड़े तो तेल सीधा छाती पर आ पड़ा । जलन के कारण वह ‘हाय माँ’ कहकर वहीं लुढ़क गया ।
प्रश्न 11. माँ के शुष्क नयन सजल क्यों हो उठे ?
उत्तर – माँ अष्टावक्र को नित्य डेढ़ रुपये की चाट का सामान देकर बेचने भेजती थी, लेकिन अष्टावक्र मात्र दस-बारह आने पैसे लेकर लौटता था । उसकी ऐसी प्रवृत्ति पर माँ उसे डाँट-फटकार करती थी। एक दिन अष्टावक्र ने माँ से कहा कि ‘माँ! चाट तू बेचा कर, क्योंकि लड़के मुझे मारते हैं ।’ माँ ने बेटे की बात सुनकर उसे इस प्रकार निहारा कि उसके शुष्क नयन सजल हो गए। वह यह सोचने पर मजबूर हो गई कि उसके मरने के बाद वह अपना भरण-पोषण किस प्रकार करेगा, क्योंकि माँ का सारा प्रयास विफल हो गया । उसकी पत्थर – बुद्धि पर माँ की शिक्षा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था ।
प्रश्न 12. अष्टावक्र विमूढ़-सा क्यों बैठा रहा ?
उत्तर – माँ ने तीव्र ज्वर में भी चाट की थाल तैयार तो कर दिया, लेकिन अष्टावक्र जब चाट बेचकर लौटा तो माँ में इतनी हिम्मत नहीं रह गई थी कि वह उठकर उसके हाथ थाल ले लेती, जैसा कि बेटा को चाट बेचकर लौटने पर अन्य दिन उठकर थाल ले लेती थी । अष्टावक्र को यह परिवर्तन अच्छा नहीं लगा और थोड़ी देर विमूढ़-सा बैठा रहा। फिर माँ के पास आया ।
प्रश्न 13. कुलफी वाले ने ईश्वर को धन्यवाद क्यों दिया ?
उत्तर – कुलफीवाले ने ईश्वर को इसलिए धन्यवाद दिया, क्योंकि अष्टावक्र तथा उसकी माँ नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनकी अति दयनीय दशा थी । – माँ बूढ़ी थी तो बेटा शरीर एवं दिमाग से लाचार था । अष्टावक्र माँ के सहारे पर टिका था । माँ के मर जाने के कारण वह अनाथ एवं असहाय हो गया। उसकी ऐसी दशा से उसका मन करुणार्द्र हो गया क्योंकि संक्रामक रोग से पीड़ित अष्टावक्र की सहायता करने वाला कोई नहीं था। आइसोलेशन वार्ड में अकेले जीवन-मौत के बीच झूलते अष्टावक्र को कुलफी वाला देख चुका था । उसकी ऐसी दुर्दशा के कारण ही उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उसने अष्टावक्र को अपने पास बुलाकर उन दोनों को सुख की नींद सोने का अवसर दे दिया ।
प्रश्न 14. इस पाठ का सबसे मार्मिक प्रसंग कौन है और क्यों ?
उत्तर—इस पाठ का सबसे मार्मिक प्रसंग अष्टावक्र का माँ से कहना कि “माँ! चाट तू बेचा कर । मुझे लड़के मारते हैं।” माँ बूढ़ी है। उसका शरीर शिथिल हो गया । इस स्थिति मैं भी वह भरण-पोषण के लिए चाट तैयार कर देती है तथा उसे समझाकर भेजती है ‘देख बेटा, पैसे के चार बतासे देना, चार पकौड़ी देना तथा चार चम्मच आलू देना । परन्तु अष्टावक्र अपने ग्राहकों को चार पत्ते दे देता था । फलतः डेढ़ रुपये के सामान के बदले वह दस-बारह आने लेकर लौटता था । माँ उसकी बुद्धि पर तरस खा जाती थी कि यदि इसका हाल यही रहा तो वह अपना भरण-पोषण कैसे कर पाएगा। इसी कारण ‘चाट तू बेचा कर, माँ ! सुनकर अपने लाल को इस प्रकार देखा कि उसका शुष्क नयन सजल हो उठे। माँ यह सोचने पर विवश हो गई कि भगवान ऐसे व्यक्ति को क्यों जन्म देते हैं तथा उसके अपमान को चुपचाप क्यों देखते रहते हैं। माँ का ऐसा मनोभाव पाठक के हृदय को झकझोर देता है, क्योंकि माँ कभी भी अपनी संतान के प्रति ऐसी कामना नहीं करती है ।
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प्रश्न 15. इस रेखाचित्र का सारांश लिखें ।
उत्तर- संकेत : पृष्ठ 62 पर पाठ का सारांश देखें ।
प्रश्न 16. माँ की मृत्यु के पश्चात् अष्टावक्र की मानसिक स्थिति का वर्णन करें ।
उत्तर — माँ की मृत्यु के पश्चात् अष्टावक्र मौन हो गया। उसका मुख किसी अज्ञात गंभीरता से और भी वक्र तथा मन गीला-गीला हो गया । वह अपनी माँ की याद में व्यग्र हो उठा तथा रात भर माँ-माँ बड़बड़ाता रहा। उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि उसकी माँ मर चुकी है। उसे अब भी विश्वास है कि उसकी माँ आएगी, चाट बनाएगी। उसने कहीं कुछ खाया नहीं । वह चाटवाला खाली थाल लेकर अपने परिचित मार्गों पर घूमने लगा ।
बार-बार लोगों को यह कहते सुनकर कि इसकी माँ मर गई है। उसके मन में यह विचार आया कि उसकी माँ अब नहीं आएगी। उसका मन विचलित हो उठा। माँ के वियोग में उसने खाना-पीना छोड़ दिया । वह तो अपनी माँ के हाथों खाता था, अब उसका खिलाने वाला ही नहीं रहा, फिर वह खाए कैसे। इस प्रकार अपनी माँ के प्रेम में पागल यह कहते हुए अपना दम तोड़ दिया कि ‘माँ! अब नहीं खाऊँगा ।’ क्योंकि उसने एक वृद्ध द्वारा दी गई रोटी खा ली थी ।
नोट : पाठ के आस-पास के प्रश्नों के उत्तर छात्र स्वयं तैयार करें ।
भाषा की बात ( व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर ) :
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थक रूप लिखें ।
विशाल, बदबूदार, सौभाग्य, मूर्ख, विधवा
उत्तर : विशाल = संकीर्ण
बदबूदार = स्वच्छ, खुशबूदार
सौभाग्य = दुर्भाग्य
शाश्वत = क्षणिक
मूर्ख = बुद्धिमान
विधवा = सधवा
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के वचन परिवर्तित करें
बेटे, कपड़े, बूँदें, माता, लता, कोठरियाँ
उत्तर : बेटे = बेटा
कपड़े = कपड़ा
माता = माताएँ
लता = लताएँ
कोठरियाँ = कोठरी
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प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों का वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग-निर्णय करें ।
उत्तर : सौभाग्य – मेरा सौभाग्य है कि आपने मेरे घर में पैर रखा है
बुद्धि – आजकल राम की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है ।
वस्त्र – यह वस्त्र पुराना है ।
उँगली – उसकी उँगली टूट गई ।
कुआँ – कुआँ गहरा है
गोद – उसने उस बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया ।
दही – दही महँगा के साथ ही खट्टा भी है ।
पानी – पानी गंदा है।
पकौड़ी – पकौड़ी गरम थी ।
संध्या – संध्या हो गई ।
प्रश्न 4. उसने कहा था कि वह नहीं आएगा। पाठ में आए इस तरह के मिश्र वाक्यों का चुनाव करें ।
उत्तर :
(i) उसकी माँ का स्नेह इतना तीव्र था कि उसने अष्टावक्र की बुद्धि की बाढ़ मार दी ।
(ii) यह बात नहीं है कि कोई उसकी चाट नहीं खरीदता था ।
(iii) माँ ने इस प्रकार निहारा कि उसके शुष्क नयन सजल हो उठे.
(iv) माँ में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह उठकर उसका थाल लेती ।
(v) इसका परिणाम हुआ कि उसकी जाग्रत बुद्धि सोचने लगी ।
प्रश्न 5. पाठ में आए पाँच अव्यय पदों को चुनें।
उत्तर – तो, भी, कभी, इसलिए, इधर-उधर ।
प्रश्न 6. ‘ पत्थर की रेखा’ और ‘माथा ठोकना’ मुहावरे का वाक्य प्रयोग द्वारा अर्थ स्पष्ट करें ।
उत्तर : शिक्षक की बात राम के मानस पटल पर पत्थर की रेखा सी अंकित हो गई । पिता अपने पुत्र की मूर्खता पर अपना माथा ठोकने लगा ।
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