Bihar Board Class 8 Hindi कबीर के पद (Kabir Ke Pad Class 8th Hindi Solutions ) Text Book Questions and Answers
11. कबीर के पद
(कबीर दास)
अभ्यास के प्रश्न एवं उत्तर
पाठ से :
प्रश्न 1. पंक्तियों को पूरा करना :
(क) मेरा तेरा मनुआँ कैसे इक होई रे । मैं कहता आँखिन की देखी, तू कहता कागद की लेखी । मैं कहता सुरझावनहारी तू राख्यौ उरझाई रे । मैं कहता तू जागत रहियो तू रहता है सोई रे ।
(ख) ना तो कौनों क्रिया करम में नाहिं जोग वैराग में । खोजी होय तो तुरतहि मिलिहौ पलभर की तलास में ।
प्रश्न 2. इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए :
(क) मैं कहता निर्मोही रहियो, तू जाता है मोही रे ।
भाव – प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से यह बताया गया है कि कबीर मनुष्य को अनासक्त भाव से कार्य करने का संदेश देते हैं, क्योंकि ईश्वर के अतिरिक्त सब कुछ असत्य और नाशवान् है । लेकिन अज्ञानतावश मानव सांसारिक विषय–वासनाओं को सत्य मानकर उसी में डूबा रह जाता है । फलतः मानव शरीर धारण करना व्यर्थ चला जाता है । मानव शरीर तो जन्म–मृत्यु के बंधन से मुक्ति पाने के लिए मिलता है, लेकिन मूढ़ मानव इस बात को स्वीकार नहीं करता ।
(ख) मोको कहाँ ढूंढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में ।
भाव – ईश्वर मानव को संबोधित करते हुए कहता है– सृष्टि के श्रृंगार मानव ! तू मुझे कहाँ खोजते फिरता है। मैं तो सतत् तुम्हारे साथ रहता हूँ। मेरी प्राप्ति बाह्यपूजा से नहीं, आन्तरिक पूजा और सच्चे दिल से स्मरण करने से मिलती है। जब मानव अपने मूल्य को जान लेता है, जब उसे अपने स्वरूप का सही ज्ञान हो जाता है, तब आत्मा का मिलन परमात्मा से हो जाता है। इसलिए मानव को रूढ़िवादी विचारों को छोड़कर जीवन सत्य को जानने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि हर प्राणी का प्राण रूप वही है।
प्रश्न 3. ‘मोको’ शब्द किसके लिए प्रयोग किया गया है ?
उत्तर – ‘मोको’ शब्द का प्रयोग परमपिता परमेश्वर अर्थात् ब्रह्मरूप ईश्वर के लिए किया गया है ।
पाठ से आगे :
प्रश्न 1. कबीर की रचनाएँ आज के समाज के लिए कितनी सार्थक / उपयोगी है ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – आज के परिवेश में कबीर की रचनाएँ समाज के लिए अति उपयोगी जान पड़ती हैं, क्योंकि कबीर ने जिन बातों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की है, आज समाज उन्हीं बातों को सत्य मानकर एक-दूसरे का गला घोंटने में लगा हुआ है। संत कबीर ने सारे रुढ़िवादी विचारों का विरोध किया है, मानव को मानव जैसा व्यवहार करने की सलाह दी है, ताकि एक नए समाज की स्थापना हो सके। कबीर जाति-पाति, धर्माडम्बर आदि को व्यर्थ मानते हैं तथा संसार को असत्य कहकर यह समझाने का प्रयास करते हैं कि मृत्यु के समय उसका अच्छा-बुरा कर्म ही साथ जाता है। धन-दौलत परिवार सब कुछ यहीं रह जाते हैं । इसलिए हर मानव को अनैतिक साधन का त्याग करने में ही भलाई है। यदि लोग कबीर के सिद्धांतों का अनुसरण करें, तो सारा विवाद स्वतः खत्म हो जाएगा ।
प्रश्न 2.
सगुण भक्तिधारा — इसमें ईश्वर के साकार रूप की अराधना की जाती है।
निर्गुण भक्तिधारण — इसमें ईश्वर के निराकार रूप की आराधना की जाती है।
इस आधार पर कबीर को आप किस श्रेणी में रखेंगे ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए ।
उत्तर – कबीर ज्ञानाश्रयी शाखा के निर्गुणोपासक संत कवि हैं । उन्होंने निराकार ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति प्रकट की है। उनका विश्वास है कि सच्चे ज्ञान से ही ईश्वर मिल सकता है। उसके लिए नाम स्मरण एवं गुरु शरण दोनों आवश्यक हैं। उनका मानना था कि ईश्वर निराकार है, निर्गुण है । वह अजन्मा है। उसका निवास हर प्राणी के हृदय में होता है। दिल में निवास करने वाली आत्मा ही परमात्मा का प्रतिरूप है । जब मनुष्य इस आत्मा की सच्चाई को जान लेता है तब उसका परमात्मा से साक्षात्कार हो जाता है । इस प्रकार हम देखते हैं कि कबीर निर्गुण भक्ति धारा के कवि थे ।
प्रश्न 3. सगुण भक्तिधारा एवं निर्गुण भक्तिधारा के दो–दो कवियों के नाम लिखिए ।
उत्तर : सगुण भक्तिधारा के कवि —तुलसीदास, सूरदास
निर्गुण भक्तिधारा के कवि —कबीर, जायसी ।
प्रश्न 4. वैसे पंक्तियों को खोज कर लिखिए, जिसमें कबीर ने धार्मिक आडम्बरों पर कुठाराघात किया है :
उत्तर :
मोको कहाँ ढूंढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में ।
ना मैं देवल ना मैं मस्जिद, न काबे कैलास में
ना तो कौनों क्रिया करम में नाहिं जोग बैराग में ।
खोजी होय तो तुरतहि मिलिहौ, पलभर की तलास में ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, सब साँसों की साँस में ।
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