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कक्षा 10 इतिहास Chapter 5 अर्थ-व्यवस्था और आजीविका | Arthvyavastha aur Ajivika class 10th solutions and notes

January 5, 2023 by Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हम बिहार बोर्ड के कक्षा 10 इतिहास के पाठ पाँच ‘अर्थ-व्यवस्था और आजीविका (Arthvyavastha aur Ajivika class 10th solutions and notes)’ के नोट्स और सभी प्रश्‍नों के उत्तर को पढ़ेंगे।  

Arthvyavastha aur Ajivika

5. अर्थ-व्यवस्था और आजीविका

अर्थ-व्यवस्था : यह उत्पादन, वितरण और खपत की एक सामाजिक व्यवस्था है।
आजीविका : कोई व्यक्ति जीवन के विभिन्न कालावधियों में जिस क्षेत्र में काम करता है या जो काम करता है, उसी को उसकी आजीविका या वृति या रोजगार कहते हैं।
औद्योगीकरण : औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें उत्पादन मशीनों द्वारा कारखानों में होता है।

औद्योगीकरण के कारण
आवश्यकता आविष्कार की जननी
नये-नये मशीनों का आविष्कार
कोयले एवं लोहे की प्रचुरता
फैक्ट्री प्रणाली की शुरूआत
सस्ते श्रम की उपलब्धता
विशाल औपनिवेशक स्थिति
ब्रिटेन में औद्योगीकरण का मुख्य कारण स्वतंत्र व्यापार और अहस्तक्षेप की नीति थी।
उत्पादित वस्तुओं की माँग मांग बढ़ने लगी। व्यापारियों द्वारा उत्पादन में अधिक वृद्धि करना संभव नहीं था। एक बुनकर छः सुत काटने वाले लोगों के द्वारा तैयार धागों का उपयोग कर सकता था।
इसी कारण से नये-नये यंत्रों एवं मशीनों के आविष्कार ने उद्योग जगत में क्रांति लाने का शुरूआत किया। जिसके फलस्वरूप औद्योगीकरण और उपनिवेशवाद की शुरूआत हुई।
1969 में रिचर्ड आर्कराइट ने सूत कातने की स्पिनिंग फ्रेम नामक एक मशीन बनाई जो जलशक्ति से चलती थी।
1770 में स्टैंडहील निवासी जेम्स हारग्रीब्ज ने सूत काटने की एक अलग मशीन ‘स्पिनिंग जेनी’ बनाई।
1773 में लंकाशायर के जॉन के ने ‘फ्लाइंग शट्ल’ का आविष्कार किया, जिसके कारण तेजी से जुलाहे काम करने लगे और धागे की माँग बढ़ गई।
1779 में सैम्यूल काम्पटन ने ‘स्पिनिंग म्यूल’ बनाया, जिससे बारीक सूत काता जा सकता था।
1785 में एडमंड कार्टराइट ने वाष्प से चलने वाला ‘पावरलुम’ नामक करघा तैयार किया।
1769 में जेम्स वॉट ने वाष्प इंजन बनाया।
1815 में हम्फ्रीडेवी ने खानों में काम करने के लिए ‘सेफ्टी लैम्प’ का आविष्कार किया।
1815 में हेनरी बेसेमर ने लौह उद्योगों के लिए एक शक्तिशाली भट्ठी विकसित कर उसे बढ़ावा दिया।
इंगलैंड में औद्योगीकरण को बढ़ावा देने में सस्ते श्रम का महत्वूपर्ण योगदान रहा।
फैक्ट्री से तैयार माल को एक जगह से दूसरे जगह ले जाने के लिए ब्रिटेन में यातायात की अच्छी सुविधा उपलब्ध थी।
रेलमार्ग से पहले नदियों और समुद्रों के रास्ते व्यापार होता था। जहाजरानी उद्योग में इंगलैंड काफी आगे था।
सभी देशों के समानों का आयात और निर्यात ब्रिटेन के व्यापरिक जहाजी बेड़े से हाता था। जिसका लाभ इंगलैंड को औद्योगीकरण की गति को तेज करने में होती है।
उपनिवेशों से कच्चे माल की प्राप्ति सस्ते दामों पर इंगलैड को प्राप्त हो जाती थी तथा तैयार माल को बेचने के लिए बाजार भी उपलब्ध थे। जहाँ महँगे दाम पर ब्रिटेन को बेचना आसान था।

उपनिवेशवाद :
मशीनों के आविष्कार और फैक्ट्रीयों की स्थापना से उत्पादन में काफी वृद्धि हुई। उत्पादित वस्तुओं को बेचने तथा उद्योगों के लिए कच्चे माल की प्राप्ति उपनिवेशों से होती थी। इसी क्रम में भारत इंगलैंड का एक विशाल उपनिवेश के रूप में उभरा।
अठारहवीं शदी तक भारतीय उद्योग विश्व में सबसे अधिक विकसित उद्योग थे। यह सुन्दर और उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन करता था।
भारतीय हस्तकला, शिल्प उद्योग तथा व्यापार पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण था।
इन्हें मजदूरी भी बहुत कम दी जाती थी।
1850 के बाद भारत में औद्योगीकरण की गति तेज हो गई। जिसके कारण भारत के कुटिर उद्योग ठप हो गया।
शिल्पकार और कारीगर लोग बेरोजगार हो गए।
बेरोजगार लोग शहरों की ओर पलायन करने लगे। वे फैक्ट्रीयों में जाकर मजदूरी करने लगे। भारत में कुटीर उद्योग बंद होने के कगार पर पहुँच गया।

Arthvyavastha aur Ajivika

भारत में फैक्ट्रियों की स्थापना
भारत में कुटीर उद्योग बंद होने के बाद वस्त्र उद्योग के लिए कई बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ देशी एवं विदेशी पूँजी लगाकर खोली गई।
सर्वप्रथम सूती कपड़े की मिल की नींव 1851 में बम्बई में डाली गयी।
कावस-जी-नाना-जी-दाभार ने 1854 में पहला कारखाना निर्मिण किया तथा प्रथम आधुनिक सूती वस्त्र मिल की स्थापना की।
1914 तक देश में सूती मिलों की संख्या 144 हो गई।
भारतीय सूती धागे का निर्यात चीन को होने लगा।
देश की पहली जूट मिल 1917 में कलक में एक मारवाड़ी व्यवसायी हुकुम चंद के द्वारा स्थापित किया गया।
1907 में जमशेद जी टाटा ने बिहार के साकची नामक स्थान पर टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी की स्थापना की।
वत्तर्मान में भारत में 7 स्टील प्लांट है।
भारत में कोयला उद्योग की शुरूआत 1814 में हुआ।

औद्योगीकरण का परिणाम
औद्योगीकरण के कारण भारत में वस्त्र उद्योग, लौह उद्योग, सीमेन्ट उद्योग, कोयला उद्योग का विकास हुआ।
जमशेदपुर, धनबाद और डालमियानगर जैसे नये व्यापारिक नगर का विकास हुआ।
हाथ से तैयार माल महंगा हो गया, जिससे उसकी बिक्री खत्म होने लगी।
भारत में लाखों बुनकर बेरोजगार हो गए।
यूरोप में उपनिवेशों की होड़ शुरु हो गयी।
जिससे उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विकास हुआ।
बड़े-बड़े नगरों का विकास हुआ।
कुटीर उद्योगों का पतन हो गया।
समाज में वर्ग विभाजन हुआ। जिससे तीन वर्गों का उदय हुआ- पूँजीपति वर्ग, बुर्जुआ वर्ग (मध्यम वर्ग) एवं मजदूर वर्ग।
औद्योगीकरण ने एक नये तरह के मजदूर वर्ग का जन्म को जन्म दिया।
स्लम पद्धति की शुरूआत हुई। मजदूर शहर में छोटे-छोटे घरों में, जहाँ किसी प्रकार की सुविधा नहीं थी, में रहने के लिए बाध्य थे।

मजदूरों की आजीविका
औद्योगीकरण ने मजदूरों को शोषण किया। महिलाओं और बच्चों से भी 18-18 घंटे काम लिए जाते थे।
कारखानों ने मजदूरों को बेरोजगार बना दिया। औद्योगीकरण ने मजदूरों की आजीविका को इस तरह नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था कि उनके पास दैनिक उपभोग के पदार्थों को खरीदने के लिए धन नहीं था।
अतः मजदूरों ने आंदोलन का रूख किया।
1838 में मजदूरों ने लंदन श्रमिक संघ के द्वारा ‘चार्टिस्ट आंदोलन’ की शुरूआत हुई।
1918 में इंगलैंड में सभी स्त्री-पुरुष, जो व्यस्क थे, को मताधिकार प्रदान किया गया।
भारत में मजदूरों की स्थिति को सुधारने के लिए 1881 में पहला ‘फैक्ट्री एक्ट’ पारित हुआ। इसके द्वारा 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखाने में कार्य करने पर प्रतिबंध लगाया गया, 12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के काम का घंटा तय किया गया तथा महिलाओं के भी काम के घंटे तथा मजदूरी को निश्चित किया गया।
31 अक्टूबर 1920 को असंगठित मजदूरों के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर ‘अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ स्थापना की गयी।
1920 में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ का गठन किया गया, जो मजदूरों की समस्याओं को अन्तर्राष्ट्रीय बना दिया।
1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में मजदूरों ने अपने मिल मालिकों का विरोध कर औपनिवेशिक शासन का विरोध किया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में बेरोजगारी बढ़ गयी। श्रमिकों को उम्मीद थी कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक होगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
सरकार ने मजदूरों के हितों को ध्यान में रखते हुए 1948 में न्युनतम मजदूरी कानून पारित किया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मजदूरों की आजीविका
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मजदूरों की आजीविका एवं उनके अधिकारों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने सन् 1948 ई. में न्यूनतम मजदूरी कानून पारित किया, जिसके द्वारा कुछ उद्योगों में मजदूरी की दरें निश्चित की गई।

मजदूरों की स्थिति में सुधार हेतु 1962 में केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय श्रम आयोग स्थापित किया। इसके द्वारा मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराया गया तथा उनकी मजदूरी को सुधारने का प्रयास किया गया। इस तरह स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने उद्योग में लगे मजदूरों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कई कदम उठाये हैं, चूँकि औद्योगीकरण के दौर में पूँजीपतियों द्वारा उनका शोषण किया जाता था।

Arthvyavastha aur Ajivika

कुटीर उद्योग का महत्व एवं उसकी उपयोगिता

औद्योगीकरण की प्रक्रिया ने भारत के कुटीर उद्योग को काफी क्षति पहुंचाई, मजदूरों की आजीविका को प्रभावित किया, परन्तु इस विषम एवं विपरीत परिस्थिति में भी गाँवों एवं कस्बों में यह उद्योग पुष्पित एवं पल्लवित होता रहा तथा जन साधारण को लाभ पहुंचाता रहा ।

राष्ट्रीय आन्दोलन विशेषकर स्वदेशी आन्दोलन के समय इस उद्योग की अग्रणी भूमिका रही। अतः इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता ।

महात्मा गाँधी ने कहा था कि लघु एवं कुटीर उद्योग भारतीय सामाजिक दशा के अनुकूल है।

ये राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाहित करते हैं । कुटीर उद्योग उपभोक्ता वस्तुओं, अत्यधिक संख्या को रोजगार तथा राष्ट्रीय आय का अत्यधिक समान वितरण सुनिश्चित करते हैं । तीव्र औद्योगीकरण के प्रक्रिया में लघु उद्योगों ने सिद्ध किया कि वे बहुत तरीके से फायदेमन्द होते हैं।

ब्रिटेन में उच्च वर्ग के लोग भारत में हाथों से बनी हुई वस्तुओं को ज्यादा तरजीह देते।

हाथों से बने महीन धागों के कपड़े, तसर सिल्क, बनारसी तथा बालुचेरी साड़ियाँ तथा बुने हुए बॉडर वाली साड़ियाँ एवं मद्रास की प्रसिद्ध लुगियों की मांग ब्रिटेन के उच्च वर्गों में अधिक थी।

मशीनों द्वारा इसकी नकल नहीं की जा सकती थी और विशेष बात तो यह थी कि इस पर अकाल और बेरोजगारी का भी असर नहीं होता था क्योंकि यह महंगी होती थी और सिर्फ उच्च वर्ग के द्वारा विदेशों में उपयोग में लायी जाती थीं।

सन् 1947 ई० में स्वंतत्रता प्राप्ति के बाद कुटीर उद्योग की उपयोगिता और उसके विकास हेतु भारत सरकार की नीतियों में परिवर्तन हुआ।
6 अप्रैल 1948 की औद्योगिक नीति के द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन दिया गया ।
सन् 1952-53 ई. में पाँच बोर्ड बनाये गए, जो हथकरघा, सिल्क, खादी. नारियल की जटा तथा ग्रामीण उद्योग हेतु थे।
आगे चलकर 23 जुलाई 1980 को औद्योगिक नीति घोषणापत्र जारी किया गया, जिसमें कृषि आधारित उद्योगों की बात कही गयी एवं लघु उद्योगों की सीमा भी बढ़ायी गई ।
इस तरह हम देखते हैं कि स्वंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने जहाँ एक तरफ कुटीर उद्योग को बढ़ावा दिया वही दूसरी तरफ औद्योगीकरण की प्रक्रिया भी आगे बढ़ने लगी।

सन् 1950 के बाद सम्पूर्ण विश्व में अग्रणी औद्योगिक शक्ति समझा जाने वाला ब्रिटेन अपने प्रथम स्थान से वंचित हो गया और अमेरिका एवं जर्मनी जैसे देश औद्योगिक विकास की दृष्टि से काफी आगे निकल गए।

Arthvyavastha aur Ajivika

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

  1. फैक्ट्री प्रणाली के विकास के किन्हीं दो कारणों को बतावे।

उत्तर :- मशीनों एवं नए-नए यंत्रो के आविष्कार ने फैक्ट्री प्रणाली को विकसित किया है। जिसके फलस्वरूप उद्योग और व्यापार के नए-नए केंद्रो का जन्म हुआ।

  1. बुर्जुआ वर्ग की उत्पत्ति कैसे हुई ?

उत्तर :- भारत के उद्योग में पूँजी लगाने वाले उद्योगपति पूँजीपति बन गए। समाज में 3 वर्ग का उदय हुआ। पूँजीपति वर्ग, बुर्जुआ वर्ग एवं मजदूर वर्ग। आगे चलकर यहीं बुर्जुआ वर्ग भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में अंग्रेजों की शोषण की नीति के खिलाफ भूमिका निभाया।

  1. 18 वीं शताब्दी में भारत के मुख्य उद्योग कौन-कौन से थे?

उत्तर :- 18 वीं शताब्दी में भारत के वस्त्र उद्योग, चाय उद्योग, सीमेंट उद्योग, कोयला उद्योग और जूट उद्योग जैसे कई उद्योग का विकास हुआ।

  1. निरुद्योगीकरण से आपका क्या तात्पर्य है?

उत्तर :- मशीनों के अविष्कार ने उद्योग एवं उत्पादन में वृद्धि कर औद्योगिकरण की प्रक्रिया की शुरुआत की थी। भारत के कुटीर उद्योग बंद होने के कगार पर पहुँच गया था। जिसे निरूद्योगीकरण कहा जाता है।

Arthvyavastha aur Ajivika

  1. औद्योगिक आयोग की नियुक्ति कब हुई? इसका क्या उद्देश्य थे?

उत्तर :- औद्योगिक आयोग की नियुक्ति 1916 ई० में हुआ। इसका उद्देश्य भारतीय उद्योग तथा व्यापार को भारतीय वित से संबंधित क्षेत्रों का पता लगाना था, जिसे सरकार सहायता दे सके।

लघु उत्तरीय प्रश्न

  1. औद्योगिक करण से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर :- औद्योगिककरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे वस्तुओं का उत्पादन मानव श्रम के द्वारा ना होकर मशीनों के द्वारा होता है। नए-नए मशीनों का आविष्कार और तकनीकी विकास पर औद्योगिकीकरण निर्भर करता है। तत्व के रूप में मशीन के अलावा पूंजी निवेश एवं स्वयं का भी महत्वपूर्ण स्थान है।

  1. औद्योगिकरण ने मजदूरों की आजीविका को किस तरह प्रभावित किया?

उत्तर :- औद्योगिकरण ने नई फैक्ट्री प्रणाली को जन्म दिया। जिससे गृह उद्योग के मालिक अब मजदूर बन गए, औरत और बच्चे भी 16 से 18 घंटे काम के लिए जाते थे। उनके पास दैनिक उपयोग के पदार्थों को खरीदने के लिए धन नहीं रहा। मजदूरों ने आंदोलन का रूख लिया।

  1. स्‍लम पद्धति की शुरुआत कैसे हुई ?

उत्तर :- मजदूरों शहरों में छोटे-छोटे घरों में जहाँ किसी तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। आगे चलकर उत्पादन के उचित वितरण के लिए आंदोलन शुरू किया। पूँजीपति द्वारा उनका बुरी तरह शोषण किया जाता था। उन्होंने अपना संगठन बनाकर पूँजीपतियों के खिलाफ शुरुआत की।

  1. न्यूनतम मजदूरी कानून कब पारित हुआ और इसके क्या उद्देश्य थे ?

उत्तर :- न्यूनतम मजदूरी कानून 1948 ई० में पारित हुआ। इसका उद्देश्य उस उद्योगों में मजदूरी की दर निश्चित करता था। मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी ऐसे होनी चाहिए, जिससे मजदूर केवल अपना ही गुजारा ना कर सके, बल्कि इससे कुछ और भी अधिक हो ताकि वह अपनी कुशलता को भी बनाए रख सकें।

Arthvyavastha aur Ajivika

  1. कोयला एवं लौह उद्योग ने औद्योगिकरण की गति प्रदान की। कैसे ?

उत्तर :- उद्योग की प्रगति कोयला एवं लौह के उद्योग पर बहुत अधिक निर्भर करती है। लौह से नए-नए यंत्रों का निर्माण होता है। और कोयले से उर्जा पैदा की जाती है। जिससे यंत्र चलाये जाते हैं। नए उद्योगों के निर्माण की प्रक्रिया में कोयला एवं लौह गति प्रदान करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. औद्योगिकरण के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर :- औद्योगिकीकरण के निम्नलिखित कारण हैं।
(i) आवश्यकता आविष्कार की जननी।
(ii) नए-नए मशीनों का आविष्कार।
(iii) कोयले एवं लोहे की प्रचुरता।
(iv) फैक्ट्री प्रणाली की शुरुआत।
(v) सस्ते श्रम की उपलब्धता।
(Vi) यातायात की सुविधा।
(vii) विशाल औपनिवेशिक स्थिति।

Arthvyavastha aur Ajivika

ब्रिटेन में स्वतंत्र व्यापार और अहस्तक्षेप की नीति ने ब्रिटेन व्यापार को बहुत अधिक विकसित किया। वस्तुओं की मांग बढ़ने लगी। ऐसी स्थिति में परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की जा रही थी, जिससे सूत का उत्पादन काफी बढ़ सके। यहीं सबसे प्रमुख कारण था, जिसकी वजह से ब्रिटेन औद्योगिकरण के आरंभिक वर्षों में अविष्कारों की एक श्रृंखला बनी। वह सूती वस्त्र उद्योग के क्षेत्र से अधिक संबंधित थी। औद्योगिकरण की दिशा में ब्रिटेन द्वारा स्थापित उपनिवेश ने भी योगदान दिया।

2. औद्योगिकरण के परिणाम स्वरूप होने वाले परिवर्तनों पर प्रकाश डालें।
उत्तर :- औद्योगिकरण के परिणाम।
(i) नगरों का विकास।
(ii) कुटीर उद्योग का पतन।
(iii) सामाज में का वर्ग विभाजन एवं बुर्जआ वर्ग का उदय।
(iv) फैक्ट्री मजदूर वर्ग का जन्म।
(v) स्लम पद्धति की शुरुआत।

सन् 1850 से 1950 के बीच भारत में वस्त्र उद्योग, लौह उद्योग,  सीमेंट उद्योग, कोयला उद्योग जैसे कई उद्योगों का विकास हुआ। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों के कायम हो जाने से प्राचीन गृह उद्योग का पतन आरंभ हुआ। हाथ से तैयार किया हुआ माल महंगा पड़ने लगा। उसकी बिक्री खत्म होने लगी।

औद्योगिकीकरण के परिणाम स्वरूप इंग्लैंड में हाथ के करघों से काम करने वाले पुराने बुनकारों की तबाही के साथ-साथ नए मशीनों का आविष्कार हुआ था। बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू हुआ। उसके फलस्वरूप ब्रिटिश सहयोग से भारत के उद्योग में पूंजी लगाने वाले पूँजीपति बन गए।

औद्योगिकीकरण ने एक नए तरह के मजदूर वर्ग को जन्म दिया। 1850 ई० से पूर्व चाय, कॉफी और रबड़ आदि के बगानों में काम करने वाले मजदूर की तुलना में फैक्ट्री मजदूर का उद्योगपतियों के द्वारा काफी शोषण हो रहा था।

औद्योगिकरण ने स्लम पद्धति की शुरुआत की मजदूर शहरों में छोटे-छोटे घरों में रहते थे। जहाँ किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं थी।

  1. उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं? औद्योगिकरण ने उपनिवेशवाद को जन्म दिया कैसे?

उत्तर :- मशीनों के अविष्कार तथा फैक्ट्रियों की स्थापना से उत्पादन में काफी वृद्धि हुई। उत्पादित वस्तुओं की खपत के लिए ब्रिटेन तथा आगे चलकर यूरोप के अन्य देशों को, जहाँ कारखानों की स्थापना हो चुकी थी। बाजार की आवश्यकता पड़ी। इससे उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिला।

18 वीं शताब्दी तक भारतीय उद्योग विश्व में सबसे अधिक विकसित थे। भारत विश्व का सबसे बड़ा कार्यशाला था, जो बहुत ही सुंदर एवं उपयोगी वस्तुओं का उत्पादन करता था।

1850 ई० के बाद ब्रिटिश सरकार ने अपने उद्योगों को विकसित करने के लिए अनेक ऐसे कदम उठाए जिनकी वजह से एक के बाद एक देशी उद्योग खत्म होने लगे, और औद्योगिकरण की प्रक्रिया ने उपनिवेशवाद को बढ़ावा दिया।

Arthvyavastha aur Ajivika

  1. कुटीर उद्योग के महत्व एवं उसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालें।

उत्तर :- यद्यपि औद्योगिकरण की प्रक्रिया ने भारत के कुटीर उद्योग को काफी क्षति पहुँचाई। मजदूरों की आजीविका को प्रभावित किया, परंतु इस विषम एवं विपरीत परिस्थिति में भी गांव एवं कस्बों में यह उद्योग पुष्पित एवं पल्लवित होता रहा। तथा जनसाधारण को लाभ पहुँचाता रहा। महात्मा गाँधी ने कहा था कि लघु एवं कुटीर उद्योग भारतीय सामाजिक दशा में अनुकूल है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। सामाजिक, आर्थिक व तत्संबंधित मुद्दों का समाधान उद्योगों से होता था। यह समाजिक, आर्थिक प्रगति व संतुलित क्षेत्रवार विकास के लिए एक शक्तिशाली औजार है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि प्रगति बड़े पैमाने पर होने के साथ रोजगार के अवसर को बढ़ाती है। इसमें पूँजी की आवश्यकता होती है। कुटीर उद्योग औद्योगिक संकेन्द्र को रोकती हैं तथा जनसंख्या के शहरों की ओर पलायन को भी कम करती है।

  1. औद्योगिकरण ने सिर्फ आर्थिक ढांचे को ही प्रभावित नहीं किया बल्कि राजनैतिक परिवर्तन का भी मार्ग प्रशस्त किया, कैसे?

उत्तर :- 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन की औद्योगिक नीति ने जिस तरह औपनिवेशिक शोषण की शुरुआत की। भारत में राष्ट्रवाद की नींव उसका प्रतिफल था। महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की तो राष्ट्रवादीयों के साथ अहमदाबाद एवं खेड़ा मिल के मजदूरों ने उनका साथ दिया। 

महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार एवं स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर बल डाले तथा उपनिवेशवाद के खिलाफ उसका प्रयोग किया। पूरे भारत के मिलों में काम करने वाले मजदूरों ने भारत छोड़ो आंदोलन में उनका साथ दिया।

भारत में राजनीतिक एवं सामाजिक परिवर्तन का मार्ग प्रसस्‍त किया। सन् 1950 के बाद संपूर्ण विश्व में अग्रणी औद्योगिक शक्ति समक्षा जाने वाला ब्रिटेन अपने प्रथम स्थान से वंचित हो गया और अमेरिका एवं जर्मनी देश औद्योगिक विकास की दृष्टि से ब्रिटेन से काफी आगे निकल गए।

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