4. स्वास्थ्य एवं रोग
अच्छा स्वास्थ्य- वह स्थिति जिसमें पूर्ण शरीरिक, मानसिक और सामाजिक संपन्नता हो, न कि केवल बिमारियों या पीड़ा का न होना।
अच्छा स्थास्थ्य की मूल शर्तें
1. संतुलित आहार- ऐसा आहार जिसमें सभी पोषक तत्त्व समुचित मात्रा में उपलब्ध हो।
2. व्यक्तिगत एवं घरेलू स्वास्थ्य- व्यक्तिगत सफाई के साथ-साथ घर की भी सफाई करते रहना चाहिए। हमें प्रतिदिन स्नान करना चाहिए और साफ कपड़े पहनना चाहिए।
3. स्वच्छ भोजन एवं जल- हमें शुद्ध तथा स्वच्छ जल का सेवन करना चाहिए। पके हुए भोजन को ढ़ककर रखना चाहिए। बाजार से लाई गई सब्जीयों एवं फलों की सतहों को धोकर ही उसका सेवन करना चाहिए।
4. शुद्ध एवं स्वच्छ हवा- स्वच्छ वातावरण में रहना चाहिए। स्वच्छ वायु के लिए घर हवादार होनी चाहिए।
5. व्यायाम एवं विश्राम- हमें नियमित रूप से व्यायाम करते रहना चाहिए। साथ ही शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए विश्राम भी करना चाहिए। नियमित व्यायाम से पाचन शक्ति बढ़ता है और रात में अच्छी नींद आती है।
6. दुर्व्यसन का न होना- हमें नशा वाले चीझों का सेवन नहीं करना चाहिए। धुम्रपान, शराब, तंबाकू आदि मादक पदार्थों से दूर रहना चाहिए।
Swasthya Evam Rog Class 9th Science Notes in Hindi
मानव रोग- रोग एक असामान्य शरीरिक स्थिति है, जिसमें शारीरिक अंग या अंगतंत्र सामान्य रूप से कार्य नहीं कर पाते हैं।
रोगलक्षण- वैसे संकेत जो शारीरिक अंगों के सामान्य कार्य न करने से मिलते हैं तथा जिसे केवल रोगी ही महसूस कर सकता है, रोगलक्षण कहलाता है। जैसे, गले या पेट में दर्द होना, चक्कर आना आदि।
तीव्र रोग- ऐसे रोग जो अचानक उत्पन्न होते हैं तथा जिनका प्रभाव अंशकालिक, अर्थात कम समय के लिए तथा तीक्ष्ण होता है, तीव्र रोग कहते हैं। जैसे- शर्दी, मलेरिया, हैजा, इंफ्लुएंजा आदि।
चिरकालिक रोग- ऐसे रोग जो बहुत समय तक बने रहते हैं, उसे चिरकालिक रोग कहते हैं। जैसे- गठिया, दमा, टी०बी०, मधुमेह आदि।
संक्रामक रोग- सूक्ष्मजीव रोगाणुओं के कारण होनेवाले रोग, संक्रामक रोग कहलाते हैं।
जैसे- कॉलेरा, टीबी, एड्स, मलेरिया, फाइलेरिया आदि।
असंक्रामक रोग- ऐसे रोग जो संक्रमण अभिकर्ताओं जैसे रोगाणुओं के कारण नहीं होते हैं, असंक्रामक रोग कहलाते हैं। जैसे- मधुमेह, कैंसर, रक्तक्षीणता, गठिया आदि।
संचारित रोग- ऐसे रोग जो एक संक्रामक व्यक्ति से अन्य व्यक्तिओं में या एक समुदाय से दूसरे समुदाय में किसी बाह्य कारकों जैसे हवा, भोजन, जल, स्पर्श आदि के माध्यम से फैलते हैं। उसे संचारित रोग कहते हैं।
नोटः सभी संक्रामक रोग को संचारित रोग नहीं कह सकते हैं। जैसे टिटेनस। यह फैलने वाला रोग नहीं है।
टीका की खोज सर्वप्रथम एडवर्ड जेनर नामक व्यक्ति ने किया। इसने चेचक के टीके को विकसित किया।
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संक्रामक रोग और उसके लक्षण
मलेरिया
यह एक प्रोटोजाआ प्लाज्मोडियम के विभिन्न प्रजातियों के द्वारा होता है। इस रोग का वाहक मादा ऐनोफेलीज मच्छर है।
लक्षण-
तेज बुखार का आना, सिरदर्द, पेशिओं में दर्द के साथ-साथ शारीरिक कंपन का होना इस रोग का सामान्य लक्षण है।
नियंत्रण
इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को कुनैन दिया जाता है, जो सिनकोना पेड़ की छाल से बनती है।
रोकथाम
मच्छरों से अपनी सुरक्षा करके एवं मच्छरों को नष्ट करके इस रोग से बच सकते हैं।
डायरिया
डायरिया का अर्थ बार-बार पतला पैखाना (दस्त) होना है। गर्मी और बरसात के मौसम में यह रोग ज्यादा होता है। यह आँत को संक्रमित करते हैं। इस रोग के कारण अमाश्य और आँत में सुजन हो जाती है।
लक्षण
(क) पेटदर्द तथा लगातार दस्त होना।
(ख) दस्त के साथ, कभी-कभी मिचली एवं उल्टी होती है।
(ग) इस रोग में मुख एवं होंठ सूख जाता है। आँखें अंदर की ओर धँस जाती है।
(घ) पेचिश की अवस्था में आँत से निकलनेवाला रक्त दस्त के साथ शरीर से बाहर आने लगता है।
रोकथाम
(क) इस रोग से बचने के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।
(ख) शुद्ध जल पीना चाहिए।
(ग) पके भोजन को ढककर रखना चाहिए।
(घ) हमेशा गर्म और ताजा पकाया भोजन खाना चाहिए।
(ङ) मरीज को ORS पिलाते रहना चाहिए।
टाइफॉइड
यह रोग सलमोनेला टाइफी नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।
यह रोग संक्रमित पेयजल, भोजन तथा दूध और बिना अच्छी तरह साफ किए कच्चे फल एवं शब्जी के माध्यम से फैलता है।
संक्रमित चीज को शरीर में पहुँचने के 10-12 दिनों के बाद इस रोग के लक्षण प्रकट होते हैं।
लक्षण
(क) तेज बुखार, कमजोरी, सिरदर्द, पसीना आना, नाड़ी की गति धीमी होना। इस बिमारी के प्रमुख लक्षण है।
(ख) टाइफॉइड का बुखार करीब 3 सप्ताह तक लगा रहता है। रोगी की जीभ हमेशा सूखी रहती है।
(ग) रोगी के छोटी आँत में कभी-कभी अल्सर हो जाता है जिससे रक्त बहने लगता है।
रोकथाम-
(क) इस रोग को फैलने से रोकने के लिए सभी व्यक्तियों को स्वच्छता के महत्त्व का ज्ञान होना अत्यंत जरूरी है।
(ख) व्यक्तिगत सफाई के साथ-साथ, रहने की जगह तथा पास-पड़ोस को साफ रखकर मक्खियों को पनपने से रोका जाना चाहिए।
(ग) पेयजल और भोजन को संक्रमित होने से बचाना, इस रोग को फैलने से रोकने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
(घ) आँत में अल्सर होने की संभावना को रोकने के लिए रोगी को हलका तथा आसानी से पचनेवाला भोजन देना चाहिए।
(ङ) रोगी को परिवार के अन्य सदस्यों से पूरी तरह अलग रखना चाहिए।
(च) रोगी को पूर्णरूप से आराम करना आवश्यक है। रोग को मुक्त होने के बाद भी 10-13 दिनों तक आराम करना अनिवार्य है।
(छ) प्रत्येक व्यक्ति को हर तीन वर्ष के बाद चिकित्सक के परामर्श कर TAB का टीका लगवाना चाहिए।
क्षयरोग या टी०बी०
यह एक प्रकार का बैक्टीरिया माइकोबैक्टेरियम टिउबरकुलोसिस के कारण होता है।
यह रोग फेफड़ा को प्रभावित करता है।
यह रोग संक्रमित रोगी के थूक, कफ, खाँसी के माध्यम से फैलता है।
हमारे देश में औसतन प्रति 100 व्यक्तियों में 10 व्यक्ति इस रोग से पीड़ित होते हैं।
लक्षण-
(क) हलका बुखार होना, लगातार खाँसी आना, खाँसते समय कफ या बलगम के साथ रक्त निकलना तथा रात में शरीर से पसीना निकलना इस रोग के प्रमुख लक्षण है।
(ख) रोग के जल्दी उपचार न होने पर भूख नहीं लगती है जिससे शरीर का वजन लागातार घटते जाता है।
(ग) इस रोग के लक्षण धीरे-धीरे प्रकट होता है। लगभग 3 महीने से ज्यादा खाँसी के साथ-साथ हलका बुखार इस रोग के शुरूआती लक्षण है।
(घ) सीने में दर्द रहता है तथा चलने पर रोगी हाँफने लगता है। रोग पूराना होने पर कफ के साथ खुन आने लगता है।
रोकथाम-
(क) रोगी को परिवार से अलग रहना चाहिए।
(ख) रोगी को जहाँ-तहाँ नहीं थुकना चाहिए। खाँसते समय रोगी को रूमाल या हाथ से मुँह ढँककर रखना चाहिए।
(ग) ऐंटीबायोटिक दवा के सेवन से इसका उपचार संभव हो गया है।
(घ) इस रोग से भविष्य में बचने के लिए शीशुओं को BCG का टीका लगवाना चाहिए।
नोट : विश्व टी०बी० दिवस प्रतिवर्ष 24 मार्च को मनाया जाता है।
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हेपेटाइटिस
हेपेटाइटिस रोग में रोगी का यकृत (Liver) बड़ा हो जाता है। इस रोग का मुख्य लक्षण जॉण्डिस है जिसमें त्वचा एवं आँख का सफेद भाग पीला हो जाता है।
हेपेटाइटिस का नामकरण उसके स्ट्रेंस के अनुसार रखा जाता है। हेपेटाइटिस A से G तक होता है।
इस रोग से ठीक होने में रोगी को 4 सप्ताह का समय लगता है। कुछ प्रकार के हेपेटाइटिस से मनुष्य की मृत्यु भी हो सकती है।
लक्षण-
अलग-अलग प्रकार के हेपेटाइटिस के अलग-अलग लक्षण है। सिरदर्द, हल्का बुखार, जॉण्डिस (पीली त्वचा) एवं गहरे रंग का मूत्र इस रोग के साधारण लक्षण है।
नियंत्रण-
(क) यकृत को आराम देने एवं स्वस्थ रखने के लिए उच्च कार्बोहाइड्रेट भोजन का अल्पमात्रा में सेवन करना चाहिए।
(ख) वसायुक्त, प्रोटीनयुक्त एवं मिर्च-मशालायुक्त भोजन का हमेशा त्याग करना चाहिए।
(ग) रोगी को अधिक-से-अधिक आराम करना चाहिए।
(घ) इंटरफेरॉन की सूई लेनी चाहिए।
रोकथाम-
(क) दैनिक रहन-सहन पर पूर्ण स्वच्छता रखनी चाहिए।
(ख) शुद्ध पेयजल का सेवन करना चाहिए।
(ग) रोग की रोकथाम के लिए हेपेटाइटिस B का टीका लगवाना चाहिए।
(घ) रूधिर-आधान से पहले रोगी को चढ़ाए जानेवाले रक्त की जाँच करवा लेनी चाहिए।
रेबिज
रेबिज रैबडो वाइरस के कारण होनेवाला एक घातक रोग है।
रेबिज का वाइरस आमतौर पर कुत्तों के शरीर में वृद्धि एवं प्रजनन करते हैं। इसलिए, कुत्ता इस वाइरस के संग्राहक होते हैं।
कुत्तों के अलावा बिल्ली, बंदर, गीदड़, चमगादड़ तथा गिलहरी इस वाइरस के संग्राहक होते हैं।
एक संक्रमित जंतु जब मुनष्य को काटता है, तो उसके लार के माध्यम से मनुष्य के शरीर में रेबिज का वाइरस प्रवेश कर जाता है तथा रूधिर संचार के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुँच जाता है और ऊतकों को नष्ट करने लगता है।
लक्षण-
(क) सिरदर्द, हल्का बुखार तथा गर्दन में दर्द इस रोग के प्रारंभिक लक्षण है।
(ख) मुख से लार टपकना, क्रोधित होकर चिखना-चिल्लाना, चिड़चिड़ाहट तथा कभी-कभी बिल्कुल सुस्त हो जाना इस रोग का मुख्य लक्षण है।
(ग) ऐसी रोगी अन्य मनुष्यों को मारने या दाँत काटने का भी प्रयास करते हैं।
(घ) इस रोग में गर्दन की पेशियों का नियंत्रण समाप्त हो जाता है। गर्दन नीचे की ओर झुक जाता है तथा उसकी गति नहीं हो पाती है। जिससे रोगी को भोजन और जल निगलने में असुविधा होती है।
रोगी पानी पीने में असमर्थ हो जाता है तथा जल को देखते ही डरने लगता है, इसलिए इस रोग को हाइड्रोफोबिया भी कहा जाता है।
रोकथाम-
(क) रेबिज के वाइरस से मस्तिष्क प्रभावित हो जाने पर उसका किसी भी प्रकार का कोई इलाज नहीं है।
(ख) रेबिज के वाइरस से संक्रमति कुत्तों को आमभाषा में पागल कुत्ता कहते हैं। संक्रमित कुत्तों के काटने के तुरंत बाद रोग के लक्षण मनुष्य में प्रकट नहीं होते हैं। इस रोग के लक्षण दस दिनों के अंदर या कभी-कभी संक्रमण के एक वर्ष बाद भी दिखाई देते हैं। इस वाइरस का उद्भव-अवधि 10 दिन से एक वर्ष तक होता है।
(ग) काटे गए स्थान को अच्छी तरह साबुन, पानी से धोकर साफ कर देना चाहिए।
(घ) इसके बाद रोगी को ऐंटिरेबिज सीरम की सूई लगवानी चाहिए।
(ङ) चिकित्सक की सलाह पर ऐंटिरेबिज टीका की पूरी खुराक लगवाना अनिवार्य है।
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एड्स
एड्स (AIDS) का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिण्ड्रोम है। यह ह्यूम इम्यूनोडेफिसिएंसी वाइरस (HIV) के संक्रमण से होनेवाला रोग है। यह शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को नष्ट कर देता है, जिसके कारण रोगी आसनी से अनेक रोगों का शिकार हो जाता है।
लक्षण-
(क) फूली हुई लसीका ग्रंथियाँ
(ख) शरीर का भार दिन-प्रतिदिन कम होते रहना।
(ग) अधिक दिनों तक लागातार पेट खराब रहना।
(घ) बीच-बीच में बीमार होना।
(ङ) त्वचा पर जहाँ-तहाँ घाव का होना।
(च) बराबर थकावट महसूस करना।
(छ) बोलचाल में कष्ट का अनुभव करना।
(ज) स्मरण-शक्ति का कम होना।
प्रसारण-
(क) संभोग द्वारा एड्स का संक्रमण- मुख्य रूप से यह रोग अनैतिक यौन-संबंधों के कारण होता है।
(ख) रूधिर-आधान द्वारा एड्स का संक्रमण- जब HIV संक्रमित रक्त को किसी रोगी को चढ़ाया जाता है या एड्स के रोगी को लगाए गए इंजेक्शन की सूई से पुनः दूसरे रोगी को इंजेक्शन लगाया जाता है। तब दूसरा रोगी भी एड्स का शिकार हो जाता है।
नियंत्रण-
एड्स का इलाज या टीका का निर्माण अभी तक नहीं हो पाया है। दवा के द्वारा इसके लक्षण को कम किया जा सकता है। जिससे मनुष्य लगभग 10-15 वर्षों तक जीवित रह सकता है।
रोकथाम-
(क) एड्स से बचने का सबसे सरल उपाय अपने-आप को अनैतिक यौन-संबंधों से दूर रखे।
(ख) इंजेक्शन लगवाते समय हमेशा नए सुई का इस्तेमाल करें।
(ग) रूधिर-आधान के पहले दाता के रक्त की जाँच कर ही रोगी को रक्त चढ़ाएँ।
(घ) दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार में आने वाले शेविंग रेजर या ब्लेड का प्रयोग न करें।
पोलियो
पोलियो रोग पोलियो वाइरस के कारण होता है। पोलियो वाइरस संक्रमित भोजन, दूध तथा पेयजल के माध्यम से आहारनाल को संक्रमित करता है। यह वाइरस तंत्रिका तंत्र की ऐसी कोशिकाओं को नष्ट कर देता है, जो शरीर के पेशियों को नियंत्रित करते है। इससे पेशियों का नियंत्रण समाप्त हो जाता है।
यह रोग विशेषकर 6 महीने से 3 वर्ष तक की उम्र की शिशु ज्यादा संक्रमित होते हैं।
लक्षण-
(क) इस रोग के शुरूआती लक्षण बुखार, उल्टी, पतला पैखाना, सिर और बदन में दर्द तथा गले की पेशियों का सख्त होना है।
(ख) शुरूआती लक्षण दिखाई देने के बाद शरीर की पेशियाँ धीरे-धीरे सख्त एवं शुष्क होने लगते हैं। इस रोग का प्रभाव ज्यादा हाथों और पैरों पर होता है। इस रोग में रोगी ठीक से खड़ा होने या चलने में असमर्थ हो जाता है।
रोकथाम-
(क) पोलियो वाइरस से सुरक्षा के लिए पीने के ड्रॉप के रूप में OPV (Oral Polio VaccioVaccine) की खुराक चिकित्सक के परामर्श पर देनी चाहिए।
(ख) किसी भी शिशु को एक बार पोलियो रोग हो जाने पर उससे प्रभावित अंगों का इलाज होना संभव नहीं है। फिजियोथेरापी द्वारा रोग की तीव्रता को कम किया जा सकता है।
(ग) इस रोग से सुरक्षा के लिए स्वच्छ वातावरण के साथ व्यक्तिगत स्वच्छता भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
(घ) पोलियो के विरूद्ध देश में चलाए जा रहे अभियान पल्स-पोलियो के कार्यक्रमों को सभी को सहयोग करना चाहिए।
प्रश्न 1. जब आप बीमार होते हैं तो आपको सुपाच्य तथा पोषणयुक्त भोजन करने का परामर्श क्यों दिया जाता है ?
उत्तर: जब हम बीमार होते हैं तो हमें सुपाच्य एवं पोषण युक्त भोजन करने का परामर्श दिया जाता है जिससे कि हम जल्दी से जल्दी आहार से पोषक तत्वों को ग्रहण कर, उससे प्राप्त ऊर्जा का उपयोग बीमारी से लड़ने में कर सकें।
प्रश्न 2. संक्रामक रोग फैलने की विभिन्न विधियाँ कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर: संक्रामक रोग सूक्ष्मजीवों द्वारा फैलते हैं। इनके फैलने की प्रमुख विधियाँ हैं –
अनेक सूक्ष्मजीव वायु द्वारा फैलते हैं। जब हम खाँसते या छींकते हैं तो उस समय ये सूक्ष्मजीव छोटी-छोटी बूंदों के रूप में वायुमण्डल में फैल जाते हैं। ये स्वस्थ मनुष्य में रोग का संक्रमण फैलते हैं। इस विधि द्वारा क्षयरोग तथा न्यूमोनिया फैलाता है।
कभी-कभी सूक्ष्मजीव पेयजल के साथ मिलकर रोग फैलाते हैं; जैसे-हैजा के जीवाणु।
लैंगिक सम्पर्क द्वारा भी संक्रामक रोगों का संक्रमण होता है। इस विधि से सिफलिस, एड्स जैसे रोगों का संक्रमण होता है।
कुछ रोग रोगवाहक कीटों द्वारा फैलते हैं; जैसे-मलेरिया, मच्छर द्वारा फैलता है।
प्रश्न 3. संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए आपके विद्यालय में कौन-कौन सी सावधानियाँ आवश्यक हैं?
उत्तर: संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए हमारे विद्यालय में निम्नलिखित सावधानियाँ आवश्यक हैं-
- विभिन्न संक्रामक रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को विद्यालय में प्रवेश से वंचित रखना।
- स्वच्छ पीने के पानी की व्यवस्था करना।
- साफ-सफाई की उचित व्यवस्था, विशेष रूप से शौचालयों की सफाई की नियमित एवं उचित व्यवस्था सुनिश्चित करना।
- विद्यालय के किसी भाग में जल का भराव न होने देना ताकि मच्छर न विकसित हो पायें।
- विद्यालय में समय-समय पर कीटनाशकों का छिड़काव की व्यवस्था होना।
- समय-समय पर टीकाकरण की सुविधा तथा स्वास्थ्य एवं स्वच्छता हेतु व्याख्यान द्वारा विद्यार्थियों को स्वच्छता के लिए जागरूक करना।
प्रश्न 4. प्रतिरक्षीकरण क्या है ?
उत्तर: प्रतिरक्षीकरण शरीर की एक प्रतिरक्षात्मक क्रिया है जिसके द्वारा संक्रामक रोगों से शरीर की प्रतिरक्षा होती है। इसके अन्तर्गत हम किसी विशिष्ट संक्रामक कारक को मृत अवस्था (अरोग्य अवस्था) में शरीर में प्रवेश करा देते हैं जिससे शरीर उस रोगाणु विशेष से बचने हेतु प्रतिरक्षी उत्पन्न कर उस रोग विशेष से प्रतिरक्षा उत्पन्न कर लेता है।
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