आद्य-ऐतिहासिक काल (Aadya aitihasik kal) – इस काल में मानव द्वारा लिखी गई लिपी को पढ़ा नहीं जा सका है, किन्तु लिखित साक्ष्य मिले हैं। इस काल के जानकारी का स्त्रोत भी पुरातात्विक साक्ष्य ही है। * इसमें सिंधु सभ्यता को रखते हैं।
अर्थात इतिहास का वह कालखंण्ड जिसमें मानव पढ़ना-लिखना जानता था, परन्तु उसे पढ़ा नहीं जा सकता है। उसे आद्य ऐतिहासिक काल कहते हैं।
सिंधु सभ्यता (Sindhu Sabhyata in Hindi)
यह सभ्यता सिंधु नदी के तट पर मिली थी, इसलिए इसे सिन्धु सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता कहते हैं। इसकी जानकारी के लिए पहली खुदाई हड़प्पा से हुई थी। अतः इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं। सिंधु सभ्यता की जानकारी (Message) चार्ल्स मैशन ने दिया था। सिंधु सभ्यता का सर्वेक्षण जेम्स कनिंघम ने किया । सिंधु सभ्यता 13 लाख वर्ग किमी. में फैली है।
सिंधु सभ्यता का नामकरण जॉन मार्शल ने किया था।
सिंधु सभ्यता की पहली खुदाई दयाराम साहनी ने की थी।
सिंधु सभ्यता का आकार त्रिभुजाकार है।
सिंधु सभ्यता विश्व की सबसे पहली शहरी सभ्यता थी।
इसका विकास 2600 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व तक हुआ ।
इसकी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान के सुतकार्गेडोर में थी, जो डास्क नदी के तट पर थी।
इसकी उत्तरी सीमा कश्मीर के मांडा में चिनाब नदी के तट पर थी।
इसकी पूर्वी सीमा उत्तर-प्रदेश के आलमगीरपुर में थी। जो हिन्डन नदी के किनारे थी। इसकी दक्षिणी सीमा महाराष्ट्र के दैमाबाद में प्रवरा नदी के तट पर थी।
“सिंधु सभ्यता के प्रमुख स्थल”
सिंधु सभ्यता में लगभग 300 स्थल हैं, जिसमें हडप्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल, सुरकोटदा, कोटदीजी, बनवाली, रंगपूर, कालिबंगा, रोपड़ आदि प्रमुख है।
(1) हड़प्पा (1921) : इसकी खुदाई दयाराम साहनी ने की।
इसकी खुदाई की शुरूआत 1921 ई० में हुई।
यह रावी नदी के तट पर पाकिस्तान के “माऊन्ट गोमरी” जिला में स्थित है।
यहाँ से निम्नलिखित वस्तुएँ मिली हैं—
(i) कुम्हार का चाक (ii) श्रमिक आवास (iii) अन्नागार (iv) मातृदेवी की मूर्ति (v) लकड़ी की ओखली (vi) लकड़ी का ताबूत (vii) R. H. 37 कब्रिस्तान (viii) हाथी का कपाल (ix) स्वास्तिक चिन्ह।
मोहनजोदड़ो 1921
इसकी खुदाई सन् 1921 ई. में राखलदास बनर्जी ने की।
यह पाकिस्तान के लरकाना जिले में स्थित है। यह सिन्धु नदी के तट पर है यह सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा शहर है। यहाँ मृतकों का एक बहुत बड़ा टिला मिला है।
यहाँ से निम्नलिखित वस्तुएँ मिली हैं—
(i) पुरोहित आवास (ii) अन्नागार (iii) घर में कुंआ (iv) विशाल स्नानागार (v) सूती वस्त्र (vi) सबसे चौड़ी सड़क (vii) सभागार (viii) पशुपति शिव (ix) काँसे की नर्तकी (x) ताँबे का ढ़ेर।
Note : मोहनजोदड़ों का अन्नागार सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा भवन या इमारत है।
सिंधु सभ्यता का सबसे चौड़ी सड़क मोहनजोदड़ो का है।
“चंदहुदड़ो 1931″
इसकी खुदाई सन् 1931 ई. में गोपाल मजूमदार ने की। यह पाकिस्तान में सिन्धु नदी के तट पर स्थित है। यही एक मात्र शहर है, जो दुर्ग रहित है।
यह एक औद्योगिक शहर है। यहाँ निम्नलिखित वस्तुएँ मिलीं है— (i) मेक-अप सामग्रियाँ (ii) लिप्स्टिक (iii) शीशा (iv) मनका (v) गुड़िया (vi) सुई (vii) अलंकृत ईट (viii) बिल्ली का पीछा करता हुआ कुत्ता के पंजे का निशान।
“रोपड़” 1953
इसकी खुदाई यज्ञदत्त शर्मा ने 1953 ई. में की । यह पंजाब के सतलज नदी के किनारे स्थित है। यहाँ मानव के साथ-साथ उसके पालतू जानवरों का भी शव मिला है।
Note : ऐसा ही शव नव-पाषाण काल में जम्मु-कश्मीर के बुर्जहोम में मिला था। ‘बनवाली‘
इसकी खुदाई रविन्द्र सिंह ने की । यह हरियाणा में स्थित है। इसके समीप रंगोई नदी है। यहाँ जल-निकासी की व्यवस्था नहीं थी जिस कारण घरों में सोखता मिला है। यहाँ की सड़के टेढ़ी-मेढ़ी थीं।
“कालीबंगा‘
इसका अर्थ होता है काली मिट्टी की चूड़ी। यहाँ से अलंकृत ईट, चुड़ी, जोता हुआ खेत हल एवं हवन कुँड मिले हैं । यह राजस्थान में सरस्वती (घग्घर) नदी के किनारे है। इसकी खुदाई B.K. थापड़ तथा B.B. लाल ने की। “धौलावीरा”
यह गुजरात में स्थित है। यह सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल है। इसकी खुदाई रविन्द्र सिंह ने की।
“सुरकोटदा”
यह गुजरात में स्थित है | यहाँ से कलश शवाधान तथा घोड़े की हड्डी मिली है। “लोथल‘‘
यहाँ सिंधु सभ्यता का बंदरगाह स्थल है। यहाँ से गोदीवाड़ा(बंदरगाह) मिला है। यहाँ घर के दरवाजें सड़कों की ओर खुलते थे। यहाँ फारस(इरान) की मुहर मिली है, जो विदेशी व्यापार का संकेत है।
यहाँ से युगल शवाधान मिला है, जो सतीप्रथा का प्रतीक है।
“रंगपुर”
यह गुजरात में स्थित है। यहाँ से धान की भूसी मिली है।
सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल धौलावीरा था जो गुजरात + पाकिस्तान में स्थित था।
लेकिन अब सबसे बड़ा स्थल राखीगढ़ी (हरियाणा) है।
सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध शहर शहर मोहनजोदड़ो है।
“सिंधु सभ्यता की विशेषताएँ‘
सिंधु सभ्यता एक नगरीय (शहरी) सभ्यता थी। यहाँ की सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी, तथा ये पूरब-पश्चिम दिशा में थी, जिससे हवा द्वारा सड़क स्वतः साफ हो जाती थी। नालियाँ ढ़की हुई थी। अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था। इनका व्यापार विदेशों तक होता था। इनका समाज मातृ सतात्मक था। इनकी लिपी भाव चित्रात्मक थी, जिसे पढ़ा नहीं जा सका है।
इनके मुहरों पर सर्वाधिक 1 सिंग वाले जानवर का चित्र था।
इनके मुहरों पर गाय का चित्र नहीं मिला है।
यहाँ माप-तौल के लिए न्यूनतम बाट 16 kg का था।
सिंधु सभ्यता के लोग युद्ध या तलवार से परिचित नहीं थे।
सिंधु सभ्यता के विनाश का सबसे बड़ा कारण बाढ़ को माना जाता है।
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