दिया गया पाठ का नोट्स और हल SCERT बिहार पाठ्यक्रम पर पूर्ण रूप से आधारित है। इस लेख में बिहार बोर्ड कक्षा 10 अर्थशास्त्र के पाठ छ: ‘वैश्वीकरण (Vaishvikaran Economics notes and solutions)’ के नोट्स और प्रश्न-उतर को पढ़ेंगे।
6. वैश्वीकरण
बीसवीं शताब्दी के नौवें दशक से विश्व बाजार में एक युग की शुरूआत हुई है। जिसे वैश्वीकरण कहते हैं। वैश्वीकरण के अंतर्गत पूरी दुनिया का बाजार एक-दूसरे के लिए मुक्त हो गया है।
पहले मोटर साइकिल में राजदूत, एजडी तथा कार में फिएट तथा एम्बेस्डर ही चला करती थी। आज वैश्वीकरण के कारण छोटे-से शहरों की सड़कों पर भी नयी-नयी किस्म की गाड़ियाँ चलती है।
वैश्वीकरण क्या है ?
वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का समन्वय या एकीकरण किया जाता है ताकि वस्तुओं एवं सेवाओं, प्रौद्योगिकी, पूँजी और श्रम या मानवीय पूँजी का भी निर्बांध प्रवाह हो सके। वैश्वीकरण के अंतर्गत पूँजी, वस्तु तथा प्रौद्योगिकी का निर्बाध रूप से एक देश से दूसरे देश में प्रवाह होता है।
निजीकरण- निजीकरण का अभिप्राय, निजी क्षेत्र द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से स्वामित्व प्राप्त करना तथा उनका प्रबंध करना है। आर्थिक सुधारों के अंर्तगत भारत सरकार ने सन् 1991 से निजीकरण की नीति अपनाई।
उदारीकरण- उदारीकरण का अर्थ सरकार द्वारा लगाए गए सभी अनावश्यक नियंत्रणों तथा प्रतिबंधों जैसे- लाइसेंस, कोटा आदि को हटाना है। आर्थिक सुधारों के अंर्तगत भारत सरकार ने 1991 से उदारीकरण की नीति अपनाई।
बहुराष्ट्रीय कंपनी- बहुराष्ट्रीय कंपनी वह है, जो एक से अधिक देशों में उत्पादन पर नियंत्रण व स्वामित्व रखती है। जैसे- फोर्ड मोटर्स, सैमसंग, कोका कोला, नोकिया, इंफोसिस, टाटा मोटर्स आदि।
वैश्वीकरण के पक्ष में तर्क
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रोत्साहन
- प्रतियोगी शक्ति में वृद्धि
- नई-प्रौद्योगिकी के प्रयोग में सहायक
- अच्छी उपभोक्ता वस्तुओं की प्राप्ति
- नये बाजार तक पहुँच
- उत्पादन तथा उत्पादिता के स्तर को उन्नत करना
- बैंकिग तथा वितीय क्षेत्र में सुधार
- मानवीय पूँजी की क्षमता का विकास
बिहार में वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभाव
- कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों की उपेक्षा
- कुटीर एवं लघु उद्योगों पर विपरीत प्रभाव
- रोजगार पर विपरीत प्रभाव
- आधारभूत संरचना के कम विकास के कारण कम निवेश
आम आदमी पर वैश्वीकरण का अच्छा प्रभाव
- उपयोग के आधुनिक संसाधनों की उपलब्धता
- रोजगार की बढ़ी हुई संभावना
- आधुनिकतम तकनीक की उपलब्धता
आम आदमी पर वैश्वीकरण का बुरा प्रभाव
- बेराजगारी बढ़ने की आशंका
- उद्योग एवं व्यवसाय के क्षेत्र में बढ़ती हुई प्रतियोगिता
- श्रम संगठनों पर बुरा प्रभाव
- मध्यम एवं छोटे उत्पादकों की कठिनाई
- कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र का संकट
- वैश्वीकरण
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लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर—वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा विश्व के विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं का एकीकरण किया जाता है ताकि वस्तुओं एवं सेवाओं, प्रौद्योगिकी, पूंजी और श्रम या मानवीय पूंजी का भी निर्बाध प्रवाह हो सके। वैश्वीकरण के अंतर्गत पूंजी वस्तु तथा प्रौद्योगिकी का निर्बाध रूप से एक देश से दूसरे देश में प्रवाह होता है।
प्रश्न 2. बहुराष्ट्रीय कंपनी किसको कहते हैं?
उत्तर– बहुराष्ट्रीय कंपनी वह है, जो 1 से अधिक देशों में उत्पादन को पर नियंत्रण व स्वामित्व रखती है जैसे- फोर्ड मोटर्स, सैमसंग, कोका कोला, नोकिया, इंफोसिस, टाटा मोटर्स आदि।
प्रश्न 3. विश्व व्यापार संगठन क्या है ? यह कब और क्यों
उत्तर- विश्व व्यापार संगठन एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसका उदेश्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की उदार बनाना है इसकी स्थापना 1995 में की गई थी भारत का संस्थापक सदस्य वर्तमान में 149 देश विश्व व्यापार संगठन(2006) के सदस्य है। इसका मुख्यालय जेनेवा में है। विश्व व्यापार संगठन अंतरराष्ट्रीय व्यापार से संबंधित नियमों को निर्धारित करता है और देखता है कि इन नियमों का पालन हो विश्व व्यापार संगठन सभी देशों को मुक्त व्यापार की सुविधा देता है।
प्रश्न 4.भारत में सन् 1991के आर्थिक सुधारों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-उदारीकरण, निजीकरण तथा वैश्वीकरण की नीतियों पर आधारित है। इसलिए इन्हें एलपीजी नीति भी कहते हैं आर्थिक सुधारों को हम नई आर्थिक नीति के नाम से भी जानते है।
प्रश्न 5. उदारीकरण को परिभाषित करें?
उत्तर-उदारीकरण का अर्थ सरकार द्वारा लगाए गए सभी अनावश्यक नियंत्रणो तथा प्रतिबंधो जैसे- लाइसेंस कोटा,आदि को हटाना है। आर्थिक सुधारों के अंतर्गत सन् 1991से भारत सरकार ने उदारीकरण की नीति अपनायी।
प्रश्न 6. निजीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- निजीकरण का अभिप्राय निजी क्षेत्र द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों पर पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से स्वामित्व प्राप्त करना तथा उनका प्रबंध करना है। आर्थिक सुधारों के अंतर्गत भारत सरकार ने सन 1991 से निजीकरण की नीति अपनाई दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. एक बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा किसी देश में अपनी उत्पादन इकाई लगाने के निर्णय पर किन बातों का प्रभाव पड़ता है।
उत्तर- बहुराष्ट्रीय कंपनी वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभा रहे है। बहुराष्ट्रीय कंपनी उत्पादन लागत में कमी करने एवं अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से उन जगह या देशो में उत्पादन के लिए कारखाने स्थापित करती है जहाँ उन्हे सस्ता श्रम, सस्ता माल एवं अन्य संसाधन मिल सकते है। बहुर्राष्ट्रीय कंपनी एक अनोखी पद्धति जिसे Out Sowking कहा जाता है, के माध्यम से काम करती है। बहुर्राष्ट्रीय कंपनीया न तो सारा माल स्यवं पैदा करती है न ही एक जगह पर उत्पादन करती है वे विभिन्न देशों में विभिन्न पदार्थो का उत्पादन करती है।
बहुर्राष्ट्रीय कंपनी संयुक्त उपक्रम के माध्यम से या कंपनी के विलय से विभिन्न देशो के छोटे उत्पादक से माल आपूर्ति ले करके अपना उत्पादन जाल फैलाती है। इस तरह बहुर्राष्ट्रीय कंपनी के द्वारा विश्व के दूर-दूर स्थानों पर फैला उत्पादन एक वैश्वीकरण की प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभा रहा है।
प्रश्न 2.वैश्वीकरण का बिहार पर पड़े प्रभाव को बताएं।
उत्तर-वैश्वीकरण का बिहार के जनजीवन पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं जिसे निम्न रूप से लिख सकते हैं।वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभाव
(1) कृषिउत्पादनमेंवृद्धि- वैश्वीकरण के बाद बिहार के कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है बिहार में खद्यानों का उत्पादन 1977-78में 102 लाख टन था जो 1996-97 में बढ़कर 141लाख टन हो गया।
(2)निर्यात में वृद्धि- वैश्वीकरण के फलस्वरुप बिहार से किए गए निर्यात में वृद्धि हुई है बिहार से निर्यात उत्पाद में लीची, आम, मखाना आदि
(3) विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग की प्राप्ति- वैश्वीकरण के फलस्वरुप बिहार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी हुआ है और इसमें काफी दिलचस्पी दिखाई गई है।
(4) शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद तथा प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद में वृद्धि- वैश्वीकरण के फलस्वरुप चालू मूल्यों पर बिहार के शुद्ध घरेलू उत्पादन तथा प्रति व्यक्ति शुद्ध घरेलू उत्पादन में वृद्धि हुई है अर्थात इस अवधि में राज्य की कुल आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है।
(5) निर्धनता में कमी- वैश्वीकरण के पश्चात राज्य में निर्धनता में उल्लेखनीय कमी हुई है।
(6) विश्व स्तरीय उपभोक्ता वस्तुओं की उपलब्धता- वैश्वीकरण के कारण बिहार के बाजारों में विश्वस्तरीय उपभोक्ता वस्तुएं उपलब्ध हो गई है।
(7) रोजगार के अवसरों में वृद्धि- वैश्वीकरण के फलस्वरुप रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है।उच्च शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्राप्त लोगों के लिए विदेशों तथा देश के अन्य भागों में रोजगार के अवसर उपलब्ध हुए हैं।
नकारात्मक प्रभाव
(1) कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों की उपेक्षा
(2) कुटीर एवं लघु उद्योगों पर विपरीत प्रभाव
(3) रोजगार पर विपरीत प्रभाव
(4) आधारभूत संरचना के विकास के कारण कम निवेश
प्रश्न 3. भारत में वैश्वीकरण के पक्ष में तर्क दें।
उत्तर- भारत में वैश्वीकरण के पक्ष में निम्नलिखित तर्क हैं।
(1) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रोत्साहन
(2) प्रतियोगी शक्ति में वृद्धि
(3)नई प्रौद्योगिकी के प्रयोग में सहायक
(4)अच्छी उपभोक्ता वस्तुओं की प्राप्ति
(5) नए बाजार तक पहुँच
(6) उत्पादन तथा उत्पादकता के स्तर को उन्नत करना
(7) बैंकिंग तथा वितीय क्षेत्र में सुधार
(8) मानवीय पूंजी की क्षमता का विकास
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प्रश्न 4. वैश्वीकरण का आम आदमी पर पड़े प्रभाव की चर्चा करें।
उत्तर- वैश्वीकरण का आम आदमी पर पड़ने वाला अच्छा प्रभाव
(1) उपयोग के आधुनिक संसाधनों की उपलब्धता
(2) रोजगार की बढ़ी हुई संभावना
(3) आधुनिकतम तकनीक उपलब्धता
आम आदमी का वैश्वीकरण का बुरा प्रभाव
(1)बेरोजगारी बढ़ने की आशंका
(2) उद्योग एवं व्यवसाय के क्षेत्र में बढ़ती हुई प्रतियोगिता
(3) श्रम संगठनों पर बुरा प्रभाव
(4) मध्यम एवं छोटे उत्पादकों की कठिनाई
(5) कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र का संकट
- उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण
उपभोक्ता बाजार का महत्वपूर्ण अंग है। व्यक्ति जब वस्तुएँ एवं सेवाएँ अपने उपयोग के लिए खरीदता है तब वह उपभोक्ता कहलाता है।
उपभोक्ता जागरण
प्रत्येक व्यक्ति का यह अधिकार है कि वह जिस वस्तु का उपभोक्ता है, उसके बारे में पूर्ण जानकारी लें, जैसे- वस्तु का गुण, मात्रा, वस्तु बनाने में लगा सामान और इससे होने वाले प्रभाव।
यदि उपभोक्ता किसी विशेष वस्तु का उपभोग करता है और सामान खराब निकलता है, तो वह अपने निकट के उपभोक्ता केन्द्र में शिकायत कर मुआवजा प्राप्त कर सकता है।
उपभोक्ता जागरूकता हेतु आकर्षक नारें-
सतर्क उपभोक्ता ही सुरक्षित उपभोक्ता है।
ग्राहक सावधान।
अपने अधिकारों को पहचानों।
जागो ग्राहक जागो।
उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों की रक्षा करो।
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वर्तमान में ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं हैं जहाँ उपभोक्तओं का शोषण नहीं हो रहा हो, चाहे शिक्षा का क्षेत्र हो या बैंकिग, चिकित्सा, दूरसंचार, डाक, खाद्य सामग्री या फिर भवन-निर्माण। सभी क्षेत्र में त्रुटि, लापारवाही और कालाबाजारी उपभोक्ता के लिए घातक सिद्ध हो रही है।
उपभोक्ता शोषण के मु़ख्य कारक
मिलावट की समस्या- महँगी वस्तुओं में दूसरी वस्तुएँ मिला कर उपभोक्ता का शोषण होता है।
कम तौलने द्वारा-वस्तुओं की माप में हेरा-फेरी करके भी उपभोक्ता को शोषण किया जाता है।
कम गुणवत्ता वाली वस्तु- उपभोक्ता को धोखे से अच्छी वस्तु के स्थान पर कम गुण वाले वस्तु देकर शोषण करना।
ऊँची किमत द्वारा- ऊँची किमत वसुल करके भी उपभोक्तओं का शोषण किया जाता है।
डुप्लीकेट वस्तुएँ- सही कंपनी का डुप्लीकेट वस्तुएँ देकर भी उपभोक्ता का शोषण किया जाता है।
जागरूक उपभोक्ता के लक्षण
छात्र-छात्राओं को चाहिए कि वे जिन संस्थान में नामांकन करने के इच्छुक है उनकी राज्य सरकार, न्ण्ळण्ब् से मान्यता प्राप्ती की जानकारी ले लें।
क्रेडिट कार्ड मिलते ही निर्धारित जगह में तुरंत हस्ताक्षर कर दें।
दवा सुरक्षित तथा लरइसेंस प्राप्त दवा विक्रेता से ही खरीदें।
यह सुनिश्चित करें कि आपको सही मात्रा में पेट्रोल मिल रहा हैं अथवा नहीं।
स्ण्च्ण्ळ गैस सिलिंडर की अंतिम तिथि का पता कर लें।
ISI तथा एकमार्क, हॉल-मार्क उत्पाद वस्तु पर देखें व सही परख करें।
उपभोकता संरक्षण एवं सरकार
सरकार ने उपभोकताओं की रक्षा के लिए समय-समय पर कदम उठाते हुए अनेक उपभोकता-कानून बनाए हैं इस कड़ी में सरकार के तरफ से सबसे महत्वपूर्ण कदम हैं- उपभोकता संरक्षण अधिनियम 1986 भारत सरकार ने इस अधिनियम को अपनाने में विश्व के विकसित देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में लागू उपभोकता संरक्षण अधिनियम एवं व्यवस्थाओं का गहराई से अध्ययन करने के पश्चात् अपनाया।
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उपभोकता संरक्षण अधिनियम 1986
उपभोकता संरक्षण अधिनियम के दायरे में सभी वस्तुओं, सेवाओं तथा व्यक्तियों, चाहे वह निजी क्षेत्र के हो या सार्वजनिक क्षेत्र के, उसको सामिल किया जाता हैं। इसके तहत उपभोकताओ को यह जानने का अधिकार प्राप्त है कि वह वस्तु या सेवा कि गुणवत्ता, परिमाण, क्षमता, शुद्धता, मानक और मुल्य के बारे में जानकारी प्राप्त कर सके।
उपभोकता संरक्षण अधिनियम आपको सशक्त बनाता है।
अपने निकट क्षेत्र के उपभोकता फोरम को जानने के लिए कम्प्यूटर पर लॉग-ऑन कर सकते हैं-
उपभेकता संगठन की वेबसाइट है- ww.Cuts.international.org
इस वेबसाइट में उपभोक्ता को जागरूक बनाने में विभिन्न प्रकार की सामग्री प्रकाशित करती हैं।
उपभोकता किसी भी टोलिफोन या मोबाइल से मुफ्त में उपभोक्ता संरक्षण संबंधी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन नं0-1800-11-4000 शुल्क मुक्त
स्वर्णाभूषणों पर बीआईएस हॉलमार्क हमेशा देखें
केवल ISI चिन्हित उत्पाद खरीदें
लगभग 1500 उत्पादों में चिन्ह ISI अंकित है, इसमें खास तौर पर ऐसे उत्पाद आते हैं जो सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं तथा ISI जो उपभोक्ताओं की सुरक्षा करते हैं।
इसमें एलपीजी सिलिण्डर्स, बिजली उपकरण, सुरक्षा हेलमेट, खाद्य पदार्थ, रंग, सिमेंट, शिशु आहार तथा बबल गम जैसे उत्पाद शामिल हैं।
उपभोक्ता सांरक्षण अधिनियम की धरा 6 के अंतर्गत उपभोक्ता को कुछ अधिकार सुरक्षा का अधिकार प्रदान किए गए हैं।
- सुरक्षा का अधिकारः- उपभोक्ता का प्रथम अधिकार सुरक्षा का अधिकार है। उपभोकता को ऐसे वस्तुओं और सेवाओं से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है जिससे उसके शरीर या संपत्ति को हानि हो सकती है जैसे- बिजली का आयरन विद्युत आपूर्ति की खराबी के कारण करंट मार देता है या एक डॉक्टर ऑपरेशन करते समय लापरवाही बरतता है जिसके कारण मरीज को खतरा या हानि हो सकती है।
- सुचना पाने का अधिकारः- उपभोकता को वे सभी आवश्यक सुचनाएँ प्राप्त करने का अधिकार है जिसके आधार पर वह वस्तुएँ या सेवाएँ खरीदने का निर्णय कर सकते हैं। जैसेः- पैकेट बंद सामान खरीदने पर उसका मुल्य इस्तेमाल करने की अवधि, गणवता इत्यादि की सुचना प्राप्त करें।
- चुनाव या पसंद करने कर अधिकारः-उपभोक्ता अपने अधिकार के अंतर्गत विभिन्न निर्माताओं द्वारा निर्मित विभिन्न ब्रांड, किस्म, रूप, रंग, आकार तथा मूल्य की वस्तुओं में किसी भी वस्तु का चुनाव करने को स्वतंत्र है।
- सुनवाई का अधिकारः- उपभोक्ता को अपने हितों को प्रभावित करनेवाली सभी बातो को उपयुक्त मंचो के समक्ष प्रस्तुत करने कर अधिकार है। उपभोक्ता को अपने को मंचो के साथ जुड़कर अपने बातों को रखनी चाहिए।
- शिकायत निवारण या क्षतिपूर्ति का अधिकारः- यह अधिकार लोगों को आश्वासन प्रदान करता है कि क्रय की गयी वस्तु या सेवा उचित ढ़ंग की अगर नही निकली तो उन्हे मुआवजा दिया जएगा।
- उपभोकता शिक्षा का अधिकारः-उपभोकता शिक्षा का अधिकार के अर्न्तगत, किसी वस्तु के मूल्य, उसकी उपयोगिता, कोटी तथा सेवा की जानकारी एवं अधिकारों से ज्ञान प्राप्ती की सुविधा जैसी बातें आती है जिसके माध्यम से शिक्षित उपभोकता धोखाधड़ी, दगाबाजी से बचने के लिए स्वंय सबल, संरक्षित एवं शिक्षित हो सकते हैं और उचित न्याय के लिए खड़े हो सकते हैं
उपभोकता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत उपभोक्ताओं को उनकी शिकायतां के निवारण के लिए व्यवस्था दी गई है जिसे तीन स्तरों पर स्थापित किया गया है-
राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग
राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय आयोग
जिला स्तर पर जिला मंच ;फोरमद्ध
उपभोक्ता संरक्षण हेतु सरकार द्वारा गठित न्यायिक प्रणाली
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में त्रिस्तरीय अर्द्धन्यायिक व्यवस्था है, जिसमें, जिला मंचों, राज्य आयोग एवं राष्ट्रीय आयोगकी स्थापना की गई है।
अगर उपभोक्ता राष्ट्रीय फोरम से संतुष्ट नहीं होता है तो वह आदेश के 30 दिनों के अंदर उच्चतमन्यायालय में अपील कर सकता है।
उपभोकता-शिकायत‘, क्या, कहाँ, कैसे?
इस समय देश में 582 जिला फोरम, 35 राज्य आयोग और एक राष्ट्रीय आयोग काम कर रहे हैं जिसके द्वारा दायर 24 लाख मामलो में 84 मामलों को निपटाया जा चुका है।
शिकायत क्या करें?
यदि कोई उत्पादक या व्यापारी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में परिभाषित उपभोकता के अधिकारे के विरूद्ध कार्य करता है तब उपभोकता शिकायत दर्ज कर सकते हैं-
शिकायत कहाँ करें?
यदि किसी व्यक्ति या सेवा का मूल्य 20 लाख से कम है तो वह शिकायत जिला फोरम में दर्ज करा सकते हैं।
शिकायत करने का तरीका
उपभोकता द्वारा शिकायत सादें कागज पर की जा सकती है जिसे दर्ज करने के लिए कोई शुल्क नही देना होता है साथ ही इसे व्यक्तिगत रूप से या डाक द्वारा भेजा जा सकता है।
पुनः अगर वस्तु व सेवा का मूल्य 20 लाख के ऊपर और 1 करोड़ के नीचे हो तो शिकायत राज्य आयोग के पास की जा सकती है और अगर किसी वस्तु या सेवा का मूल्य या क्षतिपूर्ति राशि 1 करोड़ से अधिक होने पर उपभोकता राष्ट्रीय अयोग में इसकी शिकायत कर सकता है।
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शिकायत कैसे की जाए ?
शिकायत सादे कागज पर की जा सकती है।
शिकायत में निम्नलिखित विवरण होना चाहिए-
शिकायत कर्ताओं तथा विपरित पार्टी के नाम का विवरण तथा पता।
शिकायत से संबंधित तथ्य एवं यह सब कब और कहाँ हुआ।
शिकायत में उल्लिखित आरोपों के सर्मथन में दस्तावेज।
शिकायत पे शिकायतकर्ताओं अथवा उसके प्राधिकृत एजेंट के हस्ताक्षर होने चाहिए।
अपनी शिकायत भेजें ताकि इसका समाधान हो सके।
आर्थिक शोषण एवं उसका निराकरण
विज्ञापन के चकाचौंध में अक्सर उपभोक्ता भ्रमित हो जाते हैं कि वे कौन से वस्तु खरीदें ताकि उनकी आवश्यकता की पूर्ति हो सकें। इस स्थिति में अक्सर उत्पादक अथवा व्यापारी बड़े पैमाने पर विभिन्न प्रकार से उपभोकताओं का शोषण करते हैं।
विश्व के अन्य देशों की तरह हमारे देश मे भी कुछ ऐसी संवैधानिक संस्थाओं कि स्थापना कि गई है जो उपभोक्ताओं के इस आर्थिक शोषण का निराकरण करती है।
दो संस्थाएँ महत्वपूर्ण है जो लोगों के जीवन और उपभोग के अधिकार को संरक्षण देती है।
- मानवाधिकार आयोग एवं
- सूचना आयोग
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मानवाधिकार आयोग
हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर उच्चतम संस्था है, जो मानवीय अधिकारों की रक्षा और उनके अधिकार से संबंधित हितों के लिए सुरक्षा प्रदान करती है। इस संस्था को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग कहते हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का महत्व इस बात से बढ़ जाता है कि इसके अध्यक्ष भारत के उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त प्रधान न्यायाधाश होते हैं। इसी प्रकार देश के प्रत्येक राज्य में एक राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया है। जो देश के नागरिकों के अधिकार और सुरक्षा संबंधी बातों को देखती है।
महिलाओं के ऊपर हुए अत्याचार अथवा शोषण संबंधी शिकायत के निराकरण करने के लिए देश के स्तर पर राष्ट्रीय महिला आयोग तथा राज्य महिला आयोग का गठन किया गया है।
सूचना आयोग
कोई भी उपभोक्ता अपनी अधिकारों की रक्षा तभी कर सकते हैं, जब उन्हें अपने उपभोग की वस्तुओं और सेवाओं के उत्पाद संबंधी सभी सूचना उपलब्ध हो।
उपभोक्ता के इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार द्वारा देश के स्तर पर राष्ट्रीय सूचना आयोग और राज्य के स्तर पर राज्य सूचना आयोग का गठन किया गया है।
सूचना का अधिकार क्या है ?
सूचना का अधिकार आम आदमी को अधिकार संपन्न बनाने हेतु सरकार द्वारा महत्वपूर्ण कदम है।
सूचना के अधिकार का तात्पर्य है- कोई भी व्यक्ति अभिलेख, इमेल आदेश, दस्तावेज, नमूने और इलेक्ट्रॉनिक आँकड़े आदि के रूप में ऐसी प्रत्येक सूचना प्राप्त कर सकता है जिसकी उसे आवश्यकता है। जिसके लिए आवेदक संबंधित ‘लोक सूचना अधिकारी’ के समक्ष आवेदन करेगा। जिसकी सूचना 30 दिनों में संबंधित व्यक्ति को सूचना उपलब्ध करवाया जायेगा।
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