10. संस्कृतेन जीवनम्
( संस्कृत से ही जीवन सफल होता है )
एहि मित्र हे सुधीर
त्वां विचिन्तये सदा।
इह सखे समं मया हि
खेल नन्द सन्ततम् ।।
संस्कृतेन खेलनम्
कुर्महे सखे चिरम्।
तेन वाग्विवर्धनं
प्राप्नुयाम सत्वरम् ॥
संस्कृतेन लेखनं
सर्वबालरंजकम्
तेन शब्दरूपसिद्धि
राप्यते सखे वरम् ॥
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संस्कृतेन भाषणं
सर्वगर्वनाशकम्।
तेन रंजिता भवन्ति
सर्वदेवदेवताः॥
संस्कृतेन चिन्तनं सद्गुणाभिवर्धनम्।
तेन मानसं सखे
स्यात् सदा सुखान्वितम्॥
अर्थ- हे मित्र ! हे सुधीर ! तुमको सदैव इसका विशेष मनन करना चाहिए। हे मित्र ! मेरे समान ही यह तुमको खेल जैसा आनन्द देने वाला है।
हे मित्र ! संस्कृत के साथ हमलोगों को चिरकाल तक खेल करना चाहिए। उससे शीघ्र ही वाचा-शक्ति की वृद्धि प्राप्त करते हैं।
हे मित्र । सभी बच्चों को आनन्द देने वाला संस्कृत भाषा में ही सुन्दर लेखन करना चाहिए। जिससे शब्द-शक्ति में सिद्धि प्राप्त होती है।
सबों के गर्व को नाश करनेवाला संस्कृत में ही बोलना चाहिए। उससे सभी को सब कुछ देने वाले देवता लोग प्रसन्न होते हैं।
हे मित्र । संस्कृत चिन्तन (अध्ययन) करने से सद्गुणों की वृद्धि होती है । उससे हृदय सदैव सुखी रहता है।
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