• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer

Top Siksha

Be a successful student

  • Home
  • Contact Us
  • Pdf Files Download
  • Class 10th Solutions Notes
  • Class 9th Solutions
  • Class 8th Solutions
  • Class 7th Solutions
  • Class 6th Solutions
  • NCERT Class 10th Solutions Notes

कक्षा 10 अर्थशास्‍त्र पाठ 1 अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास | Arthvaivastha or iske vikash ka itihas

January 10, 2023 by Leave a Comment

दिया गया पाठ का नोट्स और हल SCERT बिहार पाठ्यक्रम पर पूर्ण रूप से आधारित है। इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 10 अर्थशास्‍त्र के पाठ एक ‘अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास (Arthvaivastha or iske vikash ka itihas Notes and Solutions)’ के नोट्स और प्रश्‍न-उतर को पढ़ेंगे।

Arthvaivastha or iske vikash ka itihas

1. अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास

15 अगस्त, 1947 को मिली आजादी से पहले लगभग 200 वर्षो तक भारत अंग्रेजी शासन का गुलाम था। उस समय भारत को सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था। लेकिन अंग्रेजी शासन ने सोने की इस चिड़िया का भरपूर शोषण किया तथा जमकर लूटा, जिसके कारण भारत में आर्थिक विकास की गति मंद या नगण्य रही। अंग्रेजी शासन के 200 वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था में कोई विकास नही हुआ।

उपनिवेश

जब कोई भी देश किसी बडे समृ़द्धशाली राष्ट्र के शासन के अंतर्गत रहता है और उसके समस्त आर्थिक एवं व्यवसायिक कार्यों का निर्देशन एवं नियंत्रण शासक देश का होता है तो एसे शासित देश को शासक देश का उपनिवेश कहा जाता है। भारत करीब 200 वर्षों तक ब्रिटिश शासन का एक उपनिवेश था।

अर्थयवस्था का अर्थ

हमारी वे सभी क्रियाएँ, जिनसे हमें आय प्राप्त होती हैं, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती हैं। अर्थव्यवस्था एक ऐसा तंत्र या ढाँचा हैं जिसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ सम्पादित कि जाती है, जैसे- कृषि, उद्योग, व्यापार, बैंकिंग, बीमा, परिवहन तथा संचार आदि।

प्रत्येक अर्थव्यवस्था दो प्रमुख कार्य संपादित करती हैं-

  1. लोगों की आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करती है।
  2. लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करती है।

आर्थर लेविस के अनुसार अर्थवयवस्था का अर्थ किसी राष्ट्र के सम्पूर्ण व्यवहार से होता है। जिसके आधार पर मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए वह अपने संसाधनों का प्रयोग करता है।

ब्राउन के अनुसार अर्थव्यवस्था आजीविका अर्जन की एक प्रणाली है।

दूसरे शब्द में, अर्थव्यवस्था आर्थिक क्रियाओं का एक ऐसा संगठन है जिसके अन्तर्गत लोग कार्य करके अपनी आजीविका चलाते है।

अर्थव्यवस्था समाज की सभी आर्थिक क्रियाओं का योग है।

अर्थव्यवस्था की संरचना या ढाँचा

अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ अथवा गतिविधियाँ सम्पादित की जाती हैं, इन क्रियाओं को मोटे तौर पर तीन भागों में बाँटा जाता है-

  1. प्राथमिक क्षेत्र
  2. द्वितीयक क्षेत्र
  3. तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र
  4. प्राथमिक क्षेत्र- प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र भी का जाता है। इसके अंर्तगत कृषि, पशुपालन, मछली पालन, जंगलो से वस्तुओं को प्राप्त करना जैसे व्यवसाय आते हैं।
  5. द्वितियक क्षेत्र- द्वितिय क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता हैं। इसके अंर्तगत खनिज व्यवसाय, निर्माण कार्य, जनोपयोगी सेवाएँ, जैसे-गैस और बिजली आदि के उत्पादन आते हैं।
  6. तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र- तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत बैंक एवं बीमा, परिवहन, संचार एवं व्यापार आदि क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। ये क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितियक क्षेत्रों की क्रियाओं को सहायता प्रदान करती हैं। इसलिए इसे सेवा क्षेत्र कहा जाता हैं।

Arthvaivastha or iske vikash ka itihas

अर्थव्यवस्था के प्रकार

विश्व में निम्न तीन प्रकार की अर्थव्यवस्था पाई जाती हैं-

  1. पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाः- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादन के साधनां का स्वामित्व एवं संचालन नीजी व्यक्तियों के पास होता है जो इसका उपयोग अपने निजी लाभ के लिए करते हैं। जैसेः- अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि।
  2. समाजवादी अर्थव्यवस्थाः- समाजवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था हैं जहाँ उत्पादन के साधनों का स्वामित्व एवं संचालन देश की सरकार के पास जाता है जिसका उपयोग सामाजिक कल्यान के लिए किया जाता है। चीन, क्युबा आदि देशों मे समाजवादी अर्थव्यवस्था हैं।
  3. मिश्रत अर्थव्यवस्थाः- मिश्रत अर्थव्यवस्था पूँजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था का मिश्रण है। मिश्रित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सरकार तथा निजीं व्यक्तियों के पास होता है।

अर्थव्यवस्था का विकास

अर्थव्यवस्था के विकास का एक लम्बा इतिहास है। अर्थव्यवस्था का विकास एक पौधों की विकास की तरह होता है। जिस तरह एक पौधे का क्रमशः विनाश होते जाता हैं और परिपक्वता की स्थिति में उससे फल डाली आदि का उपयोग मानवहित में होता है। ठीक उसी तरह एक अर्थव्यवस्था का आदिम काल से अब तक विकस हुआ है। अर्थव्यवस्था में हुए परिवर्तन हम अर्थव्यवस्था के विकास कि कहानी कह सकते हैं।

भारत में योजना आयोग का गठन 15 मार्च 1950 को किया गया था। आयोग के अध्यक्ष पदेन भारत के प्रधानमंत्री होते हैं। समान्यतः काम- काज एक उपाध्यक्ष के देख-रेख में होता है। जिसकी सहायता के लिए आयोग के आठ सदस्य होते हैं।

राष्ट्रीय विकास परिषद् भारत में राष्ट्रीय विकास परिषद् का गठन 6 अगस्त 1952 को किया गया था। इसका गठन आर्थिक नियोजन हेतु राज्य सरकारों तथा योजना आयोग के बीच ताल-मेल तथा सहयोग का वातावरण बनाने के लिए किया गया था। राष्ट्रीय विकास परिषद् में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इसके पदेन सदस्य होते हैं।

मौद्रिक विकास की संक्षिप्त कहानी

  1. वस्तु विनिमय प्रणाली- वस्तु से वस्तु का लेन-देन
  2. मौद्रिक प्रणाली- मुद्रा से वस्तु एवं सेवाओं का विनिमय
  3. बैंकिग प्रणाली- बैंक के माध्यम से चेक के द्वारा विनिमय के क्रिया का संपादन
  4. कोर बैंकिग प्रणाली- इसके अंतर्गत एक संकेत से एक व्यक्ति के खाते से दूर अवस्थित दूसरे व्यक्ति को उसी बैंक के माध्यम से पैसा का हस्तानांनतरण
  5. ए.टी.एम प्रणाली- प्लास्टिक के एक छोटे से कार्ड पर अंकित सुक्ष्म संकेत के आधार पर कहीं भी तथा किसी भी समय निर्धारित बैंक के केन्द्र से पैसे निकालने की सुविधा।
  6. डेबिट कार्ड- बैंक द्वारा दिया गया प्लास्टिक का कार्ड जिसके द्वारा बैंक में अपनी जमा राशि के पैसे का उपयोग करना।
  7. क्रेडिट कार्ड- बैंक द्वारा जारी किया गया प्लास्टिक का एक कार्ड जिसके आधार पर उसके धारक द्वारा पैसे अथवा वस्तु प्राप्त कर लेना।

आर्थिक विकास की माप एवं सूचकांक

राष्ट्रीय आय- आर्थिक विकास के एक प्रमुख सूचक राष्ट्रीय आय को माना जाता है। किसी देश में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता हैं। सामान्य तौर पर जिस देश का राष्ट्रिय आय अधिक होता है वह देश विकसित कहलाता हैं और जिस देश का राष्ट्रीय आय कम होता हैं।

वह देश अविकसित कहलाता हैं।

प्रति व्यक्ति आयः- आर्थिक विकास की माप करने के लिए प्रति व्यक्ति आय को सबसे उचित सुचकांक माना जाता है। प्रति व्यक्ति आय देश मे रहते हुए व्यक्तियों कि औसत आय होती है। राष्ट्रीय आय देश कि कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता हैं, वह प्रति व्यक्ति आय कहलाता है। फार्मूले के रूप में-

 प्रतिव्यक्ति आयत्र;राष्‍ट्रीयआयद्धध्;कुल जनसंख्‍या द्ध

विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट 2006 के अनुसार जिन देशों की 2004 में प्रतिव्यक्ति आय 453000 रूपये प्रतिवर्ष या इससे अधिक है, वह विकसित देश हैं और वे देश जिनकी प्रति व्‍यक्ति आय 37000 रूपये या इससे कम है उन्हें विकासशील देश कहा गया है। भारत विकासशील (निम्न आय वर्ग) वाले देश में आता है, क्योंकि 2004 के अनुसार भारत की प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय 28000 रूपये थी।

Arthvaivastha or iske vikash ka itihas

2000-2003 के आंकड़े के अनुसार पंजाब के प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय 26000, केरल की 22800 तथा बिहार की मात्र 5700 थी।

मानव विकास सूचकांक-यूएनडीपी द्वारा मानव विकास रिपोर्ट विभिन्न देशों की तुलना लोगों की शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर करती है।

मानव विकास सूचकांक के तीन सूचक हैं-

  1. जीवन आशा
  2. शिक्षा प्राप्ति तथा
  3. जीवन-स्तर।

2004 के लिए विभिन्न देशों की मानव विकास सूचकांक

नार्वे- 0.965 स्थान -1

ऑस्ट्रेलिया- 0.957 स्थान -3

भारत-0.611 स्थान- 126

 2004 में 177 देशों के लिए मानव विकास सूचकांक की गणना की गई थी। जिसमें भारत का स्थान 126वां है। नार्वे का पहला स्थान तथा ऑस्ट्रेलिया का तीसरा स्थान है। इसका मतलब है कि भारत में मानव विकास मध्यम स्तर का है।

बिहार के विकास की स्थिति

बिहार का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। यही पर गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। महावीर ने शांति के संदेश यहीं से दिया था। चन्द्रगुप्त, अशोक, शेरशाह, गुरुगोविंद सिंह, बाबू कुँवर सिंह, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार से ही हुआ है। महात्मा गाँधी ने चम्पारण आंदोलन की शुरूआत यहीं से किया था। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा इसी बिहार से दिया था, फिर भी बिहार काफी पिछे है। साधनों के मामले में धनी होते हुए भी बिहार की स्थिति दयनीय है। इसे पिछड़े राज्यों में गिना जाता है।

बिहार के पिछड़ेपन के कारण

  1. तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या
  2. आधारित संरचना का अभाव
  3. कृषि पर निर्भरता
  4. बाढ़ तथा सूखा से क्षति
  5. औद्योगिक पिछड़ापन
  6. गरीबी
  7. खराब विधि व्यवस्था
  8. कुशल प्रशासन का अभाव

Arthvaivastha or iske vikash ka itihas

बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के उपायः-आर्थिक विकास की गति को तेज करके ही बिहार की स्थिति में सुधार किया जा सकता हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ0 ए0 पी0 जे0 अब्दूल कलाम ने कहा था कि बिहार के विकास के बिना भारत का विकास संभव नही है। बिहार में पिछड़ेन को दूर करने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं।

  1. जनसंख्या पर नियंत्रण
  2. कृषि का तेजी से विकास
  3. बाढ़ पर नियंत्रण
  4. आधारिक संरचना का विकासः- बिहार में बिजली की काफी कमी है। अतः बिजली का उत्पादन बढ़ाया जाए। सड़क व्यवस्था में सुधार लाया जाए। शिक्षा एवं स्वास्थ सुविधाओं में सुधार लाया जाए जिससे विकास की प्रक्रिया और अधिक बढ़ सके।
  5. उद्योगों का विकास
  6. गरीबी दूर करनाः- बिहार मे गरीबी का सबसे अधिक प्रभाव हैं। गरीबी रेखा के नीचे लगभग 42 प्रतिशत से भी अधिक लोग यहाँ जीवन- वसर कर रहें हैं। इनके लिए रोजगार की व्यवस्था की जाए स्व-रोजगार को बढ़ावा देने के लिए इन्हे प्रशिक्षण दिया जाता है।
  7. शांत व्यवस्था की स्थापनाः- बिहार मे शांति की का माहौल कायम कर व्यक्तियों में विश्वास जगाया जा सकता है तथा आर्थिक विकास की गति को तेज किया जा सकता हैं।
  8. स्वच्छ तथा इमानदार प्रशासनः- बिहार के आर्थिक विकास के लिए स्वच्छ, कुशलतथा इमानदार प्रशासन जरूरी हैं।
  9. केन्द्र से अधिक मात्रा में संसाधनों का हस्तांतरण

देश के आर्थिक विकास में बिहार के विकास की भूमिकाः-बिहार देश का एक बड़ा राज्य हैं। भौगोलिक क्षेत्रफल तथा जनसंख्या दोनों ही दृष्टिकोण से बिहार का स्थान भारत में अपना एक अलग महत्व रखता हैं। इसलिए कहा जाता है की यदि भारत का विकास करना है तो बिहार का विकास करना आवश्यक हैं।

बिहार देश का एक ऐसा राज्य है जहाँ अत्यधिक उर्वरक भूमि है। हिमालय से निकलने वाली नदियों में लगातार जल प्रवाह होता रहता है। यहाँ धरती के नीचे कम सतह पर ही जल प्राप्त हो जाते हैं। यदि बिहार की नदियों को परस्पर जोड़ कर जल संसाधन के उपयोग की योजना लागू कर दिया जाए तो उत्तरी बिहार को बाढ़ की विभीषिका से बचाया जा सकता है तथा दक्षिणी बिहार को सिंचाई की सुविधा द्वारा सूखे से बचाया जा सकता है।

देश के आर्थिक विकास के प्रत्येक क्षेत्र में बिहारीयों का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। हाल के वर्षों में बिहार के विकास में गति आई है। केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन ने बिहार का वर्तमान विकास दर 11.03 प्र्रतिशत माना है जो देश में गुजरात 11.5 के बाद दूसरा हैं। यदि देश और बिहार कंधा में कंधा मिलाकर विकास की क्रिया के वर्तमान दौर को कारगर करें तो इक्कीसवीं शताब्दी में आर्थिक दृष्टिकोण से भारत विश्व के अग्रणी देशों में आ जाएगा। अतः स्पस्ट है कि देश के आर्थिक विकास में बिहार के आर्थिक विकास की भूमिका महत्वपूर्ण हैं।

Arthvaivastha or iske vikash ka itihas

मूलभूत आवश्यकताएँ एवं विकास का संबंध

देश के नागरिकों के रहने के लिए मकान, खाने के लिए रोटी तथा शरीर ढ़कने के लिए कपड़ा उनकी न्यूनतम मूलभूत आवश्यकता है। देश की बढ़ती हुई जनसंख्या विकास के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा है। समुचित न्यायपूर्ण सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लोगों को खाने के लिए रोटी उप्लठब्ध हो सकता है। देश में रोजगार के द्वारा नागरिको को आय में वृद्धि की जा सकती है। जिससे उन्हें कपड़ा और मकान उपलब्ध होगा। देश के ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब मजदूरों के लिए राष्ट्रव्यापी रोजगार देने कि योजना बनाई गई है। यह योजना राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत शुरू कि गई है। इसे संक्षेप में नरेगा कहा जाता हैं। ग्रामीण रोजगार देने की इस स्कीम को विश्व का सबसे बड़ा रोजगार योजना माना जाता हैं।

गरीबी रेखाः- गरीबी को निर्धारित करने के लिए योजना आयोग द्वारा सीमांकन किया गया है। गरीबी-रेखा कैलोरी मापदंड पर आधारित है। ग्रामिण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रो में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन निर्धारित किया गया है। अर्थशास्त्र में गरीबी की माप की यह एक काल्पनिक रेखा है। इस रेखा के नीचे के लोगों को गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है। इसे संक्षेप में ठच्स् भी कहा जाता है।

हमारी अर्थव्यवस्था

1.अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास

लघु उतरीय प्रश्न

  1. अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं?

उत्तर-अर्थव्यवस्था एक ऐसा तंत्र या ढाँचा है जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ सम्पादित की जाती है, जैसे-कृषि, उद्योग, व्यापार, बैकिंग, बीमा, परिवहन तथा संचार आदि।

  1. मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है?

उत्तर-मिश्रित अर्थव्यवस्था पूँजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था का मिश्रण है। मिश्रित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादन के साधनोंका स्वामित्व सरकार तथा निजी व्यक्तियों के पास होता हैं।

  1. सतत विकास क्या है?

उत्तर-सतत विकास का शब्दिक अर्थ हैऐसा विकास जो जारी रह सके, टिकाऊ बना रह सके। सतत विकास में न केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि भावी पीढ़ी के विकास को भी ध्यान में रखा जाता है। ब्रुण्डलैंड आयोग ने सतत विकास के बारे में बताया है कि विकास की वह प्रक्रिया जिसमें वर्तमान की आवश्यकताएँ बिना भावी पीढ़ी की क्षमता योग्यताओं से समझौता किए पूरी की जाती है।

  1. आर्थिक नियोजन क्या हैं?

उत्तर-आर्थिक नियोजन का अर्थ राष्ट्र की प्राथमिकताओं के अनुसार देश के संसाधनों का विभिन्न विकासात्मक क्रियाओं में प्रयोग करना है। भारत में आर्थिक विकास का श्रेय नियोजन को दिया जा सकता है। भारत में नियोजन के मुख्य उद्देश्य है आर्थिक विकास की दर को बढ़ाना, कृषि एवं उद्योग को आधुनिकीकरण करना।

  1. मानत विकास रिपोर्ट (Humam Development Report) क्या हैं?

उत्तर-यूएनडीपी (UNDP) द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट(HDR) विभिन्न देशों की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर करती हैं। जहाँ तक मानव विकास सुचकांक (HDI) का प्रश्न है तो इसके तीन सुचक है।

(i) जीवन आशा

(ii) शिक्षा प्राप्ति

(iii) जीवन स्तर

Arthvaivastha or iske vikash ka itihas

6.आधारिक संरचना पर प्रकाश डालें।

उत्तर- आधारिक संरचना का मतलब उन सविधाओं तथा सेवाओं से हैं जो देश के आर्थिक विकास के लिए सहायक होते हैं। वे सभी तत्व हैं। जैसे-बिजली, परिवहन, संचार, बैंकिंग, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल आदि देश के आर्थिक विकास के आधार है, उन्हे देश का आधारिक संरचना कहा जाता हैं।

दीर्घ उतरीय प्रश्न

  1. अर्थव्यवस्था की संरचना से क्या समझते हैं?इन्हें कितने भागों में बाँटा गया हैं?

उत्तर- अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ अथवा गतिविधियाँ सम्पादित की जाती हैं, जैसे-कृषि, उद्योग, व्यापार, बैकिंग, बीमा, परिवहन, संचार आदि। इन क्रियाओं को मोटे तौर पर तीन भागो में बाँटा जाता हैं।

(i) प्राथमिक क्षेत्र

(ii) द्वितीयक क्षेत्र

(iii) तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र

(i) प्राथमिक क्षेत्र- प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत कृषि, पशुपालन, मछली पालन, जंगलों से वस्तुओं को प्राप्त करना जैसे व्यवसाय आते हैं।

(ii) द्वितियक क्षेत्र-द्वितियक क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता हैं। इसके अंतर्गत खनीज, व्यवसाय, निमार्ण कार्य, जनोपयोगी सेवाएँ जैसे-गैस और बिजली आदि के उत्पादन आते हैं।

(iii) तृतीयक क्षेत्र- तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहा जाता हैं। इसके अंतर्गत बैंक एवं बीमा परिवहन, संचार एवं व्यापार आदि आते हैं। ये क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रों की क्रियाओं को सहायता प्रदान करती हैं। इसलिए इसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है।

  1. आर्थिक विकास क्या है? आर्थिक विकास तथा आर्थिक वृद्धि में अंतर बतावें।

उत्तर- आर्थिक विकास की परिभाषा को लेकर अर्थशास्त्रि‍यों में काफी मतभेद है इसकी एक सर्वमान्य परिभाषा नही दी जा सकती हैं। प्रो० रोस्टोव के अनुसार आर्थिक विकास एक ओर श्रम-शक्ति में वृद्धि की दर तथा दूसरी ओर जनसंख्या में वृद्धि के बीच को संबंध हैं।

प्रो०मेयर एवं बाल्डविन के अनुसार आर्थिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दीर्घकाल में किसी अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती हैं।

आर्थिक विकास आवश्यक रूप से परिवर्तन की प्रक्रिया हैं इससे अर्थव्यवस्था के ढाँचे में परिवर्तन होते हैं इसके चलते प्रति व्यक्ति वास्तविक आय बदलती है तथा आर्थिक विकास के निर्धारक निरंतर बदलते रहते हैं।

श्रीमती उर्सला हिक्स के अनुसार ‘वृद्धि शब्द का प्रयोग आर्थिक दृष्टि से विकसीत देशों के संबंध में किया जाता हैं। जबकि विकास शब्द का प्रयोग विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में किया जा सकता है’ डॉ॰ ब्राईट सिंह ने भी लिखा है कि वृद्धि शब्द का प्रयोग विकसित देशों के लिए किया जा सकतो हैं।

Arthvaivastha or iske vikash ka itihas

  1. आर्थिक विकास की माप कुछ सुचकांकों के द्वारा करें।

उत्तर-आर्थिक विकास की माप कुछ सुचकांक निम्न हैं।

(i) राष्ट्रीय आय-राष्ट्रीय आय को आर्थिक विकास का एक प्रमुख सूचक माना जाता है। किसी देश में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रि‍क मूल्य के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। सामान्य तौर पर जिस देश का राष्ट्रीय आय अधिक होता है। वह देश विकसित कहलाता है और जिस देश का राष्ट्रीय आय कम होता है। वह देश अविकसित कहलाता हैं

(iii) प्रति व्सक्ति आय-आर्थिक विकास की माप करने के लिए प्रति व्यक्ति आय को सबसे उचित सुचकांक माना जाता है। प्रति व्यक्ति आय देश में रहते हुए व्यक्तियों की औसत आय होती है। राष्ट्रीय आय को देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है, वह प्रति व्यक्ति आय कहलाता है। इसका फार्मूला

प्रति व्यक्ति आय= राष्ट्रीय आय/कुल जनसंख्या

(iii) मानव विकास सूचकांक-यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट विभिन्न देशों की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर करती हैं। जहाँ तक मानव विकास सूचकांक का प्रश्न है तो इसके तीन सूचक हैं।

(i) जीवन आशा

(ii) शिक्षा प्राप्ति

(iii) जीवन स्तर

4.बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन के क्या कारण हैं? बिहार के पिछड़ेपन दूर करने के लिए कुछ मुख्य उपाय बतावें।

उत्तर- बिहार के पिछड़ेपन के कारण—

(i) तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या

(ii) आधारिक संरचना का अभाव

(iii) कृषि पर निर्भरता

(iv) बाढ़ तथा सुखा से क्षति

(v) औद्योगिक पिछड़ापन

(vi) गरीबी

(vii) खराब विधि व्यवस्था

(viii) कुशल प्रशासन का अभाव

बिहार के पिछड़ेपन दूर करने के लिए मुख्य उपाए निम्न है—

(i) जनसंख्या पर नियंत्रण-राज्य में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगाया जाए। परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागु किया जाए। इसके लिए राज्य की जनता एवं खास करके महिलाओं में शिक्षा का प्रचार किया जाए।

(ii) कृषि का तेजी से विकास-बिहार में कृषि ही जीवन का आधार है। अतः कृषि में नए यंत्रों का प्रयोग किया जाए। उतम खाद, उतम बीज का प्रयोग किया जाए ताकि उपज में वृद्धि लायी जा सके। इस तरह कृषि का तेजी से विकास कर बिहार का आर्थिक विकास किया जा सकता है।

(iii) बाढ़ पर नियंत्रण-बिहार के विकास में बाढ़ एक बहुत बड़ा बाधक है। फसल का बहुत बड़ा भाग बाढ़ के चलते बर्बाद हो जाता है। जानमाल की भी काफी क्षति होती हैं।

(iv) आधारिक संरचना का विकास-बिहार में बिजली की काफी कमी है। बिजली का उत्पादन बढ़ाया जाए। सड़क-व्यवस्था में सुधार लाया जाए। शिक्षा एवं स्वास्थय सुविधाओं में सुधार लाया जाए जिससे विकास की प्रक्रिया और अधिक आगे बढ़ सके।

(v) उद्योगो का विकास-बिहार से झारखण्ड के अलग होने से यह राज्य लगभग उद्योग विहीन हो गया था। मुख्यत: चीनी मिल बिहार के हिस्से में रह गई थी जो अधिकतर बन्द पड़ी थी।

(vi) गरीबी दूर करना-बिहार में गरीबी का सबसे अधिक प्रभाव है। गरीबी रेखा के नीचे लगभग 42 प्रतिशत से भी अधिक लोग यहाँ जीवन-बसर कर रहे हैं। इनके लिए रोजगार की व्यवस्था की जाए। स्व-रोजगार को बढ़ावा देने के लिए इन्हें प्रशिक्षण दिया जाए।

(vii) शांति व्यवस्था की स्थापना-बिहार में शांति का माहौल कायम कर व्यापरियों में विश्वास जगाया जा सकता है तथा आर्थिक विकास की गति को तेज किया जा सकता है।

(viii) स्वच्छ तथा ईमानदार प्रशासन-बिहार के आर्थिक विकास के लिए स्वच्छ, कुशल तथा ईमानदार प्रशासन जरूरी है।

(ix) केन्द्र से अधिक मात्रा में संसाधनों का हस्तांतरण-बिहार के विकास के लिए केन्द्र से अधिक मात्रा में संसाधनों के हस्तांतरण की जरूरत है। कुछ राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देकर उन्हें अधिक मात्रा में केन्द्रीय सहायता दी जाती है। विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त होने के कारण जम्मू एवं कश्मीर, पंजाब, उतर-पूर्व के राज्यों को विशेष सहायता मिलती रहती हैं।

Arthvaivastha or iske vikash ka itihas

Read More – click here
YouTube Video – click here

Filed Under: Class 10th

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Recent Posts

  • BSEB Class 10th Non–Hindi Objective Chapter 10. राह भटके हिरण के बच्चे को (Rah Bhatake Hiran Ke Bachche Ko)
  • BSEB Class 10th Non–Hindi Objective Chapter 9. सुदामा चरित (Sudama Charit)
  • BSEB Class 10th Non–Hindi Objective Chapter 8. झाँसी की रानी (Jhaansee Kee Raanee)

Footer

About Me

Hey ! This is Tanjeela. In this website, we read all things, which is related to examination.

Class 10th Solutions

Hindi Solutions
Sanskrit Solutions
English Solutions
Science Solutions
Social Science Solutions
Maths Solutions

Follow Me

  • YouTube
  • Twitter
  • Instagram
  • Facebook

Quick Links

Class 12th Solutions
Class 10th Solutions
Class 9th Solutions
Class 8th Solutions
Class 7th Solutions
Class 6th Solutions

Other Links

  • About Us
  • Disclaimer
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions

Copyright © 2021 topsiksha