इस पोस्ट में हमलोग भक्ति आंदोलन (Bhakti Aandolan) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी और प्रमुख संतों के बारे में जानेंंगे।
पूर्व मध्यकाल में भक्ति आन्दोलन दक्षिण भारत में वर्ण व्यवस्था तथा छूआछुत अत्यधिक फैल गयी। यहां से भक्ति आन्दोलन का प्रारम्भ हुआ। भक्ति आन्दोलन की शुरुआत सर्वप्रथम नयनार संतों ने किया। इस आन्दोलन की शुरुआत करने का श्रेय अलवार सन्तों को भी जाता है।
भक्ति आन्दोलन को एक सुदृढ़-स्वरूप देने का श्रेय शंकराचार्य को जाता है।
शंकराचार्य ने अद्वैतवाद का मत दिया और कहा कि यह संसार झूठा है। ब्रह्म सत्य है। इन्होंने स्मृति-सम्प्रदाय की स्थापना किया।
शंकराचार्य ने दक्षिण भारत में भक्ति आंदोलन को बौद्ध तथा जैन धर्म के प्रभाव को कम करने के लिए किया।
इन्होंने अपने विचार के प्रसार के लिए भारत के चारों दिशा में पीठ (मठ) का निर्माण कराया। चारों दिशाओं में जिस पीठ की स्थापना किए उसका नाम निम्न है-
1. उत्तर- ज्योतिष पीठ (बद्रीनाथ) उत्तराखण्ड
2. दक्षिण- श्रृंगेरी पीठ (मैसूर) कर्नाटक
3. पूरब- गोवर्धन पीठ (पूरी) ओडिशा
4. पश्चिम- शारदापीठ (द्वारका) गुजरात
12वीं सदी में शंकराचार्य के मत को कई विद्वान ने काट दिया।
1. माध्वाचार्य ने द्वैतवाद का मत दिया और ब्रह्म सम्प्रदाय की स्थापना किया।
2. निम्बाकाचार्य ने द्वैता द्वैतवाद का मत दिया और सनक सम्प्रदाय की स्थापना किया।
3. बल्लभाचार्य ने शुद्धा द्वैतवाद का मत दिया और पुष्टि सम्प्रदाय की स्थापना किया।
4. रामानुजाचार्य ने विशीष्टता द्वैतवाद का मत दिया और श्री सम्प्रदाय की स्थापना किया।
प्रारम्भ में भक्ति आन्दोलन दक्षिण भारत तक सिमित था। भक्ति आन्दोलन को उत्तर भारत में लाने का श्रेय रामानंद को जाता है। रामानन्द ने अपना उपदेश हिन्दी में देना प्रारम्भ किया।
16वीं शताब्दी में भक्ति आंदोलन अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई।
उत्तर भारत का भक्ति आंदोलन उच्च-नीच तथा छुआ-छुत के विरुद्ध था। उत्तर भारत का भक्ति आंदोलन दो भागों में बंट गया। Bhakti Aandolan
1. सगुण भक्ति और 2. निर्गुण भक्ति
1. सगुण भक्ति- इस भक्ति के भक्त भगवान को एक विशेष रूप देते हैं। वे भागवान का आकार मानते हैं। वे मानते हैं कि भागवान का रूप होता है। वे भगवान की मूर्त्ति या चित्र बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। सगुण भक्ति दो भागों में बंट गया-रामभक्ति तथा कृष्णभक्ति।
राम भक्ति- इस शाखा के भक्त-भगवान राम की आधरना करते थे। इस शाखा के सबसे प्रमुख भक्त तुलसीदास थे। जिन्होंने अवधी भाषा में रामचरितमानस की रचना की। उनकी अन्य प्रमुख रचना कवितावली, दोहावली तथा विनयपत्रिका है। ये अकबर के समकालिन थे।
दक्षिण भारत में रामभक्ति को फैलाने का कार्य त्यागराज ने किया।
कृष्ण भक्ति- इस शाखा के सारे भक्त भगवान कृष्ण की अराधना करते थे। कृष्ण भक्ति में सबसे प्रमुख संत विट्ठल-स्वामी हुए। इन्होंने आठ शिष्यों को शिक्षा दिया। जिन्हें संयुक्त रूप से अष्टछाप कहा जाता है। इस अष्टाछाप में सबसे प्रमुख शिष्य सूरदास थे।
सूरदास की रचना सूर-सागर प्रमुख है।
सबसे प्रमुख महिला कृष्ण भक्ति मीरा बाई की रचना है।
महाराष्ट्र के क्षेत्रों में कृष्ण भक्ति को तुकाराम इत्यादि ने फैलाया।
तुकाराम शिवाजी के समकालिन थे। गुजरात के क्षेत्रों में कृष्ण-भक्ति का प्रचार नरसिंह मेहता ने किया। इनकी कविता ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए‘ है। यह महात्मा गांधी का भी पसंदीदा गीत था।
बंगाल बिहार तथा उडिसा के क्षेत्रों भक्ति आन्दोलन का प्रचार चैतन्य महाप्रभू ने किया था। इन्होंने ही हरिकिर्तन प्रारम्भ किया।
कृष्ण भक्ति में संगीत बहुत ज्यादा है।
2. निर्गुण भक्ति- इस भक्ति के सन्त किसी की मूर्ति या चित्र नहीं बनाते थे। इस भक्ति में ईष्वर को निराकार माना जाता है। वे बिना मूर्ति के ही अराधना करते थे। निर्गुण भक्ति दो भागों में बँट गया। संत भक्ति तथा सूफी भक्ति।
संति भक्ति- संत भक्ति के अंतर्गत गुरुनानक कबीर, धन्ना, सेना, रैदास जैसे संत आते हैं। संत भक्ति से संबंधित सिख गुरू निम्नलिखित है।
1. गुरू नानक- इनका जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई. में तलवंडी में हुआ था। यह स्थान वर्तमान समय में पाकिस्तान में है, जो ननकाना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु नानक ने सिख धर्म की स्थापना किया और गरीबों को मुफ्त में भोजन (लंगर) व्यवस्था शुरु किया। किन्तु यह सुचारू रूप से नहीं था। अपने जीवन का अंतिम समय उन्होंने करतारपुर साहिब में बिताये थे। इन्होंने ही गुरु की परंपरा को प्रारम्भ किया था।
इन्हें सिख धर्म का प्रथम गुरु कहा जाता था।
2. गुरू अंगददेव- ये सिख सम्प्रदाय के दूसरे गुरू थे, इन्होंने लंगर व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाया। इन्होंने गुरु मूखी लिपि का खोज किया।
3. अमरदास- ये सिख सम्प्रदाय के तीसरे गुरू थे, इन्होंने प्रदा-प्रथा, सती प्रथा (कुप्रथा) इत्यादि का विरोध किया। यह पारिवारिक जीवन में रहते हुए गुरु के कर्त्तव्यों का पालन किया।
4. रामदास- ये सिख के चौथे गुरू थे। इनका अकबर से अच्छा सम्बन्ध था। अकबर ने इन्हें अमृतसर शहर के लिए 500 बीघा जमीन दान में दिया। जिसमें वे अमृतसर नामक एक तालाब बनवाए थे।
5. अर्जुन देव- ये सिख के पाँचवें गुरू थे। इन्होंने ही स्वर्ण मन्दिर की स्थापना की। इन्होंने गुरुग्रन्थ साहिब की रचना की थी।
जिन्हें आदि ग्रन्थ भी कहते हैं। इनके समय से ही गुरु का पद वंशानुगत हो गया। इन्होंने जहांगीर के विद्रोही पुत्र खुसरो को समर्थन दिया था। जिस कारण जहांगीर ने इन्हें फांसी दे दिया।
नोट- राजा रंजीत सिंह ने हरमंदिर पर सोने की परत चढ़वाया जिसके बाद हर मंदिर का नाम स्वर्ण मंदिर हो गया। सिख धर्म में सबसे ज्यादा जोर मानवता पर दिया गया है। हरमंदिर अमृतसर तालाब में स्थित है, जिसे वर्त्तमान में स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है।
6. गुरू हरगोविंद- इन्होंने अकाल तख्त की स्थापना किया तथा नगाड़ा बजाने की परम्परा शुरु किया।
7. हरिराय- इनका मुगलबादशाह दारा शिकोह से अच्छा सम्बन्ध था।
8. गुरू हरिकिशन- इनका कार्यकाल बहुत छोटा था। इनकी मृत्यु चेचक के कारण हो गयी थी।
9. गुरू तेगबहादुर- इन्होंने औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर द्वितीय को शरण दे दिया। जिस कारण औरंगजेब ने इन्हें इस्लाम धर्म कुबुल करने को कहा किन्तु इन्होंने इस्लाम धर्म कुबुल नहीं किया। जिस कारण औरंगजेब ने दिल्ली चांदनी चौक पर हत्या कर दिया जहां शिशगंज गुरुद्वारा है।
10. गुरू गोविंद सिंह- इनका जन्म 26 दिसम्बर, 1666 को पटना साहिब में हुआ था। किन्तु इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा अमृतसर में हुई थी। इनके बाद गुरु का पद समाप्त हो गया। इन्होंने सिखों को एक सैनिक टूकड़ी में ढ़ाल दिया और खालसा पंथ की स्थापना किया।
इन्होंने 5 करवार की स्थापना किया। 5 करवार इस प्रकार है- केश, कंघा, कृपाण, कछा, कड़ा रखना अनिवार्य कर दिया। इन्होंने कहा कि सिख अपनी बाल कभी नही दिखायेगा। इन्होंने मुगलों का मुहतोड़ जवाब दिया। इनके समय गुरु का पद समाप्त कर दिया गया।
1705 में औरंगजेब के कहने पर पर गुलखान नामक व्यक्ति ने महाराष्ट्र के नानदेड़ में गोविन्द सिंह की हत्या कर दी। गोविन्द सिंह के मृत्यु के बाद सबसे बड़ा सिख योद्धा बंदा बहादुर था। जिसने हजारों की संख्या में मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
औरंगजेब के इशारे पर बंदा बहादुर की भी हत्या कर दी गई। इसके बाद सिख धर्म छोटे-छोटे टूकड़ों में बंट गया। जिसे मिशल कहते हैं। सबसे प्रमुख मिशल सुकर चकिया मिशल था। जिससे राजा रंजीत सिंह आते थे। इन्होंने ही स्वर्ण मंदिर के दिवारों पर सोने की चादर चढ़वाई।
संत भक्ति के कुछ अन्य भक्त-
1. दादू – गुजरात
2. रामनुज – तमिलनाडु
3. रामानंद – इलाहाबाद
रामानंद- इसने पहली बार उपदेशों को हिन्दी में देना प्रांरभ किया। इनके कुछ प्रमुख शिष्य थे जो अलग-अलग जाति से थे। जो निम्नलिखित है-
कबीर- ये जुलाहे जाति से थे। इनके मानने वालों को कबीर पंथी कहते हैं। इनके दोहे बीजक पुस्तक में रखे गये हैं।
धन्ना- जाट
सेना- नाई
साधना- कसाई
सूफी भक्ति
सूफी शब्द अरबी भाषा का शब्द है। पहले सूपफी सन्त के रूप में मंसूर हल्लाज का नाम आता है। इन्होंने अनलहक की उपाधि धारण की जिसका अर्थ होता है ईश्वर से मिलने वाला।
✦ भारत में सबसे प्रमुख सूफी सम्प्रदाय में चिस्ती सम्प्रदाय थी। भारत में इसकी स्थापना का श्रेय ख्वाजा मोइनुद्दीन चिस्ती को जाता है। इन्होंने अपना केन्द्र राजस्थान के अजमेर में बनाया।
✦ चिस्ती सम्प्रदाय के संत उदारवादी (विनम्र) होते थे। ये कट्टर नहीं होते।
✦ मोइनुद्दीन चिस्ती के गुरु उस्मान हारूनी थे।
✦ मोइनुद्दीन चिस्ती के सबसे प्रिय शिष्य ख्वाजा बख्तियार काकी थे।
✦ बख्तियार काकी के शिष्य बाबा फरिद तथा कुतुबुद्दीन ऐबक थे।
✦ बाबा फरीद क उपदेशों को गुरु ग्रन्थ साहिब में भी रखा गया है।
✦ बाबा फरीद के सबसे प्रिय शिष्य निजामुद्दीन औलिया थे।
✦ निजामुद्दीन औलिया के सबसे प्रिय शिष्य अमीर खुसरो थे।
✦ निजामुद्दीन औलिया तथा अमीर खुसरो दोनों का मकबरा दिल्ली में एक ही पास है।
✦ अकबर के समकालिन सूफी शेख सलिम चिस्ती थे। इन्हीं से प्रभावित होकर अकबर ने अपने बेटे का नाम सलिम रखा था। जो आगे जाकर जहांगीर के नाम से जाना गया।
नोट- ख्वाजा मोइनुद्दीन चिस्ती द्वारा चलाए गए सम्प्रदायों को चिस्ती सम्प्रदाय कहते हैं। यह भारत का सबसे बड़ा सूफी संप्रदाय है।
सुहरावर्दी सम्प्रदाय
इस सम्प्रदाय के स्थापना का श्रेय बहाउद्दीन जकरिया को जाता है। इन्होंने अपना केन्द्र पाकिस्तान के मुलाना को बनाया था। इस शाखा के सूफी कठोर व्रत का पालन नहीं करते हैं। बल्कि सामान्य जीवन ही जीते हैं।
फिरदौसी सम्प्रदाय
✦ इस सम्प्रदाय के स्थापना का श्रेय यहिया मनेरी को जाता है। इन्होंने अपना केन्द्र बिहार के मनेर शरीफ (दानापुर) को बनाया। बिहार में सबसे प्रचलित फिरदौसी सम्प्रदाय थी।
नक्सबंदिया सम्प्रदाय
✦ नक्सबंदिया सम्प्रदाय के संस्थापक बाकी बिल्लाह थे।
✦ इस सम्प्रदाय के सूफी कठोर व्रत का पालन करते थे तथा कट्टर थे।
✦ धर्मिक कट्टर का अर्थ होता है धर्मिक नियम को कठोरता पूर्ण लागू करवाने वाला।
कादरिया सम्प्रदाय
✦ इस सम्प्रदाय के संस्थापक शेख अब्बुल कादिर जीलानी सैयद लिल्लाह थे। इन्होंने अपना केन्द्र इराक के बगदाद में बनाया था।
कट्टर- वैसे लोग जो नियमों को शक्ति से पालन करते हैं कट्टर कहलाते हैं।
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