इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 12 के हिन्दी के गद्य भाग के पाठ चार ‘अर्धनारीश्वर’ (Ardhnarishwar Class 12 Hindi) का हिन्दी व्याख्या के साथ इसका सारांश पढ़ेंगे।
पाठ-4
अर्धनारीश्वर
(रामधारी सिंह दिनकर)
प्रस्तुत निबंध ‘अर्धनारीश्वर’ पाठ के निबंधकार रामधारी सिंह दिनकर हैं। इनका जन्म 23 सितम्बर 1908 ई० को बिहार के सिमरिया गाँव में हुआ था। दिनकर जी को ‘राष्ट्रकवि’ भी कहा गया हैं।
इस पाठ में निबंधकार कहते हैं कि अर्धनारीश्वर में शंकर और पार्वती की कल्पित रूप का वर्णन किया गया हैं। जिनमें आधा अंग पुरूष और आधा नारी का होता है। एक ही मूर्ति के दो आँखें एक ममतामयी और दूसरी विकराल यानी शिव की आँख विकराल है और पार्वती की आँखें ममतामयी है। एक ही मूर्ति की दो हाथ एक त्रिशूल उठाए तो दूसरी में चूड़ियाँ, एक ही मूर्ति के दो पाँव एक जड़ीदार साड़ी से ढ़का हुआ और दूसरा बाघ की खाल से ढ़का हुआ।
अर्धनारीश्वर की कल्पना से कुछ इस बात का भी पता चलता है कि नर-नारी पुरी तरह समान है और एक साथ ही एक गुण दूसरे का दोष नहीं हो सकता। यानी नर में नारीयों का गुण आए तो उनकी मरियादा बुरी नही होती। बल्कि उनकी मरियादा में वृद्धि होती है। नारी समझती है कि अगर वो पुरूष के गुण उसके अंदर आ जाए तो वह स्त्री नहीं रहेगी बल्कि वह नर बन जाएगी। ठीक उसी तरह नर समझता है कि नारी का गुण उसके अंदर आ जाए तो वह नारी बन जाएगा। लेकिन ऐसा नही है। नारी के अंदर नर का गुण और नर के अंदर थोड़ा नारी होना जरूरी है। महिलाओं का गुण पुरूष के अंदर आ जाता है। जैसे- दया, ममता, रोना आदि तो उनका खराब नहीं बल्कि उनके लिए और अच्छा हो जाता है। उसी तरह प्रत्येक स्त्री में पुरूष का गुण होता है लकिन सिर्फ उसे कोमल शरीर वाली पुरूष को आनंद देने वाली है।
घर की दिवारों में रहने वाली मानसिकता उसे अलग बनाती हैं। इसलिए लोग स्त्री को कमजोर कहने लगे। समय बिताने के साथ-साथ पुरूष ने महिलाओं के अधिकार को दबाता गया। पुरूष और नारी के बीच के अधिकार और हक का बँटवारा हो गया।
कवि कहते हैं कि अगर आदि मानव आज मौजुद होते तो उन्हें भी आज आश्चर्य होता। उस समय पुरूष और नारी में कोई बँटवारा नहीं था। उस समय जब कोई जानवर उन पर हमला करता तो दोनों एक साथ उसका सामना करते थे। धूप-वर्षा में एक साथ घूमते थे। भोजन भी एक साथ इकट्ठा करते थे। लेकिन कृषि के खोज से पुरूष बाहर का कार्य करने लगा और महिलाएँ घर के अंदर रहने लगी। घर का जीवन सीमित हो गया और बाहर का जीवन असीमित हो गया। यहीं से पुरूष और स्त्रियों में विभाजन शुरू हो गया। जिंदगी दो टूकड़ों में बँट गई।
कवि आगे कहते हैं कि पशु-पक्षीयों में भी ऐसा विभाजन नहीं होता है। उसमें भी नर और मादा दोनों एक साथ हर कार्य करते हैं। आज हर आदमी अपनी पत्नी को फूलों को आनंद की वस्तु समझता है।
बुद्ध और महावीर ने नारीयों को कुछ अधिकार दिया। लेकिन जैन धर्म में दिगम्बर संप्रदाय निकला जिसने नए नियम बनाया कि नारीयों को मुक्ति मिल नहीं सकती है। बुद्ध ने प्रिय शिष्य आनंद के कहने पर नारियों को बौद्ध धर्म में प्रवेश की अनुमति दिया। लेकिन कहा कि मैंने सोचा था कि यह धर्म पाँच हजार वर्ष तक चलेगा पर नारी के प्रवेश आ जाने से अब केवल पाँच सौ वर्ष ही चलेगा।
महात्मा और साधु नारियों से भय खाते थे। कई महात्माओं ने नारीयों से ब्याह भी किया और बाद में उसकी बुराई भी की। कबीर भी नारी को महा विकार कहा है।
पुरूष अपनी कमजोरी छिपाने के लिए नारी को ‘नागीन’ या ‘जादूगरनी’ कहता है लेकिन यह बात सच है कि जादूगर और नाग का गुण पुरूष में नारी से कहीं ज्यादा होता है।
प्रेमचन्द ने नारी की बुराई करते हुए कहते हैं कि पुरूष नारी का रूप लेता है तो वह देवता बन जाता है लेकिन वहीं जब नारी पुरूष का रूप ग्रहण करती है तो राक्षसी बन जाती है।
रवीन्द्रनाथ मानते हैं कि नारी पढ़-लिखकर क्या करेगी। नारी का अर्थ सुंदर दिखना, पृथ्वी की शोभा बढ़ाना और प्रेम की प्रतिमा बनने में है।
नारीयों की इतनी अवहेलना यानी बेइज्जती के बावजूद भी वह कभी बुरा नहीं मानतीं। नारीयों को यह भी सुनने में बहुत अच्छा लगता है कि नारी सपना है, नारी कमजोर है, नारी सुगंध है, नारी पुरूष की बाँहों पर झूलती हुई जुही की माला है।
अब नारीयों को विकार और पुरूषों की बाधा नहीं मानी जाती है। नारी भी अब सभी प्रकार के कार्य करने लगी है। फिर भी, नारी अपनी सही जगह पर नहीं पहुँची है।
दिनकर जी यह भी कहते हैं कि प्रत्येक नर एक हद तक नारी है और नारी बनना अधिक जरूरी है। गाँधीजी ने अपने जीवन में नारीत्व की भी साधना की थी। उनकी पोती जो पुस्तक लिखी उसका नाम है ‘बापू मेरी माँ है।‘ जिसमें पुरूषों में उपस्थित नारीयों के गुण जैसे दया, क्षमा इत्यादि को बतलाया गया है।
रामधारी सिंह दिनकर ने इस निबंध में स्त्रियों के सम्मान को बढ़ाने पर बल दिया है । उन्होने गांधी और मार्क्स के विचारों की वकालत की है जिन्होंने नारी जाति के सम्मान की बात कही है |
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